पिछले दस महीनों से फ्रीजर में बंद संत आशुतोष महाराज की समाधि को लेकर अब नए सवाल खड़े हो गए हैं. सवाल खड़े करने वाला भी कोई और नहीं, बल्कि कभी उनका ही करीबी और राजदार रहा एक ऐसा शख्स है, जिसने अदालत में भी इस समाधि को चुनौती दे रखी है.
जी हां, ये शख्स कोई और नहीं, बल्कि आशुतोष महाराज का ड्राइवर पूरन सिंह है, जो कभी साए की तरह महाराज के साथ चिपका रहता था. अब यही पूरन सिंह महाराज की समाधि पर बोल रहा है. और ना सिर्फ़ बोल रहा है, बल्कि डंके की चोट पर बोल रहा है.
पूरन सिंह के इस खुलासे ने महाराज के समाधि के इस रहस्य को कुछ और गहरा कर दिया है. क्योंकि वो कह रहा है कि महाराज, तो समाधि में गए ही नहीं. बल्कि कुछ साधकों ने ही गद्दी और जायदाद की लालच में उनकी जान ले ली. क्योंकि इन साधकों को ये डर था कि अगर महाराज कुछ दिन और ज़िंदा रहे, तो अपनी अरबों की जायदाद साधकों को नहीं, बल्कि अपने बेटे दिलीप कुमार झा को ही दे कर चले जाएंगे.
वैसे पूरन सिंह सिर्फ़ दावा ही नहीं कर रहा. बल्कि अपने इस दावे के हक में उसके पास कई दलीलें भी हैं, जो सोचने पर मजबूर करती हैं. पूरन सिंह की माने, तो अपनी मौत से पहले आशुतोष महाराज अपने बेटे दिलीप कुमार झा के संपर्क में आ गए थे. और तकरीबन साल भर से दोनों अक्सर फोन पर लंबी बातें किया करते थे. लेकिन खुद महाराज को अपने बेटे के साथ उनकी नज़दीकियों से कुछ साधकों के जलने का अहसास था.
इसी वजह से वो जब भी अपने बेटे से बात करते, तो छद्म नाम का इस्तेमाल करते. यानी वो अपने बेटे को कभी उसके असली नाम यानी दिलीप के नाम से नहीं. बल्कि हरिदत्त के नाम से पुकारा करते थे. दूसरे लफ्ज़ों में कहें तो अपने ही साधकों को उलझाने के लिए खुद आशुतोष महाराज ने अपने बेटे को ये छद्म नाम दे रखा था.
इसी बीच एक रोज़ महाराज और उनके बेटे ये भेद उनके साधकों के बीच खुल गया और बस इसी रोज़ उसी आश्रम में उनके मौत की साज़िश रच ली गई, जिस आश्रम का ईंट-ईंट उन्होंने खुद अपने हाथों से जोड़ा था. महाराज के अरबों की जायदाद पर निगाह गड़ाए बैठे कुछ साधकों उन्हें मौत के घाट उतार दिया और आनन-फानन में समाधि का ड्रामा शुरू कर दिया गया.
पूरन सिंह की माने तो वो अब अपने इसी दलील के हक में हाईकोर्ट की डबल बेंच में नए सिरे से अर्जी दाखिल कर महाराज की लाश का पोस्टमार्टम करने और उनकी डीएनए टेस्ट करवाने की भी मांग करेगा, ताकि कत्ल की वजह के साथ-साथ उनका अपने बेटे के साथ रिश्ता भी साफ हो सके.
वैसे पूरन सिंह एक और भी सवाल करता है. उसका कहा है कि अगर वाकई महाराज समाधि में हैं, तो फिर उनके जिस्म पर कब्जा जमाए बैठे कुछ साधकों ने 29 जनवरी 2013 के बाद क्यों एक बार भी दूसरे लोगों को महाराज की समाधि तक जाने नहीं दिया? आखिर क्यों इन साधकों ने महाराज की एक तस्वीर तक दुनिया के सामने जारी नहीं की? जबकि इस तथाकथित समाधि तक वे खुद अक्सर आते जाते हैं.
कहने का मतलब साफ है कि महाराज समाधि में नहीं हैं, बल्कि उनकी जान लेकर उनकी लाश को ही डीप फ्रीज़र में डाल दिया गया है.