एक अरब 25 करोड़ हिंदुस्तानियों की आंखें एक बार फिर नम हैं. एक अरब 25 करोड़ हिंदुस्तानियों का सीना एक बार फिर से धधक रहा है. एक अरब 25 करोड़ लोग एक बार फिर दोस्ती की आड़ में छिपे इस दुश्मन से हिसाब चाहते हैं. पर सवाल ये है कि क्या हिंदुस्तान की आवाज हमारे चुने हुए नुमाइंदों के कानों तक पहुंच भी रही है या फिर इस बार भी सियासत के नक्कारखाने में सबकुछ पहले की तरह गुम हो जाना है?
वाह रे पाकिस्तान. आखिर तूने दिखा दिया कि नफरत की बुनियाद पर खींची गई सरहद की लकीर के उस पार आज भी तेरे नक्कारखाने में नफरत की ही तूती बोलती है. वाह रे पाकिस्तान. मोहब्बत और अकीदत की चादर चढ़ाने हिंदुस्तान आते हो. और फिर बदले में कफ़न बांटते हो?
और वाह रे हमारे अपने नेता और हुक्मराना. दुश्मन घाव पर घाव दे रहा है. हमारे ही घर में घुस कर हमारे सीने पर गोलियां दाग रहा है और हम बस बातें किए जा रहे हैं. बातें भी कैसी, बस बोलने के लिए, ताकि कोई ये ना कह दे कि अरे आपने तो कुछ बोला ही नहीं. इसीलिए सब बस बोलने के लिए बोल रहे हैं. कह कोई नहीं रहा कि करना क्या है?
अपनी तो जैसे आदत हो गई है मातम मनाने की. क्या करें, कमबख्त मौत से पहले किसी के लिए हमारे नेताओं और हुक्मरानों की मुहब्बत ही नहीं उमड़ती. अब सब शहीद-शहीद कर रहे हैं. संसद में श्रद्धांजलि दी जा रही है तो संसद के बाहर कैमरे पर पाकिस्तान के खिलाफ ऐसा गुस्सा जताया जा रहा है मानो अभी कैमरे से हटे नहीं कि सीधे बॉर्डर पर जाकर पाकिस्तान को सबक ही सिखा देंगे. क्या कीजिएगा? ये सब भी पक्के खिलाड़ी हैं. सबको पता है, माहौल गर्म है. मौका है और रस्म भी. लिहाजा अपनी-अपनी बोल दो और पल्ला झाड़ो.
अभी इसी साल की तो बात है जब हमारे दो जवानों के सिर कलम कर दिए गए थे. एक का सिर तब सरहद पार ही रह गया था. तब भी हमारे नेताओं और हुक्मरानों ने खूब बोला था. बस बोला ही था. फिर कुछ महीने बाद सरबजीत की पूरी लाश पाकिस्तान से हिंदुस्तान आई. तब भी सब क्या खूब बोले थे. बोला गया कि वाह रे पाकिस्तान, सजा अदालत सुनाती है, रहम की अपील पर बैठकर सदर जरदारी हिंदुस्तान से सियासत-सियासत और मोहब्बत-मोहब्बत का खेल खेलते हैं और फिर सरबजीत को मौत कैदियों के हाथों दिलवा देते हैं. वो भी पत्थर मार कर.
पर सिर्फ पाकिस्तान से शिकायत क्यों? वो तो फिर भी पराया है, पड़ोसी है. हमारा अपना ही घर कहां दुरुस्त है? अपने घर के मुखिया कौन-से ताकतवर हैं जो उनपर भरोसा करें. अरे, जिस शख्स और सरकार के पास सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों की ताकत हो वो इतना कमजोर कैसे हो सकता है? गांधी का देश भले ही झन्नाटेदार थप्पड़ नहीं जड़ सकता, पर बिना थप्पड़ जड़े, उस थप्पड़ की बस गूंज भर से दुनिया को दहला सकता है. पर क्या करें. सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों को लीड करने वाला लीडर ही जब मुंह ना खोले तो फिर कौन डरेगा हमसे? जरा सोचें. अगर पाकिस्तान की पहली गलती पर ही हम दहाड़ देते तो क्या पाकिस्तान की इतनी हिम्मत होती?
