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पुलिसवाले का प्यार, महबूबा का कत्ल और मिस्ट्री... दो साल तक एक 'मुर्दे' को जिंदा रखने की सनसनीखेज कहानी

अमूमन जब किसी का कत्ल होता है, तो कातिल को पकड़ने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. लेकिन जब एक पुलिस वाला ही कत्ल कर दे, तो फिर उसे कौन पकड़े? ये दिल्ली के उसी चर्चित बुराड़ी इलाके का केस है, जिस बुराड़ी में एक ही घर के अंदर 11 लोगों ने खुदकुशी कर ली थी.

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कांस्टेबल मोना यादव का कातिल कोई और नहीं बल्कि एक वर्दीवाला ही था
कांस्टेबल मोना यादव का कातिल कोई और नहीं बल्कि एक वर्दीवाला ही था

दो साल पहले दिल्ली में एक लेडी कांस्टेबल का कत्ल होता है. लेकिन इसके बावजूद कातिल उस लेडी कांस्टेबल को अगले दो साल तक जिंदा रखता है. ना सिर्फ जिंदा रखता है बल्कि उसके जिंदा होने के तमाम छोटे बड़े सबूत पेश करता रहता है. दरअसल, कातिल को पता था कि कत्ल के केस को कैसे सुलझाया और उलझाया जाता है. क्योंकि वो कातिल कोई और नहीं बल्कि खुद दिल्ली पुलिस का एक हेड कांस्टेबल है. 

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कातिल पुलिसवाला 
अमूमन जब किसी का कत्ल होता है, तो कातिल को पकड़ने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. लेकिन जब एक पुलिस वाला ही कत्ल कर दे, तो फिर उसे कौन पकड़े? ये दिल्ली के उसी चर्चित बुराड़ी इलाके का मामला है, जिस बुराड़ी में एक ही घर के अंदर 11 लोगों ने खुदकुशी कर ली थी. वहां एक नाले में एक तलाशी अभियान चलाया गया. एक ऐसी तलाश, जो दो साल पहले हुए एक सनसनीखेज कत्ल का राज उगलने वाली थी. कत्ल.. दिल्ली पुलिस की एक लेडी कांस्टेबल का जिसके राज को दिल्ली पुलिस के ही एक हेड कांस्टेबल ने पूरे दो साल तक अपने पुलिसिया दिमाग के सहारे पूरी दुनिया से छुपाए रखा.

मुर्दा को जिंदा दिखाने की कोशिश
इस कत्ल को छुपाने के लिए उसने वो सबकुछ किया, जो किसी कत्ल को उजागर करने के लिए पुलिस करती है. ये पुलिसिया दिमाग ही था, जिसने इस एक कत्ल पर पूरे दो सालों तक पर्दा डाले रखा. इन दो सालों में एक पुलिस वाले ने मुर्दा लेडी कांस्टेबल को जिंदा साबित करने की हर मुमकिन कोशिश की. दो साल तक अपनी कोशिश में एक तरह से वो कामयाब भी रहा. लेकिन अब दो साल बाद दिल्ली के बुराड़ी इलाके के जिस नाले से ये कहानी शुरू हुई थी, उसी नाले पर आकर खत्म हुई. ये कहानी है दिल्ली पुलिस की लेडी कांस्टेबल मोना यादव और दिल्ली पुलिस के ही हेड कांस्टेबल सुरेंद्र राणा की.

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IPS बनना चाहती थी मोना यादव
बुलंदशहर की मोना यादव ने 2014 में दिल्ली पुलिस को बतौर कांस्टेबल ज्वाइन किया था. इससे दो साल पहले 2012 में सुरेंद्र सिंह राणा ने दिल्ली पुलिस ज्वाइन किया था. सुरेंद्र पीसीआर वैन का ड्राइवर हुआ करता था. बाद में सुरेंद्र और मोना की तैनाती पुलिस कंटोल रूम में हो गई. और यहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई. धीरे-धीरे मुलाकात दोस्ती में बदल गई. मोना पढ़ने लिखने में बेहद तेज थी. उसका सपना आईपीएस अफसर बनने का था. ड्यूटी के बाद वो लगातार यूपीएससी की तैयारी भी किया करती थी. 

