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उलझ गई आशुतोष महाराज के फ्रीज़र के अंदर समाधि की कहानी

जालंधर के संत आशुतोष महाराज की समाधि और मौत की पहेली ऐसी उलझी है कि सुलझाए नहीं सुलझ रही. हाईकोर्ट ने जहां 15 दिन के अंदर समाधि के ड्रामे को श्मशान तक पहुंचाने का हुक्म दिया है, वहीं भक्त हैं कि उनकी मौत को ही झुठलाने में लगे हैं. ऐसे में अब हर किसी को ये डर है कि कहीं ये मामला संत रामपाल के सतलोक आश्रम की तरह पेचीदा ना हो जाए.

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Aashutosh Maharaj
Aashutosh Maharaj

जालंधर के संत आशुतोष महाराज की समाधि और मौत की पहेली ऐसी उलझी है कि सुलझाए नहीं सुलझ रही. हाईकोर्ट ने जहां 15 दिन के अंदर समाधि के ड्रामे को श्मशान तक पहुंचाने का हुक्म दिया है, वहीं भक्त हैं कि उनकी मौत को ही झुठलाने में लगे हैं. ऐसे में अब हर किसी को ये डर है कि कहीं ये मामला संत रामपाल के सतलोक आश्रम की तरह पेचीदा ना हो जाए.

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सवाल ये कि क्या जालंधर के नज़दीक नूर महल कस्बे का ये दिव्य ज्योति जागृति संस्थान भी हरियाणा के सतलोक आश्रम की तरह आस्था और क़ानून के टकराव का अखाड़ा बन जाएगा? क्या रामपाल को गिरफ्तारी से बचाने की तर्ज़ पर आशुतोष महाराज के शिष्य भी अपने गुरु की लाश को अंतिम संस्कार को रोकने के लिए कायदे कानूनों के आड़े आ जाएंगे? या इस आश्रम से भी एक संत की लाश को बाहर निकालने के लिए लोगों की जान-माल दांव पर लग जाएगी?

ये सवाल इसलिए क्योंकि पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने अब अपने नए फरमान में उस आशुतोष महाराज का 15 दिनों में अंतिम संस्कार कर देने का हुक्म दिया है, जो पिछले 10 महीने से भी ज़्यादा वक्त से एक फ्रीज़र में बंद हैं.

डॉक्टर तो उन्हें पिछले 29 जनवरी 2014 को ही मुर्दा करार दे चुके हैं. लेकिन महाराज के भक्त हैं कि ये मानने को तैयार ही नहीं, बल्कि उनका तो ये कहना है कि महाराज खुद अपनी मर्जी से गहरी समाधि में लीन हैं. और ऐसे में उनका अंतिम संस्कार करना तो दूर, उसके बारे में सोचना भी नामुमकिन है और महाराज के इन्हीं भक्तों ने उनकी लाश को एक फ्रीज़र में बंद कर रखा है. इस उम्मीद से कि कभी किसी रोज़ महाराज समाधि से बाहर निकलेंगे और फिर से अपने भक्तों के बीच फिर से हंसते-खेलते हाज़िर हो जाएंगे.

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हालांकि भक्तों की आस्था अपनी जगह है और विज्ञान और क़ानून अपनी जगह. एक तरफ डॉक्टर जहां आशुतोष महाराज के जिस्म की जांच कर उन्हें पहले ही मुर्दा करार दे चुके हैं. वहीं हाई कोर्ट का भी यही मानना है. ऐसे में हाई कोर्ट के इस नए आदेश के बाद ये मामला पेचीदा हो गया है. कम से कम मौजूदा हाल तो कुछ ऐसा ही है. क्योंकि महाराज के भक्तों ने हाई कोर्ट का फ़ैसला आते ही आश्रम की सिक्योरिटी और भी ज्यादा कड़ी कर दी है.

संस्थान के चारों ओर सुरक्षा के लिए पहले ही मचान बने हैं, जिनमें अब चौबीस घंटे आश्रम के सुरक्षा गार्ड तैनात कर दिए गए हैं. और तो और किसी भी शख्स को बगैर तलाशी के आश्रम के अंदर दाखिल होने की इजाज़त नहीं है. लेकिन हालत तब और गंभीर हो जाती है. जब कानून के रखवाले यानी पुलिसवालों की एंट्री भी आश्रम में बैन कर दी जाती है. हाई कोर्ट के आदेश के बाद से पंजाब पुलिस लगातार आश्रम के अंदर जाने की कोशिश कर रही है. लेकिन नतीजा सिफ़र है.

ऐसे में पुलिस इस आश्रम से आशुतोष महाराज की लाश को निकाल कर श्मशान घाट तक कैसे ले जाएगी, ये एक बड़ा सवाल है. एक खास बात ये है कि सरकार ने महाराज की लाश को ही ज़ेड प्लस सिक्योरिटी दे रखी है. ऐसे में अगर सरकार उनकी लाश को आश्रम से निकालना चाहती है, तो पहले उनकी लाश के पास से सिक्योरिटी कवर हटाना ज़रूरी है. और अगर कवर हटा लिया जाता है, तो क्या भक्त सीधे सरकार से टकराने के लिए महाराज के चारों ओर कवर बना कर खड़े हो सकते हैं?

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गौरतलब है कि समाधि और अंतिम संस्कार की पेंच तब उलझी, जब खुद महाराज के बेटे दिलीप कुमार झा ने इस सिलसिले में हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर अपने पिता की लाश उन्हें सौंपने की मांग की. झा ने कहा था कि उन्हें अपने पिता के अंतिम संस्कार के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. जिस पर हाई कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी.

हालांकि भक्तों की इस जिद और कानून के फैसले के बीच एक सवाल आशुतोष महाराज की विरासत और जायदाद को लेकर भी है. क्योंकि बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनका ये मानना है कि आशुतोष महाराज की जायदाद की बंदरबांट के लिए ही ये सारा प्रपंच रचा गया है.

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