मोसुल में जारी जंग के दौरान जैसे ही आईएसआईएस के आतंकवादी इराकी फौज से खुद को घिरा पाते हैं, अचानक इमोशनल ड्रामा शुरू कर देते हैं. गिड़गिड़ाते हैं, सड़कों पर लोटने लगते हैं. बेतहाशा रोने लगते हैं. वक्त का पहिया हमेशा घूमता है. ज़ुल्म की मुद्दत ज्यादा लंबी नहीं होती. एक वक्त था जब वो दूसरों पर जुल्म ढहाते थे. और अब एक वक्त ये है कि खुद रो रहे हैं. रो रहे हैं अपनी बर्बादी पर, अपनी हार पर और सामने खड़ी अपनी मौत पर.
आतंकियों के चेहरे पर मौत का डर
बात-बात पर लोगों का सिर क़लम करने, उन्हें सूली पर टांगने, गोली मारने और ज़िंदा जला देने वाले आतंकवादियों की अपनी जान पर जब खुद आ बनी है, तो वो बेहताशा रो रहे हैं. इराक़ी फ़ौज की गिरफ्त में आने के बाद खुद आईएसआईएस के आतंकवादियों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही हैं. डर उनकी आंखों के रास्ते बाहर निकल रहा है.
रो रहे हैं बगदादी के शैतान
आईएसआईएस के गढ़ की ये कोई इकलौती तस्वीरें नहीं हैं. हालात ये हैं कि मोसुल की गलियों से अब बगदादी के आतंकी बेआबरू हो कर भाग रहे हैं. जिन्हें अपने आका बगदादी पर खुद से ज़्यादा भरोसा था, अब वो उसके जाने के बाद ज़ार ज़ार रो रहे हैं. आतंकियों के आंखों से निकलते इन आंसुओं को न तो बगदादी की खिलाफत रोक पा रही है. ना ही 72 हूरों का सपना और न ही इस्लामिक स्टेट का ख्वाब.
छोडकर भाग गया बगदादी
इन आतंकियों ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि उनका खलीफ़ा बग़दादी उन्हें बीच मझधार में छोड़ कर कुछ यूं गायब हो जाएगा. लेकिन मौत का डर शायद होता ही ऐसा है. जान पे बन आई तो खलीफा तो भाग गया लेकिन अपनी दहशत की उम्मत पीछे रोते हुए छोड़ गया.
आतंकियों को न बख्शने का फरमान
जो आतंकी ज़िंदा हैं, वो इराकी सेनाओं के खौफ में रो रहे हैं. जो फौजियों के कब्ज़े में हैं, वे ज़िंदगी के लिए रो रहे हैं. कुल मिलाकर बगदादी की सल्तनत में रोना-पिटना मचा हुआ है. मगर इराकी सेना को हिदायत दी गई है कि किसी भी सूरत में इन दहशतगर्दों के साथ रहम न किया जाए.
मौत सामने देखकर बुरा हाल
करीब महीने भर पहले एक ऑडियो मैसेज के ज़रिए बग़दादी ने अपने आतंकवादियों को मैदान-ए-जंग में डटे रहने के लिए उकसाया था. लेकिन इसके बाद से ना तो बग़दादी का कुछ पता है और ना ही उसके ख़ास चमचों का. ऐसे में आतंकवादियों को लगने लगा है कि बगदादी खुद तो चला गया, मगर उन्हें मौत के सामने डाल गया.
इमोशनल ड्रामा
बगदादी जाने से पहले ज़मीन पर इराकी सेनाओं और आसमान में अमेरिकी जंगी जहाज़ों से घिरे आतंकियों के लिए फरमान सुना गया कि जब तक मार सको मारो और जब ना मार सको तो फिर फिदायीन बनकर खुद मर जाओ. मगर मरने के बजाए इन आतंकियों ने यहां इमोशनल तरीक़ा ढूंढ़ निकाला है.
इस्लाम की दुहाई
रो-रोकर ये आतंकी अपने जैसी सोच रखने वाले भटके नौजवानों को इस्लाम की दुहाई देकर बुला रहे हैं. ताकि इनकी खुद की जान बच सके और मैदान-ए-जंग में उनकी जान कुर्बान कर के ये बगदादी के दिए टारगेट पूरा कर सकें. अपने कब्ज़े वाले इलाकों में आईएसआईएस नौजवानों को इस्लाम की दुहाई देकर बरगला रहा है.
मज़हब के नाम पर बनाए फिदायीन
लगातार ऐसे नौजवानों के वीडियो इन इलाकों में वायरल किए जा रहे हैं, जिन्हें फिदायीन बनाकर बगदादी इस आग में झोंक चुका है. आतंकी उन्हें शहीद बताकर हीरो बना रहे हैं. ताकि इन जैसे और फिदायीन पैदा किया जा सकें. लेकिन जिन नौजवानों को मज़हब के नाम पर फिदायीन बनाया जा रहा है, उन्हें ऐसा न करने पर बगदादी ने मारने का हुक्म दिया है.
सेना ने जारी किया आतंकियों का वीडियो
मिलिशिया फोर्स ने जो वीडियो जारी किया है, उसमें आतंकी रो-रोकर बयान कर रहे हैं कि बगदादी के लोगों ने इन्हें जन्नत जाने और हूरों से मिलने का सपना दिखाया था. दूसरे मज़हब के लोगों के बारे में बरगलाया था. लेकिन जब आईएसआईएस की हकीकत से सामना हुआ तो ये जान बचाकर भागने लगे, तब बगदादी ने इनकी मौत का फरमान जारी कर दिया.
आतंकियों के सिर पर मौत
अब जब इनके आगे भी मौत है. पीछे भी मौत है. तो ये अपना सिर पीट पीटकर गुनाहों की माफी मांग रहे हैं. सिर्फ खबर ही नहीं बल्कि तस्वीरें और वीडियो भी हैं कि कैसे बगदादी की एक टीम सिर्फ नौजवानों को बरगला रही है. अपने कब्ज़े वाले इलाकों में ये कभी मस्जिदों में लोगों का ब्रेन वॉश कर रहे हैं तो कभी दफ्तरों में.
दो हजार से ज्यादा आतंकी हलाक
कभी मज़हब के नाम पर तो कभी बंदूक के ज़ोर पर. कभी रोकर तो कभी चिल्ला कर. ये आतंकी मोसुल में हर पैंतरा आज़मा रहे हैं. ताकि उन्हें लोकल सपोर्ट मिल सके. मगर हकीकत ये है कि कोई अब इनके झांसे में आने को तैयार नहीं है. पिछले दो महीनों से मोसुल में इराक़ी फ़ौज आईएसआईएस के 2 हज़ार से ज़्यादा आतंकवादियों को मौत के घाट उतार चुकी है.