बात अगस्त 2018 की है. राजस्थान के शहर जैसलमेर में एक बाइक रैली का आयोजन किया जाना था. उस रैली में हिस्सा लेने के लिए देश विदेश के तमाम बाइकर्स पहुंचे थे. उन्हीं में से एक था बेंगलुरु का एक नौजवान बाइक रेसर अस्बाक मोन. जो रैली शुरु होने से पहले अचानक कहीं गायब हो जाता है. तीन दिन बाद उसकी लाश बरामद होती है. मामले की छानबीन में पता चलता है कि अस्बाक रास्ता भटक गया था, इसी दौरान भूख प्यास की वजह से उसकी मौत हो गई. घरवालों ने भी किसी पर शक नहीं जताया. लिहाजा आगे जांच नहीं हुई.
दो साल बीत जाते हैं और जैसलमेर पुलिस ये तय करती है कि इस मामले को अब बंद कर दिया जाए. मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगाने के लिए केस फाइल जिले के नए एसएसपी के पास पहुंचती है. एसएसपी मामले की फाइल को एक बार पढ़ने की बात करते हैं. और बस यहीं से बाइक रेसर अस्बाक मौन की मौत के मामले में एक नई कहानी का आगाज़ होता है.
16 अगस्त 2018, जैसलमेर, राजस्थान
देश के पश्चिमी छोर पर बसे उस रेगिस्तानी शहर में पर्यटकों का ही नहीं बल्कि दुनिया भर के रैली स्पोर्ट्स से जुड़े एथलीट्स का एक अजब सा लगाव रहा है. जैसलमेर के उतार-चढ़ाव भरे रेतीले धोरों के बीच हर साल होनेवाली मोटरसाइकिल रैली में हिस्सा लेने बीसियों बाइकर देश कोने-कोने से पहुंचते हैं. बेंगलुरु के रहनेवाले इंटरनेशनल बाइकर अस्बाक मोन भी उस साल अपने दोस्तों के साथ इस रैली में भाग लेने यहां पहुंचे थे. रैली से पहले 15 अगस्त को उन्होंने दोस्तों के साथ ही राइडिंग ट्रैक का जायज़ा लिया था और फिर अगले ही दिन वो अपने तीन से चार दोस्तों के साथ इसी ट्रैक पर प्रैक्टिस के लिए निकल गए थे.
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मगर 16 अगस्त को सुबह से शाम हो गई. एक-एक कर अस्बाक के सारे साथी शहर में अपने-अपने कैंप में वापस लौट आए, लेकिन अस्बाक का कोई पता नहीं चला. और तो और उनका मोबाइल फ़ोन भी लगातार आउट ऑफ रीच आ रहा था. और ऐसे में उनका इंतज़ार करने के सिवाय खुद उनके दोस्तों के पास भी कोई चारा नहीं था. अगले दिन बात पुलिस तक पहुंची और पुलिस के साथ-साथ खुद मोन के दोस्तों ने भी उनकी तलाश शुरू की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस तरह दो दिन गुज़र गए और आख़िरकार 18 अगस्त को वो हो गया, जो बेहद अफ़सोसनाक था. सुनसान रेगिस्तान में मोन की तलाशी में जुटे उसके दोस्तों की नज़र रेगिस्तान के रेतीले धोरों के बीच पड़ी मोन की लाश पर गई. जो तेज़ गर्मी और शुष्क हवा की वजह से काफ़ी हद तक ख़राब हो चुकी थी. मोन की लाश के पास ही उनकी बाइक भी स्टैंड पर खड़ी थी और बाइक में मोन का हेलमेट भी लटक रहा था.
ना तो मोन की बाइक पर, ना उनके जिस्म पर और ना ही ज़मीन पर ऐसे कोई निशान थे, जिसे देख कर ये अंदाज़ा लगाया जाता कि मोन की मौत किसी सड़क हादसे में हुई हो. बल्कि उनकी बाइक जिस तरह से स्टैंड पर खड़ी थी और उसमें उनका हेलमेट भी लटक रहा था, उसे देख कर लगता था जैसे मोन ने खुद ही अपनी बाइक वहां पार्क की हो और फिर किसी वजह से इसी जगह पर उनका सफ़र हमेशा-हमेशा के लिए थम हो गया हो. पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन इससे पहले ही ये अनुमान लगाया जाने लगा कि शायद मोन की मौत रेगिस्तान में रास्ता भटक जाने के बाद भूख-प्यास की वजह से हो गई हो.
