scorecardresearch
 

लोकसभा चुनाव में याद आया 90 के दशक का कुख्यात डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला!

रवि किशन का पूरा नाम है रवि किशन शुक्ला. जिस मामखोर गांव से रवि किशन ताल्लुक रखते हैं, वो शुक्ल ब्राह्मणों का गांव माना जाता है. मगर ये गांव सिर्फ रवि किशन शुक्ला के नाम से ही मशहूर नहीं है. बल्कि यूपी में नब्बे के दशक में सबसे बड़े गैंगस्टर रहे श्रीप्रकाश शुक्ला का भी गांव हैं.

Advertisement
X
श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम का आतंक यूपी में लोगों के सिर चढकर बोलता था
श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम का आतंक यूपी में लोगों के सिर चढकर बोलता था

Advertisement

आखिरी चरण का चुनाव नज़दीक आते ही गोरखपुर का मामखोर गांव एक बा एक सुर्खियों में आ गया है.. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माने जाने वाले गोरखपुर में 2018 में हुए उपचुनाव में बाज़ी समाजवादी पार्टी ने मार ली.. लिहाज़ा अब बीजेपी और योगी आदित्यनाथ पर इस सीट को बचाने का दबाव है.. इसीलिए बीजेपी ने इसी माटी में जन्में बोजपुरी और हिंदी फिल्मों के सुपरस्टार रवि किशन शुक्ला को उतारा है.

जी हां, रवि किशन का पूरा नाम है रवि किशन शुक्ला. जिस मामखोर गांव से रवि किशन ताल्लुक रखते हैं, वो शुक्ल ब्राह्मणों का गांव माना जाता है. मगर ये गांव सिर्फ रवि किशन शुक्ला के नाम से ही मशहूर नहीं है. बल्कि यूपी में नब्बे के दशक में सबसे बड़े गैंगस्टर रहे श्रीप्रकाश शुक्ला का भी गांव हैं. वही श्रीप्रकाश शुक्ला जिसकी यूपी में तूती बोलती थी. और वो सुर्खियों में तब आ गया था, जब उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या के लिए सुपारी ले ली थी.

Advertisement

लखनऊ से करीब 310 किमी दूर गोरखपुर का ममखोर गांव लोकसभा चुनाव में अचानक सुर्खियों में आ गया. क्योंकि यहां गोरखपुर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन का कनेक्शन नब्बे के दशक के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला से जुड़ गया है. ममखोर पहुंचते ही रवि किशन उस मिट्टी को प्रणाम किया, जहां कभी गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का बचपन बीता. क्योंकि यही ममखोर की मिट्टी रवि किशन शुक्ला का कनेक्शन गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला से जोड़ती है. इत्तेफाक से दोनों इसी गांव से ताल्लुक रखते हैं.

ममखोर गांव के दो शुक्ला

एक तरफ रवि किशन शुक्ला हैं जो रील लाइफ में गैंगस्टर का किरदार निभा चुके हैं. तो दूसरी तरफ रियल लाइफ का गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला था. एक ने रील लाइफ से दुनियाभर में पहचान बनाई. दूसरे ने अपराध की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम की. रवि किशन की कहानी तो सब जानते हैं. मगर बहुत कम लोगों को पता है कि इस छोटे से गांव से निकलकर श्रीप्रकाश शुक्ला ने कैसे जुर्म की दुनिया में अपनी पहचान बनाई थी.

श्रीप्रकाश शुक्ला 90 के दशक में यूपी का सबसे बड़ा डॉन था. जिसके नाम से जनता ही नहीं बल्कि पुलिस और नेता भी थरथर कांपने लगते थे. अखबारों के पन्ने हर रोज उसी की सुर्खियों से रंगे होते थे. हम बात कर रहे हैं यूपी के सबसे खतरनाक माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्‍ला की. जिसने देश के सबसे बड़े सूबे में कायम कर दिया था आतंक का राज.

