कभी-कभी कहानियों में भी ऐसे किस्से नहीं मिलते, ठीक वैसे ही जैसे पिछले करीब 12 दिनों से अकेले पूरी दिल्ली पुलिस की किरकिरी करने वाले गोपाल कांडा की दास्तान. खराब रेडियो रिपेयर कर कुछ सौ रुपए महीना कमाने वाला, कब जूते बेचने लगता है और फिर जूते बेचते-बेचते कब नेताओं के पांव की नाप लेकर अपने पांव हवाई जहाज़ में रख देता है, पता ही नहीं चलता. नज़रें आसमान में थीं और निगाहें हवाई जहाज़ पर.
नब्बे के दशक की शरूआत थी. हरियाणा के छोटे से शहर सिरसा में तब गोपाल गोयल कांडा की रेडियो रिपेयर की एक छोटी सी दुकान थी. ज्यूपिटर म्यूजिक होम. इस दुकान से महीने में बमुश्किल कुछ सौ या हजार रुपए की ही आमदनी होती थी. पर कांडा की नजरें अब तक आसमान में हवाई जहाज़ पर गड़ चुकी थीं. लेकिन रेडियो रिपेयर करने की एक मामूली सी दुकान से वो आसमान तक का सफऱ तय नहीं कर सकता था. लिहाज़ा बिना देरी किए कांडा ने अपने ज्युपिटर म्यूजिक होम पर ताला लगा दिया और अपने भाई गोविंद कांडा के साथ मिल कर एक नया धंधा शुरू किया.
इस बार कांडा ने जूते और चप्पल की दुकान खोली, कांडा शू कैंप. दुकान चल पड़ी और फिर दोनों भाइयों ने बिजनेस बढ़ाते हुए खुद जूता बनाने की फैक्ट्री खोल ली. अब दोनों खुद जूता बनाते और अपनी दुकान में बेचते. जूते बेचते-बेचते गोपाल कांडा कइयों के पांव नाप चुका था और उनमें से कई तलवे बिजनेसमैन, बिल्डर, दलाल और नेताओं के थे. राजनीतिक तलवों को नापने की शुरूआत कांडा ने बंसीलाल के बेटे से की.
बंसीलाल के बेटे के करीब आया तो अचानक रुसूख बढ़ना शुरू हो गया. मगर फिर जैसे ही बंसीलाल की सरकार गई तो कांडा ने बिना देर किए ओमप्रकाश चौटाला के बेटों के पांव नापने शुरू कर दिए. सिर पर सियासी हाथ आया तो जूते के वज़न भी बढ़ते गए. मगर अब भी बिजनेस लेनदार और सरकार के बीच झूलते हुए ही करना पड़ रहा था. लिहाज़ा कांडा ने फिर पैंतरा बदला. वो अब राजनीति को कारोबार बनाना चाहता था जबकि उसका भाई गोविंद कारोबार से राजनीति की जुगत में था. कहते हैं कि इसी दौरान एक आई ए एस अफसर सिरसा में आए और उन्हीं अफसर की झोली भर-भर कर कांडा ने व्यापार का अपना दायरा और बढ़ाना शुरू कर दिया. फिर तभी उन अफसर साहब का ट्रांसफर गुड़गांव हो गया.
गुड़गांव की शक्ल बदलने का फैसला पहले ही हो चुका था. इस फैसले के साथ ही गुड़गांव की ज़मीन सोना हो गई थी और ज़मीन वालों की चांदी. हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी हुडा गुड़गांव का सबसे बड़ा ज़मींदार बन चुका था और कांडा के करीबी वो आईएएस अफसर हुडा के बहुत बड़े अफसर बन चुके थे. कांडा की किस्मत का दरवाज़ा अब पूरी तरह से खुलने जा रहा था. लिहाज़ा सिरसा से उसने अपना स्कूटर उठाया और सीधे गुड़गांव पहुंच गया. अब दलाली उसका पेशा बन चुका था. ज़मीन सोना उगल रही थी और वो सोना निगल रहा था. धीरे-धीरे वक्त बीता और फिर साल 2007 में अचानक आई एक खबर ने पूरे सिरसा को चौंका दिया.
