तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया, तो पड़ोसी देशों ने सरहद पर चौकसी और सुरक्षा बढ़ा दी. तालिबान ने सरहद पर लड़ाके तैनात कर दिए. अब सरहद के रास्ते अफगानिस्तान छोड़ना लोगों के लिए मुश्किल हो गया. अफगानिस्तान से कोई समुद्री रास्ता भी नहीं है. अब केवल हवाई रास्ता बचता है. अफगानिस्तान में कुल 4 इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं. जिनमें से तीन पर तालिबान का कब्जा हो गया है. जहां से अफगान नागरिक बाहर नहीं जा सकते. अब केवल काबुल का हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट बचा है. जो अमेरिकी सैनिकों के कब्जे में है और तालिबान एयरपोर्ट के दरवाजे पर खड़ा है.
वो तस्वीरें तो आपने देखी होंगी, जिनमें अफगान नागरिक एक अमेरिकी विमान के विंग पर सवार होकर मुल्क से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं. लेकिन विमान के उड़ान भरते ही वो मौत के मुंह में जा गिरते हैं. इसी तरह एयरपोर्ट पर भगदड़ का वो मंजर जहां अफगान नागरिक विमान तक जाने के लिए, अपनी जान बचाने के लिए विमान तक पहुंचना चाहते हैं. उन्हें गोलियों को डर नहीं लेकिन तालिबान का है. महिलाएं क्या बच्चे क्या. हर कोई मौत के मुहाने पर हैं. वो मंज़र कोई चाहे भी तो भुला नहीं पाएगा. इंसानों का हुजूम. जान बचाने के लिए जान पर खेल जाने की ये बेवक़ूफ़ी या मजबूरी और काबुल का एयरपोर्ट.
काबुल का वही हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट जो इस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान से निकलने का इकलौता रास्ता है. अब चूंकि रास्ता इकलौता है, तो मानो पूरा अफगानिस्तान ही बस इसी रास्ते पर सिमट आया हो. क्योंकि जान बचाने का कोई रास्ता बचा ही नहीं है. पर ऐसा क्यों है? क्यों अफ़ग़ान से निकलने का ये एयरपोर्ट ही इकलौता रास्ता है? क्यों अफगान में मौजूद तमाम देसी-विदेशी लोग इसी रास्ते का रुख कर रहे हैं? जब पूरे अफग़ान पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका है, तो फिर ये एयरपोर्ट तालिबान के क़ब्ज़े से बाहर कैसे है? कौन है जो इस वक़्त इस एयरपोर्ट की सुरक्षा कर रहा है? कौन कौन से देश हैं, जहां से और जहां के लिए इस एयरपोर्ट पर जहाज़ उड़ान भर रहे हैं? तो पूरी दुनिया की नजरें उसी हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर टिकी हैं.
पढ़ें-- दुनिया का पांचवां सबसे अमीर आतंकी संगठन है तालिबान, इस काले कारोबार से होती है मोटी कमाई
अफग़ानिस्तान से कुल छह देशों की सीमाएं लगती हैं. उत्तर में तजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्केमेनिस्तान. दक्षिण और दक्षिण पूर्व में पाकिस्तान और पश्चिम में ईरान और चीन. 15 अगस्त यानी जिस दिन तालिबान ने काबुल फतह किया, उसी दिन से इन तमाम सरहदी देशों ने अपनी सरहद ना सिर्फ़ बंद कर दिए, बल्कि सरहद पर सुरक्षा भी बेहद कड़ी कर दी है. जबकि दूसरी तरफ खुद तालिबान अब इन तमाम सरहदी इलाक़ों पर पहरे दे रहा है. यानी अफग़ान से निकल भागने के दोनों रास्ते बंद हैं. अब ऐसे में जब सरहदी इलाके से निकलना मुश्किल है, तो फिर अफग़ान से बाहर निकलने के लिए इकलौता रास्ता बचता है हवाई रास्ता.
अफग़ानिस्तान में कुल 21 एयरपोर्ट्स हैं. लेकिन इनमें से 17 एयरपोर्ट छोटे और सिर्फ़ घरेलू उड़ानों के लिए है. जबकि चार ऐसे एयरपोर्ट हैं, जो इंटरनेशनल हैं. यानी इन चार एयरपोर्ट्स से ही अफग़ान के लोग या अफग़ान में फंसे विदेशी लोग अफगान से बाहर निकल सकते हैं. ये चार इंटनरेशनल एयरपोर्ट्स हैं काबुल का हामिद करज़ई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कांधार का अहमद शाह बाबा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मज़ार-ए-शरीफ़ का मौलाना जलालुद्दीन बल्की इंटरनेशनल एयरपोर्ट और हेरात का ख्वाजा अब्दुल्ला अंसारी इंटरनेशनल एयरपोर्ट.