Advertisement

कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के ममखोर गांव में हुआ था. उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे. वह अपने गांव का मशहूर पहलवान हुआ करता था. साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले राकेश तिवारी नामक एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 20 साल के युवक श्रीप्रकाश के जीवन का यह पहला जुर्म था. इसके बाद उसने पलट कर नहीं देखा और वो जरायम की दुनिया में आगे बढ़ता चला गया.

बैंकॉक भाग गया था शुक्ला

अपने गांव में राकेश की हत्या करने के बाद पुलिस शुक्ला की तलाश कर रही थी. मामले की गंभीरता को समझते हुए श्रीप्रकाश ने देश छोड़ना ही बेहतर समझा. और वह किसी तरह से भाग कर बैंकॉक चला गया. वह काफी दिनों तक वहां रहा लेकिन जब वह लौट कर आया तो उसने अपराध की दुनिया में ही ठिकाना बनाने का मन बना लिया था.

सूरजभान गैंग में शामिल हुआ था श्रीप्रकाश

श्रीप्रकाश शुक्ला हत्या के मामले में वांछित था. पुलिस यहां उसकी तलाश कर रही थी और वह बैंकॉक में खुले आम घूम रहा था. लेकिन पैसे की तंगी के चलते वह ज्यादा दिन वहां नहीं रह सका. और वह भारत लौट आया. आने के बाद उसने मोकामा, बिहार का रुख किया और सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया.

Advertisement

शाही की हत्या से उछला नाम

बाहुबली बनकर श्रीप्रकाश शुक्ला अब जुर्म की दुनिया में नाम कमा रहा था. इसी दौरान उसने 1997 में राजनेता और कुख्यात अपराधी वीरेन्द्र शाही की लखनऊ में हत्या कर दी. माना जाता है कि शाही के विरोधी हरि शंकर तिवारी करे इशारे पर यह सब हुआ था. वह चिल्लुपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहता था. इसके बाद एक एक करके न जाने कितने ही हत्या, अपहरण, अवैध वसूली और धमकी के मामले श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम लिखे गए.

रेलवे ठेकों पर था एक छत्र राज

श्रीप्रकाश शुक्ला पुलिस की पहुंच से बाहर था. उसका नाम उससे भी बड़ा बनता जा रहा था. यूपी पुलिस हैरान-परेशान थी. नाम पता था लेकिन उसकी कोई तस्‍वीर पुलिस के पास नहीं थी. कारोबारियों से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती, पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज. बस यही उसका पेशा था. और इसके बीच जो भी आया उसने उसे मारने में जरा भी देरी नहीं की. लिहाजा लोग तो लोग पुलिस तक उससे डरती थी.

शुक्ला को पकड़ने के लिए बनी थी एसटीएफ

श्रीप्रकाश के ताबड़तोड़ अपराध सरकार और पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुके थे. सरकार ने उसके खात्मे का मन बना लिया था. लखनऊ सचिवालय में यूपी के मुख्‍यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की एक बैठक हुई. इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्‍पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई. 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्‍कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई. इस फोर्स का पहला टास्क था- श्रीप्रकाश शुक्ला, जिंदा या मुर्दा.

Advertisement

पुलिस के साथ पहली मुठभेड़

श्रीप्रकाश के साथ पुलिस का पहला एनकाउंटर 9 सितंबर 1997 को हुआ. पुलिस को खबर मिली कि श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ सैलून में बाल कटवाने लखनऊ के जनपथ मार्केट में आने वाला था. पुलिस ने चारों तरफ घेराबंदी कर दी. लेकिन यह ऑपरेशन ना सिर्फ फेल हो गया बल्कि पुलिस का एक जवान भी शहीद हो गया. इस एनकाउंटर के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत पूरे यूपी में और ज्यादा बढ़ गई.

पुलिस को मुश्किल से मिली थी तस्वीर

सादी वर्दी में तैनात एके 47 से लैस एसटीएफ के जवानों ने लखनऊ से गाजियाबाद, गाजियाबाद से बिहार, कलकत्ता, जयपुर तक छापेमारी तब जाकर श्रीप्रकाश शुक्‍ला की तस्‍वीर पुलिस के हाथ लगी. इधर, एसटीएफ श्रीप्रकाश की खाक छान रही थी और उधर श्रीप्रकाश शुक्ला अपने करियर की सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देने यूपी से निकल कर पटना पहुंच चुका था.

