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जब फिरौती मिलनी ही थी, तो मासूम को क्यों मार डाला?

अपहरण कर फिरौती वसूलना बदमाशों का पुराना शगल रहा है. लेकिन अगर फिरौती से पहले ही अपहरण किए गए शख्स की जान ले ली जाए, तो? दिल्ली में 13 साल के मासूम बच्चे के अपहरण का मामला कुछ ऐसा ही है. पहले इस बच्चे को अगवा किया जाता है, फिर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी जाती है. लेकिन इससे पहले कि घरवालों को फिरौती चुकाने की जगह बताई जाती, बदमाश मासूम की जान ले लेते हैं. आखिर क्यों?

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अपहरण कर फिरौती वसूलना बदमाशों का पुराना शगल रहा है. लेकिन अगर फिरौती से पहले ही अपहरण किए गए शख्स की जान ले ली जाए, तो? दिल्ली में 13 साल के मासूम बच्चे के अपहरण का मामला कुछ ऐसा ही है. पहले इस बच्चे को अगवा किया जाता है, फिर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी जाती है. लेकिन इससे पहले कि घरवालों को फिरौती चुकाने की जगह बताई जाती, बदमाश मासूम की जान ले लेते हैं. आखिर क्यों?

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पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर के जाने-माने ज्वेलर मुकेश वर्मा के 13 साल का बेटा उत्कर्ष रहस्यमयी तरीके से गायब हो चुका था. वो इस दिन भी हर रोजकी तरह स्कूल गया, लेकिन वापस नहीं लौटा. घरवालों के साथ-साथ आस-पास के तमाम लोग भी परेशान थे. इसी बीच उत्कर्ष के पिता मुकेश को फोन आया और पता चला कि उनके बच्चे को अगवा कर लिया गया है. किडनैपरों ने 1 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी.

परिवार ने पहले ही पुलिस को इत्तिला दे रखी थी. लिहाजा, पुलिस ने इस मोबाइल फोन को ट्रैक करने की कोशिश की. लेकिन इससे पहले कि पुलिस को इसमें कोई कामयाबी मिली, ये नंबर स्वीच्ड ऑफ हो गया.

पुलिस ने बच्चे के स्कूल से वापस आने से लेकर गायब होने की तक की पूरी डिटेल खंगालने की शुरुआत की. सबसे पहले पुलिस ने उस वैन ड्राइवर से पूछताछ की, जिसमें उत्कर्ष स्कूल से लौटता था... इस शख्स ने बताया कि उसने रोज़ की तरह इस दिन भी बच्चे को उसकी गली से टी प्वाइंट पर दोपहर तकीरनब सवा दो बचे उतार दिया था... और जैसे ही बच्चा पैदल अपने घर की ओर बढ़ा वो आगे निकल गया. लेकिन इसके बाद उत्कर्ष घर नहीं पहुंचा. यानी ये बात भी साफ़ हो गई कि किसी ने उत्कर्ष को घऱ के ठीक सामने वाली गली से ही अगवा किया था. लेकिन ये कौन हो सकता था? क्योंकि अगर किसी ने उत्कर्ष को इस भीड़-भाड़ वाली गली से जबरदस्ती उठाया होता, तो वो जरूर विरोध करता. ऐसे में शायद बच्चे का अपहरण नहीं होता या फिर अपहरण की कोशिश करनेवाले रंगेहाथ पकड़े जाते.

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यानी जो दूसरी बात तकरीबन साफ हो चली थी, वो ये कि हो ना हो उत्कर्ष को किसी जाननेवाले ने ही अगवा किया था. यानी कोई ऐसा शख्स जो वर्मा परिवार और उत्कर्ष को करीब से जानता था. अब पुलिस ने अपहरणकर्ता की तस्वीर देखने के लिए गली में लगे तमाम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने की शुरुआत कर दी. लेकिन इसमें भी उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिली. अब घरवालों के साथ-साथ पुलिस को बदमाशों के अगली कॉल का इंतजार था. ताकि बात आगे बढ़े और उत्कर्ष की रिहाई की कोशिश की जा सके.