गोपाल कांडा ने अपने वकील पिता मुरलीधर लखराम के नाम पर एमडीएलआर नाम की एयरलाइंस कंपनी शुरू कर दी. पर एमडीएलआर एयरलांस के बही-खाते में सही-गलत के हिसाब इतने खराब थे कि कांडा के हवाई सपने हवा हो गए. मुश्किल से दो साल चलने के बाद हवाई जहाज़ ज़मीन पर था और खुद कांडा नई ज़मीन की तलाश में. ज़मीन पर आने के बाद कांडा ने होटल, कैसिनो, प्रापर्टी डीलिंग, स्कूल, कालेज और यहां तक कि लोकल न्यूज चैनल में भी हाथ आज़माया और खूब कमाया. पर इन सबके बीच सिरसा की राजनीति पर हमेशा उसकी नज़रें गड़ी रहीं.
वोट मे नोट इनवेस्ट करते-करते आखिरकार 2009 के विधासभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ही मौदान में कूद पड़ा और चुनाव जीत भी गया. नसीब देखिए कि 90 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 40 सीटें ही मिलीं. निर्दलीय विधायकों ने अपनी-अपनी बोली लगाई और उसी बोली में गोपाल कांडा ने अपनी कीमत वसूली और हरियाणा का गृहराज्य मंत्री बन बैठा. अब कांडा को पुलिस सलाम ठोकती थी. खुद कभी नेताओं और उनके बेटों के गुर्गे रहे कांडा के गुर्गे भी अब शेर थे. सितंबर 2010 में कांडा की कार में सामूहिक बलात्कार हुआ. हालांकि गुर्गे अंदर हुए पर मंत्री जी पर कोई आंच नहीं आई. जुलाई 2011 में क्रिकेटर अतुल वासन की कार ने इनके काफिले को ओवरटेक करने की गुस्ताखी की तो वासन की धुनाई हो गई. मंत्री जी पर तब भी कोई आंच नहीं आई.
मंत्री बनने के बाद से ही कांडा सिरसा का सबसे बड़ा शेर हो चुका था. सिरसा के शू कैंप का नाम बदल कर अब उसने कैंप ऑफिस कर दिया. एमडीएलआर की सेवा बंद हो चुकी थी पर कंपनी चल रही थी और इसके साथ ही चल रही थी करीब 40 दूसरी कंपनियां. पैसा और पावर आया तो साथ में बहुत सी गंदगी भी लाया. कांडा ने अपनी ज्यादातर कंपनियों में लड़कियों को भर्ती करना शुरू कर दिया. छोटी उम्र में ही लड़कियों को बड़े-बड़े पद बांट दिए और इन्हीं में से एक लड़की थी दिल्ली की गीतिका.
2006 में हावई कंपनी में एयरहोस्टेस और केबिन क्रू की भर्ती के लिए गुड़गांव में इंटरव्यू था. उसी इंटरव्यू में कांडा पहली बार गीतिका से मिला और इंटरव्यू खत्म होते ही उसे ट्रेनी केबिन क्रू का लेटर थमा दिया. फिर छह महीने बाद जैसे ही गीतिका 18 साल की हुई उसे एयरहोस्टेस बना दिया. इसके बाद तो गीतिका की तरक्की और वक्त के बीच जैसे रेस लग गई. वक्त से भी तेज गीतिका तरक्की की सीढ़ियां चढ़ती गईं और फकत तीन साल के अंदर कंपनी में ट्रेनी से कंपनी की डायरेक्टर की कुर्सी तक पहुंच गई. ये सब मेहरबानी थी कांडा की. मेहरबानियां बरसती रहीं और गीतिका तरक्की करती गई.
पर फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि गीतिका, कांडा और उसकी कंपनी दोनों से दूर चली गई. उसने दुबई में नौकरी कर ली. पर कांडा ने उसे दिल्ली वापस आने पर मजबूर कर दिया. दिल्ली आने के बाद भी कांडा ने गीतिका का पीछा नहीं छोड़ा और इसी वजह से उसका दम कुछ इस कदर घुटने लगा कि उसने अपना गला ही घोंट लिया. पर मरने से पहले दो पन्नों में गीतिका वो सच लिख गई जिसने पहली बार कांडा को ज़मीन नापने पर मजबूर कर दिया.
