सिर्फ पांच महीने पुरानी बात है जब पिछले साल 13 सितंबर को दिल्ली की एक अदालत ने चार लोगों को फांसी की सज़ा दी थी. उन्हीं 4 लोगों को जो 16 दिसंबर की उस मनहूस रात के सबसे बड़े जानवर थे. अब पांच महीने बाद दिल्ली की एक और अदालत ने एक और फैसला सुनाया है. बस फर्क इतना है कि पहले फांसी पाने वाले चारों 16 दिसंबर के जानवर थे तो इस बार जिनके हिस्से में मौत आई है वो तीनों नौ फरवरी 2012 के जानवर थे.
द्वारका कोर्ट ने जब फैसला सुनाया तो ऐसा लगा कि जो जंग आम लोगों के गुस्से के सहारे छेड़ी गई थी उसे एक मुकाम मिल गया हो और इसके साथ ही सुनहरे सपनों की कब्र पर गिरे बेबसी के आंसू पीछे छूट गए. 19 साल की किरन का दर्द दिल्ली का दर्द बन गया. एक बेबस मां-बाप का संघर्ष समाज के गुस्से से मिलकर इंसाफ की नई आवाज बन गया. और उसी आवाज का अंजाम जानने के लिए बुधवार को सबकी नजरें टिकी थीं द्वारका कोर्ट पर.
कोर्ट नंबर 605 में ठीक दो बज कर 15 मिनट पर एडिशनल सेशन जज रविंद्र कुमार दाखिल होते हैं. अपनी कुर्सी पर बैठते हैं. इसके बाद सामने एक नज़र दौड़ाते हैं. कोर्ट के अंदर तीनों मुजरिम कटघरे में खड़े थे. चेहरे पर हवाइयां उड़ी थीं और सामने बैठे थे उस मासूम किरन के मां-बाप और रिश्तेदार.
इसके बाद ठीक दो बज कर 16 मिनट पर जज साहब ने फैसले की फाइल खोली. अदालत में मौजूद लोगों को फिर एक बार देखा, आरोपियों की तरफ नजरें दौड़ाईं और फिर बोलना शुरू किया.
फकत एक मिनट में अपना फैसला सुना कर जज साहब खड़े हो गए। और जैसे ही वो खड़े हुए खचाखच भरी अदालत पूरी तरह से तालियों की तड़तड़हाट से गूंज उठी. दिल्ली की किसी अदालत के अंदर ऐसा मंज़र इसलसे पहले पिछले साल 13 सितंबर को दिखा था जब साकेट कोर्ट ने निर्भया के मुजरिमों को सजाए मौत दी थी. ताली पीटने वालों में सबसे आगे उसी किरन के मां-बाप थे जो पिछले दो साल से अपनी बेटी के कातिलों को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ रहे थे.
कोर्ट के अंदर तालियों की गूंज इतनी तेज थी कि तीनों मुजरिमों की सिसकियों की आवाज भी उसमें दब कर रह गई. दरअसल मौत की सज़ा के बारे में सुनते ही तीनों रो पड़े और तब तक रोते रहे जब तक कि पुलिस उन्हें वहां से ले नहीं गई.
दूसरों को खून के आंसू रुलाने वालों को शायद आज पहली बार आंसुओं का मतलब समझ आया था. उन्हें पहली बार अहसास हुआ था कि किसी की जान या आबरू लेना कितनी तकलीफदेह होती है. बुरे काम का अंजाम हमेशा बुरा ही होता है. काश ये बात तीनों नौ फरवरी 2012 की उस रात किरन की आबरू लूटने या उसकी जान लेने से पहले समझ जाते.
सिर्फ तारीख का फर्क था. साल, महीना अलग...जगह बदली हुई और चेहरे जुदा. बाकी पूरी की पूरी कहानी एक जैसी थी. दोनों को जानवरों की तरह नोचा-खसोटा गया था. एक को मुर्दा समझ कर फेंक दिया तो दूसरे मुर्दे को जिंदा समझ कर भी उसकी लाश को नेचते रहे. 16 दिसंबर की उस मासूम से पहले इसी दिल्ली में एक और खौफनाक वारदात हुई थी। शायद 16 दिसंबर से भी ज्यादा बेरहम.
