चार महीने पहले एक तस्वीर आई थी. तस्वीर यूपी के बदायूं की थी. तस्वीर में दो बहनों की लाशें पेड़ पर लटकी नजर आ रही थी. तब उस तस्वीर और तस्वीर के पीछे की कहानी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था पर अब चार महीने बाद उसी मामले ने अचानक यू टर्न ले लिया है. एक ऐसा यू-टर्न जिसके बाद पूरी कहानी ही पलटती नजर आ रही है और ये यू टर्न आया है इस मामले के इकलौते चश्मदीद के लाइ डिटेक्टर टेस्ट के बाद.
तकरीबन साढ़े तीन महीने बाद अब वही मामला सिर के बल यानी बिल्कुल उल्टा खड़ा दिखाई देने लगा है. दूसरे लफ्ज़ों में कहें, तो इस मामले की जांच में अब एक ऐसा यू टर्न आया है, जिसने मामले की तफ्तीश कर रहे सीबीआई के धाकड़ अफसरों का सिर भी घुमा दिया है. इसकी सीधी सी वजह बस इतनी है कि वारदात का शिकार हुई दोनों लड़कियों के घरवालों के बाद अब इस मामले का इकलौता चश्मदीद भी सीबीआई के लाई-डिटेक्शन टेस्ट में फेल हो गया है.
दरअसल, बाबूराम उर्फ नजरू ही वो शख्स है, जिसने कत्ल से पहले दोनों बहनों को आख़िरी बार देखा था या फिर यूं कहें कि नजरू ने ही पुलिस को दिए गए बयान में 26 मई की शाम को इन बहनों को आखिरी दफा देखने की बात कही थी. नजरू ने यहां तक कहा कि इन दोनों ही बहनों को गांव ही एक नौजवान पप्पू यादव अपने साथ ले जा रहा था और जब उसने पप्पू को रोकने की कोशिश की, तो उसने तमंचा दिखा कर नजरू को वहां से भगा दिया. जाहिर है, नजरू के इस बयान से मामले में शक की सुई सीधे-सीधे पप्पू पर ही जाकर टिक गई और जब अगले दिन सुबह दोनों बहनों की लाश पेड़ से लटकती हुई मिली, तो सबके निशाने पर पप्पू ही था. धीरे-धीरे तफ्तीश आगे बढ़ी और पप्पू के साथ-साथ कुल पांच लोग इस मामले में गिरफ्तार कर लिए गए.
लेकिन जब मामले की जांच सीबीआई के हवाले हुई और उसने तफ्तीश को आगे बढ़ाने से पहले इसकी तस्दीक का फैसला किया, तो उसे पहला झटका तब लगा, जब लड़कियों के घरवाले ही लाइ डिटेक्शन टेस्ट में फेल हो गए. यानी इससे पहले नजरू के बयान की तस्दीक करते हुए घरवालों ने जिन लोगों को अपनी बेटियों की जान लेने के इल्जाम लगाए थे, टेस्ट के दौरान वो पूरी तरह उन बातों पर कायम नहीं रह सके.
ऐसे में अब सीबीआई के सामने बाबूराम उर्फ नजरू के लाइ डिटेक्शन के सिवाय कोई चारा नहीं था. लिहाज़ा, उसने मामले को आगे बढ़ाने से पहले उस गवाह को भी टटोलने का फ़ैसला किया, जिसके बयान पर पूरा मामला टिका था, लेकिन सीबीआई की हैरानी का तब कोई पारावार नहीं रहा, जब फॉरेंसिक लैब से मिली रिपोर्ट से ये साफ़ हो गया कि लड़कियों के घरवालों की तरह नज़रू झूठ-सच के खेल में उलझा था.
लाइ डिटेक्शन टेस्ट में वो अपने दिए गए बयान से ना सिर्फ डिग गया, बल्कि ये भी बता गया कि उसके पास एक मोबाइल फोन भी है, जबकि इससे पहले नजरू ने अपने पास मोबाइल फ़ोन होने की बात से इनकार किया था. जाहिर है, कुछ ऐसा जरूर था, जिसे नजरू छिपाने की कोशिश कर रहा था. ऐसे में अब सीबीआई ने ना सिर्फ उसके लाइ डिटेक्शन टेस्ट के बाद मामले के तथ्यों को नए सिरे से खंगालने का फ़ैसला किया है, बल्कि उसके मोबाइल फ़ोन को बरामद कर उसे फॉरेंसिक इनवेस्टिगेशन के लिए भिजवा दिया है.
इस मामले में पहला मोड़ तो उसी दिन आ गया था, जब सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में लेने के बाद लड़कियों के घरवालों से पूछताछ की थी. सूत्रों की मानें तो उन्हीं दिनों सीबीआई को पीड़ित परिवार के बयानों में कई ऐसे विरोधाभास नजर आए, जिससे इस मामले को लेकर शक पैदा हो गया, लेकिन तब ये बात और पुख्ता हो गई, जब पोस्टमार्टम के बाद इस मामले की दूसरी फॉरेंसिक रिपोर्ट आई. दरअसल, सीबीआई ने पहले दोनों बहनों की लाशें कब्र से खुदवा कर उनके दोबारा पोस्टमार्टम करवाने का फैसला किया था, लेकिन जब दोनों बहनों की कब्र गंगा में समा गई, तो सीबीआई ने पहले इकट्ठा किए गए फॉरेंसिक एक्जीबिट यानी नमूनों की जांच करवाने का ही फैसला किया और जब इस फैसले का नतीजा सामने आया, तो सभी चौंक गए.
दरअसल, बदायूं के डॉक्टर ने रिपोर्ट दी थी कि कत्ल से पहले दोनों बहनों के साथ गैंगरेप किया गया, जबकि दोनों बहनों के एक्जीबिट्स की जांच के बाद सीबीआई के फॉरेंसिक एक्सपर्टस ने बताया कि उनके साथ बलात्कार हुआ ही नहीं था. इस इरादे से जब चश्मदीद बाबूराम उर्फ नजरू की पॉलीग्राफ जांच हुई, तो फिर से नई कहानी सामने आ गई. इस टेस्ट रिपोर्ट की मानें तो नजरू ने इस मामले में जो बयान दिया था, वो सही नहीं था. ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आख़िर लड़कियों के घरवाले और नज़रू झूठ क्यों बोल रहे हैं और क्या ऐसा करने के पीछे उनका इरादा अपने विरोधियों को फंसाने का है? अगर, यही सच है तो फिर दोनों बहनों का क़ातिल कौन है?