उत्तर प्रदेश का मोस्ट वॉन्टेड अपराधी विकास दुबे आखिरकार कानून की गिरफ्त में आ ही गया. उसने मध्य प्रदेश जाकर उज्जैन में पुलिस के सामने सरेंडर किया. इसके बाद एमपी पुलिस उसे गिरफ्तार कर लिया. अमूमन अपराधी एनकाउंटर के डर से ही कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करते हैं. जाहिर है यूपी के शातिर अपराधी विकास ने भी ऐसा ही किया. क्योंकि यूपी की पुलिस शिद्दत से उसे तलाश कर रही थी. माना जा रहा था कि अगर विकास यूपी पुलिस के हाथ आता तो उसका एनकाउंटर तय था.
अब सवाल उठ रहा है कि यूपी के मोस्ट वॉन्टेड विकास दुबे का मध्य प्रदेश में सरेंडर करना या गिरफ्तार होना, उसके लिए आगे चलकर कितना फायदेमंद हो सकता है. कानून के जानकर मानते हैं कि अगर यूपी का अपराधी दूसरे राज्य में जाकर सरेंडर कर रहा है या खुद को गिरफ्तार कराता है. तो वह शारीरिक प्रताड़ना से बच जाता है. अगर अपराध मामूली हो या गंभीर अपराध की श्रेणी में ना आता हो तो आगे चलकर कोर्ट में आरोपी जमानत पाने का हकदार भी बन जाता है. या उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया जाता है.
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वरिष्ठ अधिवक्ता रीता कोहली बताती हैं कि अगर विकास दुबे जैसा कोई शातिर अपराधी मोस्ट वॉन्टेड है. तो ऐसे में उनको एनकाउंटर का खतरा बना रहता है. या पुलिस पकड़ती है तो कहा जाता है कि वो भाग रहे थे, पुलिस ने उन्हें पकड़ा. इसलिए उनका सरेंडर करना या खुद को गिरफ्तार कराना एक सेफगार्ड बन जाता है. रीता कोहली कहती हैं "यूपी का अपराधी है और उसने एमपी में जाकर खुद को सरेंडर किया या गिरफ्तारी दी है तो वो कोर्ट में इसका लाभ लेने की कोशिश करेगा. हालांकि इससे उसके अपराध कम नहीं होते. ये ज़रूर है कि वो अधिकारिक तौर पर वो एमपी पुलिस के रिकॉर्ड में आ गया."
कानूनी जानकारों के मुताबिक दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार किसी भी आरोपी को खुद के खिलाफ सबूत देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. सबूत जुटाने का काम अभियोजन पक्ष का होता है. अगर यूपी पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार करती है, तो उसे प्रताड़ित करके उसी के खिलाफ सबूत जमा करने का प्रयास करती है. यही वजह है कि आरोपी कोर्ट में या अन्य राज्य में जाकर सरेंडर करने की कोशिश करते हैं.
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सीनियर एडवोकेट रीता कोहली के अनुसार कोर्ट में सरेंडर करने वाले व्यक्ति से पूछताछ के लिए पुलिस कोर्ट में रिमांड हेतु आवेदन कर सकती है. इसी तरह दूसरे राज्य में जाकर सरेंडर करने वाले या गिरफ्तारी देने वाले आरोपी के लिए भी पुलिस ट्रांजिट रिमांड मांग सकती है. अब अदालत पर निर्भर करता है कि वह रिमांड दे या ना दे. जब भी रिमांड दी जाती है, तो सशर्त होती है. ऐसे में पुलिस आरोपी को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना नहीं दे सकती.
सीआरपीसी की धारा 72 के मुताबिक अगर किसी अपराधी या आरोपी को दूसरे राज्य की पुलिस गिरफ्तार करती है, तो उसे 24 घंटे अंदर वहां की स्थानीय अदालत में पेश किया जाना ज़रूरी होता है. उसी स्थानीय कोर्ट से रिमांड लेकर ही दूसरे राज्य की पुलिस उसे अपने राज्य में ले जाती है. दरअसल, प्रत्यर्पण की अनुमति को ही ट्रांजिट रिमांड कहा जाता है.