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ऐसे गुजरे याकूब के वो आखिरी दो घंटे

मुंबई धमाकों के गुनहगार याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन को आखिरकार 257 बेगुनाह लोगों के कत्ल के इल्जाम में आखिरकार फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. याकूब के जिदगी की आखिरी उम्मीद के टूटने से लेकर फांसी के फंदे पर लटकाए जाने तक के वो आखिरी दो घंटे की कहानी.

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याकूब को फांसी दी गई
याकूब को फांसी दी गई

मुंबई धमाकों के गुनहगार याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन को आखिरकार 257 बेगुनाह लोगों के कत्ल के इल्जाम में आखिरकार फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. उसे नागपुर जेल में उसी 30 जुलाई को फांसी दी गई, जिस 30 जुलाई को ठीक 53 साल पहले उसका जन्म हुआ था. इसी के साथ मुंबई धमाकों से जुड़ा एक पन्ना हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो गया. लेकिन दो दशकों तक चले इस मुकदमे पर गुरुवार सुबह आए फैसले के बाद याकूब की ज़िंदगी के आख़िरी दो घंटे बेहद उतार चढ़ाव भरे रहे. ऐसी थी याकूब के जिदगी की आखिरी उम्मीद के टूटने से लेकर फांसी के फंदे पर लटकाए जाने तक के वो आखिरी दो घंटे की कहानी.

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फांसी देने से पहले अपनाई गई सभी जरूरी प्रक्रिया
गुरुवार की सुबह नागपुर शहर की सेंट्रल जेल का मंजर कुछ देखने काबिल था. जेल के चारों तरफ पुलिस ने घेराव किया हुआ था. वजह थी मुंबई ब्लास्ट मामले में पहली फांसी की सजा याकूब मेमन को दी जानी थी. जेल प्रशासन फांसी देने को तैयार था. इस जेल में याक़ूब अप्रैल 1994 यानि करीब 22 साल से बंद था. देर रात ही याकूब को बता दिया गया था कि 30 जुलाई की सुबह उसे फांसी दी जानी वाली है. इसलिए उसे 30 जुलाई की सुबह 5 बजे उठाया गया. लेकिन फांसी पर लटकाने से पहले हर उस नियम कायदे को अपनाया गया जो किसी भी सजायाफ्ता को फांसी पर लटकाने के लिए अपनाए जाते हैं. उसे दया याचिका खारिज करने की जानकारी दी गई. बताया गया कि वो कब फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. उसका मेडिकल टेस्ट भी किया गया. जेल प्रशासन के मुताबिक नागपुर सेंट्रल जेल में बंद याकूब मेमन को 29 जुलाई की रात नींद नहीं आई. वो रात भर करवटें बदलता रहा, बीच-बीच में उठकर बैठ जाता था, वक्त बीतता गया और उगते सूरज के साथ याकूब की जिंदगी हमेशा के लिए खत्म होने वाली थी.

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आखिरी ख्वाहिश की गई पूरी
पूरी रात बेचैनी में गुज़ारने के बाद याकूब उठा. जेल के गार्ड ने उसे नहाने के लिए कहा और नए कपड़े दिए. याकूब नहाया और नए कपड़े पहने. यूं तो लोग जन्मदिन पर नए कपड़े पहनते हैं लेकिन याकूब के जन्मदिन और मौत का दिन एक ही था. इसलिए उसने नए कपड़े तो पहने लेकिन आखिरी बार. इसके बाद याकूब को उसकी पसंद का नाश्ता भी दिया गया. उसने थोड़ा सा नाश्ता किया0. इसके बाद उससे उसकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उसने अपनी बेटी से बात करने की इच्छा जाहिर की. तो जेल अधिकारियों ने उसकी बात आखिरी बार उसकी बेटी से करवाई. फिर नए कपड़े पहनने के बाद याकूब ने आखिरी बार नमाज पढ़ी. नमाज अदा करने के बाद याकूब को फांसी यार्ड की ओर ले जाया गया. उस वक्त जेल में एडीजी जेल, जेल सुपरिंटेंडेंट, चीफ मेडिकल ऑफिसर, एक मजिस्ट्रेट और दो कॉन्स्टेबल मौजूद थे.

53वें जन्मदिन पर दुनिया से चला गया याकूब
सुबह करीब साढ़े छह बजे याकूब मेमन को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. करीब तीस मिनट तक फांसी पर लटकाने के बाद मेडिकल टीम ने जांच करने के बाद याकूब की मौत की पुष्टि कर दी. और सुबह सात बजकर 1 मिनट पर याकूब को मृत घोषित कर दिया गया. याकूब को फांसी देने के बाद जेल अधिकारियों ने नियम के मुताबिक याकूब का पोस्टमॉर्टम किया और करीब 9:30 बजे याकूब के मृत शरीर को उसके भाईयों सुलेमान और उस्मान को सौंप दिया गया. सुबह के करीब साढ़े दस बजे याकूब के भाई एक एंब्यूलेंस में याकूब के मृत शरीर को रख कर नागपुर एयरपोर्ट की तरफ रवाना हो गए और दोपहर के 12:45 याकूब का शव मुंबई पहुंच गया. फिर शाम के 4:30 बजे याकूब को मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में दफना दिया गया. और इस तरह 1993 मुंबई सीरियल बम धमाकों के एक गुनहगार याकूब मेमन अपने अंजाम तक पहुंच गया. लेकिन ये भी एक अजीब संयोग ही था कि जिस तारीख को याक़ूब ने पहली बार इस दुनिया में अपनी आंखें खोली थीं. 53 साल बाद ठीक उसी दिन उसके 53वें जन्मदिन पर उसकी आंखें हमेशा के लिए बंद हो गईं.

