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संजय दत्त को मिले अवैध हथियार की कहानी...

20 साल बाद एक बार फिर वक्त संजय दत्त की जिंदगी से कुछ उम्र चुराने को बेताब है. 20 साल बाद एक बार फिर पथरीली जेल की ऊंची चारदीवारी संजय दत्त की आजादी छीनने को तैयार है. 20 साल बाद कानून संजय दत्त की अधूरी सजा को पूरी कराने के लिए आखिरी बार कमर कस चुका है.

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संजय दत्त
संजय दत्त

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20 साल बाद एक बार फिर वक्त संजय दत्त की जिंदगी से कुछ उम्र चुराने को बेताब है. 20 साल बाद एक बार फिर पथरीली जेल की ऊंची चारदीवारी संजय दत्त की आजादी छीनने को तैयार है. 20 साल बाद कानून संजय दत्त की अधूरी सजा को पूरी कराने के लिए आखिरी बार कमर कस चुका है.

लाखों-करोड़ों फैन्स के चहेते मुन्ना भाई की जिंदगी के अगले 42 महीने यानी 1177 दिन अब आजादी से दूर जेल की दीवारी में कटेंगे. अब बस यही सच है. यही मुन्ना की तकदीर है और यही कानून का आखिरी फैसला भी.

पर ये सच, ये तकदीर ये फैसला यूं ही नहीं है. इसके पीछे 20 साल पुरानी कहानी है. वो कहानी जिसकी शुरुआत 12 धमाकों और 257 मौत से हुई. वो कहानी जिसमें पहला मोड़ 19 अप्रैल 1993 को तब आया जब संजू बाबा टाडा कानून के तहत पकड़े गए और जेल गए. इसके बाद जमानत और जेल का सिलसिला किश्तों में चला और किश्त 18 महीने में खत्‍म हुई. जबकि सज़ा भुगतनी थी 5 साल, यानी कुल 60 महीने. लिहाज़ा उसी 60 महीने में से बाकी के 42 महीने भुगतने का वक्त अब आया है, यानी पूरे साढ़े तीन साल. ये साढ़े तीन साल की सज़ा कर्ज है, 20 साल पुराने उस गुनाह की जो संजू बाबा ने किया था. एक ऐसा गुनाह जिसने 20 साल बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ा.

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फिल्मी स्क्रिप्ट पर अपना रोल निभाते-निभाते मुन्नाभाई ना जाने कब और कैसे असल जिंदगी में भी हथियारों से खेलने लगे. ना जाने कब और कैसे रील की कहानी मुन्नाभाई की रीयल कहानी बन गई, पर संजू बाबा को पता नहीं था कि फिल्मों में तो आप खलनायकी निभा कर भी हिट हो सकते हैं लेकिन, असल जिंदगी में आप खलनायकी आजमाकर बुरे फंस सकते हैं.

ये 1990 के बाद का दौर था. संजय दत्त बॉलीवुड के लिए एक हिट फॉर्मूला थे. 1991-92 का वक्त, फिरोज खान की फिल्म 'यलगार' की शूटिंग चल रही थी. एक ऐसी फिल्म जिसमें संजय दत्त ने निगेटिव भूमिका निभाई थी. एक ऐसे शख्स की भूमिका जो अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह था.

यही दौर था, जब फिल्म में डॉन की भूमिका निभाते-निभाते संजू बाबा डॉन की जिंदगी के मुरीद से बन गए. ऐसा नहीं था कि वो जुर्म की दुनिया के डॉन बनना चाहते थे लेकिन, फिल्मों में डॉन की तरह हाथों में माउजर या फिर ऑटोमेटिक गन रखना उन्हें बड़ा लुभाता था. अब इसे संजय दत्त के माथे पर लिखी लकीरों का अंजाम कहें या फिर बुरे सोहबत का असर. वो अंडरवर्ल्ड की दुनिया से जुड़ते गए और ऐसा जुड़ गए कि दाग धुल ना सके.

