हिंसा की आग में झुलस कर लहूलुहान हो गया है उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर जिला. लेकिन इस शहर के जिस्म पर इसकी जिस आदत ने सबसे ज्यादा जख्म दिए हैं, वो है यहां के लोगों का अस्लहों से लगाव. जायज और नाजायज हथियारों से अपना नाता जोड़ कर खुश होने और अस्लहों में स्टेटस सिंबल ढूंढ़ने वाले जिला मुजफ्फरनगर की सिसकियां तो वक्त के साथ थम जाएंगी, लेकिन अस्लहों की ये भूख कब और कैसे थमेगी, कोई नहीं जानता.
नाजायज अस्लहों की फैक्ट्री की सच्चाई...
मुजफ्फरनगर में जबसे ये खूनखराबा शुरू हुआ है, तबसे बंद कमरे में चलती मौत की फैक्ट्री ज्यादा से ज्यादा हथियार उगलने में लगी हैं. यानी जितने ज्यादा हथियार उतनी मोटी कमाई. जाहिर है फैक्ट्रियों से चंद लोगों की रोजी-रोटी यानी जिंदगी भी चलती है.
लेकिन जब इसी फैक्ट्री से निकलने वाले हथियारों का मुंह खुलता है, तो फिर जो एक चीज इंसान के हाथ लगती है, वो है मौत और सिर्फ मौत. दरअसल, यूपी के मुजफ्फरनगर में मौजूद अवैध हथियारों की फैक्ट्री हैं, जिन्होंने इस जिले को बारुद की ढेर पर बिठा दिया है.
मुजफ्फरनगर में नाजायज अस्लहे की केवल एक ही फैक्ट्री नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों फैक्ट्रियों में एक है, जो सालों से इस इलाके में लोगों के बीच मौत बांटती रही हैं. मगर, अफसोस तमाम तरक्की और तहजीब के दावों के बावजूद इस इलाके में आज भी हथियारों का शौक लोगों को जिंदगी से भी ज्यादा अजीज है.
हिंसा की आग में झुलसे इस शहर ने अगर इस बार 35 से ज्यादा लोगों की जिंदगियां गंवाई हैं, तो उनमें आधे से ज्यादा लाशों पर ऐसे ही नाजायज अस्लहों से निकली मौत की मुहर छपी है. हाल ही में आजतक के एक स्टिंग ऑपरेशन में दिखी मुजफ्फरनगर की भयावह तस्वीरें और अब हिंसा के बाद मौत का मातम दरअसल इन्हीं फैक्ट्रियों के निकले प्रोडक्ट का अंजाम है.
जाहिर है, इन फैक्ट्रियों का असर अब बेशक अब दिख रहा हो, लेकिन इसकी जमीन तभी तैयार हो गई थी, जब कुकुरमुत्तों की तरह ये फैक्ट्रियां मुजफ्फनगर में उगती रहीं और प्रशासन कान में तेल डाल कर सोता रहा.
मुजफ्फरनगर के हर घर में है हथियार...
कहते हैं इस देश में मुजफ्फरनगर ही वो जगह है, जहां हर गांव और हर घर में कोई ना कोई हथियार जरूर है. फिर चाहे वो हथियार जायज हो या फिर नाजायज. लेकिन अस्लहों से यही लगाव अब इस शहर की गंगा-जमुना तहजीब और जिंदगी पर भारी पड़ने लगा है. तभी तो ताजी हिंसा से बिछी ज्यादातर लाशों पर नाजायज अस्लहों से निकली गोलियों के निशान हैं.
मुजफ्फरनगर का जिला गाजियाबाद से रिश्ता...
आखिर मुजफ्फनगर की हिंसा का जिला गाजियाबाद से क्या रिश्ता है? बस, इसी एक सवाल ने इन दिनों कानून के मुहाफिजों की नींद उड़ा दी है. और नींद उड़ने की वजह है, गाजियाबाद में हुई कारतूसों की रिकॉर्ड बिक्री. जबसे मुजफ्फनगर में हिंसा हुई है, गाजियाबाद में गोलियों का बाजार गर्म हो गया है. क्या ये महज इत्तेफाक है या फिर कुछ और?
ये इत्तेफाक या कुछ और?
ये इत्तेफाक है या कुछ और. लेकिन हक़ीकत यही है कि मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा के बाद गाजियाबाद में कारतूसों की बिक्री में जो तेजी आई है, जिसने अब तक के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. अब सवाल ये उठता है कि मुजफ्फरनगर को हिंसा की आग में झोंकनेवाले लोग ही तो कहीं गाजियाबाद से ताबड़तोड़ कारतूसों की खरीद नहीं कर रहे? जिनका इस्तेमाल वहां वैध और अवैध हथियारों में किया जा रहा है? इसी फिक्र के चलते अब गाजियाबाद प्रशासन ने इन बिक्रियों की जांच शुरू कर दी है.
गाजियाबाद में अस्लहों की कुल 15 दुकानें हैं. और इनमें से आठ दुकानों में कारतूसों की बिक्री अचानक से बढ़ी है. बल्कि ना सिर्फ बढ़ी है, सबसे ज्यादा मांग 315 बोर और 12 बोर के कारतूसों की हो रही है. जबकि मुजफ्फरनगर में हुई हिंसा में इन बोर के अस्लहों के इस्तेमाल की बात भी सामने आई है. ऐसे में पुलिस के कान खड़े होना लाजिमी है.