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भारत का असली 'टाइगर', जिसने बचाई थी 20 हज़ार भारतीय सैनिकों की जान

जिस टाइगर की हम बात कर रहे हैं, भले ही उसका 'टाइगर' फिल्म से कोई नाता हो या ना हो. मगर दुनिया में जब जब दिलेर जासूसों की बात होगी. तब तब इस शख्स का चेहरा सामने आएगा.

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RAW एजेंट रविंद्र 4 साल तक पाकिस्तानी सेना में अधिकारी बन कर रहे थे
RAW एजेंट रविंद्र 4 साल तक पाकिस्तानी सेना में अधिकारी बन कर रहे थे

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पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसी कहती है कि वो दुनिया की सबसे शातिर एजेंसियों में से एक है. जो दुश्मनों को सिर्फ देख ही नहीं लेती बल्कि सूंघ भी लेती है. मगर इतनी शातिर होने के बाद भी पाकिस्तानी एजेंसियां ये फर्क नहीं कर पाई कि हामिद आशिक है या जासूस. जासूस तो वो होते हैं जो घर में दामाद बनकर घुस भी जाएं तो भनक तक न लगने दें. ये कहानी है एक ऐसे ही हिंदुस्तानी जांबाज़ की. जो ऐसा जासूस था जिसने सरहद पार कर ना सिर्फ पाकिस्तानी सरज़मीं पर कदम रखा. बल्कि उनकी सेना में उनका अधिकारी बन कर भारत की मदद करता रहा. ये कहानी है असली टाइगर की. जिसकी जासूसी ने 20 हज़ार भारतीय सैनिकों को शहीद होने से बचाया था.

जिस टाइगर की हम बात कर रहे हैं, भले ही उसका 'टाइगर' फिल्म से कोई नाता हो या ना हो. मगर दुनिया में जब जब दिलेर जासूसों की बात होगी. तब तब इस शख्स का चेहरा सामने आएगा. क्योंकि फिल्मी जासूस बने सलमान खान रील लाइफ के टाइगर तो हो सकते हैं. मगर हिंदुस्तान के इतिहास में अगर कोई असली टाइगर था. तो वो ये शख्स है. जो आज भी लोगों के ज़ेहन में ज़िंदा है. भारतीय खुफिया एजेंसी इंडियन रिसर्च एंड एनेलेसिस विंग यानी रॉ ने उसे खिताब दिया था 'टाइगर'.

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वो टाइगर जो भारत का शेर था. वो टाइगर जिसने अकेले ही पूरे पाकिस्तान को हिला दिया था. वो टाइगर जो हिंदुस्तान की धरोहर था, तो पाकिस्तान के लिए खौफ का दूसरा नाम. वो टाइगर जिसने हंसते-हंसते अपनी जवानी अपनी धरती मां के लिए झोंक दी. वो टाइगर जिसने एक दिन अपनी जिंदगी अपने वतन हिंदुस्तान पर कुर्बान कर दी. मगर उसी हिंदुस्तान ने उसे भुला दिया.

वर्ष 1952 श्रीगंगानगर, राजस्थान

वहां की गलियों में पला बढ़ा था हिंदुस्तान का असली टाइगर. उसका नाम था रविंद्र कौशिक. वो नौजवान जो आगे जाकर हिन्दुस्तान की अस्मत बचाने वाला था. रविंद्र कौशिक के बारे में कहा जाता है कि हिन्दुस्तान के इतिहास में उससे बड़ा जासूस ना कोई हुआ है और ना ही कभी होगा. यहां तक की मुल्क के बड़े से बड़े जासूस भी रविंद्र को अपना गुरू मानते हैं. पाकिस्तान की जेल में जासूसी के आरोप में सजा काट कर आए रूपलाल भी रविंद्र को अपना उस्ताद मानते थे.

रविंद्र कौशिक उर्फ टाइगर की दास्तां जितने खतरों से भरी हुई है, उनके जासूसी की दुनिया में उतरने की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. दरअसल रविंद्र कौशिक को बचपन से ही एक्टिंग करने का शौक था. रविंद्र कौशिक के इस शौक का अंदाजा आप उनकी तस्वीरों को देखकर लगा सकते हैं. हर तस्वीर में एक अलग अंदाज. कहीं रविंद्र कौशिक जीसस बने खड़े हैं तो कहीं मुंह में सिगरेट दबाए रईस की तरह. और यहीं शौक उनके लिए जासूसी की दुनिया का पहला कदम बन गया.

