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पाकिस्तानी हिंदुओं का सबसे बड़ा मसीहा है ये मुसलमान

सरहद के उस पार से ज्यादातर आतंक और नफऱतों में लिपटी कहानियां ही इधर आती हैं. मगर इस बार कहानी जुदा है और चोट थोड़ी गहरी. पाकिस्तान में पैदा हुए और पले-बढ़े एक पाकिस्तानी मुसलमान की कहानी है ये. एक ऐसे पाकिस्तानी मुसलमान की जो हाल के वक्त में पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं का सबसे बड़ा मसीहा था. वो पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं और ईसाइयों को भी इंसान और इंसानियत के चश्मे से देखने लगा था. बस उसकी इसी गलती की उसे ऐसी सज़ा मिली कि बस पूछिए मत.

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मानवाधिकार कार्यकर्ता जुल्फिकार शाह
मानवाधिकार कार्यकर्ता जुल्फिकार शाह

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सरहद के उस पार से ज्यादातर आतंक और नफऱतों में लिपटी कहानियां ही इधर आती हैं. मगर इस बार कहानी जुदा है और चोट थोड़ी गहरी. पाकिस्तान में पैदा हुए और पले-बढ़े एक पाकिस्तानी मुसलमान की कहानी है ये. एक ऐसे पाकिस्तानी मुसलमान की जो हाल के वक्त में पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं का सबसे बड़ा मसीहा था. वो पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं और ईसाइयों को भी इंसान और इंसानियत के चश्मे से देखने लगा था. बस उसकी इसी गलती की उसे ऐसी सज़ा मिली कि बस पूछिए मत.

सरहद की लकीर के इस पार भी इंसान. सरहद की लकीर के उस पार भी इंसान. इंसान वो भी करोड़ों की गिनती में. मगर ना जाने क्यों और कहां ज्यादातर इंसान अचानक अचानक गुम हो गए. रह गए तो बस हिंदू और मुसलमान. मगर उन्हीं हिंदू-मुसलमान के बीच से उन गुमशुदा इंसानों को वापस ढूंढने निकला एक शख्स फिर ऐसा खोया कि अपना ही पता भूल गया. जुल्फिकार शाह इंसानियत को ढूंढने निकले थे एक ऐसे मुल्क में जहां उसे बरसों पहले गड्ढ़ा खोदकर दफना दिया गया. काम मुश्किल था और रास्ता खतरकनाक.

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जुल्फिकार डरे या हारे नहीं. बल्कि पाकिस्तान में रहते हुए ही उन्होंने अल्पसंख्यक हिंदुओं और ईसाईयों के लिए जेहाद छेड़ दिया. जेहादियों के मुल्क में ये ऐसा जिहाद था जिसमें शामिल होने वालों को जन्नत की हूरों का लालच नहीं दिया गया. वो खुद आए और इतनी तादाद में आए कि जिहाद का कॉपीराइट रखने वाले भी कांप उठे. नफरत की बुनियाद पर खीची गई हिंदोस्तान और पाकिस्तान की कटीली तारों से निकलकर एक ऐसी कहानी सामने आई है जो न सिर्फ आपको हिला कर रख देगी, बल्कि पाकिस्तान का एक ऐसा चेहरा भी आपको दिखाएगी.

दुनिया ने आपको अभी तक पाकिस्तान में सिर्फ बलूचों पर हो रहे जुल्म की कहानी सुनाई है. मगर आज हम सुनाएंगे सिंध की वो दास्तान जो खून में सनी है. ज़िल्लत में लिपटी है. जिन्ना के मुल्लक में जब तालिबानियों ने कब्ज़ा किया तो उन्होंने सबसे पहले सिंध में बसे सिंधी हिंदुओं और ईसाई पर ज़ुल्म ढाए. मज़हब बदलने से इंकार करने पर मर्दों पर गोलियां बरसाई गईं. औरतों की इज़्ज़त को तार तार किया. ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया गया. पाकिस्तान में जब कोई इनका पुरसाने हाल नहीं था. तब इसी पाकिस्तानी मुसलमान ने उनका साथ दिया.

