
15 अप्रैल की रात प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल के पास जो कुछ हुआ, उसे मीडिया के कैमरों के जरिए पूरी दुनिया ने देखा. लेकिन जो कुछ कैमरे पर दिखाई दिया, कहानी उसके आगे भी है और उस कहानी का सामने आना अभी बाकी है. अतीक और अशरफ की हत्या के बाद पकड़े गए कातिलों ने शुरुआती पूछताछ में इतना तो कहा है कि अतीक अहमद की हत्या कर वो बड़ा माफिया बनना चाहते थे. जुर्म की दुनिया में नाम कमाना चाहते थे. लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी भर है? या फिर इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है?
गहरी साजिश की तरफ इशारा
ये सवाल इसलिए क्योंकि जिस तरह से इस वारदात को अंजाम दिया गया, जिस तरह से हमलावर अलग-अलग इलाकों से होने के बावजूद एक साथ प्रयागराज के होटल में पहुंचे, जिस तरह के हथियारों से उन्होंने शूटआउट को कैरी किया, हमले के वक्त कातिलों ने जिस तरह की नारेबाजी की और फिर हमले के फौरन बाद जिस तरह से हथियार फेंक कर सरेंडर कर दिया, वो सब इस वारदात के पीछे किसी गहरी साजिश के होने की तरफ इशारा करता है. इससे पहले इस कहानी को आगे बढ़ाएं, इस सिलसिले में दर्ज पुलिस की एफआईआर पर एक नजर डाल लेते हैं.
शाहगंज थाने में दर्ज हुई एफआईआर
प्रयागराज के शाहगंज पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई है. जिसमें इस वारदात का शुरुआती ब्यौरा दर्ज है और ये ब्यौरा कहता है कि इस वारदात को उत्तर प्रदेश के ही तीन अलग-अलग जिलों के रहनेवाले लड़कों ने अंजाम दिया, जिनका इरादा शोहरत कमाना था और उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि मौके पर इतने सारे पुलिसवाले मौजूद होंगे, जिसके चलते वो वारदात को अंजाम देने के बाद पूरी तरह से घिर जाएंगे, लेकिन हालात बताते हैं कि वारदात की साजिश तहरीर में लिखी इन चंद लाइनों से कहीं बहुत आगे की है.
तफ़्तीश का पहलू नंबर-1- आख़िर कैसे इकट्ठा हुए तीनों हमलावर?
पुलिस की तफ्तीश के मुताबिक हमलावर लवलेश तिवारी यूपी के बांदा जिले का रहनेवाला है. जबकि मोहित उर्फ सनी हमीरपुर से है और तीसरा हमलावर अरुण मौर्य कासगंज से है. जिनकी उम्र बमुश्किल 18 से 20 साल के आस-पास की है. लेकिन जिस तरह से तीनों एकजुट हो कर इस वारदात को अंजाम देने की साजिश रचते हैं, वो सवाल खड़े करता है. सवाल यही है कि आखिर ये तीनों एक-दूसरे कब और कैसे मिले और कैसे इन्होंने इस साजिश को अंजाम देने की प्लानिंग की? और जैसा कि उन्होंने कहा कि वो इस वारदात को अंजाम देकर बड़ा माफिया बनना चाहते थे, तो आखिर उन्होंने नाम कमाने के लिए अतीक अहमद को ही क्यों चुना?
तफ़्तीश का पहलू नंबर-2- हमले के लिए विदेशी हथियार कहां से मिले?
हमले के वक्त तीनों लड़कों ने जिस तरह से अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ गोली चलाई, वो उनके पीछे किसी बड़े मास्टरमाइंड के होने का इशारा मिलता है. वारदात के बाद हमलावरों के पास से तुर्की में बने जिगाना पिस्टल के बरामद होने की बात सामने आई, जिसकी कीमत करीब 6 से 7 लाख रुपये बताई जाती है. ऊपर से भारत में इस हथियार का इस्तेमाल करने पर पाबंदी है. यानी ये पिस्टल बैन है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नए उम्र के इन लड़कों के पास ऐसे खतरनाक और महंगे हथियार कहां से और कैसे आए? अभी इस सवाल का जवाब भी सामने आना बाकी है.