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आधी रात को अदालत ने लगाई अंतिम फैसले पर मुहर
ऐसा आमतौर पर कम ही होता है, जब किसी मामले की सुनवाई के लिए आधी रात को भी अदालत बैठी हो और वो भी देश की सबसे बड़ी अदालत. लेकिन अपनी फांसी से पहले बुधवार और गुरुवार की दरम्यानी रात अगर याकूब ने आंखों में निकाल दी, वो लोग भी जगे रहे जो याकूब को बचाने की आखिरी कोशिश कर रहे थे. लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के जज ने सुबह 4 बजकर 55 मिनट पर इसी अदालत के उस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी, जिसे पहले ही सुनाया जा चुका था. फैसला याकूब को सजा ए मौत देने का. आधी रात का वक्त और सुप्रीम कोर्ट के बाहर देश के नामचीन वकीलों की हलचल. हिन्दुस्तान के न्यायिक इतिहास का ये अभूतपूर्व पल था जब आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में याकूब मेमन की फांसी टालने पर सुनवाई हुई.

प्रशांत भूषण समेत कई बड़े वकील कर रहे थे याकूब की पैरवी
सुप्रीम कोर्ट में याकूब की आखिरी अर्जी खारिज होने और राष्ट्रपति के दरबार में भी दया अर्जी नामंजूर होने के बाद याकूब की फांसी टालने की आखिरी कोशिश करते हुए रात के 10 बजकर 37 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण, आनंद ग्रोवर, राजू रामचंद्र और इंदिरा जयसिंह सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एच.एल.दत्तू के घर पहुंच गए. ये वकील इस अर्जी के साथ पहुंचे थे कि सर्वोच्च अदालत के दिशा निर्देश के मुताबिक दया याचिका खारिज होने के बाद कम से कम 14 दिनों का वक्त दिया जाता है, इसलिए याकूब को भी ये वक्त मिलना चाहिए.

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14 दिन और दिए जाने की अपील हुई खारिज
भारतीय न्यायिक इतिहास में संभवत: ये पहला मौका है जब मौत की सजा पाए किसी मुजरिम की अर्जी सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे रात के ढाई बजे खुले हो. जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस प्रफुल्ल चंद्र पंत और जस्टिस अमिताव रॉय आधी रात को याकूब के लिए दाखिल की गई सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों की अर्जी पर सुनवाई करने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट में जब सुनवाई की तैयारी चल रही थी, तभी कुछ प्रदर्शनकारी इसका विरोध करने वहां पहुंच गए और याकूब की फांसी की मांग करते हुए नारेबाजी शुरू कर दी. बहरहाल, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया और कोर्ट नंबर चार में सुनवाई शुरू हो गई. अपनी दलील में आनंद ग्रोवर ने कहा कि दया याचिका खारिज होने के बाद याकूब को कानूनी पहलू पर विचार करने के लिए 14 दिनों का वक्त मिलना चाहिए. ग्रोवर ने ये भी कहा दया याचिका खारिज करने को चुनौती देने के लिए हमें इसकी कॉपी भी नहीं मिली है. ग्रोवर के मुताबिक याकूब को दया याचिका पर अपील का अधिकार है.

याकूब को राहत नहीं दी गई
करीब आधे घंटे तक आनंद ग्रोवर ने याकूब की फांसी चौदह दिन टालने को लेकर दलीलें दी. इसके बाद सुबह तीन बजकर पचपन मिनट पर अटार्नी जनरल ने बहस शुरू की. एजी ने बचाव पक्ष की दलील खारिज करते हुए कहा कि 30 अप्रैल को मौत का वारंट जारी हुआ था और 13 जुलाई को याकूब को वारंट की कॉपी दे दी गई थी इसलिए उसके पास अपील का पर्याप्त वक्त था. रोहतगी ने कहा कि राष्ट्रपति के पास और भी काम हैं. अगर इसी तरह चीजें चलती रहीं तो मौत की वारंट की कभी तामील नहीं हो सकेगी. अगर रोज दलील देंगे तो सिस्टम कैसे काम करेगा. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सुबह चार बजकर पचपन मिनट पर तीन जजों की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए याकूब को कोई राहत देने से इनकार कर दिया.

