भारत-चीन के बीच एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर टेंशन अपने पूरे चरम पर है. हालात ऐसे बन रहे हैं जिससे लग रहा है कि कहीं भारत और चीन के बीच 58 साल बाद एक बार फिर जंग ना हो जाए. हालांकि जानकारों के मुताबिक ऐसे हालात कम ही हैं और बीच का कोई ना कोई रास्ता निकल ही आएगा. लेकिन फिर भी अपने दुश्मन को कम आंकना अकलमंदी नहीं कहलाती. इसलिए दुश्मन की ताकत को समझ लेना जरूरी है ताकि मुकाबला होने की सूरत में हम ड्रैगन की चालबाजियों का मुंहतोड़ जवाब दे सकें.
चीन से कम नहीं भारतीय सेना
सैनिकों के मामले में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्मी. 14 लाख से ज्यादा जवान. आधुनिक हथियारों से लैस. देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा. मगर मुकाबला दुनिया की सबसे बड़ी आर्मी से है. करीब 21 लाख से ज्यादा जवान. वो भी आधुनिक हथियारों से लैस. वो भी कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार. यानी मुकाबला कड़ा है. मगर यहां कुछ भी बताने से पहले हम आपको ये साफ कर देना चाहते हैं कि हमारा मकसद जंग को बढ़ावा देना कतई नहीं है. हम बस दुश्मन की ताकत और कमजोरी को बारीकी से समझने की कोशिश कर रहे हैं. क्योंकि सच्चाई से मुंह मोड़ लेने से सच्चाई बदल नहीं जाती है. उसका सामना करना जरूरी है.
चीन भले अपनी आर्मी के कसीदे पढ़े ना पढ़े. मगर वहां की मीडिया दुनिया के सामने अपनी सेना को ऐसे पेश करती है. जैसे वो अजेय है. हालांकि हकीकत में ऐसा कतई नहीं है. कागज पर ड्रैगन सेना भले बड़ी हो. मगर ग्राउंड रियलिटी यानी सच्चाई कुछ और है. क्वांटिटी में भले चीन हमसे 20 हो मगर क्वालिटी में वो हमारे आगे 19 साबित होता है.
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आपको बता दें कि 1962 की जंग के बाद भारत और चीन के बीच कभी आमने-सामने की जंग नहीं हुई. हालांकि इसके बाद कई बार भारतीय सेना की चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई. मगर जितने भी बार भारत चीन से भिड़ा है. उतनी बार हमारी सेना ने चीनी सेना को पीछे ढकेला है. चाहे 1967 हो या 1975 में हो या 80 के दशक के आखिरी सालों में हो. आपको बता दें कि 62 की जंग में भी अगर थोड़ी एहतियात बरती जाती तो उसमें चीन मुंह की खा सकता था.
प्रोपेगेंडा वॉर में यकीन रखता है चीन
चीन दरअसल आमने-सामने की जंग से ज्यादा प्रोपेगेंडा वॉर में यकीन रखता है. क्योंकि चीन को पता है कि भारत से भिड़ने का मतलब अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा. क्योंकि आज भी भारत चीन के लिए सबसे बड़ा बाजार है. बहरहाल, अब आते हैं चीन और भारत की तुलना पर.
कागज पर बात करें तो यकीनन भारत चीन के मुकाबले थोड़ा कम जरूर है. क्योंकि चीन का सेना बजट पिछले पांच सालों में लगातार बढ़ा है. चीन का टारगेट दरअसल पीपुल लिब्रेशन आर्मी (PLA) को 2050 तक हर मामले में दुनिया की सबसे बड़ी आर्मी बनाने का है. भारत, चीन और पाकिस्तान का पिछले 5 साल के मिलिट्री खर्च का ग्राफ है. इसके मुताबिक चीन ने साल 2019 में अपनी सेना 261 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं. जबकि भारत ने 71.1 बिलियन डॉलर अपनी सेना पर खर्च किए हैं. जाहिर है चीन का आकार भारत से बड़ा है और उनके पास विदेशी पूंजी भी ज्यादा है.
