संतों का चोला ओढ़ कर आसाराम हजारों लोगों के बीच अपने साधकों से जो बातें करते, वो सुनती तो पूरी दुनिया थी लेकिन समझते सिर्फ़ साधक ही थे क्योंकि ये बातचीत आसाराम के उस बेशर्म कोड लैंग्वेज पर टिकी होती थी, जिसके सहारे वो लड़कियों का शिकार किया करते. चाहे वो आसाराम के पुराने राजदार हों या जोधपुर की पुलिस, आसाराम का ये सच अब एक-एक कर बाहर आता जा रहा है.
अपने भक्तों के भगवान हैं आसाराम, अंधविश्वास की अंधी गलियों से गुजरकर ना जाने कितने लोग अपनी किस्मत संवारने का भरोसा लेकर यहां आते रहे. आसाराम का प्रवचन सुना, लेकिन भक्तों को क्या पता होगा कि जुबान पर राम-राम का जाप करते वक्त आसाराम की आंखें क्या ढूंढ़ती थीं. उनके मन में कौन सी हलचल मची होती थी और कैसे उनका दिल उनकी जुबान का साथ नहीं देता था.
धर्म का पाखंड इतना बड़ा हो गया कि आस्था की आंखें चौंधियाकर रह गईं. उन आंखों को ना तो वो कोड वर्ड दिखा ना सुनाई दिया, जिसके जरिए भक्ति को प्रवचन के पंडाल में आसाराम नीलाम करते रहे.
डायल 400, टॉर्च, ध्यान वाली लड़की, मीरा, जोगन, एकांतवास, समर्पण, नया नाम... अंडरवर्ल्ड की दुनिया भी इन नए कोड वर्ड के सामने पनाह मांगने लगेगी ये भक्ति का वो अंडरवर्ल्ड है, जहां दिमाग की कनपटी पर आस्था की पिस्तौल तनी होती है. समाज सुधारने का दावा करने वाला बहूरुपिया की नजर और नीयत में तो कुछ और होता है. आसाराम के कुछ और भी कोड वर्ड हैं... चना़, फल,
मिठाई, काजू...
फल और मिठाई तो भक्तों के लिए प्रसाद होता है लेकिन इन फलों और मिठाइयों में आसाराम की नीयत और नजर का वो जहर मिला होता है, जिसपर कभी आसाराम के भूतपूर्व साधक उंगली उठाते हैं तो कभी कानून के रखवाले.
आसाराम के बेशर्म कोड लैंग्वेज का तिलिस्म भी अजीब था. कभी आंखों से इशारे कर, तो कभी प्रसाद में काजू खिला कर आसाराम लड़कियों को जोगन बना देते. दुनिया इसे संत की लीलाएं समझतीं और लड़कियों की दुनिया बदल जाती.
जोगी के प्यार में जोगन के लूटने का फिल्मी गाना जब सत्संग के प्रवचन में आ जाए तो. फिर इस सवाल का जवाब वो कोडवर्ड देंगे, जिनसे आसाराम के एकांतवास के सारे ताले खुल जाएंगे.
आसाराम का कोडवर्ड नंबर 1- टॉर्च
जहां धर्म का उजाला होना चाहिए, वहां किसी लड़की की बर्बादी का अंधेरा उस टॉर्च से आता था, जिससे आसाराम सत्संग में बैठे किसी लड़की पर तीन बार लाइट फेंकते थे. आसाराम के पूर्व सेवक के मुताबिक इस लाइट का इशारा ये होता था कि आसाराम के लिए उस लड़की को सेवादार तैयार करें.
आसाराम का कोडवर्ड नंबर 2- ध्यान वाली लड़की
अगर कभी टॉर्च नहीं रहा तो आसाराम लड़की को ध्यान में लाने की बात करते थे. प्रवचन सुनने आए भक्तों को लगता था कि बाबा तो ध्यान की बात कर रहे हैं, जबकि बाबा का ध्यान तो कहीं और होता था. बकौल प्रजापति आसाराम के चेले समझ जाते थे कि उनका उस्ताद चाहता क्या है.
