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एक बाहुबली की हत्या और गैंगवार का आगाज

मुंबई में गैंगवार के किस्से अक्सर सुनने को मिलते रहते हैं. लेकिन दिल्ली के लिए ये थोड़ा अजीब है. अजीब इसलिए क्योंकि दिल्ली में ना तो कभी किसी एक गैंग का दबदबा रहा और ना ही किसी एक गैंग को यहां पनपने दिया गया. हां, अलग-अलग गुटों में यहां दुश्मनी बरसों जरूर चली.

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मुंबई में गैंगवार के किस्से अक्सर सुनने को मिलते रहते हैं. लेकिन दिल्ली के लिए ये थोड़ा अजीब है. अजीब इसलिए क्योंकि दिल्ली में ना तो कभी किसी एक गैंग का दबदबा रहा और ना ही किसी एक गैंग को यहां पनपने दिया गया. हां, अलग-अलग गुटों में यहां दुश्मनी बरसों जरूर चली.

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अब बरसों पुरानी ऐसी ही एक दुश्मनी में नजफगढ़ के बाहुबली नेता और पूर्व विधायक भरत सिंह की शूटआउट में मौत के बाद ये अंदेशा जताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में दिल्ली में गैंगवार शुरू हो सकती है.

रविवार 29 मार्च 2015 की शाम दिल्ली पुलिस के एक कांस्टेबल के यहां कुआं पूजन की दावत दी थी. कुआं पूजन यानी घर में लड़का पैदा होने पर समारोह का आयोजन. दावत में इलाके के बहुत से खास-ओ-आम लोग मौजूद थे. माहौल बेहद खुशनुमा था, लेकिन तभी अचानक गोलियों की आवाज से पूरा अभिनंदन वाटिका गूंज उठा. इसके बाद तो जिसे जहां मौका मिला, वो वहीं जान बचाकर भागने लगा. लेकिन अगले ही पल लोगों का ध्यान जमीन पर तड़पते इलाके के पूर्व विधायक और इंडियन नेशनल लोकदल के नेता भरत सिंह पर पड़ी, जो एक खास मेहमान के तौर पर इस दावत में शामिल होने पहुंचे थे. फायरिंग के वक्त वह डिनर कर रहे थे. लेकिन इससे पहले कि उनका डिनर पूरा होता, हमलावरों ने भरी महफिल में सैकड़ों लोगों के बीच उन्हें गोलियों का निशाना बना लिया.

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सुरक्षाकर्मी भी हो गए ढेर
दिल्ली के बाहुबली नेताओं में से एक और गैंगस्टर से पार्षद बने किशन पहलवान के भाई भरत सिंह पर ये कोई पहला हमला नहीं था, बल्कि इससे पहले भी कई दफा दुश्मनों ने उनकी जान लेने की कोशिश की थी. इसीलिए वो जहां भी जाते थे, हमेशा संगीनों के साये में ही होते थे. इस कुआं पूजन में भी उनके साथ एक सरकारी और एक निजी सुरक्षाकर्मी मौजूद था, जो थोड़ी ही दूर पर खड़े होकर भरत सिंह की निगरानी कर रहे थे. लेकिन दावत की भीड़-भाड़ के बीच एक शख्स न जाने कहां से अचानक भरत सिंह के करीब आ गया और इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते, उसने भरत सिंह को निशाना बना कर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी.

इस शख्स ने भरत सिंह पर बेहद करीब से तकरीबन छह गोलियां चलाईं. भरत सिंह को गोलियों के निशाने पर आता देख उनके पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर्स यानी पीएसओ ने भी जवाबी फायरिंग की कोशिश की. लेकिन इससे पहले कि वो ऐसा कर पाते, महफिल में मौजूद कुछ और हमलावरों ने उन्हें भी अपनी गोलियों का निशाना बना लिया. अगले चंद सेकेंड्स में भरत सिंह के साथ उनके दो पीएसओ रामजीवन और दलजीत भी जमीन पर गिरे पड़े थे. हमलावरों का काम पूरा हो चुका था. लेकिन भागने से पहले उन्होंने खुद को भीड़ से बचाए रखने के लिए एक के बाद एक कई राउंड हवाई फायर किए और इसके साथ ही करीब आधे दर्जन हमलावर दौड़ते हुए वाटिका से बाहर निकल गए.