मोन की मौत की ख़बर जैसलमेर से 2000 किलोमीटर दूर उनके घर बेंगलुरु भी पहुंची और अपने पती की मौत की खबर पाकर उनकी बीवी सुमेरा भी जैसलमेर आ पहुंची. लेकिन तो मोन की किसी से कोई दुश्मनी ती और ना ही उनकी मौत को लेकर किसी को कोई शक-ओ-शुबहा ही था. ऐसे में सुमेरा ने भी जैसलमेर पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में बताया कि उनके पति की मौत रेगिस्तान में भूख प्यास की वजह से ही हो गई होगी और इस मामले में उन्हें किसी पर भी कोई शक नहीं है. ऐसे में पुलिस ने भी इस मामले की जांच में ज़्यादा रुचि नहीं ली और आख़िरकार इस मामले को बंद करने का फैसला ले लिया गया. हालांकि इस क़ानूनी कार्रवाई में दो साल गुज़र गए.
दो साल में जैसलमेर के पुलिस अफ़सरों की टीम बदल चुकी थी. जैसलमेर के मौजूदा एसपी अजय सिंह के पास जब मोन की रहस्यमयी मौत से जुड़ी फाइल क्लोज़र रिपोर्ट के लिए पहुंची, तो उन्होंने मामले को फुल एंड फाइनल करने से पहले एक बार पूरी गहराई से पढ़ने का फ़ैसला किया. लेकिन इसी कड़ी में जब उनकी नज़र अस्बाक मोन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखी बातों पर गई, तो वो हैरान रह गए.
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अस्बाक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कई ऐसी चीज़ें लिखी थीं, जो इस बात की तरफ़ इशारा कर रही थी कि उनकी मौत रेगिस्तान में रास्ता भटकने और भूख प्यास की वजह से नहीं हुई. क्योंकि अव्वल तो उनके पेट में डॉक्टरों को सेमी डाइजेस्टेड फूड मिला था. यानी अधपचा खाना और मेडिकल एक्सपर्ट्स की मानें तो जब तक इंसान के पेट में सेमी डाइजेस्टेड फूड मौजूद हो, उसकी मौत कम से कम भूख की वजह से तो बिल्कुल नहीं हो सकती. ऊपर से जिस दूसरी चीज़ ने पुलिस को हैरान किया, वो था मोन की सर्वाइकल वर्टिब्रा यानी रीढ़ या गर्दन की हड्डी में चोट के निशान.
असल में मोन की गर्दन की हड्डी टूटी हुई थी और यही उनकी मौत की वजह भी नहीं थी. क्योंकि आम तौर पर ऐसी चोट लगने की हालत में या तो ज़ख्मी शख्स की फौरन मौत हो जाती है या फिर वो पैरालिसिस का शिकार हो जाता है और चलने-फिरने के काबिल नहीं रहता. लेकिन जब मौका-ए-वारदात पर एक्सीडेंट जैसी कोई बात नज़र ही नहीं आ रही थी. उनकी मोटरसाइकिल भी उनकी लाश के पास ही स्टैंड पर खड़ी थी, तो फिर सवाल ये था कि आख़िर उनकी गर्दन की हड्डी कैसे टूटी? और इन्हीं बातों ने जैसमेलर के एसपी अजय सिंह को इस मामले की नए सिरे से जांच करने की वजह दी और उन्होंने डीएसपी भवानी सिंह को इस मामले में की नए सिरे से तफ्तीश करने का हुक्म दिया.
अब पुलिस ने नए सिरे से मामले की तफ़्तीश शुरू की और अस्बाक मोन के इर्द-गिर्द मौजूद लोगों के बारे में पता लगाने लगी. पुलिस को पता चला कि मोन की अपनी पत्नी के साथ रिश्ते कोई बहुत अच्छे नहीं थे. बल्कि सच्चाई तो ये थी कि एक बार मोन की पत्नी ने किराये के गुंडों से मोन की पिटाई तक करवाई थी. ऊपर से जब पुलिस ने मोन के घरवालों से बात की, तो उन्होंने भी मोन की पत्नी पर ही अपने पति के क़त्ल का इल्ज़ाम लगाया और कहा कि वो मोन को पसंद नहीं करती थी. इस तरह की शुरुआती जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मोन की पत्नी सुमेरा के साथ-साथ उस रोज़ रैली के लिए वहां पहुंचे मोन के दोस्तों के मोबाइल फ़ोन की कॉल डिटेल्स और लोकेशन की जांच करने का फ़ैसला किया. इस कोशिश में पुलिस को कई और बातें पता चली.