तफ़्तीश का पहलू नंबर-3- लॉजिस्टिक और लोकल सपोर्ट कहां से मिला?
अतीक और अशरफ को निशाना बनाने के लिए ये हमलावर पत्रकार के भेष में आए थे। उनके पास नकली आई कार्ड, नकली माइक और यहां तक कि डमी कैमरा भी मौजूद था. ऊपर से तीनों अलग-अलग शहरों के होने की वजह से वारदात को अंजाम देने से पहले प्रयागराज के होटल में आकर रुके भी थे. मौका-ए-वारदात तक ये एक ऐसी मोटरसाइकिल पर सवार होकर पहुंचे, जिसके मालिक का अता-पता भी पूरी तरह साफ नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इन हमलावरों के ये सारा इंतजाम किसने और किसके इशारे पर किया? आखिर अतीक और अशरफ की हत्या के लिए इनके पास लाखों रुपये कहां से आए?
तफ़्तीश का पहलू नंबर-4- हमलावरों ने आखिर नारेबाजी क्यों की?
शुरुआती पूछताछ में कातिलों ने अतीक और अशरफ की हत्या के पीछे बड़ा माफिया बनने की अपनी इच्छा का खुलासा किया है. तीनों ने कहा है कि आखिर वो छोटा-मोटा शूटर बन कर कब तक काम करते, इसलिए वो जुर्म की दुनिया में बड़ा नाम करना चाहते थे. और इसीलिए उन्होंने इस वारदात को अंजाम दिया. अगर कातिलों के इस कबूलनामे पर यकीन करें तो ये साफ है कि वो पहले से ही आपराधिक मानसिकता के थे और सिर्फ और सिर्फ जुर्म की दुनिया में अपने कदम मजबूत करने के लिए ऐसा कुछ करना चाहते थे. फिर सवाल ये उठता है कि आखिर उन्होंने अतीक और अशरफ की हत्या के वक्त धार्मिक नारे क्यों लगाए? ऐसा करने के पीछे आखिर उनका मकसद क्या था? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो किसी सियासी साजिश के मोहरे भर हैं, जिन्हें सिखा-पढा कर यहां भेजा गया था?
तफ्तीश का पहलू नंबर-5- पेशेवर तरीके से कैसे किया सरेंडर?
तीनों लड़कों ने इस भयानक वारदात को तब अंजाम दिया, जब अतीक और अशरफ दोनों पुलिसवालों से घिरे थे और पुलिसवालों के पास भी अत्याधुनिक हथियार थे. ऐसे में शूटआउट के वक्त तीनों के सिर पर भी पुलिस की गोली से मारे जाने का खतरा मंडरा रहा था. इसके बावजूद तीनों ने इतनी भयानक वारदात को अंजाम देने का फैसला कैसे किया? और हमले के बाद किसी भी तरह की जवाबी कार्रवाई यानी पुलिस फायरिंग से बचने के लिए जिस तरह से उन्होंने खुद ही अपने हथियार फेंक कर हाथ उठा दिए, वो भी इस केस की साजिश के पीछे किसी शातिर दिमाग़ शख्स के होने की तरफ इशारा करता है. जाहिर है वारदात को अंजाम देनेवाले लड़के बेशक नए उम्र के हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने इस वारदात को अंजाम दिया है, उसके पीछे किसी पुराने अपराधी का दिमाग समझ में आता है.
तफ्तीश का पहलू नंबर-6- हमले के लिए कब-कब और कैसे की रेकी?
