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कोरोना की दूसरी लहर को लेकर फिक्रमंद हैं डॉक्टर, वैज्ञानिक और सरकार

क्या कोरोना के वायरस और उसके संक्रमण का मौसम और तापमान से कोई लेना देना है. फिलहाल इसकी अभी तक कोई वैज्ञानिक पुष्टि तो नहीं हुई है. और तो और अभी इसे लेकर रिसर्च तक पूरी नहीं हो पाई है. लेकिन फ्लू और कोल्ड वायरस का ट्रेंड देखें तो पता चलेगा कि ये वायरस ठंड में सक्रिय होता है.

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भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 1,90,000 के पार जा चुकी है
भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 1,90,000 के पार जा चुकी है

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  • कोरोना संक्रमण पर बेअसर मौसम और तापमान!
  • कोरोना संक्रमण से सावधान रहने में ही है बचाव

हमारे देश में मानसून दस्तक देने वाला है. जानकारों के मुताबिक इसी दौरान कोरोना की दूसरी लहर आने वाली है. ऐसे में ये समझने की ज़रूरत है कि कोरोना की ये दूसरी लहर, कहर कैसे बनने वाली है. अगर इस दौरान लॉकडाउन खोला गया तो ये कहर और कितना खतरनाक हो सकता है. इसे भी समझने की ज़रूरत है. क्योंकि अब जानकारी ही बचाव है और अगर सावधानी ज़रा भी हटी तो बड़ी दुर्घटना घट सकती है. लिहाज़ा इस आने वाले खतरे से डॉक्टर, वैज्ञानिक और सरकार सभी फिक्रमंद हैं.

क्या कोरोना के वायरस और उसके संक्रमण का मौसम और तापमान से कोई लेना देना है. फिलहाल इसकी अभी तक कोई वैज्ञानिक पुष्टि तो नहीं हुई है. और तो और अभी इसे लेकर रिसर्च तक पूरी नहीं हो पाई है. लेकिन फ्लू और कोल्ड वायरस का ट्रेंड देखें तो पता चलेगा कि ये वायरस ठंड में सक्रिय होता है. जहां तक मॉनसून की बात है. तो इसके चलते तापमान में गिरावट आती है. इसलिए इस दौरान कोरोना वायरस में तेज़ी आने का अंदेशा है. जानकार ऐसा मान रहे हैं कि कोरोना वायरस चूंकि संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है और छींकने या खांसने के बाद इसके ड्रॉपलेट यानी कण हवा में बिखर जाते हैं. इसलिए मॉनसून में तापमान गिरने और मौसम में नमी की वजह से कोरोना का ये वायरस हवा में ज्यादा देर तक मौजूद रह सकता है, जो आने वाले खतरे का सिगनल है.

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सच कहें तो कोरोना और तामपान का सीधे तौर पर कनेक्शन हालांकि अभी तक साबित नहीं हो पाया है. इसलिए ये कह पाना मुश्किल है कि मौसम के हिसाब से कोविड-19 का ये वायरस मॉनसून में क्या रुख दिखाएगा. क्योंकि अगर ऐसा होता तो आज से दो-तीन महीने पहले कुछ वैज्ञानिक इस बात को मान रहे थे कि तापमान बढ़ने के साथ साथ कोरोना का ये वायरस बेअसर हो जाएगा. मगर 40 डिग्री या उससे ज़्यादा तापमान होने के बावजूद हिंदुस्तान में ऐसा हुआ नहीं. और ना ही दुनिया के किसी देश से ऐसी रिपोर्ट आई जिससे ये साबित हो सके कि गर्मी में ये वायरस बेअसर हो जाता है.

भारत की बात करें तो गर्मी के बावजूद यहां कोरोना का कहर अभी कम नहीं हुआ है. दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. अब तक पूरे देश में कोरोना के सबसे ज़्यादा मामले महाराष्ट्र में सामने आए हैं. इसके बाद गुजरात, दिल्ली, तमिलनाडु और राजस्थान में कोरोना ने सबसे ज़्यादा कहर बरपाया है.

आंकड़ों पर नज़र डालें तो भारत के सभी राज्यों में कोरोना का कहर नहीं है. और तो और देश के कई शहर तो ऐसे हैं जहां कोरोना के मामले बेहद कम हैं. भारत में कोरोना वायरस के 60% मामले तो सिर्फ 12 शहरों में पाए गए हैं. मुंबई में सबसे ज़्यादा करीब 34 हज़ार कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आए हैं. जबकि दिल्ली में 15 हज़ार से ज़्यादा लोग कोरोना संक्रमित पाए जा चुके हैं. इसके अलावा अहमदाबाद में करीब 12 हज़ार, पुणे में 7 हज़ार से ज़्यादा और चेन्नई में 13 हज़ार मामले अबतक सामने आए हैं. जयपुर, सूरत, पुणे, आगरा, कोलकाता, भोपाल, इंदौर और हैदराबाद जैसे शहरों में भी कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़े हैं.

