बस यूं समझ लीजिए कि जब तक सावन चलेगा तब तक कांवड़ राज चलेगा. इस कांवड़राज में आपकी बिल्कुल नहीं चलेगी. क्योंकि अगर गलती से भी आपने अपनी या कानून की चलाने की कोशिश की तो फिर बस गुंडाराज ही देखने को मिलेगा. शायद इसी डर की वजह से खुद पुलिस तक डरी हुई है. अब जो कहानी आपको सुनाने जा रहे हैं, उसे पहले देखिए और सुनिए. इसके बाद आप ही तय कीजिएगा कि ये इसे कांवड़ राज कहें या गुंडाराज.
योगी ने दिया हुड़दंग का लाइसेंस
कांवड़ यात्रा निकलने और निकालने में कहां किसी को एतराज़ है. मगर योगी जी कांवड़यात्रा को किसी की शवयात्रा बना देना भी कहां की भक्ति है. और किसी सूबे का मुख्यमंत्री ही जब लोगों को हुड़दंग का लाइसेंस देने लगे तो फिर किसमें ये दम है कि कांवड़ियों के भेस में घूम रहे इन गुंडों को रोक सके. ये तो कुछ ऐसा ही है कि जब सईंया भले कोतवाल तो डर काहे का. लगा दो आग दुनिया में और गर्व से कहो हम कांवड़ियां हैं.
ये कैसी भक्ति है?
अगर ये खुद को कांवड़ियां समझ रहे हैं तो यकीन मानिए ये खुद को भी धोखा दे रहे हैं और समाज को भी. भोलेनाथ तो खैर इनकी रग रग से वाकिफ हैं. वरना एक देश. एक धर्म और एक परंपरा को मानने वालों में इतना फर्क कैसे हो सकता है कि खुद भगवान भी कंफ्यूज़ हो जाएं कि ये भला किसकी भक्ती कर रहे हैं.
कांवड़ियों और गुंडों में क्या फर्क?
एक कांवड बिहार से हैं जो श्रावणी मेले में सुल्तानगंज से देवघर तक सवा सौ किमी तक कंधे पर कांवड़ लेकर निकलते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता. और एक ये हैं वो.. जब वे निकलते हैं तो लगता है जैसे क़यामत आने वाली है. पूरी दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड डर डर कर चलने लगती है और वे सीना तान कर. मानों खुद भोलेनाथ से सड़क की रजिस्ट्री अपने नाम करा आए हैं. इनके रास्ते में आना तो दूर की बात बस कोई इन्हें छू भर दे तो फिर देखिए ये क्या करते हैं.
गुंड़ों के सामने बेबस कानून
कौन हैं ये लोग. कहां से आते हैं और क्यों हर साल महीने भर तक के लिए सबको डरा जाते हैं? मान भी लें कि ये कावंड़िए हैं. तो क्या कांवड़िए ऐसे होते हैं. जो सड़क पर चलें और कोई छू भर दे तो उत्पात मचा दें. ये कांवड़िए नहीं ये गुंडे हैं. जो कानून को अपनी जूतियों का तल्ला समझकर मसल देते हैं. और खुद कानून बेबस. बेसहार खड़ा खड़ा बस तमाशा देखता रह जाता है.
राजधानी में कावड़ियों का हुड़दंग
किस मुंह से ये धर्म और आस्था में यकीन करने वाले शिवभक्त नज़र आते हैं. अगर धर्म हुड़दंग की इजाज़त देता तो मुल्क में अराजकता फैल चुकी होती. ये अकेले धर्म के मानने वाले नहीं है. हिंदुस्तान में करोड़ो हिंदू हैं और शायद इनसे ज़्यादा शिव भक्त मगर उनकी किताब में ऐसी किसी शिवभक्ति का ज़िक्र ही नहीं है. ये घटना किसी गली कूचे या गांव देहात की नहीं है. बल्कि ये राजधानी दिल्ली है. जहां दफ्तर के वक्त में सड़कों पर तिल डालने की भी जगह नहीं होती है. और उस पर कांवड़ियों के नाम पर हुड़दंग करने वाले ये कुछ गुंडे सड़क के बीचोबीच चल रहे थे. भीड़ ज्यादा थी. किसी कावंड़िये से कार बस छू भर गई. फिर इन गुंडों ने उस कार बुरा हाल कर दिया.
चकनाचूर कर दी कार
इतनी जरा सी बात पर कावंड़ियों के नाम पर गुंडों का जत्था टूट पड़ा. पहले एक आया फिर दूसरा. फिर तीसरा. चौथा. एक एक करके कावंड़ियों की शक्ल में पूरा का पूरा गुंडों का दल पागल हो गया. कार पर डंडे बरसा-बरसा कर कार के परखच्चे उड़ा दिए. किसी ने कार का बोनट तोड़ा. किसी ने शीशा. किसी ने दरवाज़ा और जब कार को चकनाचूर कर चुके और तोड़ने के लिए कुछ नहीं बचा तो कार को ही उठा के पलट दिया.
गुंड़ों का तमाशा देखती रही दिल्ली पुलिस
कावंड़िए जब अपनी गुंडागर्दी की नुमाइश कर रहे थे. उस वक्त मौके पर दिल्ली पुलिस के सिपाही मौजूद थे. मगर इन सिरफिरों के सामने उन्होंने भी हथियार डाल दिए. उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अपने सामने हो रही गुंडागर्दी को रोक सकें. और हो भी कैसे. कांवड़िय़ा होने के नाम पर इन्हें हिंसा का लाइसेंस जो मिला हुआ था. अब जो रहा है वो राजनीति ही है. जो कावंड़ियों के भेस में गुंडों को गुंडागर्दी का लाइसेंस दे रही है. क्योंकि बाबा की आस्था में नेताओं ने सियासत का मौका ढूंढ लिया.
हर साल बढ़ रही है कावड़ियों की गुंडागर्दी
लगातार हर साल कांवड़ियों की गुंडागर्दी के मामले बढ़ते जा रहे हैं और सियासत है कि नियम बनाकर इन पर नकेल कसने के बजाए इनमें भी वोट पाने के मौके खोजती है. और अब जब आस्था में सियासत घुस ही गई है. तो आप भी आदत डाल लीजिए. अब तो गाड़ियां भी तोड़ी जाएंगी. रास्ते भी जाम होंगे. और कहर भी बरपेगा. बोलो बम बम भोले.