मोना यादव

यूपी पुलिस में हो गया था सिलेक्शन
इसी तैयारी के दौरान उसने यूपी पुलिस की भी परीक्षा दी. परीक्षा में पास कर वो सीधे सब इंस्पेक्टर बन गई. सब इंस्पेक्टर बनते ही मोना ने दिल्ली पुलिस से इस्तीफा दे दिया. लेकिन उसने यूपी पुलिस ज्वाइन करने की बजाय यूपीएससी की तैयारी करने का फैसला किया. इसी तैयारी के लिए अब मुखर्जी नगर में एक पीजी में रहने लगी. तैयारी की वजह से अब सुरेंद्र और मोना में कम मुलाकात हुआ करती थी. मोना अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा रही थी.

शादी का दबाव बनाने लगा था सुरेंद्र
उधर, मोना के सब इंस्पेक्टर बनने और फिर उसकी यूपीएससी की तैयारी के चलते अब सुरेंद्र परेशान रहने लगा था. मोना की तैयारी को देखते हुए उसे लगने लगा था कि वो पक्का आईपीएस अफसर बनेगी. इसीलिए अब मोना पर शादी के लिए दबाव डालने लगा. हालांकि वो खुद पहले से शादीशुदा था. मोना लगातार शादी से इनकार कर रही थी. उसका पूरा ध्यान यूपीएससी के इम्तेहान और उसकी तैयार पर था 

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8 सितंबर 2021 
यही वो दिन था, जब सुरेंद्र और मोना में शादी की बात को लेकर एक बार फिर झगड़ा हुआ. तब दोनों सुरेंद्र की कार में थे. झगड़े के दौरान सुरेंद्र अपनी कार बुराड़ी की तरफ ले गया. वो खुद अलीपुर में रहता था. बुराड़ी में पुश्ते के करीब एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक कर उसने गुस्से में मोना का गला दबा दिया. कार में ही मोना की मौत हो गई. कत्ल के बाद उसने उसी पुश्ता इलाके में पड़ने वाले गंदे नाले में मोना की लाश फेंक दी. तब उस नाले में ज्यादा पानी नहीं था. लिहाजा, सुरेंद्र ने लाश डालने के बाद उस पर मिट्टी डाली और फिर वजनी पत्थर रख दिए. मगर इससे पहले उसने मोना का मोबाइल, उसका आधार कार्ड, एटीएम और सबकुछ अपने पास रख लिया था.

मोना के घरवालों ने सुरेंद्र से ही मांगी मदद
इधर, वारदात के कई दिनों बाद तक जब घरवालों की मोना से बात नहीं हुई, तो उन्होंने मोना को ढूंढना शुरू किया. चूंकि हेड कांसटेबल सुरेंद्र कई बार मोना के घर भी जा चुका था. इसलिए उसके घरवाले उसे जानते थे. ऊपर से वो पुलिस वाला था. तो मोना के घरवालों ने सुरेंद्र से ही मोना को ढूंढने की गुजारिश की. इसके बाद खुद सुरेंद्र मोना के घरवालों के साथ मुखर्जी नगर थाने गया. वहां उसने मोना की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई. इतना ही नहीं, घरवालों को यकीन दिलाने के लिए वो दिल्ली पुलिस के आला अफसरों के पास भी मोना के घरवालों को लेकर गया. लेकिन मोना का कोई पता नहीं चल रहा था. फिर एक रोज अचानक सुरेंद्र ने मोना के घरवालों को बताया कि वो किसी अरविंद नाम के लड़के के साथ चली गई है. शायद दोनों ने शादी भी कर ली है.

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घरवालों को सुनाए थे मोना के ऑडियो
मोना के घरवालों को यकीन दिलाने के लिए सुरेंद्र कई बार दूसरे नंबर से मोना के घर फोन करता था. पर फोन पर आवाज मोना की होती थी. वो कहती, मैं ठीक हूं. परेशान ना हों. घरवाले बेफिक्र हो जाते. पर असल में होता ये कि सुरेंद्र के पास मोबाइल में मोना के कई ऑडियो मौजूद थे. इन्ही ऑडियो को वो एडिट कर रिकॉर्डेड बातचीत मोना के घरवालों को सुना देता. तब मोना के घरवालों को तसल्ली हो जाती और वो यही सोचते कि वो जहां भी है, ठीक है. पर दो चार ऑडियो मैसेज ही सुरेंद्र कितनी बार घरवालों को सुनाता? लिहाजा मोना को जिंदा रखने के लिए उसने दूसरा तरीका अपनाया. 