2009 से लेकर 2012 तक ज़ुल्फी ने सिंधी हिंदुओं और ईसाई को बचाने के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी झोंक दी. 3 सालों में एक हज़ार से ज़्यादा रैलियां करके ये पाकिस्तान में बेसहारा हिंदुओं और ईसाइयों के मसीहा बन गए. सिंधियों के हक़ के लिए हैदराबाद से कराची तक रैली निकाली तो उसमें शामिल 50 हज़ार लोगों में से 30 हज़ार हिंदू और 15 ईसाई इनके कदमों से कदम मिलाने के लिए घरों से बाहर निकल आए. डर की बेड़ियां टूटने लगीं. इस आंदोलन का नतीजा आना अभी बाकी था. पाकिस्तानी सेना और हुकमरान इस आंदोलन को तो नहीं दबा पाए.

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उन्होंने ज़ुल्फी की आवाज़ को दबा दिया. पाकिस्तानी हिंदुओ और ईसाई की आवाज़ को बलंद करने का खामियाज़ा ज़ुल्फिकार शाह को उठाना पड़ा. पाकिस्तान से जबरन इन्हें निकाल दिया गया. बेवतन होने के बाद जब ये दरबदर फिर रहे थे. तब बड़े शातिराना तरीके से आईएसआई ने इनकी रगों में वो ज़हर घोल दिया जो कभी भी इनकी सांसों को बंद कर सकता है. एक साथ लोगों के कत्लेआम हुए. लड़कियों और औरतों की इज्जत लूटी गई. जबरन धर्म बदलवाए गए. जमीन पर कब्जे हुए. ये सब इसलिए क्य़ोंकि वो सब पाकिस्तानी अल्पसंख्यक थे.

पाकिस्तान में हिंदू होना गुनाह है. मगर मुसलमान होते हुए भी ज़ुल्फिकार शाह आज उस मुल्क के सबसे बड़े गुनहगार हैं. क्योंकि अल्पसंख्यकों की आवाज़ उठाकर इन्होंने पाकिस्तानी सेना से बैर लिया था. जिसका खामियाज़ा ये आजतक भुगत रहे हैं. आईएसआई ने इन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है. मुल्क से निकाले जाने के बाद भी ज़ुल्फी जहां जहां गए खुफिया कदमों ने पीछा किया. मौका मिलते ही इन्हें वो दर्द दिया गया जिसकी कोई दवा नहीं है. 40 की उम्र में ज़ुल्फी ने बहुत कुछ देख लिया. अब मौत का खौफ भी उन्हें डराता नहीं है.

उनकी ख्वाहिश है तो बस इस बात कि अपनी ज़िंदगी में वो सिंध की आज़ादी देख लें. पाकिस्तानियों से कट्टरपंथियों से. ज़ुल्फिकार की ज़िंदगी का अब एक ही मक़सद है कि वो एक ऐसा सिंध बनाएं जो न हिंदू का हो न मुसलमान. उसमें सिर्फ सिंधी हों. सिंध में रहने वाले सिंधियों को जुल्फी ने कभी हिंदू या मुसलमान के तराजू में नहीं तौला. उनकी हर तकलीफ हर मुश्किल में सबसे पहले खड़े रहने वालों में थे ज़ुल्फी. वो चंद सालों पहले सिंधियों का सबसे बड़ा रहनुमा था. जब सड़क पर उतरते तो एक आवाज़ पर हुजूम होता था.

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पाकिस्तानी संविधान के मुताबिक पाकिस्तान में हर मज़हब के लोग रह सकते हैं. रहते भी हैं. पर बाकी का पता नहीं. लेकिन अगर इन 113 पाकिस्तानी हिंदुओं की मानें तो ये लोग वहां हर रोज मरते हुए जीते हैं. कमोबेश यही हाल वहां रह रहे बाकी हिंदुओं का है. सिंध और कराची में रहने वाले हिंदुओं की हालत सबसे बुरी है. कराची हिंदू पंचायत के मुताबिक हर महीने ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें लड़कियों की इज्जत लूटने के बाद जबरन उनका धर्म परिवर्तन करा कर उनकी शादी कर दी जाती है. पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग खुलासा कर चुका है.

हिंदू लड़कियों का अपहरण होता है. उनके साथ रेप किया जाता है और बाद में कानून से बचने के लिए यह दलील दे दी जाती है कि लडकी ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है. इससे रेप का मामला अपने आप खत्म हो जाता है. क्योंकि जिस पर इल्जाम होता है वो लड़की से जबरन शादी कर चुका होता है. इन 113 लोगों की मानें तो पाकिस्तान की अदालतें भी हिंदू लड़की या उसके परिवार वालों के साथ इंसाफ नहीं करतीं. 12 या 13 साल की लड़की को भी अदालतें घरवालों के संरक्षण में नहीं छोड़तीं. अदालतों को भी कट्टरपंथियों के विरोध का डर रहता है.

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