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वारदातः रफ्तार जब बनती है कहर, तो ऐसे रुलाती है

वारदात की यह कहानी खास है. खास...हर उस घर और मां-बाप के लिए जिनका जवान बेटा है और जो रफ्तार से प्यार करता है. जिसे रफ्तार की चाभी आप लोग देते हैं. जी हां.. आप मां-बाप. दिल्ली का एक नौजवान भी रफ्तार की ऐसी ही किसी बाइक पर सवार होकर सड़क पर निकलता है और फिर खुद उसकी जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लग जाती है.

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इस घटना के बाद दिल्ली में सुपर बाइक पर रोक लगाने की मांग की जा रही है
इस घटना के बाद दिल्ली में सुपर बाइक पर रोक लगाने की मांग की जा रही है

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वारदात की यह कहानी खास है. खास...हर उस घर और मां-बाप के लिए जिनका जवान बेटा है और जो रफ्तार से प्यार करता है. जिसे रफ्तार की चाभी आप लोग देते हैं. जी हां.. आप मां-बाप. दिल्ली का एक नौजवान भी रफ्तार की ऐसी ही किसी बाइक पर सवार होकर सड़क पर निकलता है और फिर खुद उसकी जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लग जाती है.

शायद वो यही कहना चाहता था कि जियो तो हर पल जियो और बिना ज़िंदगी के एक पल भी ना जियो. तभी तो रफ्तार उसकी ज़िंदगी थी. रोमांच उसकी सांसें. सुपर बाइक पर सवार होकर हवा से बातें करना उसका जुनून. और बाइक की इंजन की गड़गड़हाट उसका संगीत था.

पता नहीं उसने अपनी फेसबुक पोस्ट में यूं ही कुछ लाइने लिख दी थीं या फिर सचमुच ज़िंदगी को लेकर उसका यही नज़रिया था. 22 साल की ही तो उम्र थी उसकी. इस उम्र में अक्सर फेसबुक पर खुशनुमा तस्वीरें, गुदगुदाती बातें, हंसाती यादें यही सब तो पोस्ट करते हैं लोग. पर उसी उम्र में इस तरह फेसबुक पर दोस्त श्रद्धांजलि भेजने लगें. RIP लिखने लगें, तस्वीरें माला पहन लें और बातें यादें बन जाएं तो कलेजा छलनी हो जाता है.

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वो दिल्ली का 22 वर्षीय नौजवान हिमांशु बंसल था. जो अब इस दुनिया में नहीं है. उसके इस दुनिया में ना होने की वजह कुछ और नहीं बल्कि रफ्तार से उसका प्यार है. साढ़े सात लाख की अपनी सुपर बाइक पर सवार हिमांशु की एक सड़क हादसे में मौत हो गई.

पर इस मौत का जिम्मेदार अकेला हिमांशु नहीं है. बल्कि हर वो मां-बाप हैं, जो अपने बच्चों के लाड-प्यार में उसे मौत के करीब ढकेल देते हैं. जीरो से 9 सेकेंड में जो बाइक सौ की रफ्तार पकड़ लेती हो, सांसों की डोर भी वो उसी तेज रफ्तार से काटती है. मालूम नहीं ये बात कब समझ आएगी उन मां-बाप को. बच्चों के हाथों में रफ्तार की चाभी थमाते वक्त अगर मां-बाप ज़रा सा इस पहलू पर गौर कर लें तो कई घरों से ये मातम दूर हो जाए.

आंकड़े कहते हैं कि देश में हर साल सड़क हादसे में करीब डेढ़ लाख लोग मारे जाते हैं. यानी हर घंटे 17 मौत. मरने वालों में से करीब तीस फीसदी वो लोग होते हैं जो टू व्हीलर पर सवार होते हैं. यानी सड़क हादसे में मरने वाले डेढ़ लाख लोगों में से करीब 44 हजार मौत बाइक और स्कूटर सवार की होती हैं. इनमें से भी करीब बीस फीसदी मौत अकेले बाइक सवार की होती है. अमूमन बाइक से मरने वालों में सबसे ज्य़ादा नौजवान ही होते हैं. जो रफ्तार का शिकार होते हैं या फिर रेस का.

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भारत दुनिया का सबसे नौजवान देश है. सबसे ज्यादा नौजवानों की तादाद भारत में ही है. मगर इस तरह सड़कों पर जवान मौतों की बढ़ती तादाद सिर्फ सरकार के लिए नहीं बल्कि हर उस घर-परिवार के लिए फिक्र की बात होनी चाहिए जो अपने लाडलों को लाड में आकर मौत की रेस में उतार देते हैं.

5 अगस्त, 26 जनवरी, दीवाली, शबे-बारात जैसे खास मौकों पर बाइक रेसिंग अब दिल्ली में सालाना ईवेंट बनता जा रहा है. गैर-कानूनी और खतरनाक तरीकों से आम सड़कों पर बाइकर्स गैंग और स्टंट मास्टर खुद की जान तो खतरे में डालते ही हैं दूसरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. इस चक्कर में अब तक कई जानें जा चुकी हैं. मगर रफ्तार का रोमांच कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है. ज़ाहिर है इसे रोकने की जिम्मेदारी पुलिस और कानून से कहीं ज्यादा मां-बाप की है.

 

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