आसाराम का कोड नंबर 3- मीरा
कभी आसाराम के सत्संग और धार्मिक सभाओं में हिस्सा लेने वाले अब उनकी पोल खोल रहे हैं. आसाराम को कोई लड़की भा गई तो उसे मीरा नाम से पुकारते थे. अब मीरा बना दिया तो खुद को कृष्ण बताने वाले आसाराम के लिए उस लड़की का ब्रेनवाश करने में जुट जाते थे करीबी सेवादार.
आसाराम का कोड नंबर 4- जोगन
आसाराम के पुराने साधक का कहना है कि जोगी जोगन के गीत गाने वाले आसाराम की नजरें 12 साल से 20 साल तक की लड़कियों पर ही रहती थी. इनमें जो लड़की पसंद आ जाए, उसे बार-बार जोगन कहकर पुकारने लगते थे. बस इतने से ही उनके सेवादार समझ जाते थे कि सफेद लिबास में बैठे बाबा के इरादे कितने काले हैं.
आसाराम का कोडवर्ड नंबर 5- काजू-बादाम
आसाराम के प्रवचन के पंडाल में प्रसाद भी हैसियत से तय होता था. जो बहुत ज्यादा चढ़ावा देता था, उसे काजू-बादाम मिलता था लेकिन प्रजापति के मुताबिक अगर किसी लड़की पर आसाराम की नजरें गड़ गईं तो उसे वो प्रसाद में काजू-बादाम देते थे. करीबी सेवादारों के लिए ये इशारा काफी होता था कि आसाराम चाहते क्या हैं.
आसाराम का कोडवर्ड नंबर 6- समर्पण
धर्म की आड़ में अधर्म की दुकान चले तो उसमें खरीद-फरोख्त के लिए ईमान की जगह नहीं होती. इल्जामों पर यकीन करें तो आसाराम के सत्संग में समर्पण का मतलब ये होता था कि जो लड़की पसंद आ गई, उसको बहला-फुसलाकर आसाराम के लिए तैयार करना.
आसाराम का कोडवर्ड नंबर 7- एकांतवास
धर्म की दुनिया में एकांतवास तो वहां होता है जहां भक्त और भगवान के बीच कोई नहीं होता लेकिन आसाराम पर आरोप लगता है कि उनका एकांतवास तो उनके रंगरेलियों का अड्डा होता था.
बेशर्मी की दुनिया में आसाराम कुछ इतने आगे निकल चुके थे कि उनकी जिंदगी ही लगभग कोड वर्ड में सिमट कर रह गई थी. आसाराम के मोबाइल फ़ोन के आखिरी तीन नंबर 400 थे. आसाराम ने अपने फोन का कोड वर्ड बना रखा था 400. लोग समझते बाबा तो फोन ही नहीं रखते और बाबा अपने खास चेलों से 400 नंबर पर खुल कर बातें किया करते थे.
वैसे तो आसाराम संत थे, सत्संग करते थे और एक संत को भला दुनियावी चीजों से क्या लेना-देना हो सकता था. शायद इसीलिए आसाराम अपने पास मोबाइल फोन तक नहीं रखते थे लेकिन ये वो सच था, जिसे दुनिया जानती है. इसके पीछे का सच ये है कि आसाराम के पास अपना मोबाइल है, जिसके लिए बाकायडा कोड वर्ड बना रखा है.
आसाराम का कोड वर्ड 400
आसाराम के बारे में ये नया खुलासा किया है, उस जोधपुर पुलिस ने, जो उनके खिलाफ यौन शोषण के इल्जामों की तफ्तीश कर रही है. पुलिस की मानें तो आसाराम का मोबाइल नंबर 9321***400 था और वो इसे शॉर्ट फॉर्म में वो 400 कहा करते थे. शिल्पी, शरतचंद्र जैसे आसाराम के राज़दार को जब भी आसाराम से बात करनी होती, तो वो एक दूसरे को 400 नंबर पर बात करने की बात कहते और तो और 400 नंबर से बात हो जाने का मतलब होता था किसी भी काम के लिए आख़िरी हुक्म मिल जाना.
