वो 15 अप्रैल का दिन था. यूपी पुलिस के 17 जवानों और अफसरों के घेरे में अतीक और उसका भाई अशरफ था. उन 17 पुलिसवालों की मौजूदगी में तीन हमलावर अचानक घेरे में घुसते हैं और पुलिसवालों की नजरों के सामने अतीक और अशरफ पर अंधाधुंध गोलियां चलाते हैं. मौका-ए-वारदात था प्रयागराज का एक सरकारी अस्पताल. इस डबल मर्डर के ठीक 52 दिन बाद 7 जून को फिर एक कत्ल होता है. इस बार भी तमाम पुलिसवाले मौजूद थे. फिर एक हमलावर उन्हीं पुलिसवालों की मौजूदगी में अंधाधुंध फायरिंग करता है. और 6 गोलियां खाकर यूपी का एक डॉन संजीव जीवा मारा जाता है. इस बार मौका-ए-वारदात थी लखनऊ की एक अदालत.
पर्दे के पीछे है वारदात का सच
ये दो वारदातें ये बताने के लिए काफी हैं कि यूपी में मुजरिमों के दिलों में पुलिस का कितना खौफ है. पुलिसवालों की भरी भीड़ के बीच और फिर भरी अदालत में बदमाश बेखौफ गोलियां बरसा रहे हैं और पुलिस बस तमाशा देख रही है. ये दोनों ही कहानी बहुत कुछ कहती है. बहुत सारे सवाल भी उठाती है. अतीक और अशरफ पर जिन तीन हमलावरों ने गोलियां बरसाईं उन तीनों का सच आज भी पर्दे में है. ठीक उसी तरह अब लखनऊ की कोर्ट में यूपी के एक बड़े डॉन और मुख्तार अंसारी के खास गुर्गे संजीव जीवा को जिस लड़के ने गोली मारी, उसका सच भी हैरान करता है.
एक जैसी दो वारदातें, इसलिए उठे सवाल
बीकॉम पास एक लड़का जिसका जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता नहीं, वो एक पेशेवर शूटर की तरह आता है और पांच-सात लाख महंगे रिवॉल्वर से अपने शिकार के सीने में छह गोलियां उतार देता है. अतीक और अशरफ के हमलावरों के पास भी इसी तरह की लाखों रुपये की कीमत वाली पिस्टल थी. वहां भी तीनों ने हमले से पहले रेकी की थी. यहां भी हमलावर ने हमले से पहले रेकी की. अतीक और अशरफ केस में तीनों हमलावर मीडियाकर्मी बनकर आए थे. यहां वो इकलौता हमलावर काला कोट पहन कर वकील के भेष में आया था. दोनों ही केस की ये समानताएं और भी सवाल उठाती हैं.
7 जून 2023, कैसरबाग कोर्ट रूम, लखनऊ
उस शाम करीब 4 बजे एक पुराने केस के सिलसिले में जीवा की एससीएसटी कोर्ट में पेशी थी. हालांकि भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी और हरिद्वार के एक बिजनेसमैन के कत्ल के इल्जाम में जीवा को पहले ही उम्र कैद की सज़ा मिल चुकी थी. लखनऊ जेल में वो ये सजा काट रहा था. पर इस अलग मुकदमे के लिए दोपहर बाद कोर्ट में उसकी पेशी थी. जेल के अंदर मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद जीवा की जान को भी खतरा था. क्योंकि वो बजरंगी का खास गुर्गा हुआ करता था. इसी खतरे को देखते हुए जीवा की पत्नी ने अदालत से उसे लाने ले जाने के दौरान उसकी सुरक्षा की गुहार लगाई थी. जिसके बाद जीवा को जब भी अदालत लाया जाता, बुलेटपूफ जैकेट में लाया जाता. लेकिन जीवा की पत्नी के मुताबिक पिछले दो पेशी में उसे बुलेटपूफ जैकेट नहीं दी गई थी.
कोर्ट रूम में दाखिल होते ही हमला
जीवा दोपहर से ही अदालत परिसर के अंदर बंदीगृह में था. शाम करीब चार बजे उसके मुकदमे की सुनवाई की बारी आई. इसी के बाद पुलिस की सुरक्षा में वो कोर्ट के बंदीगृह से निकल कर सीधे कोर्टरूम पहुंचा. जिस पल वो कोर्टरूम के अंदर दाखिल हुआ, ठीक उसी पल कोर्ट रूम में पहले से बैठे काले कोट वाले एक शख्स ने अचानक अपनी कमर से पिस्टल निकाली और जीवा की तरफ पिस्टल तान कर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी.
कोर्ट में ऐसे पकड़ा गया शूटर
ये सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि कोर्टरूम में मौजूद पुलिसवाले और वकीलों को कुछ समझ ही नहीं आया. उल्टे कुछ पुलिसवाले तो उल्टे पैर ही भागने लगे. जीवा अब जमीन पर गिर चुका था. हमलावर अब भागना चाहता था लेकिन तभी कुछ वकीलों और फिर बाद में कुछ पुलिसवालों ने हिम्मत दिखाई और हमलावर को दबोच लिया. इस गोलीबारी और हमलावर को पकड़ने के दौरान कुछ पुलिसवाले और एक बच्ची भी जख्मी हो गई.