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भरत सिंह और फिर उनके पीएसओ को उठा कर पहले नजफगढ़ के ही एक अस्पताल में ले जाया गया. फिर वहां से गुड़गांव के मेदांता में. लेकिन भरत सिंह को बाद में डाक्टरों ने मुर्दा करार दे दिया. जबकि पीसीएसओ की हालत भी अब भी गंभीर है.

25 साल पुरानी दुश्मनी
अब सवाल ये था कि आखिर भरत सिंह पर ये हमला किसने किया? हमलावरों की उनसे क्या दुश्मनी थी? इसका जवाब 25 साल पुरानी उस दुश्मनी में है जिसने दिल्ली में गैंगवार की शक्ल अख्तियार कर ली. भरत सिंह और उसके भाई किशन पहलवान के दुश्मनों की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट है. दोनों भाइयों पर अब तक इतने हमले हो चुके थें कि सही गिनती भी पता नहीं.

2 जून 2012
बाहुबली विधायक भरत सिंह पर उनके दफ्तर के बाहर अंधाधुंध फायरिंग. हमले में भरत सिंह बुरी तरह जख्मी.

28 फरवरी 2015
बाइकरों ने की भरत सिंह के घर के बाहर हवाई फायरिंग की और जान से मारने की धमकी दी.

29 मार्च 2015
अभिनंदन वाटिका में सरेआम ताबड़तोड़ फायरिंग के बाद आखि‍रकार भरत सिंह का कत्ल. तारीख गवाह है कि मौत पिछले कई सालों ने दिन-रात साए की तरह भरत सिंह का पीछा कर रही थी. वैसे तो जिस अंदाज में बदमाशों ने भरत सिंह को अपनी गोलियों का निशाना बनाया, वो अपने-आप में रंजिश की कहानी बयान कर रहा है. लेकिन जानने वाले जानते हैं कि भरत सिंह के दुश्मन एक नहीं, बल्कि कई हैं.

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उदयवीर उर्फ काला
भरत सिंह के गांव दिचाऊ का वही उदयवीर उर्फ काला जो हाल ही पैरोल पर जेल से छूटा था और पहले भी भरत सिंह को मौत के घाट उतारने की कोशिश कर चुका था. लेकिन इत्तेफाक से अब यही उदयवीर सलाखों से बाहर निकल चुका था. और इसके साथ ही भरत सिंह और उसके भाई किशन पहलवान के सिर पर फिर से मौत नाचने लगी थी.

उदयवीर से भरत सिंह और उसके भाई किशन पहलवान के रंजिश की कहानी पुरानी है. जमीन के झगड़े में हरियाणा के सोनीपत में साल 2001 दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. ये दो लोग थे उदयवीर के पिता और चाचा. इस दोहरे कत्ल के पीछे भरत सिंह के भाई किशन पहलवान का हाथ होने की बात सामने आई थी.

विकास लंगरपुरिया और विक्की डागर
विकास लंगरपुरिया इन दिनों प्रॉपर्टी के झगड़ों में दिल्ली का सबसे बदनाम गैंगस्टर है. सूत्रों का कहना है नजफगढ़ के इलाके में जमीन के एक टुकड़े को लेकर पहले भी भरत सिंह और लंगरपुरिया आमने-सामने आ चुके हैं. लेकिन अब जिस तरह से भरत सिंह को गोलियों का निशाना बनाया गया है, शक है कि इसके पीछे लंगरपुरिया का हाथ भी हो सकता है.