पुलिस ने देखा कि मोन की पत्नी सुमेरा नीरज नाम के किसी और लड़के के साथ अफ़ेयर भी चल रहा था. अक्सर मोन और उसकी पत्नी के बीच मोन की प्रॉपर्टी को लेकर झगड़ा भी होता था. अब पुलिस ने रैली वाले दिन को रीविज़िट करने का फ़ैसला किया. छानबीन से पता चला कि उस साल रैली के लिए अस्बाक मोन अपने पांच दोस्तों के साथ वहां पहुंचा था. उनकी टीम में संजय, विश्वास एसडी और साबिक नाम के तीन दोस्तों के अलावा दो विदेशी बाइकर भी थे. रैली से पहले अस्बाक के दोस्तों ने दो रूट्स पर प्रैक्टिस करने का फैसला किया था. और साज़िशन क़त्ल में शामिल दोस्तों ने अस्बाक के साथ एक रूट पर जाने का फ़ैसला किया और बाकी दो विदेशी बाइकरों को दूसरे रूट पर रवाना कर दिया. इसके बाद अस्बाक तो गायब हो गए, लेकिन बाकी दोस्त एक-एक कर शहर लौट आए. और ये भी उन पर शक करने की एक बड़ी वजह थी.
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अब पुलिस ने इन तमाम सबूतों की रौशनी में अस्बाक की बीवी सुमेरा और उसके दोस्तों को गिरफ्तार करने का फ़ैसला किया. लेकिन कई बार नोटिस भिजवाने के बावजूद बेंगलुरु से ना तो उनकी बीवी सुमेरा जैसलमेर आई और ना ही उनके क़ातिल दोस्त ही राजस्थान पहुंचे. और तब जैसलमेर पुलिस की एक टीम बेंगलुरु गई और वहां से संजय और विश्वास एसडी को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि काफ़ी कोशिश के बावजूद उनका तीसरा दोस्त साबिक और आरोपी बीवी सुमेरा अब भी पुलिस की पकड़ से दूर है. लेकिन गिरफ्तार आरोपियों ने पुलिस की पूछताछ में जो कहानी सुनाई है, वो जहां दोस्ती के नाम पर भरोसे के क़त्ल की एक अफ़सोसनाक मिसाल है, वहीं उसने अस्बाक मोन की बीवी और दूसरे क़ातिल दोस्त की मुसीबत भी बढ़ा दी है.
पत्नी ही निकली कत्ल की मास्टरमाइंड
पुलिस की मानें तो इस क़त्ल की मास्टरमाइंड अस्बाक की बीवी सुमेरा ही है. जिसने उसके तीन दोस्तों संजय, विश्वास और साबिक को उसके क़त्ल की सुपारी दी थी और तीनों उसकी जान लेने के लिए ही उसे जैसलमेर लेकर आए थे. असल में अस्बाक के पास बेंगलुरु और दुबई में अच्छी खासी प्रॉपर्टी है. सुमेरा अस्बाक को तो नहीं चाहती थी, लेकिन उसकी नज़र उसकी प्रॉपर्टी पर थी. यही वजह है कि उसका अफेयर किसी और के साथ होने के बावजूद उसने अस्बाक को तलाक देने की बजाय उसका क़त्ल करवाने का फैसला किया. और अस्बाक के गद्दार दोस्त पहले तो साज़िशन उसे जैसलमेर लेकर आए और फिर सुनसान रेगिस्तान में ले जाकर उसकी गर्दन मरोड़ कर उसकी हत्या कर दी और फिर होटल में लौट कर उसकी गुमशुदगी का ऐसा ड्रामा करने लगे, मानों किसी को कुछ पता ही ना हो कि अस्बाक मोन की मौत कैसे हुई. लेकिन आख़िरकार तीन साल बाद जब मामले की नए सिरे से तफ्तीश हुई तो सच्चाई सामने आ गई.
और अब तकरीबन साढ़े चार साल बाद राजस्थान पुलिस ने आख़िरकार अस्बाक के क़त्ल की मास्टरमाइंड बीवी को बेंगलुरू से गिरफ्तार कर लिया. वो अब तक अपने मोबाइल फ़ोन का सिम बदल-बदल कर और लोकेशन चेंज कर पुलिस को छका रही थी. लेकिन लगातार पीछा करती पुलिस ने आख़िरकार उसे दबोच गही लिया. फिलहाल इस क़त्ल का एक और मुल्ज़िम साबिक पुलिस की पकड़ से बाहर है, शाहगढ़ थाना पुलिस उसकी तलाश में जुटी है.
(जैसलमेर से विमल भाटिया के साथ लोकेंद्र सिंह का इनपुट)