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1972 में रविंद्र कौशिक ने लखनऊ के एक यूथ फेस्टिवल में हिस्सा लिया. इस फेस्टिवल के एक नाटक में रविंद्र एक भारतीय जासूस का रोल निभा रहे थे. जो चीन में फंस जाता है और फिर यातनाएं सहता है. कहते हैं कि रविंद्र कौशिक की एक्टिंग देखकर सेना के कुछ अधिकारी इतने प्रभावित हुए कि उन्हें मिलिट्री इंटेलिजेंस का हिस्सा बना लिया. और रविंद्र को पहले ही मिशन के तौर पर उस मुल्क में भेजा गया जो उस वक्त हिंदुस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन था यानी पाकिस्तान.

माना जाता है कि रविंद्र कौशिक को पाकिस्तान में एक रेजिडेंट एजेंट के तौर पर भेजा गया था. कौशिक का काम था हिंदुस्तान के खिलाफ पाकिस्तानी साज़िश का सुराग हासिल करना. कहते हैं रविंद्र कौशिक का पहला मिशन बेहद कामयाब रहा जिसके बाद 1975 में उसे एक और बड़े मिशन के लिए भेजा गया. और इस बार मिशन के लिए रविंद्र को एक नया नाम दिया गया. वो नाम जो आगे चलकर पाकिस्तान में उनकी सबसे बड़ी पहचान बनने वाला था और वो नाम था नबी अहमद शाकिर.

पाकिस्तान में घुसने के बाद नबी अहमद शाकिर यानी रविंद्र कौशिक ने धीरे-धीरे अपनी पैठ बनानी शुरु की. अपने रहने के लिए ठिकाना चुना लाहौर को. मिशन बहुत बड़ा था लिहाज़ा रविंद्र कौशिक ने लोगों की नज़रों से बचने के लिए लाहौर के एक बड़े कॉलेज में दाखिला भी ले लिया. कहते हैं कि कॉलेज में दाखिला मिलते ही उसके आधार पर जाली दस्तावेज़ बनवाए और उसी कॉलेज से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की.

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एक हिन्दुस्तानी पाकिस्तान में ना सिर्फ अपनी पहचान छिपा रहा था बल्कि वहां की एकेडमिक डिग्री भी हासिल कर रहा था. ज़ाहिर है एक हिंदुस्तानी के लिए पाकिस्तान में ये काम कतई आसान नहीं था. फिर भी एक शातिर जासूस की तरह रविंद्र कौशिक पूरी चपलता से सीढी दर सीढी चढते जा रहे थे. लेकिन रविंद्र का असली मकसद अभी बाकी था. लाहौर में पहचान बनाना और डिग्री हासिल कर लेना तो सिर्फ एक ज़रिया था. क्योंकि हिंदुस्तान के इस टाइगर का असली मिशन तो अब शुरु होने वाला था और ये मिशन था पाकिस्तानी फौज का हिस्सा बनना.

नबी अहमद बनकर रविंद्र कौशिक पाकिस्तान में अपनी नई पहचान बना चुके थे. पूरे पाकिस्तान में कोई नहीं जानता था कि वो एक जासूस हैं. लेकिन ये तो शुरुआत थी, रविंद्र कौशिक अब वो कारनामा दिखाने वाले थे जो बाद में जासूसी की दुनिया में एक अमर कथा बन गया. इसीलिए उन्हे नाम दिया गया टाइगर.

पाकिस्तान में अब हर कोई रविंद्र कौशिक को नबी अहमद के नाम से जान रहा था. रविंद्र कौशिक किसी छलावे की तरह पाकिस्तानी सेना में दाखिल होने के लिए जाल पर जाल बुनते जा रहे थे. तभी पाकिस्तानी सेना में भर्ती शुरू हुई. फर्ज़ी पहचान और कॉलेज की डिग्री टाइगर के काम आ गई.

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एलएलबी की डिग्री के जरिए रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तानी आर्मी में अधिकारी का ओहदा हासिल कर लिया. और इस तरह हिन्दुस्तानी जासूस रविंद्र कौशिक पाकिस्तानी फौज का अधिकारी नबी अहमद बन गया और यहीं से शुरू हुआ टाइगर का असली मिशन. क्योंकि सेना में टाइगर की एंट्री पाकिस्तानी फौज के राज़ पता करने का जरिया बनने वाला था. हमेशा की तरह पाकिस्तान में उस वक्त भी फौज काफी ताकतवर थी और सुरक्षा से लेकर राजनीति तक. हर जगह फौज की घुसपैठ थी. इसीलिए रविंद्र के लिए जानकारियां जुटाना आसान भी था और मुश्किल भी.

पाकिस्तानी फौज में अपनी सर्विस के दौरान नबी अहमद बने रविंद्र ने फौजी हलकों में अपनी पैठ बनानी शुरु की. किसी को उन पर शक ना हो इसके लिए रविंद्र ने वहीं शादी भी कर ली. ऐसा माना जाता है कि रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तानी फौज के एक बड़े अधिकारी की बेटी से निकाह कर लिया था और इसी के साथ रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तानी सेना की नज़र में उस पर शक करने की हर वजह को ही मिटा दिया.