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अंत तक सुनी गई दलील
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा याचिका में कोई नई बात नहीं की गई है. ब्लास्ट के 22 साल बीत चुके हैं. डेथ वारंट में कोई खामी नहीं है. याकूब मेमन को पर्याप्त वक्त दिया गया. जहां तक 2014 की दया याचिका का सवाल है तो जजों के मुताबिक याकूब ने कभी उस दया याचिका से खुद को अलग नहीं किया. इसलिए याकूब की फांसी टालने का कोई मतलब नहीं बनता है. आधी रात की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट का जब फैसला आया तो सिर्फ दो घंटे रह गए थे याकूब की फांसी में. बहरहाल इस कवायद से भारतीय न्याय व्यवस्था की ये मजबूती भी सामने आ गई कि अंत तक यहां हर किसी की दलील सुनी जाती. अब कोई ये तोहमत नहीं लगा सकता कि याकूब को आनन-फानन में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया.

दाऊद और टाइगर को भी मिले सजा पीड़ितों की ख्वाहिश
याकूब को सजा ए मौत तो मिल गई और उसे फांसी के तख्ते पर लटका भी दिया गया लेकिन क्या इससे मुंबई धमाके के पीड़ितों को वो इंसाफ मिल गया, जिसका उन्हें तकरीबन दो दशकों के इंतजार था. इस पर मुंबईकरों की राय अलग-अलग है. अगर उन्हें याकूब के अंजाम की तसल्ली है, तो दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन जैसे बड़े गुनहगारों के पकड़ से बाहर होने का मलाल भी. मुंबई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन को आखिरकार उसके उस अंजाम तक पहुंचा ही दिया गया, जो हिंदुस्तान की सबसे बड़ी अदालत ने उसके लिए तय किया था. याकूब की फांसी के साथ ही मुंबई धमाकों से जुड़ा एक पन्ना भी जैसे हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो गया. लेकिन 1993 में हुए उस सीरियल ब्लास्ट को जिन मुंबईकरों ने अपनी आंखों से देखा और अपना बहुत कुछ खोया, उनके दिल में याकूब की फांसी के बाद भी जैसे एक कसक सी बाकी है. कसक, कानून के लंबे हाथों के अब तक इस साजिश के सबसे बड़े गुनहगारों तक ना पहुंच पाने की. कसक, इंसाफ में हुई देरी की. कसक, फांसी के नाम पर हुई सियासत की और कसक, नफरत के एक बेचैन करनेवाले सिलसिले की. जाहिर है, अब याकूब की फांसी के बाद मुंबई के बाशिदों को उस दिन का भी इंतजार है जब पाकिस्तान में छुपे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन को भी उनके गुनाहों की ऐसी ही सजा दी जाएगी.

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इन गुनाहों के लिए लटका याकूब फांसी पर
याकूब मेमन के भाई टाइगर मेमन ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ मिल कर बेशक मुंबई धमाकों की साजिश रची, लेकिन इस धमाकों को अंजाम तक पहुंचाने में याकूब ने वो रोल अदा किया, जिसके बगैर शायद इन धमाकों को अंजाम दिया ही नहीं जा सकता था. शायद यही वजह रही कि याकूब को इस साजिश में शामिल होने के जुर्म में सजा ए मौत दी गई. टाडा कोर्ट ने याकूब मेमन को जिन गुनाहों के लिए दोषी ठहराया और जिसके लिए फांसी की सजा दी वो गुनाह थे मुंबई धमाके के लिए पैसे जुटाना, पाकिस्तान में ट्रेनिंग के लिए एयर टिकट बुक करवाना, 13 फरवरी 1993 को याकूब ने असगर मुकादम को चौकसी से एक करोड़ रुपए कलेक्ट करने को कहना, 9 मार्च को याकूब ने असगर से टाइगर के अकाउंट से 25 लाख और ओहालिया के अकाउंट से दस लाख रुपए ईरानी के अकाउंट में डालने को कहा था. 10 मार्च को याकूब ने फिर से ईरानी के अकाउंट में 21 लाख रुपए ट्रांसफर करने को कहा था. ये सभी पैसे मुंबई धमाके की तैयारी के लिए थे. धमाके से पहले हथियारों से भरे सात सूटकेस में से पांच सूटकेस अपने घर पर खुद याकूब के जरिए रिसीव किए गए थे. धमाके से एक दिन पहले पूरे परिवार के साथ याकूब का दुबई और फिर पाकिस्तान जाना.

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आखिरकार याकूब को मिल ही गई सजा
याकूब मेमन को टाडा कोर्ट ने 27 जुलाई 2007 को फांसी की सजा सुनाई थी. 31 मार्च 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मौत की सजा बहाल रखी. 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने याकूब की दया याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद इसी साल 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भी दया याचिका खारिज कर दी. इसके बाद 29 अप्रैल को टाडा कोर्ट ने याकूब मेमन का डेथ वारंट जारी कर दिया और फांसी की तारीख तय की 30 जुलाई. जो इत्तेफाक से याकूब मेमन के जन्म की भी तारीख थी.

 

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