भारत और चीन की सैन्य क्षमता
अब आते हैं दोनों मुल्कों की सैन्य ताकत पर. मगर उससे पहले ये जान लीजिए की सेना के हथियारों के नंबर अलग-अलग हो सकते हैं क्योंकि कोई भी देश अपने हथियारों के आंकड़े जारी नहीं करता. जवानों की संख्या को छोड़कर बाकी आंकड़े आंकलन पर होते हैं. ग्लोबल फायर आर्म के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा 14 लाख सक्रिय सैनिक और महज 5 लाख रिजर्व सैनिक चीन के पास हैं. जबकि भारत के 14 लाख सक्रिय सैनिक और देश में रिजर्व सैनिकों की संख्या 21 लाख है. यानी कुल मिलिट्री स्ट्रेंथ की बात करें तो भारत के पास 34 लाख जबकि चीन के पास 27 लाख यानी ड्रैगन सेना से 7 लाख ज्यादा सैनिक हमारे पास हैं.
टैंक की बात करें तो भारत के पास 4292 टैंक हैं जबकि चीन के पास 3400 टैंक हैं. भारत के पास 8600 बख्तरबंद गाड़ियां हैं जबकि चीन के पास 33 हजार हैं. तोपों की बात करें तो भारत के पास 5067 हैं जबकि चीन के पास 9726 तोपें हैं. भारत के पास 290 सेल्फ प्रॉपेल्ड आर्टिलरी हैं जबकि चीन के पास 1710 हैं. रॉकेट आर्टिलरी की बात करें तो भारत के पास सिर्फ 266 हैं जबकि चीन के पास 2650 हैं. भारत के पास कुल 2141 जंगी जहाज हैं. वहीं चीन के पास ये तादाद 3444 है. जिसमें फाइटर एयरक्राफ्ट, मल्टीरोल एयरक्राफ्ट, अटैक एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर शामिल हैं.
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इन आंकड़ों के बाद कुछ फैक्ट्स पर ध्यान देना जरूरी है. सबसे पहला ये कि लद्दाख के जिस गलवान रीजन में ये दोनों सेनाएं आमने-सामने हैं. वो एरिया जंग के लिए बेहद मुश्किल है. पहाड़ी इलाका होने की वजह से वहां पर फिलहाल रोड नहीं है. इसलिए ट्रास्पोटेशन यहां मुश्किल है. इसलिए कुदरती बाधाएं चीन को कोई भी बयाना लेने से वहां रोक रही हैं. लेकिन इसके अलावा जो चीज चीन को पीछे ढकेल सकती है. वो है जंग का तजुर्बा. क्योंकि चीन ने आखिरी बार वियतनाम वार में जंग 1979 में लड़ी यानी 40 साल पहले. मगर उसके बाद उसका कभी किसी से आमना-सामना नहीं हुआ. जबकि भारत इस दरमियान कई जंगें लड़ भी चुका है और जीत भी चुका है. हमने 1999 में करगिल जैसी मुश्किल आखिरी जंग लड़ी. यानी हमने 20 साल पहले ही आखिरी जंग लड़ी है.
चीन को सिर्फ यहीं नुकसान नहीं. बल्कि भारत से भिड़ने का मतलब है कि चीन आर्थिक तौर पर टूट जाएगा. क्योंकि भारत के साथ उसका अरबों-खरबों के व्यापारिक समझौते हैं. जिन्हें एक-एक करके भारत ने खत्म करना शुरु कर दिया है. दूसरी मुश्किल ये है कि कुछ देशों को छोड़कर दुनिया के कई बड़े देश कोरोना के मामले में चीन के खिलाफ पहले से गुस्से में भरे हुए हैं. जिनमें अमेरिका और यूरोपियन देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है. यानी अगर ये लोग भारत के साथ आ गए तो चीन को लेने के देने पड़ सकते हैं.