सोमवार को गुरदासपुर में हुए जिस आतंकी हमले ने सात बेगुनाहों की जान ले ली और जिस हमले ने पूरे दिन तमाम मुल्क की सांसे रुकवा दी, उस हमले की साज़िश भी सीमा पार यानी पाकिस्तान में ही रची गई. ऑपरेशन के पूरा होते-होते सूबे के डीजीपी से लेकर देश के गृहमंत्री तक, सभी ने ये साफ़ कर दिया इस हमले के पीछे पाकिस्तान ही है. एक-एक कर तीनों आतंकियों के ढेर करने के बाद पुलिस और स्वात के जवानों ने दोबारा गुरदासपुर के दीनानगर थाने पर कब्ज़ा किया, तो लाशों के आस-पास बिखरे सुबूत पाकिस्तान की करतूत की तस्दीक कर रहे थे.
सूत्रों की मानें तो पुलिस को इन आतंकियों के पास से ग्लोबल पोजिशनिंग सेट्स यानी जीपीएस हाथ लगे, जो आम तौर पर पाकिस्तान से घुसपैठ कर आनेवाले आतंकी अपनी लोकेशन समझने के लिए इस्तेमाल किया करते हैं. अब एक तरफ जहां सुरक्षा एजेंसियों उनके पास से बरामद जीपीएस की डाटा एनालिसिस में जुटी हैं, वहीं अब तक तफ्तीश में उनके पाकिस्तान से सरहद पार कर हिंदुस्तान में दाखिल होने का तकरीबन पूरा रूट ही साफ हो चुका है.
पाकिस्तान के गांव से हुए थे रवाना
सूत्रों की मानें तो ये तीनों आतंकी रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात को पाकिस्तान के शकरगढ़ कस्बे के नज़दीक घरोट गांव में मौजूद लश्कर-ए-तैय्यबा के कैंप से हिंदुस्तान के लिए रवाना हुए. इसके बाद चौकसी की कमी और ख़राब मौसम का फ़ायदा उठाते हुए तीनों रावी नदी पार कर हिंदुस्तान के बमियाल गांव पहुंचे और फिर वहां से आगे बढ़ गए. वहां से सुबह किसी बस यानी गाड़ी में सवार होकर तीनों 1-ए हाईवे तक पहुंचे और जम्मू-कश्मीर से पंजाब के रास्ते फिर कई चेकपोस्ट्स पार करते हुए गुरदासपुर आ गए. लेकिन ये हैरानी की बात है कि न तो रात को किसी सुरक्षाकर्मियों की नज़र इनपर पड़ी और ना ही किसी चेकपोस्ट पर इनसे कोई पूछताछ ही हुई.
इस बार भी पाकिस्तान ने इस हमले में अपना हाथ होने से इनकार किया है, लेकिन इस हमले से जुड़े सुबूत ऐसे हैं, जिन्हें ना तो पाकिस्तान झुठला सकता है और ना ही कोई और. इन आतंकियों ने जिस तरह फौजी लिबास में गुरदासपुर पर हमला किया, वैसा हमला इससे पहले भी लश्कर ए तैय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी करते रहे हैं. ये हमला पिछले साल जम्मू के कठुआ और हीरा नगर में हुए आत्मघाती हमलों से मिलता-जुलता है.
पाकिस्तान से आए आतंकवादी अब किसी एक ठिकाने को टारगेट नहीं करते, बल्कि दहशत ज़्यादा से ज़्यादा फैलाने के लिए वो एक साथ कई जगहों पर टारगेट करते हैं. पहले रेलवे ट्रैक पर बम बिछाना, फिर कार मालिक को गोली, उसके बाद बस पर फायरिंग और तब थाने पर कब्ज़ा. आतंकियों के पास बरामद दो जीपीएस सेट, एके 47 रायफल, 18 मैग्जीन और चीन में बने हथगोले अपने-आप में गहरी साज़िश का सुबूत है. ये भी खुला सच है कि पाकिस्तान चीन से अस्लहे लेता रहा है. ऐसे में इस हमले के पीछे ना सिर्फ़ पाकिस्तान का हाथ साफ़ होता है, बल्कि इन्हें नॉन स्टेट एक्टर बताने की चाल भी बेनकाब होती है. 26-11 की तरह इस बार भी ये आतंकी ज़्यादा देर तक सरवाइव करने के लिए अपने साथ ड्राइ-फ्रूट लेकर पहुंचे थे.
