वो एक पेशेवर मुजरिम था. तीस से भी ज्यादा मुकदमे उसके नाम थे. तभी साल भर पहले दिल्ली के कनॉट प्लेस में वो एक लड़की को देखता है. उसे लड़की से प्यार हो जाता है. इसके बाद पूरे साल भर वो उसका पीछा करता है. उससे न ही कभी बात करता है, न ही मिलता है और न ही उसे तंग करता है. यहां तक कि उसके करीब रहने के लिए वो ऑटो खरीद कर ऑटो वाला तक बन जाता है. फिर साल भर बाद अचानक एक रोज वो कहता है, 'जहां इतने मुकदमे, वहां एक मुकदमा मोहब्बत का भी सही .' गाजियाबाद की दीप्ति की किडनैपिंग की पूरी कहानी बस यही है.
'एक मुकदमा मोहब्बत का सही'
मोहबब्त दरअसल वो अहसास है जो हर दिल में रहता है. वो जज्बा है जो कायनात के ज़र्रे-ज़र्रे में बिखरा है और बस मोहब्बत की इसी एक फितरत पर नफरत को भी मोहब्बत मोहब्बत है. पुरानी कहावत है कि इश्क अंधा होता है और नया सच ये कि इश्क में लोग भी अंधे हो जाते हैं. ऐसा न होता तो ये आशिक मोहब्बत को मुकदमा नहीं बनाता.
जुर्म में लिपटी मोहब्बत या यूं कहें कि एकतरफा मोहब्बत की ऐसी लव स्टोरी दूसरी शायद ही मिले. किसी को अगवा करने के बाद खुद उसे वही छोड़ने जाए और फिर पूछे कि 'दोस्त बना कर जा रही हो या दुश्मन? ' ऐसी किडनैपिंग देखी है कभी?
'हीरो' बनने के लिए बना 'विलेन'
गाजियाबाद की 24 साल की दीप्ति की किडनैपिंग की कहानी का हर पन्ना खुल गया है. हर रहस्य उजागर हो गया है और हर सवाल का जवाब सामने आ चुका है. स्नैपडील में इंजीनिर दीप्ति को अगवा करने वाला है तो पेशेवर अपराधी लेकिन उसने उसे पैसों के लिए अगवा नहीं किया था, बल्कि उसके दिल में अपनी मोहब्बत जगाने के लिए किया था. और बाकायदा ये सोच कर किया था कि नाकाम रहा तो क्या होगा, इतने मुकदमों के बीच एक मुकदमा मोहब्बत का सही.
दीप्ति किडनैपिंग का पूरा सच
इस इकतरफा लव स्टोरी की कहानी 2015 के जनवरी-फरवरी में शुरू होती है. देवेंद्र को पहली नजर में ही दीप्ति से प्यार हो जाता है. इसके बाद दीप्ति की एक झलक पाने को आए दिन उसका पीछा करता है. साल भर में देवेंद्र ने कभी दीप्ति से बात करने की कोशिश नहीं की. न ही एक आशिक बन कर कभी उसके सामने आया. पर इस दौरान दीप्ति, उसका घर, दफ्तर, घरवाले, दोस्त सबके बारे में पता कर लिया.
एकतरफा प्यार बना जुनून
वक्त बीतता जाता है और इसके साथ ही देवेंद्र का एकतरफा प्यार जुनून में तब्दील होता जाता है. वो किसी भी कीमत पर दीप्ति को पाना चाहता था. पर एक विलेन के तौर पर नहीं बल्कि हीरो के तौर पर. और इसी कोशिश में उसने एक अजीब साजिश रची. साजिश, दीप्ति को अगवा करने की और साजिश दीप्ति की नजरों में हीरो बनने की. इसी साजिश के तहत तीन महीने पहले यानी दिसंबर में देवेंद्र दो ऑटो खरीदता है और उसी इलाके में ऑटो चलाने लगता है, जहां से दीप्ति घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आती-जाती थी.
दोस्तों को भी किया शामिल
अपनी इस साजिश में वो अपने दो दोस्तों को भी शामिल कर लेता है लेकिन उन्हें दीप्ति और अपने एकतरफा इश्क का सच नहीं बताता. बल्कि एक दूसरी कहानी सुनाता है.
साजिश चलती रहती है. इस दौरान ऐसे कुछ मौके भी मिलते हैं जब दीप्ति उसके ऑटो में बैठती है और वो उसे घर छोड़ने जाता है. पर ऐसा कम होता था. क्योंकि दीप्ति उसी ऑटो में बैठती थी जिसमें एक-दो लड़कियां बैठती हों.
