न जाने आसाराम को वो कौन सी बीमारी है, जिसका इलाज सिर्फ़ और सिर्फ़ उनकी महिला वैद्य नीता ही कर सकती हैं. मेडिकल साइंस धोखा खा गया, डॉक्टर चकरा गए लेकिन आसाराम हैं कि कहते हैं कि उनकी बीमारी का इलाज सिर्फ नीता के हाथो में है और तभी अदालत से गुहार लगाकर आसाराम अपनी बीमारी के लिए मांग रहे हैं शुद्ध देसी इलाज.
आसाराम ने 4 सितंबर को जोधपुर के जिला और सेशन कोर्ट में जज के नाम एक खत भेजा था. उस खत में लिखा कि
सेवा में, माननीय जिला एवं सेशन न्यायाधीश
जिला- जोधपुर (राज.)
माननीय,
विषयांतरगत लेख है कि मैं गत करीब साढ़े तेरह वर्ष से त्रिनाडी शूल नामक व्याधि से ग्रसित हूं तथा मेरा इलाज पिछले 2-3 वर्ष से वैद्य नीताजी द्वारा किया जा रहा है. जो मुख्यत: पंचकर्म का एक भाग शिरोधारा द्वारा उपचार करती हैं, जिसमें करीब दो घंटे का समय लगता है.
अत: आपश्री से अनुरोध है कि वैद्य नीताजी को मेरी उपरोक्त बीमारी के इलाज हेतु आगामी आठ दिनों तक प्रतिदिन उनके समयानुकूल केंद्रीय कारागार में बुलाने की प्रार्थना पर कार्यवाही करें.
संतश्री आसाराम बापू
अपनी ही जुबान से खुद को संतश्री कहने वाले आसाराम के खत पर अदालत ने बुधवार को भी सुनवाई की और फिर गुरुवार को भी. गुरुवार को आधे घंटे तक अदालत में इस बात पर जिरह होती रही कि आसाराम के पास नीता को भेजा जाए या नहीं.
पीड़ित लड़की के वकील मनीष व्यास ने दलील दी कि त्रिनाडी शूल जैसी कोई बीमारी नहीं होती. इस पर आसाराम के वकील ने दलील दी कि आसाराम 13 साल से इस बीमारी से ग्रस्त हैं. वैद्य नीता ही उनका इलाज करती रही हैं. लिहाजा उन्हें इलाज की इजाजत दी जाए.
इस पर पीड़िता के वकील ने कहा कि मेडिकल चेक-अप से साफ हो चुका है कि आसाराम पूरी तरह स्वस्थ हैं. फिर भी उन्हें महिला वैद्य की जरूरत है तो इसके बारे में आसाराम से एक बार फिर पूछ लेना चाहिए. जवाब में आसाराम के वकील ने कहा कि ठीक है. हम आसाराम से बात करेंगे कि उन्हें नीता के इलाज की जरूरत है या नहीं. इस पर जज ने मंगलवार को अगली सुनवाई की तारीख सुना दी.
अदालत की चौखट पर जमानत की चाहत तो फिलहाल अधूरी और अचेत पड़ी है लेकिन महिला वैद्य की चाहत भी फिलहाल अदालती चक्कर में अटका हुआ है.
त्रिनाड़ी शूल उर्फ अनंत वात उर्फ ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया. एक रोग के तीन नाम. एलोपैथ में ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया, आयुर्वेद में अनंत वात और आसाराम की जुबानी त्रिनाड़ी शूल. एक नाबालिग लड़की के यौन शोषण के आरोप में जेल में बंद आसाराम इसी बीमारी का हवाला देकर महिला वैद्य नीता को मांग रहे हैं हर रोज दो घंटे के लिए.