अफग़ानिस्तान के इन चार इंटरनेशनल एयरपोर्ट्स में से तीन पर तालिबान का क़ब्जा है. यानी कांधार, मज़ार ए शरीफ और हेरात शहर. अब ऐसे में इन तीन एयरपोर्ट्स से निकलना अफग़ानी नागरिक और विदेशी दोनों के लिए नामुमकिन है. लिहाज़ा ले देकर बचता है काबुल का इंटरनेशनल एयरपोर्ट. और बस इसीलिए अफगान की पूरी भीड़ उसी सड़क पर उतर आई है, जो सड़क काबुल एयरपोर्ट की तरफ़ जाती है. लेकिन काबुल एयरपोर्ट पर भी पेच फंसा हुआ है. दरअसल, अफग़ानिस्तान के बाक़ी शहरों की तरह काबुल पर भी तालिबान पूरी तरह क़ाबिज़ है. पूरे शहर के साथ-साथ शहर के हर रास्ते, हर मोड़ पर तालिबानी मौजूद हैं. शहर की अंदरुनी सुरक्षा तालिबान ने अपने हाथों में ले रखा है. यानी काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक पहुंचने से पहले हर मुसाफ़िर को तालिबान का सामना करना पड़ रहा है. एक बार तालिबान के सुरक्षा घेरे को तोड़ कर या तालिबान की मर्ज़ी से कोई एयरपोर्ट पहुंच भी गया, तो अब उसे अमेरिकी सैनिक का सामना करना होगा. क्योंकि अफग़ान और अफग़ान के तमाम शहर और कस्बे बेशक तालिबान के कब्जे में हों लेकिन काबुल एयरपोर्ट का अंदरुनी हिस्सा पूरी तरह से अमेरिका के कब्ज़े में है.
इसे भी पढ़ें-- अफगानिस्तानः तालिबान की कथनी और करनी में बड़ा फर्क, अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे तालिबानी लड़ाके
काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट 1960 में सोवियत संघ के इंजीनियरों ने बनाया था. 1979 से 1989 के बीच सोवियत अफग़ान जंग के दौरान ये एयरपोर्ट सोवियत मिलिट्री के कब्जे में था. सोवियत सेना की वापसी के बाद काबुल एयरपोर्ट पर तब के अफग़ानी राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह का कंट्रोल था. फिर 1996 से 2001 तक मुल्ला मोहम्मद उमर की अगुवाई में तालिबान ने इस एयरपोर्ट पर अपना कब्ज़ा जमा लिया. लेकिन 2001 में जब अमेरिका ने अफ़गानिस्तान पर हमला किया, तो तालिबान को खदेड़ने के साथ-साथ काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भी क़ब्ज़ा कर लिया. हालांकि 2001 में इस एयरपोर्ट पर क़ब्ज़ा करने से पहले अमेरिकी एयरफोर्स ने ख़ुद काबुल एयरपोर्ट पर ज़बरदस्त बमबमारी की थी. बाद में अमेरिकी कब्ज़े के बाद एयरपोर्ट को फिर से बनाया गया. जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी की मदद से. जून 2009 में काबुल का नया इंटरनेशनल एयरपोर्ट बना और तब इसका उद्घाटन उस वक़्त के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने किया. बाद में जिनके नाम पर ही इस एयरपोर्ट का नाम रखा गया.
अमेरिका को पता था कि उसके सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान भी वापसी कर सकता है. 96 से 2001 की कहानी फिर से दोहराई जा सकती है. लिहाज़ा इस बार अमेरिका ने काबुल एयरपोर्ट पर खास नजर रखी. अगस्त के पहले हफ्ते में ही अमेरिका ने अपनी वायु सेना के अफग़ान में सबसे बड़े बेस यानी बरगाम एयरबेस को खाली कर दिया था. अब इसके बाद अफ़गान में मौजूद अमेरिकी सैनिक, अमेरिकी नागरिक और अमेरिका के लिए काम कर रहे लोगों को अफग़ान से बाहर निकालने के लिए एक ही रास्ता बचा था. और वो था काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट. 15 अगस्त की दोपहर को जैसे ही अमेरिका को ये ख़बर मिली कि तालिबान काबुल की दहलीज़ तक पहुंच चुके हैं, अमेरिकी सैनिकों ने आनन-फानन में काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में ले लिया. इतना ही नहीं उन्होंने काबुल में मौजूद अमेरिकी दूतावास के सभी स्टाफ को भी वहां से निकाल कर एयरपोर्ट पहुंचा दिया. एक तरह से फिलहाल काबुल एयरपोर्ट का एक हिस्सा ही अफग़ान में अमेरिकी दूतावास है.