वैसे तो ये मोबाइल आसाराम के रसोइये के पास होता था और वही ये फोन उठाता था, लेकिन उसे ये फोन सुनने की इजाजत नहीं थी. यानी उसका काम था, फोन उठाकर आसाराम के कानों में रख देना. पुलिस ने अपनी छानबीन में पाया है कि जब से पीड़ित लड़की को फंसा कर आसाराम की कुटिया तक लाने की साज़िश शुरू हुई, तब से लेकर आसाराम और बाकी मुल्जिमों यानी शिल्पा, शिवा और शरत की आसाराम के इसी 400 नंबर बहुत ज़्यादा यानी तीसियों बार बातचीत हुई.
पुलिस के मुताबिक अपनी करतूत छिपाने के लिए आसाराम तकरीबन हर बात घूमा-फिरा कर करते और हर लड़की और साधक को भी उन्होंने अलग-अलग नाम दे रखे थे. वो अपनी शिष्या संचिता को शिल्पी बुलाते और पीड़ित लड़की को उन्होंने पहले से ही जट्टी बुलाना शुरू कर दिया था.
कहते हैं भगवान अपने भक्तों में कोई फर्क नहीं करता लेकिन खुद को भगवान का अवतार बताने वाले आसाराम ना सिर्फ अपने भक्तों में फ़र्क करते थे, बल्कि भक्तों की हैसियत या सूरत के मुताबिक ही उन्हें प्रसाद भी दिया करते थे. यानी जितनी बड़ी दक्षिणा, उतना बढ़िया प्रसाद और अगर दक्षिणा सूरत और समर्पण की हो तो फिर प्रसाद के क्या कहने.
जैसा दाम, वैसा काम. ये कहावत लेन-देन या कारोबार की दुनिया में तो फिट बैठती है, लेकिन क्या धर्म-कर्म और आध्यात्म के रास्ते पर भी ये मुमकिन है? क्या भक्ति की दुनिया में इन दोनों चीज़ों को एक ही तराजू पर तौला जा सकता है? आपको ये बात बेशक अटपटी लगे कि यौन शोषण के आरोपों से घिरे संत आसाराम के धर्म-कर्म का अंदाज़ कुछ ऐसा ही था.
दूसरे लफ्जों में कहें तो आसाराम अपने भक्तों को प्रसाद भी वैसा ही देते थे, जैसा वो चढ़ावा लेकर आता था. बाबा के एक पुराने राजदार की मानें तो आसाराम उनके पैर छूने वाले भक्तों को आम तौर पर प्रसाद में चना दिया करते थे, लेकिन जो भक्त उनका पैर छूने के साथ-साथ उन्हें दस रुपए का दक्षिणा भी देता था, आसाराम उसे चना के साथ-साथ शक्कर या गुड़ भी दे देते थे और ठीक इसी तरह जैसे-जैसे दक्षिणा की रकम बढ़ती जाती थी, बाबा का प्रसाद भी अच्छा हो जाता जाता था.
जो भक्त आसाराम को सौ रुपए का दक्षिणा देता, आसाराम उसे फल देते और जो पांच हज़ार रुपए सौंपता उन्हें काजू, जबकि इससे ज़्यादा दक्षिणा देनेवाले को आसाराम अपने हाथों से मिठाइयों का पैकेट थमा देते. जाहिर है, आसाराम का प्रसाद भी भक्त की श्रद्धा या भक्ति के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी हैसियत के आधार पर बंटता था. लेकिन हक़ीकत यही थी कि जब किसी लड़की को बाबा उसकी दक्षिणा नहीं, बल्कि सूरत पर जाकर काजू या मिठाई का प्रसाद देते थे, तो इसका मतलब कुछ और होता था और ये मतलब आसाराम के साधक रूपी गुर्गों को खूब पता था.