जौनपुर का रहनेवाला है शूटर विजय यादव
उम्र कैद की सजा पाया जीवा कोर्ट रूम के अंदर दम तोड़ चुका था. अब हमलावर की जांच शुरू हुई. हमलावर की पहचान विजय यादव के तौर पर हुई. विजय एक वकील का भेष बना कर कोर्ट रूम तक पहुंचा था. जब विजय यादव की कुंडली खंगाली गई, तो पता चला कि वो जौनपुर का रहनेवाला है. बीकॉम पास कर रखा है. कुछ वक्त पहले तक मंबई में पानी का पाइप बनानेवाली एक कंपनी में नौकरी किया करता था. लेकिन फिर मार्च में घर लौट आया. अब वो लखनऊ में नौकरी ढूंढ रहा था. दस मई को एक रिश्तेदार की शादी के बाद 11 मई को ही वो लखनऊ चला गया था. उसके बाद से उसका अपने घरवालों से कोई संपर्क नहीं था. मोबाइल भी बंद था. पिता की जौनपुर में मिठाई की दुकान है.
6 माह की जेल काट चुका है विजय यादव
विजय यादव का क्रिमिनल रिकॉर्ड खंगालने पर पता चला कि उसके खिलाफ कुल दो मामले दर्ज थे. एक मामला एक नाबालिग लड़की को भगाने का था लेकिन बाद में लड़की के घरवालों ने ये केस वापस ले लिया था. दरअसल, पता ये चला कि वो लड़की किसी और लड़के के साथ भागी थी, ना कि विजय के साथ. हालांकि इस चक्कर में करीब छह महीने तक उसे आजमगढ़ जेल में रहना पड़ा था. उसके खिलाफ दूसरा मामला कोरोना के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के नियमों के उल्लंघन का था.
जीवा का जानता तक नहीं विजय यादव
यानी विजय यादव का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं है. किसी गैंगस्टर या माफिया से उसका संबंध नहीं है. जीवा को तो वो जानता तक नहीं. इसलिए दुश्मनी का सवाल पैदा नहीं होता. तो फिर सवाल ये है कि उसने जीवा को वो भी भरी अदालत में गोली क्यों मारी? जिस विजय यादव के पास मोबाइल रिचार्ज कराने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे, उसके पास पांच-सात लाख की महंगी रिवॉल्वर कहां से आई?
कौन है कत्ल का मास्टरमाइंड?
जाहिर है ये सवाल यही इशारा दे रहे हैं कि विजय यादव सिर्फ एक मोहरा भर है. पीछे खिलाडी कोई और है. ठीक उसी तरह जैसे अतीक और अशरफ के केस में हुआ था. ना उन तीनों का सच और ना उनके मकसद का पता अभी तक चल पाया है, ना ही विजय यादव का राज़ सामने आ सका है. दोनों ही केस में ये चारों बस मोहरा भर हैं. मास्टरमाइंड कौन है, कहां है, ये फिलहाल कोई बताने को तैयार नहीं.
बाहुबली नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी का हत्यारा था जीवा
जिस संजीव जीवा को कोर्ट रूम के अंदर मारा गया, वो यूपी के टॉप क्रिमिनल की लिस्ट में 13वें नंबर पर था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसकी तूती बोला करती थी. मुजफ्फनरगर में पैदा हुआ जीवा बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता था. घर की माली हालत ठीक नहीं होने की वजह से उसने कम उम्र में ही एक डॉक्टर की क्लीनिक पर कंपाउडर का भी काम किया था. लेकिन फिर एक रोज उसी डॉक्टर को किडनैप कर लिया और बस यहीं से उसके जुर्म के सफर की शुरुआत हुई. लेकिन जीवा का नाम पहली बार तब सुर्खियों में आया, जब उसने बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या की. ब्रह्मदत्त द्विवेदी किस कद के नेता थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हत्या के बाद अंतिम संस्कार में शामिल होनेके लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी पहुंचे थे.
ऐसे मुख्तार तक पहुंचा था जीवा
ब्रह्मदत्त की हत्या के बाद यूपी का हर बाहुबली जीवा को अपनी गैंग में शामिल करना चाहता था लेकिन खुद जीवा मुन्ना बजरंगी का फैन था. वो मुन्ना के साथ हो गया. मुन्ना बजरंगी मुख्तार का फैन था. इस तरह बजरंगी से होते हुए जीवा मुख्तार तक जा पहुंचा. कहते हैं कि मुख्तार को हथियारों की सप्लाई भी जीवा ही किया करता था. बीजेपी के एक और विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में भी मुख्तार के साथ-साथ जीवा का भी नाम आया था. लेकिन जीवा इस केस में बरी हो गया था.
क्या सच उजागर कर पाएगी यूपी पुलिस?
हालांकि पुलिस सूत्रों के मुताबिक कृष्णानंद राय की हत्या के लिए हथियारों का इंतजाम जीवा ने ही किया था. कुछ वक्त पहले बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या और अब कोर्ट रूम में जीवा के कत्ल के बाद जाहिर है, मुख्तार अंसारी गैंग और कमजोर हो गया है. जीवा के कत्ल की जांच के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई है. अब टीम को ये पता करना है कि जिस जीवा से दूर दूर तक विजय का कोई रिश्ता नहीं, उस विजय ने इतना जोखिम मोल लेकर भरी अदालत में उसे क्यों मारा? किसके इशारे पर मारा? पर क्या यूपी पुलिस इस सच को आम करेगी? क्योंकि करीब पौने दो महीने बाद भी अतीक अशरफ की हत्या में शामिल हमलावरों का सच वो अब तक पता नहीं लगा पाई.