पर खुद अमेरिका को पता नहीं था कि तालिबान के काबुल में घुसते ही लोगों का हुजूम इस तरह से देश छोड़ने के लिए काबुल एयरपोर्ट पर टूट पड़ेगा. खास तौर पर यूएस एयरफोर्स के इस जंबो सी-17 की तस्वीरों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया था. हालात को देखते हुए अमेरिका को काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए और सैनिकों की ज़रूरत पड़ गई. 12 अगस्त तक काबुल एयरपोर्ट पर 5200 अमेरिकी सैनिक तैनात थे एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए. 15 अगस्त के बाद बहरीन, नॉर्थ कैरोलीना और कैलिफ़ोर्निया से करीब 3000 हज़ार सैनिकों और मरींस को काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए बुला लिया गया.
ज़रूर पढ़ें-- Inside Story: सोवियत संघ के साथ कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिका ने ऐसे बनाया था तालिबान
फिलहाल काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट का पूरा अंदरुनी इलाक़ा और रन-वे अमेरिकी सेना के कंट्रोल में है. 15 अगस्त से लेकर 20 अगस्त तक अफग़ानिस्तान से करीब 28 हज़ार लोगों को अलग-अलग जहाज़ों से बाहर निकाला गया है. लेकिन अफ़ग़ान से निकलनेवाले लोगों की भीड़ को देखते हुए ये तादाद कुछ भी नहीं है. अकेले 20 अगस्त तक अफग़ानिस्तान में करीब 15 हज़ार नागरिक फंसे हुए थे. ये वो लोग हैं, जो अमेरिका और अफग़ान की कंपनियों के लिए यहां काम कर रहे हैं. ख़बर है कि इनमें से ज़्यादातर लोग काबुल एक इर्द-गिर्द ही छुपे हुए हैं. अमेरिकी जहाज़ इनको अफ़ग़ान से निकालने को तैयार है. लेकिन दिक्कत ये है कि ये काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचे कैसे? इसी के मद्देनज़र अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ये ऐलान किया है कि जब तक हर अमेरिकी को अफ़ग़ान से बाहिफ़ाज़त निकाल नहीं लिया जाता, तब तक अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ान में मौजूद रहेंगे. काबुल में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने 18 अगस्त को अफग़ान में मौजूद सभी अमेरिकी शहरियों से ये कहा है कि अफगान में जहां भी हैं, काबुल एयरपोर्ट तक पहुंचने का इंतज़ाम खुद कर करें.
मसला सिर्फ़ अमेरिकी नागरिकों को ही निकालने का नहीं है. अफग़ानिस्तान में करीब 70 हज़ार ऐसे अफग़ानी हैं, जो पिछले 20 सालों से अमेरिका के लिए काम कर रहे हैं. अमेरिका के साथ जुड़े होने की वजह से उन्हें डर है कि तालिबान अब उन्हें नुकसान पहुंच सकते हैं. लिहाज़ा वो भी अफग़ान से बाहर निकलना चाहते हैं. अब अमेरिका के सामने दिक्कत ये है कि इन्हें शहर से एयरपोर्ट के अंदर कैसे लाया जाए?
कहते हैं कि काबुल एयरपोर्ट पर अफरातफरी का आलम तब शुरू हुआ, जब ये ख़बर फैली कि अफग़ान के राष्ट्रपति अशरफ गनी काबुल छोड़ कर भाग गए हैं. अशरफ गनी के देश छोड़ने की ख़बर आते ही यूरोपीय देशों ने अपने नागरिकों और दूतावास के कर्मचारियों को आनन-फानन में काबुल से निकालना शुरू कर दिया. तब तक ये अफवाह भी फैल चुकी थी कि काबुल पर क़ब्ज़े के बाद तालिबान अमेरिकी और नैटो सेना की मदद करनेवाले लोगों को जोर-शोर से तलाश रही है. हालांकि बाद में तालिबान ने कई बार ये भरोसा दिलाने की कोशिश की कि किसी भी देश के नागरिकों को या अफग़ानी लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. लेकिन तालिबान के इस बयान के बावजूद लोगों को तालिबान पर भरोसा नहीं था. इसीलिए हर कोई तालिबान से निकल भागने के उसी इकलौते रास्ते की तरफ भाग रहा था.
उधर, काबुल एयरपोर्ट के बाहर की कहानी ये है कि एयरपोर्ट को जानेवाले हर रास्ते पर तालिबान का पहरा है. जिन लोगों से तालिबान की कोई दुश्मनी नहीं है, या जिनके पास पहले से ही अलग-अलग देशों के वैध वीज़ा हैं, ऐसे लोगों को भी तालिबान एयरपोर्ट में दाखिल होने से रोक रहा है. इस वजह से कई बार झड़पों की भी ख़बर आ रही है. लेकिन लोग हैं कि जान जोखिम में डाल कर तालिबान का सामना करते हुए भी बस किसी तरह अफग़ान से बाहर निकलना चाहते हैं. और इन लोगों में भी सबसे बड़ी तादाद उन लोगों की है, जिनके पास बच्चे हैं. ये लोग अपने बच्चों की सलामती के लिए किसी भी क़ीमत पर उन्हें अफगानिस्तान के बाहर भेजना चाहते हैं.