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अंदाज़ा लगाइये कि ये हाल तो तब है जब देश में लॉकडाउन चल रहा है. 40 दिनों तक पूरे देश में सख्ती के साथ लॉकडाउन का पालन करवाया गया. हालांकि अब उसके बाद देश को रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांटकर कुछ ढील ज़रूर दी गई है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कोरोना का खतरा अभी पूरी तरह टल गया है. बल्कि उल्टा सरकार को मॉनसून का ध्यान रखते हुए इसकी तैयारियां करनी पड़ेंगी. क्योंकि जिस रफ्तार से कोरोना के मामले अभी बढ़ रहे हैं. वो रफ्तार बारिश के दौरान और तेज़ होने वाली है.

तो अब सवाल ये कि आखिर अब वैज्ञानिक किस बिनाह पर ये दावा कर रहे हैं कि मॉनसून में कोरोना का वायरस और ज़्यादा विक्राल रूप ले लेगा. दरअसल होता ये है कि मॉनसून के दौरान मौसम में नमी की वजह से तरह-तरह के बैक्टीरिया और वायरस की सक्रियता बढ़ जाती है और इसके साथ तरह-तरह के संक्रमणों की भी और इस बार तो मॉनसून कोरोना के काल में आ रहा है. ऐसे में इस मौसम में पहले से कहीं ज़्यादा एहतियात की जरूरत होगी.

मॉनसून के दौरान एक तो मौसम में नमी और दूसरा तामपान में कमी. भारत सरकार और वैज्ञानिकों की नींद उड़ा रही है. क्योंकि चीन में जब इस वायरस की शुरुआत हुई थी. तब वहां अच्छी-खासी ठंड थी. इसके लक्षण भी सर्दी, खांसी और बुखार से मिलते जुलते हैं. जो आम सर्दी के लक्षण की तरह दिखते हैं. अमूमन ऐसा देखा जाता है कि ठंड बढ़ने पर सर्दी-जुकाम की शिकायत होती है. फिर इनफेक्शन बढ़ने से बुखार भी हो जाता है. तापमान में कमी से इस वायरस के बढ़ने की संभावना इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि लोग घरों में कैद होते हैं. बाहर निकलने से खुद को बचाते हैं. जब ज्यादा लोग एक-दूसरे के आसपास बने रहेंगे तो इनफेक्शन तेज़ी से बढ़ने की संभावना होती है. कोरोना के साथ भी ऐसा ही हुआ.

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चीन में हालांकि कोरोना वायरस जानवरों से इंसानों में आया है लेकिन इसे बढ़ाने में ज्यादा भूमिका ठंड ने निभाई है क्योंकि लोग घरों या किसी बंद स्थान पर ज्यादा देर रुके. और अब पहली बार कोरोना का वायरस मॉनसून का सामना करने जा रहा है. कोरोना वायरस का तापमान से क्या संबंध है. अभी इस पर रिसर्च चल रही है. लेकिन पहले के दो जानलेवा वायरस सार्स और मर्स का ट्रेंड देखें तो उनका संक्रमण ठंड में बढ़ा था. इसे देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि मॉनसून में तापमान कम होने की वजह से कोरोना वायरस का प्रभाव फिर से बढ़ सकता है. लेकिन इसका अभी कोई पुख्ता आधार नहीं है. ये सारी थ्योरी इसलिए है क्योंकि यूं भी अमूमन मॉनसून में संक्रमण तेज़ी से फैलते हैं.

ज़ाहिर है अगर सरकार मॉनसून से पहले लॉकडाउन खोलने की प्लानिंग कर रही है. तो उसे बेहद एहतियात से इस लॉकडाउन को खोलना होगा. वरना लेने के देने पड़ सकते हैं. क्योंकि अभी हमें लॉकडाउन की वजह से इसके अगले दौर से निपटने की तैयारी के लिए भरपूर वक्त मिला हुआ है. इस वक्त लोगों की जांच, मामलों की तलाश, आइसोलेशन के साथ-साथ सफाई के बेहतर तौर-तरीकों को सीखने की कोशिश भी करना चाहिए. बिना इन तैयारियों के लॉकडाउन खोलना एक मुशिक्ल फैसला होगा. इसलिए वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सरकार चरणबद्ध तरीके से ही लॉकडाउन को हटाएगी.

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