हमलावरों ने गिरफ्तार होने के बाद पूछताछ में बताया है कि उन्होंने इस वारदात को अंजाम देने की प्लानिंग तभी से शुरू कर दी थी, जब से उमेश पाल हत्याकांड में अतीक और अशरफ से पूछताछ की तैयारी चल रही थी और जबसे पुलिस उन्हें रिमांड पर लेने की कोशिश में थी. ऐसा तब था जब अतीक और अशरफ को प्रयागराज लाये जाने तक उनके साथ कड़ी सुरक्षा थी, ऐसे में इतनी पुलिस व्यवस्था के बावजूद उन्होंने इस वारदात को अंजाम देने के लिए कब-कब और कैसे रेकी की? कैसे उन्हें ये पता था कि रात को जब दोनों भाइयों को पुलिस मेडिकल जांच के लिए लेकर जाएगी, तब उनके साथ कम सुरक्षाकर्मी होंगे और उन्हें आसानी से टारगेट बनाया जा सकेगा? ये भी एक बड़ा सवाल है.
गैंगस्टर सुंदर भाटी से जुड़े हैं एक शूटर के तार
फिलहाल एक हमलावर सनी के रिश्ते खूंखार सुंदर भाटी गैंग से जुडते नजर आ रहे हैं. लेकिन ये साफ नहीं है कि वारदात के पीछे सुंदर भाटी का हाथ है या फिर किसी और का? और ये सारे सवाल इस बात को साबित करते हैं इस वारदात के पीछे की साजिश कहीं उससे बहुत आगे की है, जितनी अब तक की तफ्तीश में ये फिलहाल नजर आ रही है.
प्वाइंट ब्लैंक रेंज से मारी गई गोली
अतीक-अशरफ मर्डर केस में चंद सेकंड की तस्वीरों के हर फ्रेम के साथ सवाल उठता है कि आखिर पुलिस की हिरासत में दसियों लोगों के बीच एक अस्पताल के बाहर ऐसा कैसे हो सकता है? लेकिन जिस बात पर यकीन करना मुश्किल है, वही सच बनकर सामने है. यूपी का माफिया सरगना अतीक अहमद और उसके छोटे भाई अशरफ को तीन कातिलों ने सबकी आंखों के सामने बिल्कुल प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मार दी और दोनों ही भाइयों की मौके पर ही मौत हो गई.
पुलिस पर सवाल
जाहिर है सवाल अगर पुलिस के इकबाल का है, तो पुलिस की कार्यशैली का भी है. सवाल ये उठता है कि आखिर ज़ीरो टॉलरेंस की बात करनेवाली यूपी पुलिस इतनी बुरी तरह से फेल कैसे हो गई? इस सवाल का जवाब तो यूपी के शासन-प्रशासन को देना ही होगा. लेकिन इससे पहले कि यूपी पुलिस के सूचना तंत्र की नाकामी, किसी भी अनहोनी के लेकर दूरअंदेशी की कमी और दूसरे तकनीकी पहलुओं पर बात करें, आइए पहले सीन ऑफ क्राइम की लाइव तस्वीरों को देख कर मामले को समझने की कोशिश करते हैं.
पुलिस ने क्यों नहीं की जवाबी कार्रवाई?
तस्वीरों में साफ है कि रात के वक्त जब पुलिस दोनों की मेडिकल जांच के बाद उन्हें प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल से बाहर लेकर आ रही थी, तब अचानक मौके पर पहुंचे तीन लड़कों ने बिल्कुल प्वाइंट ब्लैंक रेंज से दोनों को गोली मार दी. पहली गोली अतीक के सिर पर मारी गई और फिर तो ताबड़तोड़ इतनी गोलियां चलीं कि किसी के कुछ समझने से पहले ही दोनों भाई जमीन पर ढेर हो चुके थे. खास बात ये रही कि हमले के वक्त पुलिस की बॉडी लैंग्वेज बेहद गैर पेशेवराना नजर आई और किसी भी जवाबी कार्रवाई की जगह पुलिसवाले खुद पीछे हटते नजर आए.
