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खौफ में जीने को मजबूर हैं इराक में बंधक बने हिंदुस्‍तानी

इराक गृहयुद्ध की आग में जल रहा है और वहां हिंदुस्तानियों की जान आफत में फंसी है. लोग इस कैदखाने से निकलने के लिए बेकरार हैं, जबकि आईएसआईएस के आतंकी इन पर रोज जुल्म ढा रहे हैं.

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इराक गृहयुद्ध की आग में जल रहा है और वहां हिंदुस्तानियों की जान आफत में फंसी है. लोग इस कैदखाने से निकलने के लिए बेकरार हैं, जबकि आईएसआईएस के आतंकी इन पर रोज जुल्म ढा रहे हैं.

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बंधक हिंदुस्तानियों को इराक के बसरा शहर में रखा गया है. ये लोग अपनी जान बचाने के लिए मदद की गुहार लगा रहे हैं. जिन लोगों ने इन्हें बंधक बनाकर रखा है, वे इन्हें रोज मारपीट करके काम करवाते हैं. आलम यह है कि इन्हें काम कराने के एवज में कोई सैलरी नहीं दी जाती है. इतना ही नहीं, इन लोगों की तबीयत बिगड़ने पर कोई मेडिकल मदद भी मुहैया नहीं कराई जाती.

दूसरी ओर, भारत में इराक के राजदूत तहसीन अहमद ने भरोसा दिलाया है कि सभी बंधक भारतीय सुरक्षित हैं. उनके मुताबिक, उनकी सरकार ने सभी हिंदुस्तानियों से अपील की है कि वो घरों के अंदर ही रहें और बाहर न निकलें, क्योंकि इराक के जिन शहरों और इलाकों में सेना और आतंकवादियों के बीच जंग छिड़ी हुई है, वहां पर इराकी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है.

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सिर पर मौत और दिल में ख़ौफ लिए बसरा में 40 हिंदुस्तानी फंसे पड़े हैं. कुछ खुशकिस्मत ऐसे भी हैं, जो किसी तरह से अपनी जान बचाकर इराक से वापस आए हैं. लेकिन अभी भी देशभर में कई घर ऐसे हैं, जहां मातम पसरा है. उन्हें तो बस एक ही चिंता है कि उनका परदेसी कब घर वापस आएगा.

पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले जसवंत गुरुवार को ही इराक से वतन लौटे हैं. जान तो बच गई, लेकिन उनका सपना चूर-चूर हो गया. कर्ज लेकर पैसा कमाने वे इराक गए थे. पूरा परिवार आस लगाए था, पर इराक में हालात ऐसे बिगड़े कि इस सदमे में उनके बड़े भाई गुजर गए.

28 साल के नेमतुल्लाह भी उन किस्मत वालों में हैं, जो वार जोन से जिंदा लौट आए. बिहार के गोपालगंज के रहने वाले नेमतुल्लाह इराक के मैशी में काम रहे थे. उन्हें कमरे में बंद कर रखा जाता था. बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी. वे बार-बार घर जाने की मिन्नतें मांग रहे थे, लेकिन कंपनी उन्हें पासपोर्ट तक देने को तैयार नहीं थी.

जसवंत और नेमतुल्लाह के घरों से दहशत के बादल तो छंट गए, लेकिन उन घरों में सन्नाटा पसरा है, जिनके अपने इराक में बंधक हैं. अमुतसर के गांव काथू नांगल में ऐसे कई परिवार हैं, जिनका बस भगवान का सहारा है.

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अमेरिका से मदद की गुहार लगा रहा इराक
इराक ने एक बार फिर अपने भविष्य के लिए अमेरिका की तरफ देखा है. दुनिया भी वहां के खराब होते हालात के लिए अमेरिका को ही देख रही है, क्योंकि अमेरिका ने जिस तरह से ढुलमुल रवैया अख्तियार किया था, उसने पूरी दुनिया को परेशानी में डाल दिया था. लेकिन जैसे ही अमेरिका ने कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया, इराक की फौज का हौसला अचानक कई गुना बढ़ गया. आलम यह है कि बैजी की रिफाइनरी आतंकियों के कब्जे से वापस लेने के लिए इराकी फौज ने मुहिम तेज कर दी.

इराक की तस्वीरों को देखकर दुनिया दहल रही है. सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी इराक पर टकटकी लगाए बैठा है. दुनिया के तमाम मुल्क चुपचाप इराक में पैदा हुए हालात के साथ-साथ अमेरिका की तरफ भी देख रहे हैं. इस उम्मीद में कि इस बिगड़े हुए हालात को वो आगे बढ़कर सुधारने की कोशिश करे.

सुन्नी विद्रोहियों ने फालूजा और रामादी जैसे इलाकों पर कब्जा तो बहुत पहले ही कर लिया था. मोसुल और तिकरित से भी विद्रोहियों की भीड़ ने इराकी फौज को शहर से बाहर खदेड़ दिया. आलम यह है कि बैजी में इराक की सबसे बड़ी रिफाइनरी को आतंकियों की चंगुल से छुड़ाने के लिए पिछले तीन दिनों से इराकी फौज जमकर गोलाबारी कर रही है. लेकिन आतंकियों की टुकड़ियों ने फौज को शहर के बाहर ही रोके रखा है.

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जाहिर है, इराक के हालात हर गुजरते पल के साथ और भी खराब होते जा रहे हैं. यह बात खुद अमेरिका भी जानता है कि इन बिगड़े हुए हालात के लिए दुनिया उसे ही सवालों के दायरे में ले जाकर खड़ा कर सकती है. लिहाजा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मौके की नजाकत के मुताबिक कहा कि जरूरत पड़ी, तो अमेरिका कार्रवाई के लिए आगे बढ़ सकता है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इराकी सेना की मदद करने का ऐलान कर दिया है.

अमेरिका की तरफ से फौजी कार्रवाई का भरोसा मिलते ही इराकी फौज का हौसला बढ़ गया और उसने उत्तरी बगदाद को सुन्नी आतंकियों से बचाने के लिए अपनी मुहिम तेज कर दी. नतीजा ये हुआ कि समारा के नजदीक बगदाद से 100 किलोमीटर दूर इराकी फौज ने आईएसआईएस के आतंकियों को पीछे धकेलने में कामयाबी पा ली. इस कामयाबी का असर यह हुआ कि समारा में इराकी फौज को मजबूत करने के लिए सरकार ने 50 हजार से ज्यादा सैनिकों को भेजने का फैसला किया है.

लेकिन पिछले हफ्ते जिस रफ़्तार से इराक में हालात बने और सुन्नी आतंकी एक के बाद इराकी इलाकों को अपने कब्जे में लेकर आगे बढ़ते दिखाई दिए, तो अमेरिका के सामने हरकत में आने का जो सवाल खड़ा हुआ, उसे अब ज्यादा देर तक टालना उसके बस में भी नहीं रह गया है.

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