नीता के मुताबिक इस त्रिनाडी शूल बीमारी में नस्म, शिरोधारा और कर्णपूरण इलाज किया जाता है. दर्द ज्यादा बढ़ने पर आठ दिनों तक लगातार शिरोधारा करनी पड़ती है, जिसमें करीब डेढ़ घंटे का समय लगता है. आयुर्वेद को जानने वाले ऐसी बीमारी को तो मानते हैं, लेकिन इसके इलाज के लिए महिला वैद्य ही चाहिए, ये उनके गले नहीं उतरता.
लेकिन कुछ साल पहले तक आसाराम का वैद्य रह चुके अमृत प्रजापति का मानना है कि ये सब आसाराम का बहाना है. असली मकसद तो अफीम पाना है. वो भी संभक योग के लिए यानी सेक्स पॉवर बढ़ाने के लिए. लेकिन अंग्रेजी दवाओं के जानकारों का कहना है कि अगर आसाराम को ट्राइजेमिनल न्यूरेल्जिया जैसी बीमारी है तो उसका समुचित इलाज हो सकता है.
आसाराम की बीमारी तो जांच का विषय है और बहुतों के लिए शोध का. हालांकि जेल जाने के बाद जब उनका मेडिकल चेक-अप हुआ तो 72 साल के आसाराम बिल्कुल तनदुरुस्त निकले.
इस बीच बहस में अब फिर से सबकी नजरें जोधपुर के जिला और सेशन कोर्ट पर टिकी है, जहां मंगलवार को अगली सुनवाई होनी है कि आसाराम को त्रिनाड़ी शूल की बीमारी है या नहीं और क्या इसका शुद्ध देसी इलाज ही होगा- वैद्य नीता के जरिए.
आसाराम ने अदालत से अपनी बीमारी की गुहार लगायी थी. वो बीमारी, जिसका इलाज एक महिला वैद्य नीता ही कर सकती हैं लेकिन कभी आसाराम का इलाज करने वाले एक पुराने वैद्य अमृत प्रजापति ने उनकी दूसरी पोल-पट्टी खोल दी. प्रजापति के मुताबिक आसाराम अफीम का इस्तेमाल करते हैं और उसके लिए एक नया कोड वर्ड दिया है पंचेड बूटी.
रतलाम से करीब 17 किलोमीटर दूर आसाराम का पंचेड आश्रम है. प्रजापति के मुताबिक वहां पर आसाराम खुद ही अफीम की खेती करवाते हैं और वहां से अपने लिए हमेशा अफीम मंगवाते हैं. उसी आश्रम के नाम पर इसका नाम पंचेड बूटी रख दिया. प्रजापति के मुताबिक आसाराम कई बार उनसे कामिनी मर्दन, अश्वगंधा, शिलाजीत, मकरध्वज रस जैसी सेक्सवर्धक दवाएं मंगवाया करते थे. ऐसे में आसाराम की बीमारी कई सवालों में घिर जाती है.
एक तरफ़ जेल के अंदर बाबा तड़प रहे हैं तो दूसरी तरफ़ जेल से बाहर उनकी महिला वैद्य बेचैन हो रही हैं. अपनी बीमारी को लेकर बाबा जितने परेशान हैं, उनका इलाज ना कर पाने को लेकर उनकी महिला वैद्य कहीं उनसे भी ज्यादा परेशान. यानी जो हाल बाबा का जेल के अंदर है, वही हाल उनकी वैद्य का जेल के बाहर. अब इसे बाबा का प्रताप नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे, जिसने मरीज़ से ज्यादा डॉक्टर का हाल बुरा कर रखा है.
पुणे के तिलक आयुर्वेद कॉलेज से आयुर्वेदाचार्य की डिग्री हासिल करनेवाली वैद्य नीता की जिंदगी पहले ऐसी नहीं थी लेकिन 1998 में उन्होंने आसाराम से दीक्षा क्या ली, बस वो बाबा के लिए समर्पित हो कर रह गईं और अब उनका यही समर्पण इन दिनों राजस्थान के इस शहर में साफ़ दिख रहा है.