पर क्या करें, कितना धिक्कारें पाकिस्तान को और कितना रोएं अपने मुल्क को चलाने वालों पर. अब नहीं जागे तो कब जागेगें. जागो मोहन प्यारे, जागो.
देश के पांच घरों में एक बार फिर मातम है. आरा से लेकर छपरा तक, पटना से लेकर पुणे तक. पीठ में घुपे खंजर की टीस हर किसी को साल रही है. पर क्या ये सब हमारे सियासतदान सुन भी रहे हैं.
शहीद प्रेमनाथ का घर, छपरा, बिहार
21 बिहार रेजीमेंट के नायक शहीद प्रेमनाथ के इस घर में मंगलवार की सुबह तक सबकुछ ठीक-ठाक था, लेकिन जैसे ही जम्मू-कश्मीर के पुंछ में 35 साल के प्रेमनाथ के शहीद होने की खबर यहां तक पहुंची, पूरे परिवार पर आसमान टूट पड़ा. चिराग के बुझ जाने की तकलीफ तो हर हाल में होनी थी, लेकिन एक अमन भरे माहौल में जिस तरह से पाकिस्तानी गोलियों ने घर का बेटा छीन लिया, उस पर यकीन करना सबके लिए मुश्किल हो रहा था. परिजन कह रहे हैं सरकार चूड़ियां पहन कर बैठी है.
शहीद शंभू शरण का घर, आरा, बिहार
छपरा के पड़ोसी जिले आरा के इस घर में भी मातम पसरा है. 29 साल के शहीद शंभू शरण की पत्नी को अब भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा है कि अब उनके पति इस दुनिया में नहीं है. वो कभी रोती है और कभी गश खाकर बेसुध हो जाती है. और अब घरवालों की हालत देखकर पूरे इलाके के लोग सदमे में हैं. पाकिस्तान के खिलाफ गुस्से से उबल रहे हैं.
शहीद विजय कुमार का घर, पटना, बिहार
पटना के नजदीक बिहटा के रहने वाले विजय कुमार के दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा पहले से ही था. लेकिन एक रोज अपने इस जज्बे को पूरा करने के लिए वो शहादत का जाम ही पी लेंगे, ये किसी ने भी नहीं सोचा था. विजय अपने पीछे पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गए हैं. शहीद विजय के भाई रामकिशोर सिंह ने कहा कि वे शहीदों की इस क़ुर्बानी का हिसाब चाहते हैं.
शहीद रघुनंदन प्रसाद का घर, छपरा, बिहार
23 साल के रघुनंदन प्रसाद पुंछ में शहीद हुए पांचों जांबाजों में सबसे नौजवान यानी कम उम्र के शहीद हैं. ऐसे में रघुनंदन के घरवालों का गम और भी ज्यादा है. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे अपने लाडले के गुजरने के बाद खुद दिलासा दे भी तो कैसे दें? क्योंकि अभी सरहद पर ना तो कोई जंग जैसे हालत थे और ना ही कोई खास तनाव ही था, लेकिन फिर पाकिस्तान ने अपना वो रंग दिखाया, जिसके चलते घरवालों ने अपना बेटा खो दिया.
शहीद पुंडलिक माने का घर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
कोल्हापुर के इस गांव में सन्नाटा पसरा है. लोग बेशक शहीद पुंडलिक के घरवालों को दिलासा देने की कोशिश करें, लेकिन वो भी जानते हैं कि इस बीमारी का हल अब शायद बातों में नहीं है. 14 मिलिट्री इंटेलीजेंस की तरफ से बॉर्डर पर तैनात माने की शहादत की खबर ने इस गांव को गुस्से से भर दिया है और अब लोग पाकिस्तान से हिसाब चाहते हैं.