क्या था पूरा मामला
निर्भया से महीनों पहले निर्भया की तरह इस दुनिया से जानेवाली इस लड़की की कहानी भी कम अफ़सोसनाक नहीं है. ये गुमनाम निर्भया अपने किसी दोस्त के साथ आउटिंग के लिए तो नहीं गई, लेकिन उसे उसके घर के रास्ते में ही कुछ दरिंदों ने तब अगवा कर लिया था, जब वो दफ़्तर से लौट रही थी मगर, इसके बाद जो कुछ हुआ वो 16 दिसंबर की निर्भया के साथ गुज़री वारदात से कई मायनों में मेल खाती है.
जगह- छावला, दिल्ली
तारीख़- 9 फ़रवरी 2012
वक़्त- 7 बजकर 30 मिनट
यही वो घड़ी थी, जब एक हंसती-खेलती लड़की की ज़िंदगी ना सिर्फ़ तबाह हो गई बल्कि अगले चंद घंटों में जो दुनिया से ही रुखसत कर दी गई. बलात्कार और क़त्ल की वारदात तो इससे पहले भी हुई थी और बाद में भी हुई. लेकिन इस मामले में जिस वहशियाना तरीके से दरिंदों ने इस लड़की के साथ ज़्यादती कर उसकी जान ली, वो कई मायनों में 16 दिसंबर की निर्भया से भी कहीं ज़्यादा अफ़सोसनाक थी.
निर्भया को तो उसके गुनाहगारों ने बुरी तरह ज़ख्मी हालत में मरने के लिए बस से नीचे फेंक दिया था लेकिन इस गुमनाम निर्भया की मौत की तसल्ली के लिए उसके गुनहगार घंटों तक उसकी जिस्म पर वार करते रहे. ये देखते रहे कि कहीं उसमें अब भी जान तो नहीं बची और जब लड़की की मौत के साथ ही वो अपने बच निकलने को लेकर मुतमइन हो गए, उन्होंने लाश को ठिकाने लगा दिया.
वहशत और ज़्यादती के इस सिलसिले शुरुआत तब हुई, जब छावला की रहनेवाली एक लड़की अपनी कुछ दोस्तों के साथ गुड़गांव से घर लौट रही थी. काम से लौटती लड़कियों को अंधेरे का फ़ायदा उठा कर रास्ते में तीन बदमाशों ने रोका और एक लड़की को जबरन अपने साथ उठा ले गए. जब लड़की की दोस्तों ने उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश की तो लड़कों ने उनके साथ भी मारपीट की लेकिन सरेशाम हुई इस वारदात के बाद उसके घरवालों को तब पहला झटका लगा, जब तकरीबन एक घंटे देर से पहुंची पुलिस ने घरवालों की तमाम गुज़ारिश के बावजूद फुर्ती से बदमाशों की तलाश करने से खुद को मजबूर बता दिया. वजह ये कि राजधानी की पुलिस के पास बदमाशों को ढूंढ़ने निकलने के लिए एक अदद गाड़ी तक नहीं थी.
इधर, जितना वक़्त गुज़र रहा था. उधर, अगवा की गई लड़की के साथ ज़्यादती उतनी ही बढ़ती जा रही थी. लड़की को उठाने के बाद बदमाश उसे कार में लेकर अंदरुनी रास्तों से होते हुए दिल्ली से हरियाणा जा पहुंचे. चूंकि ये सारे के सारे लड़के वहीं के रहनेवाले और पेशे से ड्राइवर थे, इन्हें पुलिस से बचने के लिए कई दूसरे रास्तों का पता था. एक तरफ़ अगवा की गई लड़की अपनी अस्मत और जान की भीख मांग रही थी, दूसरी तरफ़ उसकी तमाम चीख़ों और तकलीफ़ों से बेअसर इन लड़कों ने पहले तो एक ठेके से रूक कर शऱाब खरीदी और फिर उसे सुनसान जगह पर ले जाकर शऱाब पीते हुए उसके साथ ज़्यादती की.
लेकिन इतनी ज़्यादती से भी मानों इन दरिंदों का जी नहीं भरा. तीन-तीन लड़कों का शिकार बनने के बाद जब इस निर्भया ने पीने के लिए पानी मांगा, तो इन सिरफिरों का एक और ही चेहरा सामने आ गया. पहले तो तीनों उसे लेकर पानी की तलाश में निकले और एक जगह रखे घड़े से पानी भी पिलाया लेकिन इसके बाद इन तीनों में से एक लड़के के दिमाग़ में जो बात आई, उसने अब तक बलात्कारी बन चुके इन लड़कों को क़ातिल भी बना दिया.