पाकिस्तान की इस हरकत को क्या नाम दें? नफरत, बुजदिली, दुश्मनी या फिर कुछ और? तारीख गवाह है, यूं छिपकर हमला करना अब उसकी फितरत बन गई है. और अब तो वो आतंकवादियों को भी फौजी वर्दी पहनाने से पीछे नहीं हटता. लेकिन हम अपने उन सियासतदानों का क्या करें, जिन्हें पाकिस्तान के ऐसे हर हमले के बाद मुंह तोड़ जवाब देने का जुमला बोलते-बोलते एक पूरी उम्र गुजर गई. अब फिर से सरहद पर गोली चली है, और अब फिर से एक बार बस बातों की ही फसल लहलहा रही है.
नफरत की बुनियाद पर खींची गई हिंदुस्तान और पाकिस्तान की सरहद की लकीरों के ऊपर आज भी नफरत हावी है. एक अच्छे पड़ोसी को छोड़िए एक अच्छे दुश्मन से भी ऐसी दुश्मनी की उम्मीद नहीं थी, जो पाकिस्तान ने दिखाई. रात के अंधेरे में कायर की तरह हमला किया और अंधेरे में ही गुम हो गया.
सरहद पर लड़ना, सरहद की हिफाजत के दौरान मरना-मारना हर फौजी का फर्ज है. पर जवानों के बीच आतंकवादियों को ढाल बना कर यूं हमला करना ये फौजियों का काम नहीं है. पर अफसोस पाकिस्तान ये काम बहुत पहले से करता रहा है.
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जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में तड़के साढ़े तीन बजे पाकिस्तान के मुजाहिद रेजिमेंट ने चक्कां दा बाग के सरला पोस्ट पर गश्त कर रहे भारतीय फौजियों को तीन तरफ से घेरकर हमला बोल दिया. हमारी टुकड़ी छोटी थी. बहादुरी से लोहा लेते हुए पांच जवान शहीद हो गए. पर बाद में पता चला कि पाक फौज ने ये हमला लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों के साथ मिल कर किया था और इस हमले का मास्टरमाइंड था हाफिज सईद. हमले का मकसद था हमले की आड़ में पाक आतंकवादियों को भारतीय सरहद में घुसाना.
इस शहादत ने एक बार फिर हमारी ताकत पर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या सरहद पर हमारा रवैया हमें कमजोर मुल्क की कतार में खड़ा कर देता है? क्या हम हर हमले के बाद बस ऐसे ही बड़ी-बड़ी बातें करते रहेंगे? संसद भवन में बैठ कर बस दुश्मनों को धमकाते रहेंगे? या कुछ करेंगे भी? और करेंगे तो कब?
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सफेद झूठ जैसा लफ्ज शायद पाकिस्तान जैसों के लिए बना है. नहीं तो भला ये कैसे मुमकिन था कि जिस पाकिस्तान के फौजियों और हाफिज सईद के दहशतगर्दों ने मिलकर हिंदुस्तान के पांच जवानों को शहीद कर दिया, वही पाकिस्तान ये रट लगाए है कि एलओसी पर तो कुछ हुआ ही नहीं. सवाल ये उठता है कि फिर रात के अंधेरे में पाकिस्तान की तरफ से गोली आख़िर चलाई किसने?
कुछ दिन पहले हाफिज सईद ने भारत को ललकारा था. इसके बावजूद पाकिस्तान अब न तो इसके पीछे अपनी फौज का हाथ होने की बात कुबूल कर रहा है और ना ही हाफिज सईद का. हिंदुस्तानी सैनिकों की शहादत अपने-आप में पाकिस्तान की इस बुजदिली का सबसे बड़ा सुबूत है. सूत्रों की मानें तो ये हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी ही थे, जिन्होंने इस बार पाकिस्तानी फौज के साथ मिलकर हिंदुस्तानी जवानों पर घात लगा कर हमला किया. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इस हमले से चंद रोज पहले ही पिछले महीने हाफिज सईद भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर पाकिस्तानी फौजियों के साथ देखा गया था. ठीक वैसे ही, जैसे इसी साल 8 जनवरी को हिंदुस्तानी जवानों का सर कलम किए जाने की वारदात से ठीक पहले भी सईद को बॉर्डर पर देखा गया था.
दरअसल, पुंछ सेक्टर के चक्कां दा बाग के पास हिंदुस्तानी फौज को पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की खबर मिली थी. इसी के मद्देनजर बिहार रेजीमैंट की एक एंबुश टुकड़ी इस इलाके में गश्त कर रही थी. इससे पहले कि उन्हें किसी घुसपैठ का पता चलता, करीब 400 मीटर अंदर घुसकर पाकिस्तानी फौज और आतंकवादियों ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. शक है कि इस हमले की आड़ में कुछ आतंकवादी घुसपैठ कर हिंदुस्तान में दाखिल होने में भी कामयाब हो गए. हालांकि अब तक इस घुसपैठ की किसी ने तस्दीक नहीं की है.
आतंकवादी और पाकिस्तानी फौज एक ही सिक्के के दो पहलू लगने लगे हैं. समझ में नहीं आता है कि पाकिस्तानी फौज आतंकवादियों के हाथ में है या फिर आतंकवादी पाक फौज के हाथों में. क्योंकि ये पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान ने हिंदुस्तान की पीठ में छुरा घोंपा है. वो छुरा, जो हाथ में किसी और के है और हाथ किसी और के आस्तीन में.
ऐसी खबर आ रही है कि 5 अगस्त की देर रात पुंछ में पाकिस्तानी फौजियों के भेष में आतंकवादी ही आए थे. रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने संसद को जो जानकारी दी, वो पाकिस्तानी फौज में आतंक की घुसपैठ की तरफ साफ इशारा कर रहा है. एंटनी के मुताबिक, हिंदुस्तानी जवानों के पेट्रोलिंग दस्ते पर हमला करने वाले पाकिस्तानी टुकड़ी में करीब 20 आतंकवादी थे और पाकिस्तानी फौज की वर्दी में कुछ लोग. जबकि सेना की प्रेस रिलीज में कहा गया है कि हथियारों से लैस करीब 20 आतंकवादियों ने हमला बोला, जिनके साथ कुछ पाकिस्तानी फौजी भी थे.
पाकिस्तान में आतंक, फौज और हुकुमत का यही त्रिकोण हिंदुस्तान के सीने में नस्तर की तरह चुभ रहा है. और इन्हीं आतंकवादियों के साथ मिलकर कायर पाकिस्तानी फौजियों ने 5 अगस्त की रात भारत के जवानों पर तीन तरफ से हमला बोल दिया, जिसमें पांच जवान शहीद हो गए. परंतु, पाकिस्तान को शायद पता नहीं कि वो आतंक की बारूद पर बैठा था. उसे लगता है कि उस बारूद से वो भारत को झुलसाएगा, लेकिन नहीं जानता कि जिस दिन आतंक का वो बारूद फटा, पाकिस्तान के ही चिथड़े-चिथड़े हो जाएंगे.