मौत ऐसी चीज है, जिसका नाम सुनने भर से अच्छे-अच्छों की हवा ख़राब हो जाती है. लेकिन बगदादी के सिरफिरे आतंकवादियों के लिए शायद मौत हंसी खेल का नाम है. तभी तो इराक के एक आतंकवादी कैप में जब दुश्मन के ठिकाने पर हमले के लिए जानेवाले फिदायीनों में 'पहले मैं-पहले मैं' की होड़ लगी, तो फ़ैसला दो बंद मुट्ठियों से लिया गया. दो ऐसी मुट्ठी, जिनमें एक में मौत कैद थी, तो दूसरे में ज़िंदगी.
जगह- मोसुल, इराक
वक्त- दोपहर के 12 बजे
आईएसआईएस के आतंकवादियों के एक कैंप में खुशनुमा माहौल है. 20 से 25 साल के नौजवान आतंकवादी आपस में बातें करते हैं. लेकिन ये बातचीत कोई मामूली गुफ़्तगू नहीं, बल्कि एक ख़ौफ़नाक खेल से जुड़ी हैं. खेल, मौत की बोली लगाने की और फिर इसी बातचीत के बीच एक आतंकवादी अपने दोनों हाथ पीछे ले जाकर अपनी मुट्ठी में कुछ छुपा लेता है. यानी उसकी एक मुट्ठी भरी हुई है, जबकि दूसरी खाली.
इसके बाद वो दोनों मुट्ठियां आगे करता है. सामने खड़े आतंकवादियों से एक मुट्ठी छूने को कहता है. दरअसल इस तरह ये आतंकवादी एक फ़ैसला लेना चाहते हैं. फ़ैसला हार और जीत का. इस खेल के नियम बिल्कुल साफ़ हैं. जो भरी हुई मुट्ठी छुएगा, जीत उसकी होगी. जबकि खाली मुट्ठी जिसके हिस्से में खुलेगी, उसे हार माननी होगी. तब नियम के मुताबिक एक आतंकवादी आगे बढ़कर एक मुट्ठी छू लेता है.
इत्तेफ़ाक से ये भरी हुई मुट्ठी है यानी जीत उसके हाथ लगती है. अब अपनी जीत पर ये आतंकवादी बेतहाशा चहकने लगता है. वहां मौजूद बाकी के आतंकवादी आगे बढ़ कर उसे बधाई देने लगते हैं. बाज़ी जीतनेवाले आतंकवादी के चेहरे के हाव-भाव, उसकी खुशी और वहां मौजूद तमाम लोगों का उसे यूं बधाई देना ये ईशारा करता है कि ये जीत कोई मामूली जीत नहीं, बल्कि कोई बड़ी कामयाबी है, लेकिन क्या?
आख़िर ये जीत कैसी है? और आख़िर इस खेल का सच क्या है? इस सच खौफनाक है. दरअसल खुली और बंद मुट्ठी से खेली गई एक ऐसी बाज़ी है, जिसका अंजाम धमाके की सूरत में सामने आता है. दरअसल, ये आतंकवादी अपने आका यानी आईएसआईएस के मुखिया अबु बकर अल बग़दादी के ईशारे पर इराक़ी फ़ौज के कब्ज़े वाली कुछ जगहों पर आत्मघाती हमला करने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन दिक्कत थी.
दिक्कत ये कि कैंप में मौजूद कई आतंकवादी इस काम के लिए तैयार थे. गरज़ ये कि इन आतंकवादियों को ये लगता है कि जो भी इस तरह दुश्मन के खेमे में खुद को बम बांध कर उड़ा लेगा उसे सीधे जन्नत हासिल होगी. बस इसी इरादे से इन आतंकवादियों में ये होड़ लगी थी कि आख़िर कौन सबसे पहले मानव बम के तौर पर खुद को उड़ाने दुश्मन के खेमे तक जाएगा. इसके लिए मुट्ठी के इस खेल का सहारा लिया.
अक्सर दुनिया भर में बच्चे अलग-अलग खेलों में जीत और हार के लिए खुली और बंद मुट्ठी की ऐसी बाज़ियां खेला करते हैं. लेकिन इन खूंखार आतंकवादियों का दिमाग़ किस कदर ख़राब हो चुका है कि वो मरने-मारने के लिए भी मुट्ठी के इस खेल के सहारे अपनी बारी का फ़ैसला कर रहे हैं. जैसे ही इस खेल में जीत हाथ लगती है कि ये आतंकवादी कुछ ऐसे उछलने लगता है, जैसे ये बाज़ी मौत की नहीं, बल्कि खुशी का हो.