अपहरण के बाद कत्ल के इस मामले में पुलिस ने जब गुनाहगारों के चेहरे से नकाब हटाया, तो सब हैरान रह गए. गरज ये कि मासूम उत्कर्ष को अगवा कर उसकी जान लेनेवाले कोई पेशेवर बदमाश नहीं, बल्कि वही दो लोग थे. जिनमें से एक अक्सर इस बच्चे के घर आया करता था और ये मासूम उसे अंकल कह कर पुकारता था. इस अंकल ने पुलिस से बचने के लिए इंतजाम तो तमाम किए थे, लेकिन उसके मोबाइल फोन के लोकेशन ने ही उसका पता दे दिया.

गांधी नगर से थोड़ी दूर गीता कॉलोनी में एक नाले के पास उत्कर्ष की लाश पड़ी मिली. अब वर्मा परिवार की सारी उम्मीद टूट चुकी थी... पूरे इलाके में मातम पसर चुका था. लेकिन आखिर अपहरण करनेवालों ने उत्कर्ष की जान क्यों ले ली? वो भी तब जब उसके घरवालों से अभी एक करोड़ रुपए की डील चल ही रही थी. लेकिन इस सवाल का जवाब जानने के लिए पुलिस को कातिलों तक पहुंचना ज़रूरी था. लिहाज़ा पुलिस ने तफ्तीश जारी रखी और इसी कोशिश में पुलिस को तब पहली कामयाबी हाथ लगी, जब उसे एक ऐसे शख्स का मोबाइल फोन ठीक उसी जगह पर एक्टिव मिला, जहां उत्कर्ष की लाश निपटाई गई थी.

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ये था 22 साल का नौजवान प्रताप सिंह, पेशे से सिविल कॉन्ट्रेक्टर और कॉल सेंटर का काम करनेवाला. प्रताप सिंह के पिता ने ही वर्मा परिवार का घर बनवाया था और दोनों परिवारों में अच्छी जान-पहचान थी. प्रताप का वर्मा परिवार में आना-जाना भी लगा रहता था. अब पुलिस ने बिना वक्त गंवाए पहले प्रताप सिंह को उठाया और पूछताछ की. पहले तो उसने पुलिस को छकाने की कोशिश की, लेकिन वो जल्द ही टूट गया और उसने कुबूल कर लिया कि उसने ही अपने एक दोस्त सिद्धार्थ के साथ मिलकर उत्कर्ष को अगवा किया था. सिद्धार्थ मोबाइल फोन की रिपेयरिंग काम करता था.

अब पुलिस ने सिद्धार्थ को भी दबोचा और दोनों से पूछताछ शुरू की. दोनों ने बताया कि रातों रात अमीर बनने की लालच में उन्होंने उत्कर्ष को अगवा किया था और फिरौती वसूलना ही इकलौता मकसद था. बल्कि इससे पहले प्रताप तो अपने ही एक कजन को अगवा करना चहता था, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने प्लान बदल लिया. स्कूटी और बाइक पर उत्कर्ष को उसकी दादी की मौत की झूठी खबर दे कर प्रताप और सिद्धार्थ ने उसे अगवा कर लिया और सीधे प्रताप के अंगद नगर में मौजूद उस फ्लैट में ले गए, जहां उसकी गर्ल फ्रैंड रहती थी. बच्चे को जब बात समझ में आई तो वो रोने लगा. और जैसे-जैसे उत्कर्ष रो रहा था, दोनों की घबराहट बढ़ रही थी. पुलिस की मानें तो इस बीच प्रताप के गर्लफ्रैंड ने माजरा समझने की कोशिश की, तो दोनों ने उसे दूसरे कमरे में बंद कर दिया. प्रताप ने सिद्धार्थ को माहौल भांपने के लिए उत्कर्ष के घर भी भेजा था, लेकिन वहां काफी भीड़ लगी थी. ये देख कर दोनों और तनाव में आ गए.

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इसके बाद दोनों ने उत्कर्ष के पिता को दो बार कॉल किया और रुपयों की भी बात कही. लेकिन दोनों को पोल खुल जाने की फिक्र लगातार सता रही थी क्योंकि उत्कर्ष लगातार रो रहा था. ऊपर से वो प्रताप को अच्छी तरह पहचानता भी था. इसलिए उन्होंने उत्कर्ष को मौत के घाट उतार दिया.

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