मुंबई अंडरवर्ल्ड के कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने जुर्म की दुनिया में खूब नाम कमाया. उनके कारनामे हमेशा पुलिस के लिए सिरदर्द बने रहे. इनमें से कई नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने वक्त के साथ साथ अपनी इमेज बदलने की कोशिश भी की. ऐसा ही एक नाम है माया नगरी के बाहुबली माफिया अरुण गवली का. जिसने एक मामूली चाल से निकलकर मुंबई पर राज किया. अब इस डॉन पर अर्जुन रामपाल की फिल्म डैडी आठ सितंबर को रिलीज हो रही है. इसमें अर्जुन अरुण गवली की भूमिका निभा रहे हैं.
मुंबई अंडरवर्ल्ड में ऐसे बना रास्ता
मुम्बई में 1960-70 के दशक में करीम लाला, वरदराजन और हाजी मस्तान के नाम का सिक्का चलता था. ये लोग विदेशों से सोना और कपड़ा तस्करी करके भारत लाते थे. उस वक्त विदेशों से सोना और कपड़ा लाने पर प्रतिबंध था. दाऊद इब्राहिम कासकर के पिता मुंबई पुलिस में हवलदार थे. उसी दौर में दाऊद ने अपने भाई शब्बीर के साथ मिलकर तस्करी का काम शुरू किया था. 1981 में करीम लाला ने दाऊद के भाई शब्बीर की हत्या कर दी थी. उसके बाद दाऊद और पठान के बीच जंग छिड़ गई थी. 1986 में दाऊद के साथियों ने करीम लाला के भाई रहीम खान का कत्ल कर दिया. इसके बाद करीम टूट गया. उसने दाऊद से दोस्ती कर ली और अपराध की दुनिया को अलविदा कह दिया.
वरदराजन मणिस्वामी मुदलियार मुंबई अंडरवर्ल्ड का एक बड़ा नाम था. कांट्रेक्ट किलिंग, तस्करी और डाकयार्ड से माल साफ करना वरदराजन का मुख्य धंधा था. मटके के धंधे में भी उसने बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया था. लेकिन 1980 में वरदराजन ने जुर्म की दुनिया को अलविदा कह दिया. इससे पहले 1977 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रभावित होकर हाजी मस्तान ने अपराध की दुनिया छोड़ कर सियासी दुनिया में कदम रख दिया था.
इन सभी के चले जाने का सबसे ज्यादा फायदा दाऊद इब्राहिम को मिला. उस दौर में दाऊद मुंबई का बेताज बादशाह बन गया था. लेकिन 1993 में हुए धमाकों से पहले ही दाऊद दुबई चला गया. धमाकों की वजह से ही दाऊद और छोटा राजन अलग हो गए थे. छोटा राजन भी मुंबई से मलेशिया चला गया. और उसने वहां अपना कारोबार शुरू कर दिया था. इस तरह गवली के लिए रास्ता खुल चुका था.
सभी बड़े अंडरवर्ल्ड डॉन मुंबई छोड़ चुके थे. पूरा मैदान खाली था. अब जुर्म के दो खिलाड़ी ही मैदान में थे. वो खिलाड़ी थे अरुण गवली और अमर नाइक. दोनों के बीच मुंबई के तख्त को लेकर गैंगवार शुरू हो चुकी थी. अरुण गवली के शार्पशूटर रवींद्र सावंत ने 18 अप्रैल 1994 को अमर नाइक के भाई अश्विन नाइक पर जानलेवा हमला किया लेकिन वह बच गया. इसके बाद मुंबई पुलिस ने 10 अगस्त 1996 को अरूण के दुश्मन अमर नाइक को एक मुठभेड़ में ढ़ेर कर दिया. और उसके बाद अश्विन नाइक को भी गिरफ्तार कर लिया गया. बस तभी से मुंबई पर अरुण का राज चलने लगा.
दगली चाल बन गई थी किला
हमेशा सफेद टोपी और कुर्ता पहनने वाला अरुण गवली सेंट्रल मुम्बई की दगली चाल में रहा करता था. वहां उसकी सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे. हालात ये थे कि पुलिस भी वहां उसकी इजाजत के बिना नहीं जाती थी. दगड़ी चाल को बिल्कुल एक किले की तरह थी. जिसके दरवाजे भी 15 फीट के थे. वहां गवली के हथियार बंद लोग हमेशा तैनात रहा करते थे.