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ठीक इसी तरह तीसरा नाम विकास उर्फ विक्की डागर का है. वही विक्की डागर जिसकी बुआ को कुछ साल पहले भरत सिंह ने रुपयों के लेन-देन को लेकर सरेआम जलील किया था. इसके बाद से ही विक्की भरत सिंह का दुश्मन बन गया था. कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और इसी फॉर्मूले पर चलते हुए विक्की डागर ने उदयवीर के साथ मिलकर 2012 में भरत सिंह को गोलियों से छलनी कर दिया था.

खून-खराबे और गैंगवार की इस कहानी की सबसे नई और खूनी लाइन बेशक अब लिखी गई हो, लेकिन इसकी शुरुआत आज से करीब 25 साल पहले तब हई थी, जब भरत और किशन ने मिल कर दिल्ली में पहली बार अपना गैंग खड़ा किया. तब से लेकर अब तक भरत-किशन के सामने नमालूम कितने ही गैंगस्टर आए और खत्म हो गए. लेकिन इन दोनों भाइयों की हुकूमत चलती रही.

किशन पहलवान ने तेजी से सोना बनती जमीन और प्रॉपर्टी के खेल में रातों-रात पैसा बनाने के लिए जुर्म की अंधी गलियारों से कुछ ऐसी दौड़ लगाई कि फिर कभी इससे बाहर नहीं निकल सका. अपने भाई किशन के साथ-साथ भरत सिंह भी जुर्म के इन गलियों से गुजर कर दौलत और शोहरत बटोरते रहे. ये और बात है कि अपने भाई के मुकाबले भरत सिंह की पहचान थोड़ी अलग और साफ-सुथरी थी. इसी की बदौलत भरत सिंह ने सियासत की दुनिया में अपने भाई के मुकाबले जल्दी पैर जमाने में कामयाबी हासिल कर ली. उन्होंने पहले दिचाऊ वार्ड से निगम पार्षद का चुनाव जीता और तब 2008 में पहली बार विधायक बने.

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अनूप-बलराज गैंग
किशन-भरत की तरह जुर्म की दुनिया में अपने पैर जमाने की कोशिश में लगे थे अनूप-बलराज. इन भाइयों के बीच कब-कब और कहां-कहां कितनी बार भिड़ंत हुई, इसका सही-सही हिसाब किसी के पास नहीं. वक्त के साथ अनूप-बलराज के पैर उखड़ गए, लेकिन किशन-भरत तब तक इस खेल के माहिर खिलाड़ी बन चुके थे.

नए साल का पहला दिन ही कई मायनों में इस बात का इशारा कर गया था कि ये साल गैंगवार के लिहाज से दिल्ली को चौंकाने वाला है. और ठीक वैसा ही हुआ. साल के पहले दिन पुलिस को नजफगढ़ के चार लड़कों की एक कार में लाश मिली. बाद में तफ्तीश के दौरान पता चला कि मामला गैंगवार का है.

दिल्ली के नजदीक हरियाणा के बहादुरगढ़ के एक सुनसान इलाके में पहली जनवरी की सुबह लोगों को एक जलती हुई कार नजर आई. कार में चार लोगों की लाशें पड़ी थीं. बुरी तरह जली चार लाशें. दो पिछली सीट पर और दो डिग्गी में बंद. यकीनन ये मामला एक्सीडेंट का नहीं हो सकता था. तफ्तीश आगे बढ़ी तो पता चला कि मरने वाले दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के रहने वाले वो चार नौजवान हैं, जिनका ताल्लुक इलाके के संदीप गैंग से है. चंद घंटों में ही इस गैंग के दुश्मनों और इनके कातिलों के चेहरे भी नकाब हट गया. मरनेवाले लड़कों के एक दोस्त ने साफ किया कि 31 दिसंबर को उनके दुश्मन भोलू गैंग ने उन्हें घेर लिया था. मरनेवालों ने उन्हें खुद फोन कर मोबाइल पर ये बात बताई थी. देर सवेर, नए साल में हुए इस गैंगवार के कई मुल्जि‍म भी गिरफ्तार हो गए, लेकिन ठीक भरत और किशन गैंग की तरह गैंगवार की ये कहानी कब भी और कहां जाकर रुकेगी, ये कोई नहीं जानता.

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