हालांकि चंद सेकंड्स में जैसे ही हमलावरों ने हथियार फेंक कर और हाथ उठा कर सरेंडर करने का इशारा किया, तब पुलिस ने हमलावरों को काबू कर लिया. जबकि आम तौर पर ऐसे नाजुक हालात में पुलिस जवाबी कार्रवाई ही करती है, गुनहगारों का बचना मुश्किल होता है. वो भी तब जब अतीक और अशरफ दोनों ही हथियारबंद पुलिसवालों से घिरे थे. जाहिर है सवाल तो पुलिस पर उठता ही है.
यूपी पुलिस के इंटेलिजेंस फेल्योर पर सवाल
यूपी पुलिस के इंटेलिजेंस फेल्योर की बात करें तो सिर्फ दो दिन पहले यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने एक बयान दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि हमें खबर थी कि अतीक और अशरफ के काफिले पर हमला हो सकता है. तो देखा आपने? यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर ने बताया था कि यूपी पुलिस को ये खबर थी कि बदमाश अतीक को साबरमती से प्रयागराज लाये जाने के दौरान गाड़ियों के काफिले पर हमला कर उसे छुड़ाने की कोशिश कर सकते हैं. जब खतरा वाकई इतना ज्यादा था तो फिर पुलिस सिर्फ दो दिन बाद अतीक और अशरफ की सुरक्षा को लेकर इतने इत्मीनान से कैसे भर गई कि कातिलों अतीक और अशरफ के इतने करीब पहुंच गए और उन्होंने बिल्कुल प्वाइंट ब्लैंक रेंज से दोनों पर हमला कर दिया? क्या पुलिस को ये नहीं पता था कि यूपी में अतीक के दुश्मन भी हैं, जो उन्हें निशाना बना सकते हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि जिस तरह पुलिस हिरासत में दोनों की हत्या हुई है, वो यूपी पुलिस के सूचनातंत्र की नाकामी का एक बडा सबूत है.
सुरक्षा में बड़े अफसर के ना होने पर सवाल
ध्यान देनेवाली बात ये भी है इतने संवदेनशील मामले के आरोपी, जिसकी सुरक्षा पर लगातार सवाल खड़े हो रहे थे, उसे अस्पताल ले जानेवाले अफसरों में अगर कोई सबसे सीनियर पुलिस अफसर था, वो एक इंस्पेकटर लेवल का अफसर ही था. यानी इंस्पेक्टर धूमनगंज राजेश मौर्य. ये भी ग्राउंड लेवल पर पुलिस की तैयारी और उसकी समझदारी को जाहिर करता है.
जाहिर है ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि-
1- आखिर पुलिस के सूचनातंत्र को इन तीनों शूटर की कोई भनक कैसे नहीं लगी?
2- आखिर सुरक्षा में लगे पुलिसवालों का रिएक्शन टाइम इतना धीमा क्यों रहा?
3- शूटर गोली चलाते रहे और पुलिसवाले सबकुछ हो जाने का इंतजार कैसे करते रहे?
4- पुलिस पहले ही कह चुकी थी कि अतीक के काफिले पर हमला करके छुड़ाने की प्लानिंग थी. फिर ये हमला कैसे हो गया?
5- क्या पुलिस को इस बात का अंदेशा नहीं था कि अतीक के दुश्मन भी हमला कर सकते हैं?
कहनेवाले कह रहे हैं कि पुलिस ने गोली ना चला कर अच्छा किया. वैसा करने पर वहां मौजूद बाकी लोगों, खास कर मीडियाकर्मियों को भी गोली लग सकती थी. लेकिन ये भी सच है कि हिरासत में मौजूद अतीक और अशरफ की हिफाजत करना भी मुश्किल की जिम्मेदारी थी. जिसे निभाने में पुलिस पूरी तरह से फेल हो गई.