एक तरफ रिश्वत ना लेने की कसम और दूसरी तरफ दिल में दबी दोनों हाथों से सबकुछ बटोर लेने का लालच. भ्रष्टाचार ने जमी-जमाई सरकारों की चूल्हें हिला दीं. गुस्साई अवाम ने लालची सियासतदानों को उखाड़ फेंका. दिल्ली में तख्तो-ताज बदल गया. पर नहीं बदली तो हमारी रिश्वत लेने और देने की फितरत. आज तक के स्टिंग ऑपरेशन ने उसी दिल्ली का नया सच उजागर किया है जिस पर आप ने ईमानदारी की झाड़ू फेर दी है. पर आप उनपर कब झाड़ू चलाएंगे जिन्हें आपकी झाड़ू की सबसे ज्यादा जरूरत है.
केजरीवाल ने रामलीला मैदान में चीख-चीखकर कहा भी था, 'कोई रिश्वत नहीं देगा, भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकना है.' लेकिन आज तक के 'ऑपरेशन आम आदमी' के जरिए जो खुलासा हुआ वो बेहद ही चौंकाने वाला है. ऐसा लगता है कि कुछ नहीं बदला. भ्रष्टाचार कायम है और अफसरों की घूसखोरी जारी है.
ऑपरेशन आम आदमी, ये स्टिंग ऑपरेशन शत प्रतिशत आम आदमी से जुड़ा है. आम आदमी के नायक केजरीवाल पर फिलहाल कोई सवाल नहीं उठा रहा है. सवाल न नायक की नीति पर और सवाल न ही उसकी नीयत पर, लेकिन नायक के नीचे बैठे मातहत कैसे नायक की नीतियों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, ये बेपर्दा हो जाएगा.
जल बोर्ड, आरटीओ, रजिस्ट्री, बिजली विभाग सब जगह घूसखोरी
जल बोर्ड के अध्यक्ष खुद अरविंद केजरीवाल हैं. पहला खुलासा दिल्ली जलबोर्ड के हैदरपुर प्लांट का है. यहां आम आदमी की सरकार आने के बाद भी रिश्वत का खुला खेल जारी है. बिल्डरों के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को पैसे लेकर यहां चीफ वाटर एनालिसिस और मातहत अधिकारी हथेली गर्म करके कलम चला रहा है.
आरटीओ ऑफिस का भी है, जहां आम आदमी की शपथ का सरेआम उल्लघंन हो रहा है. पश्चिम दिल्ली के राजा गार्डन के ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी के दफ्तर जब आज तक का अंडर कवर रिपोर्टर मोटरसाइकिल का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट यानी आरसी बनवाने पहुंचा तो घूसखोरी के कई राज सामने आ गए. आरटीओ ऑफिस में काम करने वाले डाटा ऑपरेटर ने हमारे रिपोर्टर से साफ-साफ कहा कि यूं तो आरसी के नवीनीकरण के लिए साढ़े पांच सौ रुपये फीस लगेगी, लेकिन बिना इंश्योरेंस के अगर जल्दी चाहिए तो 2 हजार रुपये लगेंगे.
सेल्स टैक्स के दफ्तर का भी कुछ ऐसा ही हाल था जहां हमें अपनी फर्म का वेट रजिस्ट्रेशन करवाना था, लेकिन यहां जो सच्चाई सामने आयी, बेहद ही चौंकाने वाली थी, यहां हमें अधिकारी तो नहीं मिले, लेकिन स्वागत के लिए एंजेट जरूर मिल गये. रजिस्ट्रेशन कराने के लिए यूं तो फीस 5500 रुपये हैं, लेकिन एजेंट खुलेआम 10 हजार से ज्यादा मांग रहा था. यानी 5500 की फीस और 5 हजार काम कराने की रिश्वत.
भारत और भ्रष्टाचार मौसेरे भाई की तरह हो गये हैं
देशभक्ति का जज्बा अगर दिल में भरा हो तो ईमानदारी कभी बेचारी नहीं हो सकती. लेकिन हम हिंदुस्तानियों की देशभक्ति तो वर्ल्ड कप में तिरंगा लहराने से शुरू होती है और कप जीतने के साथ खत्म. ऐसे में देश कब बौना हो जाता है और जेब बड़ी. पता ही नहीं चलता. हमारी इसी आदत की वजह से भारत और भ्रष्टाचार मौसेरे भाई की तरह हो गये हैं.
रग-रग में भर चुका भ्रष्टाचार का नशा हम सब कैसे छोड़ेगे?