पहले मिल चुकी थी हमले की भनक
खुफिया एजेंसियों की इंटसेप्ट बताती है कि इस हमले की भनक उन्हें पहले ही मिल चुकी थी. सूत्रों की मानें तो खुफिया एजेंसियों ने ना सिर्फ़ हिमाचल, जम्मू और पठानकोट के सैन्य ठिकानों पर हमले की चेतावनी पहले ही जारी की थी. बल्कि एक इनपुट में तो पाकिस्तान के घरोट इलाके से हिंदुस्तान के रिहायशी इलाकों में आतंकियों के दाखिल होने का अंदेशा साफ-साफ जताया गया था ये हमला ठीक वैसा ही था.
बस तीन-चार मिनट की बाद एक पैसेंजर ट्रेन को दीनानगर के करीब से गुजरना था. सुबह के वक्त सबसे ज्यादा भीड़ उसी पैसेंजर ट्रेन में होती है. मगर तभी दूध लेने जा रहे एक शख्स की नजर पटरी पर बिछे बम पर पड़ी. सतपाल नाम के एक किसान की जागरूकता ने यहां होने वाला भयानक हादसा टाल दिया. दर्शन कुमार ने बताया कि जैसे ही उन्हें रेलवे ट्रैक पर बम होने की खबर मिली. उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई. क्योंकि मुश्किल से 4-5 मिनट के भीतर वहां पहुंचने वाली थी 54612 नंबर की पैसेंजर ट्रेन. इसमें आमतौर पर सबसे ज्यादा भीड़ होती है. 27 जुलाई को हुए आतंकी हमले के बाद गुरदासपुर में अब भी एक अजीब सा डर है, वहीं यहां कि हवा में शहादत और जांबाज़ी का फख्र भी घुला है. सबसे पहले आतंकियों ने मासूम मुसाफिरों को शिकार बनाने की कोशिश की थी. सुबह-सुबह पंजाब रोडवेज़ की बस जम्मू के कटरा की ओर जा रही थी. इस बस में करीब 76 यात्री बस बैठे थे. अचानक बस ड्राइवर को सड़क किनारे एक शख्स खड़ा दिखा. उसके कपड़े और हरकत देख कर ड्राइवर को शक़ हुआ. और उसकी सूझबूझ ने इऩ सभी यात्रियों की जान बचा ली.
दीनानगर पर हुआ हमला कई परिवारों के लिए दर्द और ग़म भी लेकर आया. आतंकवादी हमले में शहीद एसपी बलजीत सिंह का परिवार भी उनमें से एक है. उनकी शहादत पर पूरे देश के साथ-साथ परिवार को भी गर्व है. लेकिन अपनों को खोने का गम छिपाएं भी तो कैसे. शहीद एसपी बलजीत सिंह के घरवालों का सब्र टूट गया और आंसू छलक पड़े. आतंकी थाने में दीवार की ओट से गोलियां बरसा रहे थे और जवानों के साथ मोर्चे पर तैनात थे एसपी बलजीत सिंह. कप्तान होने के नाते बलजीत सिंह अपना फर्ज निभा रहे थे और फर्ज़ की राह मे कुर्बान हो गए. फर्ज के लिए कुर्बानी का ये जज्बा एसपी बलजीत को विरासत में मिला था. उनके पिता भी आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए थे. कपूरथला में रहने वाले बलजीत सिंह की शहादत को नमन करने पूरा शहर उमड़ पड़ा. लोगों का कहना है कि आतंकियों का ये हमला बलजीत पर नहीं मुल्क पर हुआ है और इस शहादत का जवाब भी देश लेगा. एसपी बलजीत सिंह के साथ ही 2 और जवान भी आतंकी हमले में शहीद हुए हैं. जवानों की ये शहादत कभी भुलाई नहीं जा सकती.