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दिल्ली के थाने में रखा बक्सा, लाश के टुकड़े और अदालतों की दौड़... पिता को आज भी है श्रद्धा वॉल्कर के अंतिम संस्कार का इंतजार

दिल्ली के महरौली थाने में पिछले सवा दो साल से मालखाने के अंदर एक छोटे से बक्से में श्रद्धा वॉल्कर बंद है. महरौली थाने से लगभग 4 किलोमीटर दूरी पर मौजूद है साकेत कोर्ट. 1 जून 2023 यानी लगभग पिछले पौने दो साल से इसी कोर्ट में श्रद्धा केस की सुनवाई लंबित है.

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श्रद्धा के कत्ल का खुलासा नवंबर 2022 में हुआ था
श्रद्धा के कत्ल का खुलासा नवंबर 2022 में हुआ था

Shraddha Walker Murder Case: दिल्ली में एक पुलिस थाने के मालखाने में एक छोटा सा बक्सा रखा है, जिसमें बंद है श्रद्धा वॉल्कर. जिसे आज भी अपने अंतिम संस्कार का इंतजार है. ये वही श्रद्धा वॉल्कर है, जिसे उसके प्रेमी ने मौत की नींद सुला दिया था और लाश के टुकड़ों को कई दिनों तक फ्रीज में बंद रखा था. इस मुकदमें को शुरू हुए करीब दो साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन अब भी इस केस हर दिन सुनवाई का इंतजार था. अब जाकर अदालत ने फैसला किया है कि मार्च के महीने से अब हर दिन इस केस की सुनवाई होगी. हालांकि इस केस में अभी तक बहुत सी कार्रवाई अधूरी है. 

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साकेत कोर्ट में लंबित है श्रद्धा वॉल्कर केस
दिल्ली के महरौली थाने में पिछले सवा दो साल से मालखाने के अंदर एक छोटे से बक्से में श्रद्धा वॉल्कर बंद है. महरौली थाने से लगभग 4 किलोमीटर दूरी पर मौजूद है साकेत कोर्ट. 1 जून 2023 यानी लगभग पिछले पौने दो साल से इसी कोर्ट में श्रद्धा केस की सुनवाई लंबित है. इस सुनवाई के दौरान ऐसा कई बार हुआ जब एक छोटे से बक्से में बंद श्रद्धा को महरौली थाने के मालखाने से निकाल कर कोर्ट में पेश किया गया.

श्रद्धा के नाम पर बाकी हैं उसकी चंद हड्डियां
श्रद्धा के पिता विकास वॉल्कर को नवंबर 2022 में पहली बार पता चला था कि उनकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है. उनकी बेटी श्रद्धा के इसी दोस्त यानी आफताब पूनावाला ने श्रद्धा का कत्ल करने के बाद लाश के टुकड़ों को महरौली के जंगलों में किस्तों में ठिकाने लगा दिया था. लगभग सवा दो साल से विकास वॉल्कर को पता है कि उनकी बेटी श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है. श्रद्धा के नाम पर कुछ है तो छोटे से बक्से में बंद उसकी चंद हड्डियां. मगर इस बदकिस्मत बाप की बदनसीबी देखिए कि श्रद्धा तो छोड़िए उसकी लाश के बचे खुचे टुकड़े तक उन्हें अंतिम संस्कार के लिए नहीं सौंपे गए.

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सवा दो साल से अंतिम संस्कार का इंतजार
बीते पौने दो साल से जब जब विकास वॉल्कर साकेत कोर्ट में हाजिर होते हैं, तो बस कभी कभार कोर्ट रूम के अंदर ही उन्हें बक्से में बंद श्रद्धा नजर आ जाती है. न जाने ये कैसा मजाक है जो कानून के नाम पर एक बेबस बाप के साथ किया जा रहा है. जिस बाप की जवान बेटी को पहले ही उससे छीन लिया गया हो, जिसके कत्ल और कत्ल के तरीके की कहानी को सुन कर श्रद्धा को न जानने वाले भी गमजदा हो जाते हों, उसी श्रद्धा के अंतिम संस्कार के लिए पिछले सवा दो साल से उसके बाप को इंतजार कराया जा रहा है.