इसमें कोई शक नहीं कि देश और दिल्ली की अवाम के सामने भ्रष्टाचार इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा और सबसे खतरनाक बीमारी है. अगर इस बीमारी से हम पार पा गए तो यकीन मानिए सोने की चिड़िया वाला वही सुनहरा हिंदुस्तान एक बार फिर हम सबकी नजरों के सामने होगा. पर क्या ऐसा हो पाएगा? क्योंकि भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढ़ावा देने में कहीं ना कहीं हम सब गुनहगार हैं.
आंकड़ों में भारत की स्थिति बेहद खराब आंकड़े कहते हैं कि 2009 में भारत में अपने-अपने काम निकलवाने के लिए 54 फीसदी हिंदुस्तानियों ने रिश्वत दी. आंकड़े कहते हैं कि एशियाई प्रशांत के 16 देशों में भारत का शुमार चौथे सबसे भ्रष्ट देशों में होता है. आंकड़े कहते हैं कि कुल 169 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में हम 84वें नंबर पर हैं.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि 1992 से अब तक यानी महज 21 सालों में देश के 73 लाख करोड़ रुपए घोटाले की भेंट चढ़ गए. इतनी बड़ी रकम से हम 2 करोड़ 40 लाख प्राइमरी हेल्थसेंटर बना सकते थे. करीब साढ़े चौदह करोड़ कम बजट के मकान बना सकते थे. नरेगा जैसी 90 और स्कीमें शुरू हो सकती थीं. करीब 61 करोड़ लोगों को नैनो कार मुफ्त मिल सकती थी. हर हिंदुस्तानी को 56 हजार रुपये या फिर गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे सभी 40 करोड़ लोगों में से हर एक को एक लाख 82 हजार रुपये मिल सकते थे. यानी पूरे देश की तस्वीर बदल सकती थी.
तस्वीर दिखाती है कि भारत गरीबों का देश है. पर दुनिया के सबसे बड़े अमीर यहीं बसते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो स्विस बैंक के खाते में सबसे ज्यादा पैसे हमारा जमा नहीं होता. आंकड़ों के मुताबिक स्विस बैंक में भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा है. यानी जितना पैसा हमारा स्विस बैंक में जमा है, वह हमारे जीडीपी का 6 गुना है.
आंकड़े ये भी बताते हैं कि भारत को अपने देश के लोगों का पेट भरने और देश चलाने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ता है. यही वजह है कि जहां एक तरफ प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ हरेक भारतीय पर कर्ज भी बढ़ रहा है. अगर स्विस बैंकों में जमा ब्लैक मनी का 30 से 40 फीसदी भी देश में आ गया तो हमें कर्ज के लिए आईएमएफ या विश्व बैंक के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे.
स्विस बैंक में भारतीयों का जितना ब्लैक मनी जमा है, अगर वह सारा पैसा वापस आ जाए तो देश को बजट में तीस साल तक कोई टैक्स नहीं लगाना पड़ेगा. आम आदमी को इनकम टैक्स नहीं देना होगा और किसी भी चीज पर कस्टम या सेल टैक्स नहीं लगेगा.
सरकार सभी गांवों को सड़कों से जोड़ना चाहती है. इसके लिए 40 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. अगर स्विस बैंक से ब्लैक मनी वापस आ गया तो हर गांव तक चार लेन की सड़क पहुंच जाएगी.
जितना धन स्विस बैंक में भारतीयों का जमा है, उसे उसका आधा भी मिल जाए तो करीब 30 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जा सकती है. हर हिंदुस्तानी को 2000 रुपये मुफ्त दिए जा सकते हैं. और यह सिलसिला 30 साल तक जारी रहा सकता है. यानी देश से गरीबी पूरी तरह दूर हो सकती है.
पर ऐसा हो इसके लिए पहले भ्रष्टाचार और रिश्वत पर झाड़ू फेरना जरूरी है. पर सवाल वही है आखिर इन पर झाड़ू कब चलेगी?
28 दिसंबर को रामलीला मैदान के इस तारीखी जमीन की कोख में एक ख्वाब बोया गया था. अब उसकी कोपलें फूट रही हैं. पहली बार आपने अपनी हुंकार को सरेआम जीतते देखा हैं. पर वही भ्रष्टाचार कहीं इसे हरा ना दे? क्योंकि डर में लिपटा सवाल अब भी वही है. रग-रग में भर चुका भ्रष्टाचार का नशा हम सब कैसे छोड़ेगे?