2016 की आखिरी रात को अलविदा कहने और 2017 की पहली रात का स्वागत करने के लिए बहुत सारे लोगों की तरह वो भी दिल्ली में एक फाइव स्टार होटल में गया था. पर वहां ज्यादातर कपल थे. बस वो और उसके तीन दोस्त ही थे. यानी उनके साथ कोई लड़की नहीं थी. इसके बाद जश्न के नाम पर ड्रिंक और डांस का दौर शुरू होता है. फिर वो अगले कई घंटे तक बस दूसरी लड़कियों को भीड़ और माहौल का फायदा उठा कर छूता रहता और खुश होता रहता है. ये कहानी एक की है. पर शायद हकीकत बहुत सारे लोगों की. दरअसल यही वो लोग हैं जो नहीं जानते कि नो का मतलब नहीं होता है.
देश की आबादी में ये पचास फ़ीसदी की हिस्सेदार हैं. यानी ये आधा हिंदुस्तान हैं. पर ना-ना सुनने की खतरनाक फितरत जो हम सबने अपने अंदर पाल रखी है, उसका खतरा इन पचास फीसदी औरतों और लड़कियों के हिस्से और वजूद पर सबसे ज्यादा आता है. अब ग़ौर करते जाइये और आप पायेंगे कि अगर जुर्म है, हादसे हैं, वारदात है तो उसका आधा हिस्सा आबादी के इस आधे हिस्से की क़िस्मत में भी आता है. हमारी आबादी का ये आधा हिस्सा न तो सड़कों पर महफ़ूज़ है, न घरों में. ना दफ्तर में, ना बाजार में. जानते हैं क्यों? क्योंकि हम मानने को तैयार ही नहीं है कि नो मतलब नहीं होता है. फिर चाहे वो कोई भी हो.
दो दिन के अंदर एक ही शहर से दो तस्वीरें सामने आती हैं. ये तस्वीरें चीख-चीख कर कह रही हैं- नो, लेकिन हम हैं कि नो को नहीं मानने को तैयार ही नहीं हैं. क्योंकि हमारी सोच में ही य़ो सच घर कर चुका है कि जो लड़कियां अकेली होती हैं, रात को तनहा घर के बाहर निकलती हैं, पब या बार में जाती हैं. सिगरेट और शराब पीती हैं, तंग और छोटे कपड़े पहनती हैं, वो कभी ना बोल ही नहीं सकतीं. मगर जब वो सचमुच नो बोलती हैं तो हम बर्दाश्त नहीं कर पाते और फिर इसी तरह जबरदस्ती पर उतर आते हैं.
न्यू ईयर की पार्टी थी. बैंगलोर जैसा पढ़ा-लिखा और आदर्श शहर के तमाम पढ़े-लिखे और खुद को इज्जतदार और अच्छी सोसायटी का हिस्सा मानने वाले लोग. पर उन्होंने भी क्या किया? पार्टी में आई लड़कियों को देख खुद ही फैसला कर लिया कि ये नो नहीं बोलेंगी. जब उनका भ्रम टूटा तो बर्दाश्त हुआ नहीं. हां, बोलते ही जिन लड़कियों से वो दोस्ती निभा रहे होते ना बोलते ही उन पर जानवरों की तरह टूट पड़े. उन्हें नोचने-खसोटने लगे. शुरूआत एक ने की. और फिर देखते ही देखते सारे शरीफों नो अपना रंग दिखा दिया. बस एक नो ने शराफत के कपड़े ऐसे उतारे कि हमाम में सब नंगे हो गए.
उसी आदर्श शहर की दूसरी तस्वीर. रात का वक्त. अकेली लड़की. मानने को तैयार ही नहीं कि ये भी नो बोल सकती है. पर उसने नो बोला. और बस ना सुनते ही ये भी इंसान से जानवर बन बैठा. दरअसल सच्चाई ये है कि हमने जो नहीं सीख के सीखा है वो ये कि इंसानी सभ्यता की इस लंबी दौड़ में चीज़ों को नज़रअंदाज़ करते रहना ही शायद सबके लिए बेहतर है. इस सच्चाई के पैमाने पर ये सब अकेली नहीं हैं. इस वक्त जब हम और आप ये बातें कर रहे हैं. किसी मोहल्ले. किसी घर के अंधेरे कोने में. किसी होटल के क़ीमती कमरे में कोई मासूम किसी वहशी की बाहों में मजबूर होकर ख़ामोश हो चुकी होगी.