फर्जी अरविंद से कराई थी बात
सुरेंद्र ने अब अपने साले रविन को भी इस साजिश में शामिल कर लिया. मोना के अरविंद के साथ भाग कर शादी करने की बात, सुरेंद्र पहले ही मोना के घरवालों को बता चुका था. अब उसने अपने साले को अरविंद बना कर मोना के घरवालों से फोन पर बात करवानी शुरू कर दी. फर्जी अरविंद हमेशा फोन पर मोना के घरवालों को यही कहता कि दोनों ने शादी कर ली है, लेकिन उसके घरवाले उसे धमकी दे रहे हैं. इसीलिए वो अलग-अलग शहरों में भटक रहा है. लेकिन जब घरवाले मोना से बात कराने की बात कहते, तो वो कहता कि अभी वो डरी हुई है. बाद में बात करेगी. ये सिलसिला भी काफी दिनों तक चला.

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मोना के आधार पर किसी लड़की को लगवाई थी वैक्सीन
लेकिन सुरेंद्र दिल्ली पुलिस में था. पुलिसिया दिमाग को वो अच्छे सा जानता था. उसे लगा कि इस फर्जी अरविंद वाली कहानी से भी बहुत दिनों तक मोना के घरवालों को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता. 2021-22 में देश कोरोना से जूझ रहा था. लोगों ने एक दूसरे से दूरी बना रखी थी. इस दूरी का फायदा भी सुरेंद्र ने उठाया. मोना के जिंदा होने का यकीन दिलाने के लिए सुरेंद्र ने अब एक नया पैंतरा अपनाया. मोना के आधार कार्ड पर किसी और लडकी को ले जाकर उसने कोरोना का वैक्सीन लगवा दिया. इस वैक्सीन के सर्टिफिकेट को भी उसने मोना के घर भिजवा दिया. सर्टिफिकेट पर साल और महीना दर्ज था. घरवालों को लगा कि चलो बेशक मोना गुम है, लेकिन जिंदा है. लेकिन सुरेंद्र का पुलिसिया दिमाग अब भी काम कर रहा था. उसे मालूम था कि हर थोड़े दिनों में मोना के जिंदा होने का सबूत घरवालों को देते रहना जरूरी है. इसके लिए भी उसने एक नया तरीका अपनाया.

अलग-अलग शहर, अलग-अलग होटल
मोना का आधार कार्ड पहले से ही उसके पास था. 2021-22 में कोरोना का कहर जारी था. दो गज की दूरी और मास्क जरूरी था. सुरेंद्र ने इस मास्क का भी फायदा उठाया. उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब के कई होटलों में उसने अलग-अलग कॉल गर्ल को रुकने के लिए भेजा. होटल में एंट्री के लिए आईडी कार्ड के तौर पर हर जगह उन लड़कियों ने मोना का आधार कार्ड ही दिया. अलग-अलग होटलों में मोना के नाम पर दूसरी लड़कियों को ठहराने के बाद सुरेंद्र खुद इस बात की जानकारी मोना के घरवालों को देता रहा. वो बताता कि उसके मुखबिरों के पता चला है कि मोना इन इन शहरों के होटलों में रुकी थी. फिर वो मोना के घरवालों को लेकर खुद भी उन होटलों में जाता. वहां रजिस्टर चेक करता. नाम और शिनाख्ती कार्ड चेक करता. घरवाले भी देखते कि आधार कार्ड तो मोना का ही है. पर इस अफसोस के साथ लौट आते कि यहां पहुंचने में जरा सी देरी हो गई. वरना मोना मिल जाती लेकिन ऐसा करके सुरेंद्र अब भी लगातार मोना को जिंदा रखे हुए था.

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ऐसे शुरू हुई असली तहकीकात
लेकिन अब 2023 आ चुका था. आधा साल बीत चुका था और मोना को गायब हुए पूरे दो साल. मोना के घरवालों, खास कर उसकी बहन को अब शक होने लगा. उसे लगा कि अगर उसने अपनी मर्जी से भाग कर शादी भी कर ली. तो अब तो दो साल हो गए. सब कुछ सेटल हो गया होगा. फिर वो क्यों सामने नहीं आ रही है? बहन को लगा कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है. और इसी के बाद मोना के घरवालों ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से मिलने का फैसला किया. पुलिस कमिश्नर ने पूरी कहानी सुनने के बाद क्राइम ब्रांच को मोना को तलाशने की जिम्मेदारी सौंपी. दो महीने पहले क्राइम ब्रांच ने अपनी जांच शुरू की.

