इंटर टॉपर घोटाले की जांच में तेजी के साथ ही लालकेश्वर प्रसाद के कारनामों की फेहरिस्त भी लंबी होती जा रही है. लालकेश्वर प्रसाद के कार्यकाल में बोर्ड ऑफिस काले कारनामों का अड्डा बन चुका था. वहां पैसे के बल पर जमकर खेल खेला जाता था. इसका मास्टरमाइंड खुद लालकेश्वर प्रसाद था, जो अभी तक फरार है. उसके कुछ गुर्गों पर पुलिस ने नकेल कसी है. पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद उनके चेहेतों ने चौंकाने वाले राज खोले हैं. अब लालकेश्वर की गिरफ्तारी का इंतजार है.
जानिए, लालकेश्वर प्रसाद के 5 काले कारनामे...
1- लालकेश्वर प्रसाद के जमाने में टैबुलेटिंग में पास, फेल और टॉपर बनाने का खेल होता था. हर जिले में उसके एजेंट थे. शिक्षा जगत में उसकी पहचान काफी रसूख रखने वालों के रूप में थी. बोर्ड द्वारा प्रत्येक इंटर स्तरीय स्कूल को फार्म भरने के लिए छात्रों की एक सीमित संख्या निर्धारित की जाती है, लेकिन पैसे के बल पर हर स्कूल और कॉलेज कई गुना ज्यादा छात्रों का फॉर्म भरवाते थे. परीक्षा के बाद इसकी टैबुलेटिंग कोलकाता में कराई जाती थी. मनमाना नंबर दिलाया जाता था. यदि सरकार छात्रों के कॉपियों में मिले मार्क्स और मार्क्स सीट का मिलान करे, तो लालकेश्वर और बोर्ड के कारनामों की सच्चाई सामने आ जाएगी.
2- लालकेश्वर प्रसाद की मर्जी के बगैर बोर्ड ऑफिस में एक पत्ता भी नहीं हिलता था. वहां बैठकर वह फर्जी तरीके से कॉलेज भी चलाया करता था. बोर्ड ऑफिस में ही फॉर्म भरा जाता, परीक्षा कराई जाती और रिजल्ट भी मिल जाता था. इसके लिए मुंहमांगी रकम चुकानी पड़ती थी. वह सत्ता का भी धौंस देने से बाज नहीं आता. वह बिहार ही नहीं बल्कि बाहरी राज्यों के छात्रों को भी अच्छे नंबर से बिना परीक्षा दिए पास करना का जिम्मा लेता था. इसके लिए बोर्ड ऑफिस से ही बिहार के किसी कॉलेज के नाम पर फॉर्म भरवा दिया जाता था. यहां तक की इसकी जानकारी उस कॉलेज के प्राचार्य और प्रबंधन को भी नहीं होती थी.
जानकारी के मुताबिक, सत्र 2013-15 में समस्तीपुर के एक कॉलेज से 667 छात्र-छात्राओं का नामांकन और पंजीयन कराया गया. इसकी जानकारी उस कॉलेज के प्राचार्य को नहीं थी. इस कॉलेज का नाम जनक जयनाथ सरयुग कॉलेज, बेलामेघ, उजियारपुर है. इस कॉलेज के प्राचार्य को जानकारी दिए बिना 2014-16 में भी 714 छात्र-छात्राओं का नामांकन और पंजीयन करा दिया गया. इस बारे में कॉलेज प्रबंधन द्वारा लगातार बोर्ड ऑफिस और शिक्षा विभाग को जानकारी दी जाती रही, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. अब जब टॉपर मामले को लेकर एसआईटी का गठन हुआ तो उसके सामने इस मामले को कॉलेज प्रबंधन ने उठाया है.
3- लालकेश्वर प्रसाद के जमाने में बिहार के करीब 200 स्कूल और कॉलेजों को इंटर की मान्यता दी गई. अब इसकी भी जांच की मांग उठने लगी है. जानकारी ये है कि मनमाने और गलत तरीके से सिर्फ पैसे के बल पर वैसे स्कूल और कॉलेजों को इंटर की मान्यता दे दी गई, जो उस लायक नहीं हैं. मान्यता के लिए उसके घर पर लंबी लाइन लगी रहती थी. जिसको मान्यता देने की वह तैयार होते, उससे उनकी पत्नी उषा सिन्हा के बहादुरपुर स्थित घर पर पैसे लिए जाते थे.
4- लालकेश्वर प्रसाद अपने और समधी के रसूख का भरपूर नाजायज फायदा उठाया. उसने अपनी पत्नी उषा सिन्हा को पटना के गंगा देवी कॉलेज का प्राचार्य बना दिया. उषा सिन्हा निगरानी के कांड संख्या 39/14 में आरोपी भी हैं. समधी अरुण कुमार मगध विश्वविद्यालय के तत्कालीन वीसी थे. उन्होंने सभी नियम-कानून ताक पर रखकर बिना वैकेंसी और विज्ञापन निकले इस पद पर बैठा दिया. अरुण कुमार पर भी भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं. वह जेल भी जा चुके हैं.
5- लालकेश्वर प्रसाद ने बिहार बोर्ड की वेबसाइट और रिजल्ट भी बेच दी थी. 26 जून, 2014 को उसने बोर्ड के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी. साल 2015 में बोर्ड के इतिहास में वो काम किया, जो किसी ने नहीं किया था. 2015 में बोर्ड का रिजल्ट एक निजी कंपनी की वेबसाइट पर जारी किया गया. उस कंपनी पर 2014 में बोर्ड की वेबसाइट हैक करने का आरोप भी लगा था. इस पर काफी हंगामा मचा, जिसकी वजह से बोर्ड के तत्कालीन सचिव श्रीनिवास चंद्र तिवारी को अपने पद से हाथ धोना पड़ा.