उसकी आंखें चारों तरफ़ ये देख रही होंगी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा. क्योंकि वो अकेली नहीं है. पूरे घर की इज़्ज़त का बोझ सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके ही कंधों पर है. उसे मजबूरी का दर्द इस तरह से सहना है कि किसी को पता न चले. उसे बाप की मूंछ. भाई का अहंकार. ख़ानदान की लाज. सबका ख़्याल हर क़ीमत पर रखना है. अब आप ही बताइये. इतने झूठे समाज में इस नो को नकारने वाले हम और आप क्या कभी अपने गिरेबान में झांकने की हिम्मत करेंगे? या बस इंडिया-गेट पर नारे लगाकर, अपने-अपने शहरों में मोमबत्तियां जला कर ये साबित करने की कोशिश करेंगे कि देखिये हम उन जैसों में से नहीं हैं. नो का मतलब नहीं जानते.
वैसे तो बैंगलोर को पढ़े-लिखे और समझदार लोगों का शहर माना है, लेकिन इस शहर में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं, जो नो का मतलब नहीं समझते. सीसीटीवी में क़ैद पूर्वी बैंगलोर की तस्वीरें शहर की इसी स्याह पहलू को जाहिर करती हैं. जब आधी रात को एक अकेली लड़की को उसके घर से महज 50 मीटर के फासले पर दो लड़के रोक लेते हैं. फिर जैसे ही वो लड़की के मुंह से नो सुनते हैं उसी पल इंसान से जानवर बन जाते हैं. तस्वीरें बैंगलोर के एक रिहायशी इलाक़े की हैं. नए साल की पहली रात है. वक्त है रात के क़रीब दो बजकर चालीस मिनट और सड़क लगभग सुनसान. तभी एक लड़की ऑटो से नीचे उतरती है.
लड़की चुपचाप सड़क पर चलने लगती है. इसके फौरन बाद ऑटोवाले को पैसे देकर एक दूसरी लड़की भी उसी सड़क से अपने घर की तरफ़ जाने लगती है. इसी बीच पीछे से एक स्कूटी पर दो नौजवान वहां पहुंचते हैं. पहले वो उस लड़की पर कोई कमेंट करते हैं, जिससे कुछ देर के लिए लड़की ठहर जाती है. लेकिन फिर जैसे ही उसे मामला समझ में आता है, वो फिर से आगे बढ़ने लगती है. लड़की ने नो बोला था. ये नो इन लड़कों को इतना नागवार गुजरता है कि दोनों स्कूटी मोड़ कर सड़क किनारे खड़ी कर देते हैं. स्कूटी चला रहा लड़का सीधे स्कूटी से उतर कर लड़की की तरफ बढ़ता है और उसे जबरन अपनी बाहों में भर लेता है.
पहली नजर में इन तस्वीरों को देख कर ये धोखा हो सकता है कि शायद लड़का और लड़की एक दूसरे को जानते हैं. लड़का और लड़की की मर्जी से उसे गले कर रहा है. लेकिन जल्द ही लड़की की छटपटाहट से पूरा मामला समझ में आ जाता है. असल में लड़की अचानक और इस अजीबोगरीब हरकत से बुरी तरह घबरा जाती है. वो किसी तरह उसके चंगुल से निकलना चाहती है. लड़की खुद को बचाने के लिए बदमाश को एक थप्पड़ भी मारती है. लेकिन इसका उस पर कोई असर नहीं होता. अब वो लड़की को खींच कर अपनी स्कूटी की तरफ़ ले जाते हैं. खींचतान और जबरदस्ती का सिलसिला अब भी चलता रहता है.
इसी दौरान वो लड़की से उसके पैसे और दूसरी कीमती चीजें भी छीन लेते हैं. एक ही झटके में दोनों लड़की को सड़क पर पटक कर मौके से फरार हो जाते हैं. स्कूटी पर सवार बेशक दो ही लड़कों ने इस लड़की के साथ ज्यादती की, लेकिन वो वहां अकेले नहीं थे. बल्कि जिस वक्त ये दोनों इस लड़की के साथ जबरदस्ती कर रहे थे, उस सड़क पर उनके कुछ और साथी बाइक पर पहुंचे थे, जो चुपचाप खड़े कर होकर ना सिर्फ ये पूरा वाक्या देखते रहे, बल्कि अपने साथियों को आस-पास का हाल भी बताते रहे, ताकि कोई उन्हें मौके पर दबोच ना सके.