हवाई जहाज़ से तो वो पहले ही उतर चुका था. पर उसे अपने जूते को आज़माने का मौका गीतिका के सुसाइड नोट ने ही दिया. 12 दिन तक पुलिस से भागने के बाद आखिरकार कांडा के पैर और जूते दोनों थक गए. और शायद इसी के साथ अब उसकी रफ्तार भी थम जाए. जिस शख्स को पकड़ने के लिए दिल्ली पुलिस ने 12 दिनों से अपने सारे घोड़े खोल रखे थे, जिसकी गिरफ्तारी को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे, उस कांडा को पुलिस उस वक्त भी नहीं पकड़ पाई जब वो एलानिया खुद अपने पैरों पर चल कर थाने की दहलीज़ तक पहुंच चुका था. सच यही है कि कांडा ने भागने से लेकर सरेंडर करने तक सब कुछ ठीक वैसे ही किया जैसा उसने सोचा था.
हम कांडा को बहुत जल्द गिरफ़्तार कर लेंगे, हमारे बेस्ट ब्वॉयज़ इस काम पर लगे हैं. ये मैसेज कमिश्नर साहब ने 17 अगस्त की रात करीब साढ़े दस बजे उस वक्त ट्वीट किया जब ये खबर आई कि कांडा आज रात कभी भी सरेंडर कर सकता है. हर किसी को ये पता था कि कांडा रात के अंधेरे में अगर सरेंडर करेगा तो कहां करेगा? ज़ाहिर है रात को कोर्ट नहीं खुलता और केस नार्थ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट पुलिस के पास था जिनके डीसीपी का दफ्तर अशोक विहार थाने में है. लिहाज़ा खबर ब्रेक करते ही तमाम क्राईम रिपोर्टर जितनी जल्दी पहुंच सकते थे अशोक विहार थाने पहुंच गए. रिपोर्ट्स और न्यूज चैनल के ओबी की हर पल बढ़ती तादाद को देखते हुए मजबूरन थाने के बाहर अब पुलिस वालों की भी तादाद बढ़ने लगी. आला पुलिस अफसरों के रिपोर्टर्स के पास फोन आने लगे कि क्या सच में कांडा सरेंडर करने आ रहा है.
रिपोर्टर्स के अपनी खबर पर डटे रहने के बाद रात ग्यारह बजे के बाद पहली बार पुलिस को लगा कि नहीं खबर में दम है. लिहाज़ा सो चुके या सोने जा रहे पुलिस अफसरों को हड़बड़ा कर उठाया गया और उन्हें पुलिस के भारी जमावड़े के साथ अशोक विहार थाने के बाहर तैनात कर दिया गया ताकि कम से कम कांडा आए तो उसे पकड़ने के लिए पुलिस वाले तो मौजूद हों. वक्त बीतने के साथ अब हालात भी तेज़ी से बदल रहे थे. थाने के बाहर का मंज़र मैदा-ए-जंग की तस्वीर पेश कर रहा था. बस अटपटा ये था कि पुलिस दुश्मन की तरफ बढ़ने की बजाए अपनी जगह खड़ी उसके आने का इंतजार कर रही थी, कमिश्नर साहब के ट्वीट के उलट.
इसके बाद रात 12 बज कर दस मिनट पर नया तमाशा शुरू होता है. कांडा के आने से पहले उसके समर्थक अशोक विहार थाने के बाहर आ धमकते हैं. कांडा के नाम के नारे लगाते हैं और उसके स्वागत के लिए वहीं डट जाते हैं. इस पूरे तमाशे की अगुआई करता है उसी कांडा का भाई. तमाम पुलिसवालों के सामने थाने के बाहर खड़े होकर कांडा का भाई कांडा के यहां पहुंचने और सरेंडर करने का ऐसे एलान करता है जैसे चुनावी रैली में अमूमन किसी बड़े नेता या बड़ी हस्ती के पहुंचने का एलान होता है. हालांकि अब तक पुलिस को शायद सब समझ में आ चुका था. इसीलिए नार्थ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट के तमाम बॉर्डर सील कर दिए गए. अशोक विहार की तरफ़ आनेवाली हर सड़क पर पहरा बिठा दिया गया. जगह-जह बैरीकेड्स लगा दिए गए, लगा कि चलो वैसे नहीं तो ऐसे ही सही. कमिश्नर साहब का ट्वीट सच साबित होगा और कांडा को सरेंडर से पहले ही उनके बेस्ट ब्वायज़ उसे पकड़ लेंगे.