श्रद्धा का प्रेमी आफताब पूनावाला ही इस केस में आरोपी है

अदालत में ट्रॉयल का इंतजार
ऊपर से सितम देखिए कि महरौली थाने के इस मालखाने से चार किलोमीटर दूर साकेत कोर्ट के रास्ते 12 सौ किलोमीटर दूर मुंबई तक श्रद्धा कब पहुंचेगी ये अब भी कोई बताने वाला नहीं है. श्रद्धा केस की सुनवाई करने वाला फास्ट ट्रैक कोर्ट कितना फास्ट है, ये इसी से समझ लीजिए कि पौने दो साल हो चुके हैं लेकिन अब भी ट्रायल तो छोड़िए गवाहों की गवाहियां तक पूरी नहीं हो पाई है. 

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केस प्रॉपर्टी हैं श्रद्धा की हड्डियां
और इस बात की भी गारंटी नहीं है कि अगर फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला आ भी जाता है, तो भी श्रद्धा के पिता श्रद्धा का अंतिम संस्कार कर पाएं. जानते हैं क्यों? क्योंकि बहुत मुमकिन है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले के बाद जब उस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी, तो बहुत मुमकिन है कि हाई कोर्ट भी श्रद्धा की हड्डियों को केस प्रॉपर्टी के तौर पर श्रद्धा के पिता को फैसला आने तक सौंपने से इनकार कर दे.

फास्ट ट्रैक कोर्ट, फिर भी लटका है केस
कायदे से हमारे देश का ज्यूडिशियल सिस्टम एक है. फास्ट ट्रैक कोर्ट के काम करने का तरीका भी एक है. फिर क्या वजह है कि कोलकाता आरजी कर अस्पताल की जूनियर डॉक्टर के रेप और मर्डर केस का फैसला वही दो महीने में सुना देता है. मगर कोलकाता से दूर दिल्ली में एक दूसरा फास्ट ट्रैक कोर्ट श्रद्धा केस की सुनवाई में ही दो साल ले लेता है. फिर भी फैसले का पता नहीं कब आएगा. ये वही श्रद्धा केस था जो जब खुला, तो पूरा देश श्रद्धा की कहानी सुन कर सन्न रह गया था. न्यूज चैनल और अखबारों में लगातार ये खबर सुर्खियों पर टंगी थी. नेता पुलिस सब बढ़ चढ़ कर दावे कर रहे थे. फिर सभी ने इस केस को भी फास्ट ट्रैक से उतार कर शायद मालगाड़ी के ट्रैक पर डाल दिया. 

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तीन महीनों तक ठिकाने लगाए थे लाश के टुकड़े
श्रद्धा मर्डर केस का खुलासा 12 नवंबर 2022 को हुआ था, जब दिल्ली के महरौली इलाके से आफताब पूनावाला पकड़ा गया था. आफताब की गिरफ्तारी के बाद पता चला कि श्रद्धा का क़त्ल 18 मई 2022 को ही कर दिया था. मगर श्रद्धा की लाश नहीं मिली थी, क्योंकि आफताब ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े कर उन्हें महरौली के किराये के घर में फ्रिज में रख दिया था. और फिर अगले तीन महीनों तक वो किस्तों में उन टुकड़ों को फ्रिज से निकाल कर महरौली के जंगलों में फेंकता रहा. चूंकि वक्त बहुत ज्यादा बीत चुका था, लिहाजा पुलिस को लाश के नाम पर श्रद्धा की चंद हड्डियां ही मिली थी. डीएनए टेस्ट से ये साबित हो गया था कि हड्डियां श्रद्धा की ही हैं.

24 जनवरी 2023 को दाखिल की गई थी चार्जशीट
मीडिया की सुर्खियों के चलते श्रद्धा केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेज दिया गया. एफआईआर दर्ज होने के 75 दिन बाद 24 जनवरी 2023 को दिल्ली पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की. चार्जशीट दाखिल होने के बाद लगभग 3 महीने फास्ट ट्रैक कोर्ट ने चार्ज फ्रेम करने में ही लगा दिए. 9 मई 2023 को चार्जफ्रेम हुआ. मगर चार्ज फ्रेम होने के बाद भी ट्रायल शुरू करने के लिए अदालत ने लगभग 1 महीना और ले लिया. 

