22 फीट की दीवार. उसके ऊपर कंटीली तारों में दौड़ता 440 वॉल्ट का करंट. 250 सुरक्षा गार्ड और जेल स्टाफ. करीब 150 सीसीटीवी कैमरे से हर आने जाने वाले पर गहरी नज़र. मगर फिर भी दस बदमाश धावा बोलते हैं. जेल से अपने छह साथी को ले भागते हैं. कैस? आखिर कैसे? आइए हम आपको बताते हैं कैसे? दरअसल जेल के अंदर शगुन का एक डिब्बा आया था. इसके बाद जैसे ही ये डिब्बा खुला जेल स्टाफ की आंखे खुद ब खुद बंद हो गईं.
रात के स्याह अंधेरे में जब सरहद सुनसान हो जाती है, तो उस पार से शगुन आता है. जी हां शगुन. इस लफ़्ज़ को गांठ बांध लीजिए, क्योंकि हर शगुन अच्छा नहीं होता. खासकर तब, जब वो पाकिस्तान जैसा पड़ोसी भेजे. इसकी शक्ल अलग हो सकती है, लेकिन मक़सद सिर्फ एक. हिंदुस्तान की तबाही. फिर भले वो नौजवानों की नसों में होकर गुज़रे या मुल्क की चौहद्दी पर लगी कंटीली तारों के नीचे से. कभी कभी तो ये तबाही शगुन की मिठाई के साथ भी आती है.
हिंदुस्तान की बर्बादी में जो भी साथ दे पाकिस्तान उसे ठीक वैसा ही मिठाई का डिब्बा भेजता है. जैसा पटियाले से सटे नाभा जेल में भेजा गया. डिब्बा हिंदुस्तानी था मगर उसमें रखी मिठाई पाकिस्तानी थी. शगुन स्वीट्स के डिब्बे में आईएसआई ने आतंकी हरविंदर सिंह मिंटू के नाम शगुन भेजा था. शगुन उस तबाही का जिसका मंसूबा सरहद पार बैठे आतंकी पाल रहे थे. लाज़िम है कि ये सवाल ज़ेहन में उठेगा कि मिठाई के डिब्बे में ऐसा कौन सा शगुन था.
नाभा जेल ब्रेक के तार सीमा पार से जुड़ते हैं. लेकिन गद्दारी हमारे देश के लोगों ने ही की. इनमें एक हलवाई था, जो खुशियों के टोकन के साथ आतंक के सामान की भी तिजारत करता है. दो सरकारी मुलाज़िम जो तंख्वाह हिंदुस्तान से लेते थे, लेकिन काम पाकिस्तान का करते थे. इन तीन किरदारों के साथ फरार कैदियों के रिश्तेदार और जेल स्टाफ के रिश्तेदारों के बीच. टाइट सिक्योरिटी वाली नाभा जेल से आतंकी और गैंगस्टरों को भगाने की डील पचपन लाख में तय हुई थी.