तारीख गवाह है कि दुनिया में जब-जब हुक्मरानें बहरी हुईं हैं, बगावत की आवाज ने उन्हें नींद से जगाया है और जो नहीं जागे उन्हें तख्त से उतार कर तख्तापलट कर दिया है. सिर्फ ढाई साल के अंदर मिस्र की आवाम ने देश की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे शख्स को कुछ ऐसे जगाया कि नींद खुली, तो सलाखों के पीछे जाकर.
मिस्र की राजधानी काहिरा के जिस तहरीर चौक पर मिस्र ने अपने भविष्य की एक सुनहरी तस्वीर खींची थी, वो भी मुहम्मद मुर्सी के कुर्सी प्रेम की भेंट चढ़ गयी. नतीजा फिर वही, तहरीर चौक पर एक बार फिर हुजूम, तहरीर चौक पर एक और आंदोलन और वही तहरीर चौक ढाई साल के अंदर दूसरी एक और तख्तापलट का गवाह बना.
महज ढाई साल पहले इसी मिस्र में बगावत का जो बिगुल बजा था उसने दुनिया को चौंका दिया था. इस बगावत की आंधी में हुस्नी मुबारक के तीस साल का साम्राज्य तिनके की तरह बिखर गया था. लगा अब मिस्र में सब ठीक हो चुका है, पर फकत ढाई साल में आखिर ऐसा क्या हो गया कि जिस शख्स को चुन कर खुद देश की आवाम ने हुकूमत की चाभी सौंपी थी, वो रातों-रात सबकी आंखों में खटकने लगा? मिस्र में तख्तापलट की यह कहानी जितनी उतार-चढ़ाव वाली है, उतनी ही अहम, क्योंकि ये कहानी बताती है कि जम्हूरियत में आवाम की ना सुनने का अंजाम क्या होते हैं.
कहते हैं इतिहास अपने-आप को दोहराता जरूर है, लेकिन अपने इतिहास के लिए ही पहचाने जानेवाले मिस्र का बगावती इतिहास इतनी जल्दी दोहराया जाएगा, यह किसी ने भी नहीं सोचा था. मोर्सी को राष्ट्रपति पद से हटाया जाता है और देश के संविधान को ठंडे बस्ते में डाला जाता है. मोर्सी को बेदखल किए जाने के बाद मिस्र के चीफ जस्टिस अदली मनसूर को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया है. दरअसल, मिस्र की आवाम और विपक्षी पार्टियों ने पिछले चार दिनों से मोर्सी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. लोग लाखों की तादाद में तहरीर चौक पर जमा होकर राष्ट्रपति गद्दी छोड़ो के नारे लगा रहे थे. जब मोर्सी पर आवाम की मांग का कोई असर नहीं हुआ तो सेना ने मुर्सी के खिलाफ कमान संभाल ली और कुर्सी छोड़ने के लिए उन्हें 48 घंटे का अल्टीमेटम दे डाला, लेकिन मुर्सी ने सेना की चेतावनी को नजरअंदाज कर कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया.
बुधवार की शाम जब सेना के अल्टीमेट की मियाद खत्म हुई तो सेना ने काहिरा के अहम ठिकानों पर डेरा डालना शरु किया. सेना के टैंक शहर में जगह जगह नजर आने लगे. हजारों की तादाद में सैनिक उन ठिकानों पर नजर आने लगे जहां मुर्सी समर्थक डटे थे, तभी यह साफ हो गया था कि सेना ने तख्तापलट की तैयारी कर ली है और फिर चंद घंटों के अंदर सेना ने मोर्सी को हटाए जाने का ऐलान कर दिया. सेना के ऐलान के साथ ही तहरीर चौक पर डटे मुर्सी विरोधियों में खुशी की लहर दौड गई.
दरअसल, ढाई साल पहले तानाशाही के खिलाफ सुलग रहे मिस्र के लोगों ने तब पहली बार खुली हवा में सांस ली थी, जब उनके गुस्से की आग में पिघल कर 11 फरवरी 2011 को होस्नी मुबारक का किला ढह गया था. इसके बाद देश में पहली बार चुनाव हुए और लोगों ने हुकूमत की चाबी मुर्सी के हाथों में सौंप दी. मोर्सी पर जिम्मेदारी इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि उन्हें तानाशाही के खोल से बाहर आए एक मुल्क के अरमानों को सही मायने में पूरा करना था, लेकिन मुर्सी थे कि कुर्सी के होकर रह गए.
सेना ने मुर्सी को गद्दी से बेदखल तो कर दिया, लेकिन सुकून की बात यह है कि सेना ने सत्ता अपने हाथों में नहीं ली. हालांकि तख्तापलट के बाद अब मिस्र में एक बार फिर सियासी संकट गहरा गया है, लेकिन ऐसी खबरें आ रही हैं कि इस संकट से उबरने के लिए सेना ने रोडमैप तैयार किया है जिसका ऐलान अल अजहर के शेख करेंगे. अल अजहर मिस्र का सबसे प्रतिष्ठित इस्लामी संस्थान माना जाता है. अब देखना यह होगा कि यह ऐलान कितनी जल्द होता है और कितनी जल्द मिस्र में नई सरकार के गठन के लिए चुनाव करवाने का फैसला होता है. जो कि मिस्र की जनता की सबसे बड़ी मांग है.