दिल्ली में लड़कियों के खिलाफ यौन अपराध (सेक्सुअल वॉयलेंस) का जो आंकड़ा सामने आया है वह बेहद डरावना है. बड़ी बात ये है कि इसमें शादीशुदा महिलाओं को शामिल नहीं किया है और आंकड़ों के अनुसार राजधानी दिल्ली की हर तीसरी लड़की किसी न किसी किस्म की यौन हिंसा का शिकार होती है.
कुछ लोग आंकड़ों की ही भाषा समझते हैं और अब आंकड़ों से भी साफ हो गया है कि दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है. दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय गैरसरकारी संगठन पॉपुलेशन काउंसिल की हालिया रिपोर्ट में किशोर यानी 10 से लेकर 14 साल तक की लड़कियों के खिलाफ यौन हिंसा के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं.
शहरी गरीब यानी स्लम इलाकों में किए गए इस सर्वे के मुताबिक दिल्ली में 32 फीसदी लड़कियों ने पिछले एक साल में यौन हिंसा की किसी ना किसी घटना को महसूस किया है. पॉपुलेशन काउंसिल की शोधकर्ता शर्मिष्ठा बसु कहती हैं कि हमने मुख्य तौर पर आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े इलाके को चुना, क्योंकि यहां एक तरफ यौन हिंसा भी होती है और दूसरी तरफ उसकी शिकायत भी पीड़िता मुखर होकर नहीं कर पाती.
शर्मिष्ठा ने कहा, हमने देखा है कि कई मामलों में लड़कियां अपने पीयर ग्रुप यानी दोस्तों से भी ये बातें नहीं बांट पाती, जबकि वो सबसे नजदीकी होते हैं. फिर परिवार और पुलिस तक जाने की तो बात ही छोड़ दीजिए.
वैसे मामला सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित हो ऐसा नहीं है. 12 फीसदी लड़के भी शर्मनाक आंकड़ों वाली इस फेहरिस्त में हैं. ज्यादातर मामलों में ये यौन हिंसा किशोर लड़कों से उनकी उम्र से बड़े लड़कों ने की है.
कहां तो हम दिल्ली को सिर्फ लड़कियों के लिए खतरनाक होने की बात करते हैं और आंकड़े बता रहे हैं कि यहां लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं. अब ये और बात है कि इन मामलों की सच्चाई माता-पिता को नहीं पता होती और ना ही पुलिस में रिपोर्ट होती हैं. शर्मिष्ठा से आज तक ने पूछा कि जिन 12 फीसदी लड़कों ने यौन हिंसा की बात कबूली है, क्या उसमें उनसे बड़ी उम्र की लड़कियां शामिल रही हैं. इस पर शर्मिष्ठा का कहना था कि इस बारे में स्पष्ट सवाल नहीं पूछे गए, लेकिन ज्यादातर मामलों में उनसे बड़ी उम्र के लड़के ही इसमें शामिल थे.
वैसे ये रिसर्च रिपोर्ट फिलहाल पूरी नहीं हुई है और पूरी दिल्ली में अलग-अलग इलाके इसका हिस्सा होंगे. मौजूदा रिसर्च का एक महत्वपूर्ण आंकड़ा ये भी है कि बच्चों के साथ यौन हिंसा के इन मामलों में से ज्यादातर के बारे में माता-पिता को भी जानकारी नहीं होती, क्योंकि एक तो माता-पिता बच्चों के विश्वासपात्र नहीं बन पाते और दूसरा इसे वो टैबू यानी ना बताने वाली बात समझकर छुपा लेते हैं. जाहिर है, यौन हिंसा से बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ कानून के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती, बल्कि मां-बाप को भी लगातार बच्चों के संपर्क में रहकर उनका विश्वस्त बनना होगा.