पर वाकई कमाल है कांडा का. जब तक मन किया छुपा रहा और जब छुपते-छुपते बोर हो गया तो अपनी मर्जी से एलान कर पुलिस को चुनौती देते हुए अशोक विहार थाने की दहलीज़ तक पहुंच गया. पर फिर भी पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई. सुबह करीब सवा चार बजे पुलिस को चकमा देने के लिए कांडा अपने न्यूज चैनल की गाड़ी में बैठ कर थाने तक आया और जिस तरह चाहता था उसी तरह सरेंडर किया. कमिश्नर साहब के बेस्ट ब्वायज़ आखिर तक उसे पकड़ नहीं पाए. वैसे यहां एक सवाल और भी है. क्या कांडा ने सरेंडर की खबर जान-बूझ कर मीडिया में लीक की? ताकि खबर सुनते ही मीडिया उसकी बताई हुई जगह पर पहुंचें औऱ वो उसी भीड़ का फायदा उठा कर अपने न्यूज चैनल की गाड़ी में वहां तक पहुंच जाए? अगर ऐसा है तो ये भी सबक है दिल्ली पुलिस के लिए. क्योंकि दिल्ली पुलिस उसे पकड़ने की तरकीब तो नहीं ढूंढ पाई हां, कांडा ने पुलिस तक पहुंचने का रस्ता ज़रूर ढूंढ लिया.
कहते हैं कि कांडा को करीब से जानने वालों ने हमेशा उसे बस एक ही खतरे से आगाह किया, और वो खतरा था लड़कियों के साथ उसकी नजदीकियों का. कांडा हमेशा अपनी कंपनियों में लड़कियों को सबसे आगे रखता. मीडिया को मिली कुछ तस्वीरों में एक किसी सतसंग की हैं जहां स्टेज पर गोपाल कांडा नाच रहा है, वहीं गीतिका उसके साथ सतसंग में शरीक हुई है. इन तस्वीरों से गीतिका और गोपाल की नज़दीकियों का साफ पता चलता है. दरअसल इसे गोपाल कांडा की कमजोरी कहें या शौक लेकिन सच तो ये है कि गोपाल की दिलचस्पी लड़कियों में कुछ ज्यादा ही थी.
अरुणा चड्ढा, नूपुर मेहता, अंकिता और गीतिका शर्मा, ये वो चंद नाम हैं जिन्हे गोपाल कांडा ने अपनी कंपनी में ऊंचे ओहदों पर बैठाया. कम उम्र में बड़ी सैलरी और पैकेज दिए. स्कूल यूनिवर्सिटी और करोड़ों का बिजनेस एंपायर चलाने वाला कांडा लड़कियों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान था. गोपाल कांडा ने एक दो नहीं बल्कि कुल 48 कंपनी बना रखी थीं. इन कंपनियों में बड़ी तादाद में लड़कियों को ऊंचे ओहदों पर काम दिया गया, जिनमें कंपनी डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर और कंपनी सेक्रेटरी जैसी पोस्ट शामिल हैं. गोपाल कांडा की इन अड़तीस कम्पनियों में कई में तो खुद गोपाल कांडा निदेशक है. कांडा की कंपनी ऐ के जी इन्फ्राबिल्ड में गीतिका शर्मा को उप-निदेशक की पोस्ट दी गई थी जबकि अरुणा चड्ढा कंपनी की डायरेक्टर थी.
हैरानी की बात ये है कि ऐ के जी इन्फ्राबिल्ड को गीतिका ने 3 मार्च 2012 में यानि अपनी मौत के कुछ महीने पहले ही ज्वाइन किया था. कांडा ने इन कंपनियों के अलावा कई ट्रस्ट भी बना रखे हैं मसलन एम डी एल आर इंटरनेशनल स्कूल सिरसा. इस स्कूल में भी गीतिका शर्मा ट्रस्टी के तौर पर रजिस्टर्ड थी. कांडा की कंपनी में अरुणा चड्ढा और गीतिका एक दूसरे से कितनी नफरत करती थी उसका जिक्र तो गीतिका के सुसाइड नोट में हैं. अरुणा और कांडा अब दोनों ही पुलिस की गिरफ्त में हैं और पुलिस गीतिका की खुदकुशी की वजह जानने के साथ ही कांडा के करोड़ों के सम्राज्य का हर सच उगलवाने की कोशिश करेगी.