1971 के दौर में भारत-पाक के रिश्ते बेहद खराब था. 1971 की हार से बौखलाई पाक फौज भारत से बदला लेने के लिए लगातार साजिशें रच रही थी. ऐसे में रविंद्र कौशिक की शक्ल में पाकिस्तानी सेना में एक हिन्दुस्तानी का होना एक बहुत बड़ी ताकत था. इधर पाकिस्तान साज़िशें रच रहा था, उधर टाइगर एक-एक पल की ख़बर भारत तक पहुंचा रहा था. इस बात का जिक्र खुद आईबी के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर एम.के. धर ने कौशिक पर लिखी अपनी किताब मिशन टू पाकिस्तान में किया है.

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एम.के. धर के मुताबिक रविंद्र कौशिक हमारे लिए एक धरोहर थे. कौशिक पाकिस्तान में भारतीय इंटेलिजेंस की धुरी बन गए थे. रविंद्र कौशिक की वजह से ही एक बार 20 हजार भारतीय सैनिकों की जान बची थी. और कई बार ऐसे मौके आए जब कौशिक ने भारत के लिए कई अहम जानकारियां भेजीं. और शायद इसी वजह से देश के तत्कालीन गृहमंत्री ने रविंद्र कौशिक को टाइगर का खिताब दिया था.

ऐसे खुला टाइगर का राज

अब तक पाकिस्तान में रविंद्र कौशिक एक मंझे हुए जासूस की तरह काम कर रहे थे. और पाकिस्तानी फौज में हड़कंप मचा हुआ था. किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पाकिस्तानी सेना के सीक्रेट प्लान लीक कैसे हो जाते हैं. टाइगर रविंद्र पर किसी को शक नहीं था लेकिन अपने ही एक हिंदुस्तानी साथी की गलती ने रविंद्र कौशिक उर्फ नबी अहमद की सच्चाई खोल दी. कौशिक के बारे में लिखी गई खबरों के मुताबिक साल 1983 में इनायत मसीह नाम का एक और जासूस पाकिस्तान भेजा गया. जिसे रविंद्र कौशिक की मदद के लिए भेजा गया था. लेकिन इस दौरान मसीह की एक गलत हरकत की वजह से पाकिस्तान फौज को पता चल गया कि कौशिक ही भारतीय एजेंट हैं.

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रविंद्र कौशिक की हकीकत पता चलते ही पाकिस्तानी फौज के हुक्मरानों के होश उड़ गए. उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि कोई भारतीय जासूस उनकी फौज में इतने लंबे वक्त से काम कर रहा था औऱ उनके हर प्लान की जानकारी भारत भेज रहा था. नबी अहमद उर्फ रविंद्र कौशिक की असलियत पता चलते ही पाकिस्तानी फौज ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. फिर लगातार कौशिक को टॉर्चर किया गया. बताया जाता है कि इस दौरान कौशिक को पाकिस्तानी सेना के सियालकोट सेंटर में रखा गया और उनसे राज उगलवाने की कोशिश की गई. लेकिन जैसा नाम था वैसा ही कुछ इस बहादुर का जज्बा था. हिन्दुस्तान का ये टाइगर पाकिस्तानियों के हर जुल्म को सहता रहा. थर्ड डिग्री टॉर्चर को झेलने के बावजूद कौशिक ने मुंह नहीं खोला.

सियालकोट सेंटर में जब पाकिस्तानी सेना को रविंद्र कौशिक से कोई काम की जानकारी नहीं मिली तो 1985 में उन्हें मियांवालां जेल में भेज दिया गया. और तब से लेकर अपनी मौत तक रविंद्र कौशिक मियांवालां जेल में ही रहे. रविंद्र कौशिक के स्वर्गीय भाई के मुताबिक रविंद्र ने ना केवल अपनी बल्कि पाकिस्तानी जेल में बंद बाकी भारतियों की ख़बर भी हिन्दुस्तान पहुंचाई. पाकिस्तानियों के जुल्म और सितम रविंद्र कौशिक की हिम्मत तो नहीं तोड़ पाए लेकिन उनकी सेहत धीरे धीरे खराब होने लगी.

जेल में कैद के दौरान रविंद्र कौशिक दिल की बीमारी और टीबी से पीड़ित हो गए थे, जिसके चलते साल 2001 में उनकी मौत हो गई. भारत मां का ये सपूत तो फर्ज की राह में अपनी जान कुर्बान कर गया, लेकिन अपने पीछे छोड़ गया वो दास्तां जिसने उसे बना दिया हिन्दुस्तान का टाइगर.

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