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1991-92 के दौरान फिरोज खान की फिल्म 'यलगार' की शूटिंग चल रही थी और इस फिल्म की शूटिंग के दौरान संजय दत्त कई बार दुबई आए-गए. इसी दौरान दुबई में ही संजय दत्त की मुलाकात अंडरवर्ड डॉन दाऊद इब्राहीम के भाई अनीस इब्राहिम से हुई. मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया और अंडरवर्ल्ड के लोगों से मुन्नाभाई के रिश्ते गहराते गए. पहले अनीस इब्राहिम, फिर छोटा शकील, अबू सलेम और इसके बाद अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े डॉन दाऊद इब्राहिम.

'यलगार' की शूटिंग पूरी हो चुकी थी. 23 अक्तूबर 1992 को फिल्म रिलीज हो गई, लेकिन जो रिश्ते दुबई में कायम हुए थे, वो बरकरार थे. आने वाले दिनों में उन्हीं रिश्तों की बुनियाद पर खड़ी होने वाली थी संजय दत्त की बदनसीबी की इमारत. ये बात और थी कि खुद संजू बाबा को इसका इल्म नहीं था.

फिल्म 'यलगार' की रिलीज के करीब डेढ़ महीने बाद. 6 दिसंबर 1992 की शक्ल में देश में सबसे अफसोसनाक घटना हुई. इसके बाद तो जैसे भारत के हालात ही बदल गए. देश भर में तनाव, दंगों जैसे हालात, माहौल अच्छे नहीं थे, देश डर रहा था. इस माहौल में संजय दत्त को भी डर लगने लगा था. सांसद के बेटे, बॉलीवुड के बड़े सितारे. खौफ ये था कि कहीं निशाने पर ना आ जाएं.

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ये वक्त जनवरी 1993 का था. मुंबई भी दंगे की चपेट में थी. देश के हालात से संजय दत्त का डरना तो ठीक कहा जा सकता है लेकिन, इसके बाद जो उन्होंने किया, वो डरे हुए इंसान का कदम नहीं बल्कि स्टारडम में डूबे एक सितारे की ऐसी हरकत थी, जिसे भारत का कानून कतई माफ नहीं करता. ना जाने क्यों संजय दत्त ने इस डर से बचने के लिए अनीस इब्राहिम को फोन लगा दिया.

संजय दत्त ने कहा, 'मुझे यहां डर लगता है. सेफ्टी के लिए कोई ऑटोमेटिक गन भेज दो.' अनीस ने जवाब दिया, 'काम हो जाएगा.' मानो सबकुछ फिल्मी स्टाइल में चल रहा था. संजू बाबा ने अंडरवर्ल्ड से रिश्तों की जो स्क्रिप्ट लिखी थी, ये सीन उसी का क्लाइमैक्स था.

15 जनवरी 1993, 14वीं रोड खार, मुंबई
फिल्म प्रोड्यूसर और मैग्नम वीडियो के मालिक समीर हींगोरा का दफ्तर. इसी दफ्तर से संजय दत्त ने अंडरवर्ल्ड से रिश्तों की जो स्क्रिप्ट लिखी थी. समीर हींगोरा अपने दफ्तर में बैठे थे कि तभी दो लोग अंदर दाखिल हुये. ये लोग थे अबू सलेम और बाबा चौहान. दोनों ने समीर हिंगोरा को कहा कि दाऊद अब्राहम के भाई अनीस ने हुक्म दिया है कि हम लोग आपसे मिलें. इस पर समीर ने पूछा कि काम क्या है? अबू सलेम ने बताया कि संजय दत्त को हथियार देने है और इसमें आपकी मदद चाहिये. ये सुनते ही समीर हींगोरा को जैसे सांप सूंघ गया. वो अभी जवाब सोच ही रहे थे कि ठीक उसी वक्त खुद अनीस का फोन आ गया.