फर्जी आईडी पर लिए गए थे सिमकार्ड
क्राइम ब्रांच ने सबसे पहले मोना के घरवालों से ही पूछताछ की. तब पता चला कि मोना की गुमशुदगी के बाद कई बार अलग-अलग नंबरों से अरविंद नाम के एक शख्स का फोन आता था और वो ये बताता था कि उसने मोना से शादी कर ली है और दोनों को ठीक हैं. पुलिस ने अब उन नंबरों को खंगालने का फैसला किया. जांच के दौरान पता चला कि जिन नंबरों से कॉल किए गए थे, वो सभी सिम फर्जी आईडी कार्ड पर लिए गए थे. 

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फर्जी फॉर्म, असली फोटो
ऐसी ही एक फर्जी आईडी वाले सिम कार्ड के फॉर्म पर एक तस्वीर चिपकी थी. इस फॉर्म पर नाम तो किसी और का था, लेकिन फोटो राजपाल नाम के एक शख्स की चिपकी थी. पुलिस ने जब फॉर्म पे चिपकी इस तस्वीर को मोना के घरवालों को दिखाया, तो उन्होंने उसकी पहचान राजपाल के तौर पर की. मोना के घरवालों ने बताया कि राजपाल एक दो बार हवलदार सुरेंद्र राणा के साले रविन के साथ उनके घर आया था और वो रविन का दोस्त है. ये पता चलते ही पुलिस ने सबसे पहले राजपाल को दबोचा. फिर राजपाल के बाद सुरेंद्र के साले रविन को. 

ऐसे कातिल सुरेंद्र तक पहुंची पुलिस
अब इन दोनों से जब पूछताछ हुई, तो थोड़ी ही देर में दोनों टूट गए. दोनों ने कहा कि उनकी कोई गलती नहीं है. उन्होंने कोई कत्ल नहीं किया है. ये सबकुछ सुरेंद्र ने किया है. पहली बार इन दोनों ने ही बताया कि जिस मोना को दो साल से खुद सुरेंद्र और दिल्ली पुलिस ढूंढ रही है, वो तो दो साल पहले ही मर चुकी है. उसका कत्ल किसी और ने नहीं बल्कि खुद सुरेंद्र ने किया है. इन दोनों के खुलासे के बाद अब दिल्ली पलिस अपने ही महकमे के हेड कांस्टेबल यानी हवलदार सुरेंद्र सिंह राणा को गिरफ्तार किया. सुरेंद्र का साला और साले का दोस्त राजपाल पहले ही कहानी उगल चुके थे. अब सुरेंद्र की बारी थी. 

सुरेंद्र की निशानदेही पर मिला मोना का कंकाल
सुरेंद्र सबसे पहले दिल्ली पुलिस को अपने साथ बुराड़ी के पुश्ता इलाके में मौजूद उस नाले के करीब ले गया. पुलिस वाले अपने साथ कुछ सफाई कर्मचारी भी ले कर आए थे. अब नाले में तलाश शुरू होती है. थोडी ही देर की मशक्कत के बाद अचानक नाले की गहराई से एक वजनी पत्थर के नीचे दबा एक कंकाल बाहर निकलता है. कंकाल ठीक उसी जगह से बाहर निकलता है, जिस जगह पर सुरेंद्र ने इशारा किया था. कंकाल को अस्पताल भेज दिया जाता है. इसके बाद मोना के घरवालों से डीएनए सैंपल लिए जाते हैं. अब नाले से बरामद कंकाल और मोना के घरवालों के डीएनए सैंपल की जांच होती है.

मामले को गंभीरता से लेती पुलिस तो पहले ही खुल जाता केस
8 सितंबर 2021 को सुरेंद्र ने मोना का कत्ल किया था. और इतेफाक देखिए कि ठीक दो साल बाद 30 सितंबर 2023 को दिल्ली पुलिस ने मोना के कत्ल की पहेली को सुलझा लिया. हालांकि मोना का कत्ल बेशक 8 सितंबर 2021 को हुआ था, लेकिन उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट 20 अक्टूबर 2021 को मुखर्जी नगर पुलिस स्टेशन में लिखाई गई थी. अगर मुखर्जी नगर पुलिस उसी वक्त इस मामले को गंभीरता से लेती, तो मुर्दा मोना अगले दो साल तक जिंदा ना रहती. वो भी तब जबकि मोना खुद दिल्ली पुलिस की एक कांस्टेबल थी. अपने ही विभाग की एक पुलिस वाली की गुमशुदगी पर दिल्ली पुलिस का ये रवैया सवाल खड़े करता है. सवाल ये कि जब अपनों के साथ ये हाल है, तो फिर आम लोगों की शिकायत गलत नहीं है.

(दिल्ली से अरविंद ओझा का इनपुट)
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