हाथरस में साकार हरिनारायण विश्व हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ के लिए न्यायिक जांच आयोग ने पुलिस, प्रशासन और आयोजकों को दोषी माना है. पुलिस और प्रशासन ने अपने कर्मचारियों और जवानों की समय से ड्यूटी स्थल पर उपस्थिति सुनिश्चित करने की कोई व्यवस्था ही नहीं की थी. सारी व्यवस्था बेतरतीब तरीके से आयोजकों और उनके सेवादारों के हाथ में ही छोड़ दी गई थी.
आपराधिक साजिश की एसआईटी करे जांच
यही वजह थी कि इतनी ज्यादा भीड़ आ जाने से स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई. आयोग ने रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि ऐसे आयोजन को सार्वजनिक चर्चा में लाने, सरकार को बदनाम करने और अन्य किसी प्रकार का लाभ लेने के लिए किसी सुनियोजित आपराधिक साजिश की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. लिहाजा इस अपराधिक पहलू की गहराई से जांच एसआईटी करानी चाहिए.
पिछले साल दो जुलाई को हुए इस हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए थे. जांच आयोग का अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बृजेश कुमार श्रीवास्तव को बनाया गया था. सेवानिवृत्त आईएएस हेमंत राव और सेवानिवृत्त आईपीएस डीजी भावेश कुमार सिंह सदस्य के तौर पर थे. इस आयोग ने पूरी हो चुकी जांच रिपोर्ट बुधवार को विधानमंडल के दोनों सदनों में रखी. इसके मुताबिक आयोजकों ने भी सत्संग में किए जा रहे क्रिया-कलापों पर पर्दा रखने के लिए भीड़ प्रबंधन के सारे कार्य से पुलिस और प्रशासन को अलग रखा. मीडियो को सत्संग का कवरेज नहीं करने दिया.
पुलिस और प्रशासन लापरवाह बना रहा
आयोग ने रिपोर्ट में लिखा है कि पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी घटना होने के बाद ही मौके पर पहुंचे थे. हालांकि, कुछ कर्मचारियों ने सिकंदराराऊ के एसडीएम और सीओ का घटना से पहले सत्संग स्थल पर आने-जाने का बयान दिया है. जांच में यह साफ हुआ है कि पुलिस और प्रशासन में अनुमति प्रदान करने से लेकर इस आयोजन में घटना होने तक आवश्यक संवेदनशीलता और सामंजस्य का घोर अभाव था. सारा आयोजन भीड़ नियंत्रण, जन सुरक्षा, प्रबन्धन सब कुछ आयोजकों के ऊपर ही छोड़ दिया गया था. पुलिस और प्रशासन के कर्मचारियों की ब्रीफिंग तक नहीं की गई थी.
ये हैं हादसा होने की मुख्य वजहें
जांच आयोग की रिपोर्ट में हादसा होने की मुख्य वजह भी बताई गई है. इसके मुताबिक आयोजकों ने 80 हजार की भीड़ होने का अनुमान बताया था, जबकि ढाई से तीन लाख तक लोग वहां पहुंचे. सत्संग खत्म होने पर इतनी भारी भीड़ को एक साथ छोड़ दिया गया. उन्हें नियंत्रित तरीके से निकलने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया गया. सत्संग पर पंडाल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी. काफी गर्मी और उमस थी. पंखा सिर्फ मंच पर ही लगा था. पेयजल की व्यवस्था नहीं थी. इस वजह से कई घंटों तक सत्संग स्थल पर उमस-धूप में बैठे रहने के दबाव के कारण घुटन की स्थिति बन गई थी.
बाबा के निकलते ही डयूटी में लगे सेवादार भी वहां से हट गए. इससे व्यवस्था और ज्यादा बिगड़ गई. यह भी हादसे की मुख्य वजह बना.
ऐसे हादसे की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सुझाव
आयोग ने भविष्य में ऐसे हादसे न हो, इसके लिए रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी दिए हैं. आयोजनों की प्रकृति के हिसाब से कई तरह की सतर्कता बरतने और सुरक्षा के उपाये बताए गए हैं. रिपोर्ट के मुख्य सुझाव निम्नलिखित है.
- तहसील स्तर पर ऐसे किसी आयोजन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिसमें 50 हजार तक की भीड़ जुटनी हो. 50 हजार से अधिक भीड़ जुटने की सम्भावना या सूचना पर ऐसी अनुमति जिलाधिकारी स्तर से दी जानी चाहिए.
- पुलिस कमिश्नर प्रणाली वाले जिलों में 50 हजार तक भीड़ वाले आयोजनों की अनुमति ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर और इससे अधिक भीड़ वाले आयोजनों की अनुमति पुलिस कमिश्नर स्तर से दी जानी चाहिए.
- ऐसे कार्यक्रम के लिए आवेदन आयोजन से 15 दिन पहले देना जरूरी होना चाहिए. इससे कम समय बचा होने पर अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
- अनुमति से पहले आयोजकों के साथ सभी सम्बन्धित विभाग मसलन पुलिस, प्रशासन, पीडब्ल्यूडी, फायर पुलिस, विद्युत विभाग, ट्रैफिक पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, परिवहन विभाग समेत अन्य जिम्मेदार अधिकारियों के साथ आयोजन स्थल का निरीक्षण करना जरूरी किया जाना चाहिए.
- अनुमति देते समय यह जरूर देखना चाहिए कि आयोजक उस आयोजन में आने वाले लोगों की सुरक्षा व न्यूनतम सुविधाओं जैसे पंडाल, बैरिकेडिंग, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के बैठने की समुचित व्यवस्था की गई हो. विशिष्ट मुख्य अतिथि के आने का रास्ता अलग से किया गया है अथवा नहीं.
- आयोजन स्थल पर पुलिस रेडियो कन्ट्रोल रूम स्थापित किया जाए. इसमें पुलिस के अधिकारियों के अलावा अन्य विभाग के अधिकारी भी समन्वय बनाए रहें.
- पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए. इसके साथ ही आयोजन स्थल तक पहुंचने के लिए पर्याप्त रास्ता होना चाहिए.
- प्रशासन द्वारा अनिवार्य रूप से वीडियो रिकार्डिंग जरूर हो. ड्रोन का इस्तेमाल करने पर भी विचार किया जाना चाहिए. मुख्य स्थानों पर सीसी कैमरे जरूर लगवाने चाहिए. एआई की व्यवस्था भी होनी चाहिए.
- आसपास के अस्पतालों में आकस्मिक स्थिति की तैयारी होनी चाहिए.
- आयोजन से एक दिन पहले ड्यूटी पर आने वाले पुलिस और प्रशासन के कर्मचारियों की ब्रीफिंग की जानी चाहिए.