मजबूत हो रहा था गवली का गैंग
माफिया अरुण गवली के गिरोह में सैंकड़ो लोग काम करते थे. जानकार उसके गैंग में काम करने वालों की संख्या 800 के लगभग बताते थे. उसके सभी लोगों को हथियार चलाने में महारत हासिल थी. जिसके लिए बाकायदा उन्हें ट्रेनिंग दी जाती थी. उन सभी हर महीने वेतन भी दिया जाता था. मुंबई के कई बिल्डर और व्यापारी अपने कारोबार को बढ़ाने और दुश्मनों को खत्म करने के लिए गवली की मदद लेते थे. गवली को इस काम से पैसा मिलता था. इसके साथ ही वो हफ्ता वसूली और रंगदारी भी करने लगा था. मुंबई में उसने मजबूती से पैर जमा लिए थे.
सुपारी किंग बन गया था गवली
मुंबई में खुला मैदान मिल जाने से गवली को कोई खासी दिक्कत नहीं हुई. वो खुलकर काम करने लगा था. उसने सुपारी लेना शुरू कर दिया था. पुलिस की माने तो ऐसे कई मामले थे जिनमें गवली ने सुपारी लेकर हत्या और मारपीट की घटनाओं को अंजाम दिया था. लेकिन सबूत और गवाहों की कमी के चलते वो हर बार बच जाता था. उसका प्रभाव इतना बढ़ गया था कि लोग उसे सुपारी किंग ही कहने लगे थे.
पुलिस अफसरों से थी दोस्ती
अरुण गवली भले ही अंडरवर्ल्ड माफिया था. लेकिन इस काम को करने के बावजूद वह कई पुलिस वालों के संपर्क में आ गया था. माना जाता है कि कई पुलिस वाले उसके लिए खबरी का काम करते थे. कई पुलिस वालों को वो पैसा दिया करता था. धमकी, वसूली, रंगदारी और हत्या जैसे मामलों में उसके बच निकलने के पीछे पुलिसवालों की भूमिका भी रहती थी. यही वजह है कि उसके पकड़े जाने के बाद कई पुलिस वाले भी जांच के दायरे में थे.
राजनीति में पहला कदम
अंडरवर्ल्ड में धाक जमाने वाला अरुण गवली हमेशा कानून और पुलिस से डरता था. एक तरफ उसके दुश्मनों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी और दूसरी तरफ पुलिस भी उस पर शिकंजा कसना चाहती थी. ये बात अरुण अच्छे से जानता था. उसने इस डर से बचने का तरीका ढ़ूंढ निकाला. और राजनीति में जाने का फैसला किया. इसी मकसद को पूरा करने के लिए उसने साल 2004 में अखिल भारतीय सेना के नाम से एक पार्टी बनाई. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उसने अपने कई उम्मीदवार उतारे. और खुद भी उसने चिंचपोकली सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया.
हत्या के मामले में पहली बार हुई थी सजा
विधायक बन जाने के बाद अरुण ने कहा था कि अब वो विधायक बन गया है पुलिस उसे नहीं मार सकती. इस बात से जाहिर हो गया था कि अरुण को अपने एनकांउटर का डर सता रहा था. लेकिन अब उसके हौंसले बुलंद थे. 2008 में गवली ने शिवसेना के एक नेता की हत्या की सुपारी ले ली. और शिवसेना कॉरपोरेटर कमलाकर जामसांडेकर की हत्या करवा दी. बताया जाता है कि इस काम के लिए गवली ने 30 लाख रुपये की सुपारी ली थी. इस मामले में अदालत ने आरोपी बनाए गए अरुण गवली को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. जिसे हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा. यह पहली मौका था जब गवली को किसी अदालत ने दोषी मानकर सजा सुनाई थी.
गवली गैंग का खात्मा
शिवसेना नेता की हत्या के मामले में गलवी जेल जा चुका था. उसी दौर में मुंबई पुलिस ने अंडरवर्ल्ड माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाकर कई एनकांउटर किए. कई गैंगस्टर मारे गए. जिसमें गवली का गैंग भी पूरी तरह से खत्म हो गया. पुलिस की सख्त कार्रवाई के चलते कई माफिया मुंबई छोड़कर भाग गए तो कई पुलिस की गिरफ्त में आ गए. अब गवली केवल एक नाम बनकर रह गया था.
अब जेल में सजा काट रहा है गवली
हाजी मस्तान, वरदराजन, दाऊद इब्राहिम, करीम लाला, अमर नाइक, बड़ा राजन, छोटा राजन, अश्विन नाइक, अबू सलेम , छोटा शकील जैसे नामों को जिक्र जब भी कहीं होता है, तो अरुण गवली का नाम भी इस फेहरिस्त में जुड़ जाता है. गवली ने भी गुनाहों की दुनिया से सियासत के गलियारों में कदम रखा लेकिन उसके गुनाह हमेशा उसका पीछा करते रहे. और अपने गुनाहों की सजा अब वो जेल में काट रहा है.