सबसे बड़े फैसले की तारीख तय हो चुकी है. 25 नवंबर को आरुषि-हेमराज मर्डर केस पर फैसला आना है. सब यह जानने को बेताब हैं कि आखिर आरुषि-हेमराज का कातिल कौन है.
हाल के वक्त का ये शायद पहला ऐसा केस है, जिसका फैसला पूरी तरह सिर्फ और सिर्फ सुनी-सुनाई कहानी और परिस्थितिजन्य सबूतों को सामने रख कर सुनाया जाना है. इस डबल मर्डर में आज तक ना तो कोई सीधा गवाह सामने आया है, ना पुख्ता सबूत मिले हैं, ना आला-ए-कत्ल है और ना ही कत्ल की वजह को साबित करने वाला कोई ठोस सबूत. अब ऐसे में सीबीआई वकील की दलीलों, साइंटिफिक सबूत और सिर्फ हालात को सामने रख कर कातिल का फैसला करना है.
जाहिर है कातिल के तौर सीबीआई ने किसी और को नहीं बल्कि आरुषि के मां-बाप यानी डाक्टर राजेश और डाक्टर नुपुर तलवार को ही कटघरे में खड़ा किया है और साजिश की सारी कहानी इन्हीं दोनों के इर्द-गिर्द घूमती है. इन दोनों को घेरने की वजह भी बताई गई. वजह ये कि 15-16 मई 2008 की रात जब आरुषि और हेमराज का कत्ल हुआ तो घर के अंदर सिर्फ चार लोग थे. डाक्टर राजेश तलवार, डाक्टर नुपुर तलवार, आरुषि और हेमराज. सीबीआई की पूरी कहानी यही कहती है कि उस रात घर के अंदर से कोई बाहर नहीं गया और बाहर से कोई अंदर नहीं आया. यानी कत्ल घर के अंदर ही हुआ और कातिल घर में ही था.
इसी कहानी को लेकर सीबीआई ने अदालत में अपनी तमाम दलीलें और साइंटिफिक सबूत रखे. हालांकि आपको बता दें कि ये वही सीबीआई है जिसने दिसंबर 2010 में इस केस को ही बंद कर देने की सिफारिश की थी. सीबीआई ने तब बाकायदा अदालत में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी, इस दलील के साथ कि डाक्टर राजेश तलवार और नुपुर तलवार को लेकर उसे शक तो है पर उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है, लेकिन फिर फरवरी 2011 में अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर उसी क्लोजर रिपोर्टर को चार्जशीट में बदल देने का हुक्म दिया था. इसके बाद 25 मई 2012 को तलवार दंपत्ति के खिलाफ आरोप पत्र तय किया गया और उन्हें आरोपी बना कर मुदकदमे की कार्रवाई शुरू हुई. करीब डेढ़ साल मुकदमे की कार्रवाई चली.
सीबीआई के वकील एक तरफ तलवार दंपत्ति को कातिल ठहरा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ खुद कुछ सवालों को लेकर उलझन में है. इन सवालों के जवाब में सीबीआई ने तमाम दलीलें तो अदालत के सामने पेश कीं पर सबूत नहीं.
ये तमाम सबूत या दलीलें सीबीआई की तरफ से अदालत में रखी गई हैं:
सबूत नंबर 1
डाक्टर रजेश तलवार और नुपुर तलवार हर रात आरुषि का कमरा बाहर से लॉक कर चाभी अपने पास तकिए के नीचे रखते थे,जबकि 16 मई को चाभी दोपहर करीब बारह बजे लॉबी में पड़ा मिला. चाभी वहां कैसे पहुंची इसका जवाब तलवार दंपत्ति नहीं दे पाए.
सबूत नंबर-2
मौका-ए-वारदात पर हर चीज साफ कर दी गई थी. आरुषि की लाश को चादर से ढका गया और जगह-जगह खून के छींटों को पोंछा गया. ये काम सिर्फ घर के लोग ही कर सकते हैं.
सबूत नंबर-3
16 मई की सुबह आरुषि के कत्ल की खबर मिलने पर जैसे ही पुलिस घर पहुंची घर वालों ने पुलिस का ध्यान बांटने के लिए उन्हें हेमराज को तलाश करने बाहर भेज दिया.
सबूत नंबर 4
छत के दरवाजे और कुंडी पर खून के निशान दिखाए जाने के बाद भी डाक्टर तलवार ने छत की चाभी देने से इंकार कर दिया.
सबूत नंबर-5
हेमराज की लाश छत पर पाए जाने के बाद डाक्टर तलवार ने उसकी शिनाख्त करने से मना कर दिया.
सबूत नंबर-6
पोस्टमार्टम रिपोर्ट और एफआईआर में बलात्कार के बारे में जिक्र ना करने के लिए डाक्टर दिनेश तलवार ने गुजारिश की.
सबूत नंबर-7
पूर्व पुलिस अधिकारी केके गौतम के बयान और कॉल डिटेल्स के मुताबिक हेमराज की लाश छत पर इत्तेफाक से नहीं मिला, बल्कि लाश तलाशने के लिए वहां इन्हें खासतौर पर भिजवाया गया था.
सबूत नंबर-8
गोल्फ स्टिक जिसके बारे में शक था कि कत्ल उसी से किया गया है और जो वारदात के बाद से घर से गायब था, उसके मिलने के बाद भी डाक्टर तलवार ने सालभर तक किसी को इसकी इत्तिला नहीं दी.
सबूत नंबर-9
सबूत औऱ हालात यही कह रहे थे कि क़त्ल गोल्फ स्टिक से हुआ और कातिल ने अचानक गुस्से में उसका इस्तेमाल किया है और यो गोल्फ स्टिक डाक्टर तलवार इस्तेमाल करते थे।
सबूत नंबर-10
पोस्टमार्टम से ऐन पहले डाक्टर राजेश तलवार के भाई डाक्टर दिनेश तलवार ने अपने एक साथी डाक्टर सुनील दोहरे से खुद को एम्स के फॉरेसंकि डिपार्टमेंट का हैड डाक्टर डोगरा बन कर किसी को फोन करने को कहा था. ये साबित करता है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि पोस्ट्मार्टम रिपोर्ट अपने हिसाब से बनवाया जा सके.
अब देखना यही है कि डिफेंस की तरह ही अदालत सीबीआई की इन दलीलों को बी मानती है या नकारती है.