शहाबुद्दीन जेल में बंद है. लेकिन नई महागठबंधन सरकार बनते ही उनका सिक्का फिर चलने लगा. पहले जेल में मंत्री मिलने गए. फिर आरजेडी ने पार्टी की एक्जिक्यूटिव कमेटी में शामिल कर लिया और अब चुनावी हिंसा से लेकर कत्ल तक में शहाबुद्दीन का नाम उछल रहा है.
पत्रकार राजदेव रंजन की हत्याकांड में सीवान के माफिया डॉन शहाबुद्दीन का कनेक्शन सामने आने से बिहार में महाजंगल राज के नारे भी गूंजने लगे हैं. शहाबुद्दीन जेल में बंद है. कत्ल के मामले में उसे उम्र कैद की सजा हुई है. लेकिन उसका रूतबा क्या है, वो अब साफ होता जा रहा है.
हालही में जेल में बंद शहाबु्द्दीन के साथ नीतीश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अब्दुल गफूर दिखे गए. आरोप है कि 6 मार्च को मंत्रीजी के साथ आरजेडी विधायक हरिशंकर यादव भी मौजूद थे. ये मुलाकात जेल मैनुअल की धज्जियां उड़ाते जेल सुपरिंटेंडेंट के दफ्तर में हुई.
इस मुलाकात पर सवाल उठते ही जांच का लॉलीपॉप थमा दिया गया. लेकिन इससे ये साफ हो गया कि सीवान का ये माफिया डॉन जेल में रहते हुए भी क्या अहमियत रखता है. दरअसल, शहाबुद्दीन पॉलीटिक्स और क्राइम के गठजोड़ का एक ऐसा चेहरा है, जिसने इसकी शुरूआत की थी.
कभी बिहार की सियासत में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी. सीवान में शहाबुद्दीन की मर्जी के बगैर पत्ता तक नहीं हिलता था. जेल में रहते हुए चुनाव तक जीत गया. लालू यादव की गद्दी जाते ही उसका आतंक कुछ हद तक कम हुआ. मर्डर केस में सजा होते ही चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई.
लेकिन पत्रकार की हत्या ने एक बार सीवान को पुराने शहाबुद्दीन की याद दिला दी. इस कत्ल में भी मॉडस ऑपरेंडी वही पुराना है. अब देखना है कि क्या पत्रकार हत्याकांड की जांच के लपेटे में शहाबुद्दीन भी आता है? हालात ये है कि पंचायत चुनाव में भी शहाबुद्दीन का नाम उछल रहा है. लेकिन सरकार मौन है.