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जन्नत में तबाही, बर्बादी, कोहराम, मातम और चीख-पुकार

एक-एक कस्बे को बसाने और संवारने में सदियां लग जाती हैं. पर उजड़ने में सिर्फ चंद मिनट. आसमान से बारिश की शक्ल में आई आफत फकत चंद घंटे की थी. पर उस आफत से उबरने में कश्मीर को बरसों लग जाएंगे.

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कश्मीर में बाढ़ का कहर
कश्मीर में बाढ़ का कहर

एक-एक कस्बे को बसाने और संवारने में सदियां लग जाती हैं. पर उजड़ने में सिर्फ चंद मिनट. आसमान से बारिश की शक्ल में आई आफत फकत चंद घंटे की थी. पर उस आफत से उबरने में कश्मीर को बरसों लग जाएंगे. बादल में लिपट कर आई पहाड़ी सुनामी ने कश्मीर के कई इलाकों के नामो-निशान तक मिटा दिए हैं. गुस्साए बादल में लिपटी मौत के बाद आंसुओं की सुनामी जब थमेगी तो लरजती घाटी और खामोश नदी की लहरें अपने पीछे ना जाने कैसी-कैसी कहानियां छोड़ जाएंगी.

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पिछले 14 सालों से ज़मीन की जन्नत यानी कश्मीर की हर खूबसूरत और बदसूरत तस्वीरें आपतक पहुंचाने वाले हमारे कैमरा मैन तारिक लोन के परिवार की भी खोज-खबर नहीं मिल पाई है. आखिरी बातचीत में उनके भाई ने शिकारा मांगा था. लेकिन वह नहीं भेज पाए. भेजते भी कैसे. शिकारा डल लेक पर चलता अच्छा लगता है. लाल चौक के उसके मकान की दूसरी मंजिल पर नहीं. तारिक अभी भी जन्नत में कयामत की रिपोर्टिंग कर अपनी ड्यूटी अदा कर रहा है. भाई-भाभी और बच्चे किस हाल में हैं, कहां हैं, फिलहाल कुछ पता नहीं.

कैसा सैलाब है ये, जिसने सबकुछ पानी-पानी कर दिया और कैसा सैलाब है ये जो न मालूम कितनी ही आंखों में पानी दे गया. इस सैलाब का पानी तो एक रोज उतर जाएगा. पर उन आंखों का क्या जो अब जब भी रोएंगी सैलाब के आंसू ही रोएंगी.

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देखते ही देखते सब कुछ उजड़ गया. दर्द की, ख़ौफ़ की, बेचारगी की इतनी कहानियां एक साथ और हर कहानी आंसुओं के न थमने वाले सैलाब के साथ, जितने इस तबाही में बर्बाद हो गए या मर गये हैं उससे कहीं कहीं ज़्यादा वो हैं जिनकी हालत मौत से भी बदतर है. कुछ के पास फटे-पुराने ख़्वाब बच गए हैं तो न जाने कितने ऐसे हैं जिनके पास कोई ख़्वाब भी नहीं है. ज़िंदगी का शीशा अचानक टूटा है. टुकड़े चारों तरफ़ बिखरे पड़े हैं. हर टुकड़ा तन्हाई की अपनी दास्तान बनकर रह गया है.

सब पानी पानी हो गया. घर-गली, मोहल्ले, होटल, सराय, लॉज, सड़कें, दुकानें, यानी जिनके सहारे जिंदगी क़ुदरत को करीब से देखने का हौसला कर पाती है. वो सारे सहारे पानी-पानी हो गये. जो लोग जन्नत में रह रहे थे और आज भी ज़िंदा हैं, वो सब के सब हैरत में हैं कि अचानक ये क्या हो गया?

ये तबाही, ये बर्बादी, ये कोहराम, ये मातम, ये चीख-पुकार, ये आंसू, ये बेबसी और मौत का ये मंज़र.और फिर उसी मौत के गुजर जाने के बाद ज़िंदा रहने के लिए जिंदगी से जंग की ये तस्वीरें. जिधर भी नज़र दौड़ाइए, चारों तरफ तबाही, तबाही और तबाही. कहीं तहस-नहस गली-मोहल्ले, कहीं मटियामेट घर-चौबारे, कहीं नदियों में समाई सड़कें, तो कहीं जगह-जगह बिखरी लाशें.

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घरौंदे जब ताश के पत्तों की तरह ढहने लगते हैं. और जब इलाके के इलाके कब्रिस्तान में तब्दील हो जाते हैं मंजिलों तक पहुंचाने वाले रास्ते जब खुद ही मिट जाते हैं तब सिर्फ एक ही मंज़र बचता है. तबाही का मंजर, दर्द का मंज़र, बेचारगी-बेबरसी का मंज़र. पूछिए इनसे क्या बीती जब इनके सामने इनके अपने बह गए. पूछिए इनसे क्या बीतती है जब लाशों के बीच बैठ कर जिंदगी ढूंढी जाती है.

एक आशियाना बनाने में पूरी जिंदगी बीत जाती है. तो ज़रा सोचिए कि पूरी बस्ती बसाने में कितना वक्त लगा होगा? बस्ती कैसे और कितनी मुद्दत में बसती है ये तो हम आपको नहीं दिखा सकते, अलबत्ता एक पूरी की पूरी बस्ती कैसे और कितनी देर में बर्बाद हो सकती है कैसे उस बस्ती का नामोनिशान मिटा सकता है ये हम आपको जरूर दिखा सकते हैं.

किसी बदक़िस्मत की ख़ुशक़िस्मती ये है कि वो बच गई या बच गया, बच गए उस आफ़त से जिसमें सैकड़ों बह गए. तो किसी ख़ुशक़िस्मत की बदक़िस्मती ये है कि वो अपनों को नहीं बचा पाया. दर्द भरी ख़ुशी की ये अजीब दास्तान है जो मौत और ज़िंदगी दोनों से एक साथ रूबरू है.

इस लंबी कतार को देखिये. घंटों से इनकी आंखें आसमान में उस हेलीकॉप्टर का इंतजार कर रही हैं जो इन्हें मौत के सैलाब से बचाकर ले जायेगा. इन सबको इनकी बारी आने पर हेलीकॉप्टर में जिंदगी की सीट मिलने वाली है. हर सीट कीमती है. पर ज़िंदगी ज्यादा है, हैलीकॉप्टर कम. लेकिन जद्दोजहद फिर भी जारी है.

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