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...तो ये है आसाराम के गुनाहों की गुफा का राज

आसाराम के तंत्र-मंत्र और सम्मोहन का जाल बेशक अब दुनिया के सामने आ गया हो पर सच्चाई ये है कि आसाराम की तंत्र साधना की कहानी बहुत पुरानी है. आसाराम ने जिस गुफा में लंबे वक्‍त तक बैठ कर रुहानी ताकतें हासिल करने की कोशिश की, ना सिर्फ उस गुफ़ा का तिलिस्म अब टूट गया है, बल्कि बाबा की वजह से वो गुफा आज भी लोगों को अपनी तरफ खींचता है.

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आसाराम के तंत्र-मंत्र और सम्मोहन का जाल बेशक अब दुनिया के सामने आ गया हो पर सच्चाई ये है कि आसाराम की तंत्र साधना की कहानी बहुत पुरानी है. आसाराम ने जिस गुफा में लंबे वक्‍त तक बैठ कर रुहानी ताकतें हासिल करने की कोशिश की, ना सिर्फ उस गुफ़ा का तिलिस्म अब टूट गया है, बल्कि बाबा की वजह से वो गुफा आज भी लोगों को अपनी तरफ खींचता है.

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आसाराम ने भूत बहुत उतार लिया. अब उनका भविष्य कानून तय करेगा. पुलिस चार्जशीट तैयार कर रही है. आसाराम के खिलाफ तमाम सबूतों को इकट्ठा कर रही है. भूत प्रेत, तंत्र-मंत्र और जादू टोने के उस्ताद आसाराम की ज़िंदगी में एक गुफा का तिलिस्म जुड़ा है. ये गुफ़ा आसाराम की उस तंत्र साधना का गवाह है, जिसने आसाराम को रातों-रात फर्श से अर्श पर पहुंच दिया, लेकिन इसी गुफा में तंत्र का ज्ञान लेने के बाद आसाराम ने गुफा से बाहर निकलते ही कई अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया.

माउंट आबू के नजदीक पहाड़ियों में आसाराम का राज दफ्न है. देलवाड़ा की पहाड़ियों में मौजूद इन तिलस्मी गुफ़ाओं से आसाराम का एक ऐसा रिश्ता

जुड़ा है, जिसे कम ही लोग जानते हैं, लेकिन जो जानते हैं, वो बताते हैं कि किस तरह देलवाड़ा की इन्हीं गुफाओं में आसाराम ने कई सालों तक तंत्र साधना कर रुहानी ताकतें हासिल करने की कोशिश की और फिर आध्यात्म की दुकान सजाने माउंट आबू से बाहर अहमदाबाद रवाना हो गए.

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लेकिन ये इस कहानी का एक पहलू है. दूसरा पहलू ये है कि माउंट आबू में भी आसाराम की सही-गलत हरकतों के कई गवाह मौजूद हैं, जो ये बताते हैं कि किस तरह आसाराम ने यहां रहते हुए ना सिर्फ कई लोगों के साथ ठगी की, बल्कि साधू-संतों की परंपराओं की भी अनदेखी कर दी. आसाराम ने 70 के दशक में इन गुफाओं में तब अपना डेरा डाला था, जब ये गुफाएं और भी घने जंगलों से घिरी थीं. जंगली जानवरों के डर उन दिनों इन गुफाओं की तरफ़ कम ही लोग जाते थे, लेकिन आसाराम ने उन्हीं दिनों इन गुफ़ाओं में बैठ कर तंत्र-मंत्र की साधना की और बाद में वो पास के शानि गांव में एक मकान लेकर रहने लगे. कुछ समय बाद आसाराम ने शानि गांव का घर छोड़ दिया, लेकिन वो जिस मकान में रहते थे, वहां आज भी एक बोर्ड लगा है और आसाराम के भक्त उनके बेटे नारायण साईं भी देलवाड़ा की इन गुफाओं को देखने चले आते हैं.

हालांकि तंत्र साधना के बाद जब आसाराम पहली बार गुफाओं से बाहर निकले, तो उन्हीं दिनों में उन्होंने एक पब्लिशिंग हाउस को कथित तौर पर चूना लगा दिया. माउंट आबू में रहनेवाले रामानंद प्रेस के बुजुर्ग मालिक संत पंडित राम वल्ल्भ दास बताते हैं कि किस तरह आसाराम ने उन दिनों अपने बारे में किताबें छपवा कर बंटवाई और छपाई के 6-7 हजार रुपये दिए बगैर ही रफूचक्कर हो गए. उन दिनों इतने रुपये भी एक बड़ी रकम हुआ करती थी.

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आखिरी के कुछ दिनों में आसाराम के बेटे नारायण साईं भी यहां अपने पिता के साथ रहते थे, लेकिन दोनों की इन्हीं हरकतों को देखते हुए साधुओं ने उन्हें अपने समाज से बेदखल कर दिया और आखिरकार आसाराम और उनके बेटे को माउंट आबू छोड़ना पड़ा.

बाप की देखा-देखी बेटे नारायण साईं भी राजस्थान में पाली के नजदीक जवाई बांध की पहाड़ियों में गुफाओं के बीच कमरे बना कर रहे. वन विभाग की जमीन पर बनाए गए ये कमरे तो अब वीरान पड़े हैं, लेकिन ये कमरे इस बात की गवाह हैं कि किस तरह दोनों बाप-बेटे एकांतवास के नाम पर सुनसान जगहों पर अपने लिए ठिकाने ढूंढ़ लिया करते थे.

फिलहाल, वन विभाग ने गलत तरीके से हथियाई गई इस जमीन पर कब्जा कर लिया है, लेकिन माउंट आबू और आस-पास के इलाकों के इन पहाड़ी ठिकानों पर आसाराम और उनके बेटे के तंत्र-मंत्र, काले जादू और एकांतवास के कई किस्से बिखरे पड़े हैं.

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