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अभी बाकी है 47 गवाहों की गवाहियां
1 जून 2023 से श्रद्धा केस के मुकदमे की सुनवाई दिल्ली की साकेत कोर्ट में शुरू हुई. उम्मीद थी कि 6-9 महीने में फैसला आ ही जाएगा. निर्भया केस में भी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 9 महीने में अपना फैसला सुना दिया था. लेकिन अफसोस ऐसा हुआ नहीं. मुकदमे की कार्रवाई बीते पौने दो साल से जारी है. और आलम ये है कि इस केस में जो 212 गवाह हैं, उनमें से अभी सिर्फ 165 गवाहों की ही गवाहियां पूरी हो पाई हैं. यानी 47 गवाहों की गवाहियां अब भी बाकी हैं.

कोर्ट को नहीं मिला डायरेक्शन
अब सवाल ये है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा होने के बावजूद इतना वक्त क्यों लग रहा है? तो इसकी एक बड़ी सीधी सी वजह है. श्रद्धा का केस जिस फास्ट ट्रैक कोर्ट में है, उस कोर्ट को कहीं से ये डायरेक्शन ही नहीं मिला है कि इस मुकदमे की सुनवाई डे टू डे होगी या आम केस की तरह. अगर फास्ट ट्रैक कोर्ट को एक सीमा दी जाती कि इस टाइम बाउंड के अंदर अपना फैसला सुनाना है, तो शायद इतनी देरी ना होती.

जल्द फैसला आने की उम्मीद नहीं
मगर कमाल देखिए अब जब इस मुकदमे की कार्रवाई को लगभग 2 साल होने जा रहे हैं, तब फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ये फैसला लिया कि अगले महीने यानी मार्च से वो इस केस की डे टू डे सुनवाई करेगा. यानी जो काम दो साल पहले होना था, वो अब दो साल बाद होगा. यानी इस हिसाब से अगर मार्च से भी डे टू डे हियरिंग शुरू होती है, तो भी अगले दो तीन महीने तक फैसला आने की उम्मीद नजर नहीं आती. कम से कम मई से पहले तो हरगिज नहीं.

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आसान नहीं आरोपी को सजा दिलाना
पर कहानी अप्रैल मई में भी खत्म नहीं होगी. क्योंकि फास्ट ट्रैक कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, उसे कोई ना कोई हाई कोर्ट में चैलेंज करेगा. अगर फास्ट ट्रैक कोर्ट आफताब पूना वाला को सजा-ए-मौत देता है, तो उस सूरत में भी उस फैसले पर मुहर हाई कोर्ट को ही लगाना है. हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट इसके बाद न जाने कितने पिटिशन, रिव्यू पिटिशन. जाहिर है श्रद्धा को मर कर भी अभी कई अदालतों के चक्कर काटने हैं. और जब तक ये चक्कर खत्म नहीं हो जाता, तब तक श्रद्धा के पिता और भाई को भी मुंबई से दिल्ली के न जाने कितने ही चक्कर काटने होंगे. पिछले दो सालों से वैसे ही विकास वॉल्कर सिर्फ कोर्ट में ही 35-40 बार हाजिरी लगा चुके हैं. मुंबई से दिल्ली आने-जाने, रहने-खाने का खर्च अलग.

कातिल के गले से दूर है फांसी का फंदा
इधर, विकास वॉल्कर अपना सबकुछ खो कर इंसाफ की खातिर मुंबई से दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ असली गुनहगार यानी आफताब पूनावाला आराम से तिहाड़ में बंद है. उसे भी पता है कि अपने देश में इंसाफ जल्दी नहीं मिलता. उसे ये भी पता है कि अभी तो फास्ट ट्रैक कोर्ट एक शुरुआत है. अगर गलती से फांसी की सजा मिल भी गई, तो फांसी का वो फंदा उसके गले से न जाने कितने बरस दूर है. पर क्या सचमुच आफताब पूनावाला को श्रद्धा मर्डर केस में सजा-ए-मौत मिलेगी? क्या फास्ट ट्रैक कोर्ट की नजर में ये केस रेयरेस्ट ऑफ रेयर की कैटेगरी में आएगा? आरजी कर अस्पताल की जूनियर डॉक्टर के केस में हाई कोर्ट के फैसले ने इस सवाल को और गहरा बना दिया है.

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