दीप्ति का रखा पूरा ख्याल
सारी रेकी और तैयारी के बाद देवेंद्र आखिरकार दीप्ति को अगवा करने के लिए 10 फरवरी का दिन चुनता है. किडनैपिंग के बाद कई जगहों से होते हुए देवेंद्र दीप्ति को अपने गांव ले जाता है. 24 घंटे बीत जाते हैं. इस दौरान देवेंद्र डरी-सहमी और रोती दीप्ति को बार-बार समझाता है, उसका हौसला बढ़ाता है, उसका ख्याल रखता है, उसे रजाई देता है और यहां तक कि उसका मन-पसंद खाना खिलाता है.
दोस्त को बताया गलत
मगर इसके साथ ही वो बार-बार दीप्ति से ये भी कहता कि उसे किसी से मिलवाने के लिए अगवा किया गया है और उसका जो दोस्त है वो अच्छा इंसान नहीं है. उससे दूर रहो. ये वही दोस्त था जिसके साथ देवेंद्र ने दीप्ति को पहली बार कनॉट प्लेस में देखा था.
दीप्ति की नजरों में बना हीरो
देवेंद्र की साजिश का पहला चरण पूरा हो चुका था. वो दीप्ति की नजरों में अच्छा बन गया था. अब साजिश की अगली कड़ी की बारी थी. देवेंद्र को दीप्ति की नजर में हीरो बनना था. लिहाजा वो बार-बार दीप्ति से यही कहता था कि वो बुरा नहीं है. पर जिन लोगों ने उसका किडनैप कराया है उनसे वो उसे बचाएगा. साथ ही साथ वो लगातार दीप्ति को ये भी कहता रहा कि जिस दोस्त के साथ वो कनॉट प्लेस में घूम रही थी उससे वो दूर रहे. फिर जब देवेंद्र को यकीन हो गया तब वो खुद दीप्ति को लेकर रेलवे स्टेशन जाता है.
दोस्त बना कर जा रही हो या दुश्मन?
ये वो आखिरी लाइन थी जो देवेंद्र ने दीप्ति को रिहा करते हुए कही थी. दरअसल देवेंद्र का मकसद कभी भी दीप्ति को नुकसान पहुंचाना, मारना या फिरौती लेना था ही नहीं. इसलिए जैसे ही उसे लगा कि वो दीप्ति की नजरों में अच्छा बन गया है उसने दीप्ति को रिहा कर दिया. 12 फरवरी को देवेंद्र खुद दीप्ति को लेकर अपने साथ गांव के स्टेशन तक गया और उसे दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया.
पुलिस का सिरदर्द बना केस
ट्रेन में बैठते ही दीप्ति ने एक मुसाफिर से फोन लेकर अपने घर कॉल किया और फिर बा-हिफाजत घर पहुंच गई. अब चूंकि दीप्ति खुद से घर आ गई, उसे कोई चोट भी नहीं पहंची, न ही फिरौती के लिए कोई कॉल आया. लिहाज़ा पुलिस शुरूआत में उलझी रही. उसे दीप्ति के कई बयानों पर भी शक हुआ. लेकिन फिर जांच में सच सामने आ ही गया.
ग्रैजुएट है देवेंद्र
सच सामने आने के बाद देवेंद्र ने बाकायदा पुलिस की मौजूदगी में अपनी कहानी भी खुद सुनाई. देवेंद्र के सिर से एकतरफा इश्क का बुखार उतरा या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन पर गिरफ्तारी के बाद अब वो ये जरूर कह रहा है कि उसके रास्ते अलग हैं और दीप्ति के अलग. सुनिए देवेंद्र की कहानी उसी की जुबानी। हरियाणा का रहने वाला देवेंद्र पढ़ा-लिखा क्रिमिनल है. ग्रेजुएट देवेंद्र शाहरूख खान , हिटलर और चंगेज खान का फैन है.
दरअसल देवेंद्र को कई किताबें पढ़ कर फिल्में देखने के बाद ही ये ख्याल आया कि उसकी जिंदगी में एक खूबसूरत लड़की हो जिसके साथ वो घर बसाए. इसके लिए वो जुर्म की दुनिया बी छोड़ने को तैयार था. और इस तरह इकतरफा इश्क का अंजाम वही हुआ जो होना था. हां, देवेंद्र अपनी ये बात जरूर सच कर गया कि जहां इतने मुकदमे हैं वहां एक मुकदमा मुहब्बत का सही.