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अनीस नें समीर को कहा, 'सलेम और बाबा मेरे आदमी हैं. ये दोनो हथियार से भरी गाडियां लायेंगे. तुम प्लीज इन्हे संजय दत्त के पास ले जाना. संजय को कुछ हथियार देने है. बाकी हथियार बाबा चौहान और सलीम बाकी लोगो को दे देंगे.' अब तो सचमुच समीर के होश फाख्ता हो गये. उसने उसी वत्त अपने पार्टनर हनीफ कडावाला से मशविरा किया. सच जानते ही हनीफ बिगड गया. फिर अपने घर से दूर जाकर एक पीसीओ से खुद अनीस से बात की और दू टूक कह दिया कि वे इस काम को नहीं कर सकता लेकिन डी-कम्पनी का दबाव इतना बढने लगा कि समीर हींगोरा ने घुटने टेक दिये. ये पूरी दास्तान हींगोरा के टाडा कोर्ट के इकबालिया बयान का हिस्सा है. बाद में समीर हींगोरा जब डी-कम्पनी का काम करने को तैयार हो गया तो संजय दत्त तक हथियार पहुचांने का अबू सलेम और बाब चौहान का काम आसान हो गया.

16 जनवरी 1993, मुंबई की एक शांत सुबह
शहर नींद से जागने की तैयारी में था, पर एक शख्स ऐसा था जिसकी नींद ही उड़ी हुई थी. ये शख्स था समीर हींगोरा, जिसे अबू सलेम और बाबा चौहान के साथ संजय दत्त के घर हथियार पहुंचाने जाना था. समीर सुबह 10:30 बजे अपने दफ्तर पहुंचा. कुछ देर बाद ही अबू सलेम और बाबा चौहान भी नीली मारूती वैन मे वहां पहुंच गए. दोनों अपनी वैन में बैठे, जबकि समीर अपनी गाडी में बैठ गया. इसके बाद तीनों दोनों गाड़ियों में सीधे संजय दत्त के घर पहुंचे. संजय को इनके आने की खबर पहले से थी. इनके वहां आते ही संजय दत्त ने पूरी गर्मजोशी से अबू सलेम का इस्तकबाल किया, दोनों गले मिले.

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इसके बाद संजय दत्त ने अपने ड्राइवर मुहम्मद को बुलाया और कहा कि गैराज से सारी गाडियां बाहर निकाल लो. थोडी देर के बाद संजय ने अबू सलेम से पूछा कुल कितने हथियार हैं. सलेम ने बताया कि 9 एके 56 और 80 ग्रेनेड और गोला बारूद हैं. संजय दत्त ये सुन कर चौंक उठे. कहते हैं कि संजू बाबा ने तब हीरो के अंदाज में कहा था, 'अरे मैं इतनी राइफल का क्या करूंगा, मेरे लिए तो बस एक ही काफी है.'

इसके बाद अबू सलेम ने संजय दत्त को हैंड ग्रेनेड दिखाये तो संजय ने कहा कि इन्हें यहां रखना ठीक नही है, फट सकता है. इस पर अबू सलेम ने कहा कि इसमें पिन लगी है. फिर सलेम ने वहीं पर 2-3 बार जमीन पर बम पटक कर दिखाया कि जब तक पिन नही निकाली जाती, ग्रेनेड नही फटेगा. इसके बाद अबू सलेम ने सारे सामान की लिस्ट बनाई. ज़खीरे में कुल नौ एके-56 राइफल, 80 हैंड ग्रेनेड और 450 राउंड कारतूस थे. संजय दत्त  ने इनमें से सिर्फ एक एके-56 राइफल ली और बाकी अबू सलेम को लौटा दी. ये पूरी कहानी समीर हिंगोरा और बाबा चौहान ने बाकायदा टाडा कोर्ट में सुनाई थी. एके-56 लेने के बाद करीब 2 महीने तक सब ठीक रहा. मगर फिर तभी 12 मार्च 1993 को मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुआ और संजू बाबा की परेशानी शुरू हो गई.

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