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इस तरह टली निठारी के नरपिशाच सुरेंद्र कोली की फांसी

सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा की तामील पर रविवार देर रात एक हफ्ते तक रोक लगा दी. कोली को मेरठ जेल में 12 सितंबर को फांसी देने की तैयारी चल रही थी. लेकिन, शीर्ष अदालत की ओर से जारी आदेश के बाद कोली की फांसी टल गई. आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि यह काम उस दिन कैसे हुआ.

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surinder Koli
surinder Koli

सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा की तामील पर रविवार देर रात एक हफ्ते तक रोक लगा दी. कोली को मेरठ जेल में 12 सितंबर को फांसी देने की तैयारी चल रही थी. लेकिन, शीर्ष अदालत की ओर से जारी आदेश के बाद कोली की फांसी टल गई. आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि यह काम उस दिन कैसे हुआ.

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रविवार यानी 7 सितम्बर की शाम होते:होते अचानक मेरठ के सेंट्रल जेल से एक खबर उड़ती है. खबर ये कि निठारी के गुनहगार सरेंद्र कोली को सोमवार सुबह फांसी दी जा रही है. चूंकि रविवार का दिन था लिहाज़ा कोर्ट बंद. ऐसे में जानी:मानी वकील इंदिरा जयसिंह रविवार रात को ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलने का वक्त मांगती हैं. इसके बाद रात करीब 10:45 बजे सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर जस्टिस के घर पर स्पेशल अदालत बैठती है. और फिर सुबह 4:30 बजे मेरठ सेंट्रल जेल को खबर दी जाती है कि कोली की फांसी 7 दिनों के लिए रोक दो.

7 सितंबर 2014
रविवार
रात के क़रीब 9.30 बजे

रात होते-होते अचानक खबर आती है कि बहुत मुमकिन है कि सोमवार सुबह निठारी के मुजरिम सुरेंद्र कोली को फांसी पर लटका दिया जाए. पिछले कुछ दिनों से वैसे ही मीडिया में लगातार कोली की फांसी को लेकर अटकलें बनी हुई थीं. पर इस बार खबर सीरियस थी. देश की सारी अदालतों में रविवार की छुट्टी थी. सुप्रीम कोर्ट भी बंद. यानी फांसी रोकने का कोई उपाय नहीं.

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कोली को सोमवार सुबह फांसी दिए जाने की खबर उड़ते-उड़ते देश की पूर्व एडिशनल सॉलीसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह के कानों तक भी पहुंचती है. इंदिरा जयसिंह सुरेंद्र कोली को इंसाफ का एक और मौका दिए जाने के हक में हैं. वे चाहती हैं कि सुरेंद्र कोली को फांसी पर लटकाने से पहले कानून के मुताबिक ओपन कोर्ट में उसके मामले की एक बार और सुनवाई हो. लिहाज़ा खबर मिलते ही वो फौरन सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस आरएम लोढ़ा से मिलने का वक़्त मांगती हैं. इसके लिए वो सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को फोन करती हैं.

एक तो रविवार का दिन. कोर्ट बंद और ऊपर से रात भी हो चुकी है. ऐसे में चीफ़ जस्टिस तक अपनी बात पहुंचाने का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही रास्ता था. वो ये कि या तो उन्हें फ़ोन किया जाए या फिर उनके घर किसी स्पेशल मैसेंजर के ज़रिए संदेश भिजवाया जाए. इंदिरा जयसिंह की गुजरिश पर रजिस्ट्रार उनका पैगाम चीफ जस्टिस तक पहुंचाते हैं. पैगाम सुनते ही इंसाफ की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे जस्टिस लोढ़ा रात को ही इस मामले की खास सुनवाई का हुक्म जारी कर देते हैं. जस्टिस लोढा इस खास सुनवाई के लिए उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट के दो सबसे सीनियर जज जस्टिस एचएल दत्तू और जस्टिस एआर दवे की एक स्पेशल बेंच बनाते हैं और मामले की सुनवाई उनके हवाले कर देते हैं.

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7 सितंबर 2014
रविवार
रात के 11.45 बजे

चीफ जस्टिस का आदेश मिलते ही रात करीब 11:45 बजे जस्टिस एचएल दत्तू के घर पर स्पेशल कोर्ट लगती है. इस स्पेशल कोर्ट के सामने इंदिरा जयसिंह कोली को फांसी दिए जाने से पहले उसे इंसाफ का एक और मौका दिए जाने की गुजारिश करतr हैं. जयसिंह दलील देती हैं कि सुप्रीम कोर्ट के कांस्टीट्यूशन बेंच के एक आदेश के मुताबिक फांसी के ऐसे मामलों में जिनमें रिव्यू पिटिशन भी खारिज किया जा चुका हो, मुजरिम को फांसी पर लटकाए जाने से पहले ओपन कोर्ट में उसके मामले की एक बार और सुनवाई की जा सकती है. लिहाज़ा सुरेंद्र कोली को भी इस नियम के मुताबिक अपनी मौत से पहले सुनवाई का एक और मौका दिया जाना चाहिए. ये मामला इसलिए भी बेहद गंभीर है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही उसके डेथ वारंट पर दस्तखत कर चुकी है और इस मामले की सुनवाई में एक पल भी देरी का मतलब है कि कोली को कभी भी फांसी के फंदे पर लटका दिया जा सकता है.

रात बीतती जा रही थी और बहस जारी थी. करीब घंटे भर तक ये स्पेशल अदालत चलती रही. इसके बाद जस्टिस दत्तू और जस्टिस दवे की बेंच इंदिरा जयसिंह की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुनाती है.

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8 सितंबर 2014
सोमवार
रात के 12.45 बजे

तब घड़ी में रात के एक बजने में 15 मिनट बाकी था. सुनवाई ख़त्म होते-होते एक घंटे का वक़्त गुज़र चुका था. घड़ी की सुइयों के साथ-साथ कैलेंडर की तारीख़ भी बदल गई थी. ठीक तभी स्पेशल अदालत अपना फैसला सुनाती है. सुरेंद्र कोली के मामले में दोबारा सुनवाई के लिए इंदिरा जयसिंह को एक हफ्ते का वक़्त देते हुए कोली की फांसी पर भी हफ्ते भर के लिए रोक लगा दी जाती है.

पर अभी इससे भी अहम और नाजुक काम बाकी था. अदालत के फैसले को मेरठ के अधिकारियों तक सही वक्त पर पहुंचाना. वो भी कानूनी तरीके से. लिहाजा सबसे पहले मेरठ में डीएम और एसएसपी को फोन किया जाता है. उन्हें नींद से जगाकर कोली की फांसी पर अगले हफ्ते तक रोक की खबर दी जाती है. साथ ही उन्हें इस हुक्म के लिखित आदेश के फैक्स का इंकजार करने को कहा जाता है.

8 सितंबर 2014
सोमवार
रात के 3.45 बजे

स्पेशल कोर्ट का आदेश फैक्स की शक्ल में मेरठ के डीएम और एसएसपी तक पहुंच चुका था. दोनों ने स्पेशल बेंच को फैक्स मिल जाने की तसदीक की.

8 सितंबर 2014
सोमवार
सुबह के 4.30 बजे

यही वो वक्त था जब मेरठ जेल के जेलर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की लिखित कॉपी मिली. तब तक डीएम और एसएसपी फोन पर जेलर को सात दिनों के लिए कोली की फांसी रोक देने के सुप्रीम कोर्ट के हुक्म की जानकारी दे चुके थे.

-संजय शर्मा के साथ शिवेंद्र श्रीवास्तव, दिल्ली, आजतक.

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