पटना में किया था मंत्री का मर्डर

श्रीप्रकाश शुक्‍ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्‍कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्‍या कर दी. मंत्री की हत्‍या उस वक्‍त की गई जब उनके साथ सिक्‍योरिटी गार्ड मौजूद थे. वो अपनी लाल बत्ती की कार से उतरे ही थे कि एके 47 से लैस 4 बदमाशों ने उनपर फायरिंग शुरु कर दी और वहां से फरार हो गए.

Advertisement

मुख्यमंत्री के मर्डर की सुपारी

इस कत्ल के साथ ही श्रीप्रकाश ने साफ कर दिया था कि अब पूरब से पश्चिम तक रेलवे के ठेकों पर उसी का एक छत्र राज है. बिहार के मंत्री के कत्ल का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि तभी यूपी पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पुलिस के हाथ-पांव फूल गए. श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली थी. 6 करोड़ रुपये में सीएम की सुपारी लेने की खबर एसटीएफ के लिए बम गिरने जैसी थी.

मोबाइल सर्विलांस का इस्तेमाल

एसटीएफ हरकत में आई और उसने तय भी कर लिया कि अब किसी भी हालत में श्रीप्रकाश शुक्‍ला का पकड़ा जाना जरूरी है. एसटीएफ को पता चला कि श्रीप्रकाश दिल्‍ली में अपनी किसी गर्लफ्रेंड से मोबाइल पर बातें करता है. एसटीएफ ने उसके मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया. लेकिन श्रीप्रकाश को शक हो गया. उसने मोबाइल की जगह पीसीओ से बात करना शुरू कर दिया. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि पुलिस ने उसकी गर्लफ्रेंड के नंबर को भी सर्विलांस पर रखा है. सर्विलांस से पता चला कि जिस पीसीओ से श्रीप्रकाश कॉल कर रहा है, वो गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में है. खबर मिलते ही यूपी एसटीएफ की टीम फौरन लोकेशन की तरफ रवाना हो जाती है.

Advertisement

ऐसे मारा गया था श्रीप्रकाश शुक्ला

23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्‍ला दिल्‍ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है. श्रीप्रकाश शुक्‍ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उस वक्‍त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ था कि एसटीएफ उसका पीछा कर रही है. उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया. पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया. और इस तरह से यूपी के सबसे बड़े डॉन की कहानी खत्म हुई.

कई नेताओं और पुलिसवालों से थी दोस्ती

श्रीप्रकाश शुक्ला की मौत के बाद एसटीएफ को जांच में पता चला कि कई नेताओं और पुलिस के आला अधिकारियों से उसके शुक्ला की दोस्ती थी. कई पुलिस वाले उसके लिए खबरी का काम करते थे. जिसकी एवज में उन्हें श्रीप्रकाश से पैसा मिलता था. कई नेता और मंत्री भी उसके सहयोगी थे. यूपी के एक मंत्री का नाम तो उसके साथ कई बार जोड़ा गया था. वह तत्कालीन मंत्री अब जेल में बंद है. इस मामले में कई अधिकारियों और नेताओं की खुफिया जांच पड़ताल भी की गई थी.

पुलिस ने खर्चे किए थे एक करोड़

माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला अपने पास हर वक्त एके47 राइफल रखता था. पुलिस रिकार्ड के मुताबिक श्रीप्रकाश के खात्मे के लिए पुलिस ने जो अभियान चलाया. उस पर लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे. यह अपने आप में इस तरह का पहला मामला था, जब पुलिस ने किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च की थी. उस वक्त सर्विलांस का इस्तेमाल किया जाना भी काफी महंगा था. इसे अभी तक का सबसे खर्चीला पुलिस मिशन कहा जा सकता है.

Advertisement
Advertisement