कोरोना संकट में काफी लोगों ने मजबूरी का जमकर फायदा उठाया. आजतक के स्टिंग 'ऑपरेशन अधर्म' में ऐसे ढेरों चेहरे बेनकाब हुए जिनका धर्म है महामारी में जरूरतमंदों की मदद करना, लेकिन नोटों के आगे वो अपना धर्म भूल गए और ईमान बेच बैठे. आज हम नामी अस्पतालों के बाहर मरीजों की मजबूरी की बोली लगाने वाले सौदागरों का पूरा सच आपको बताएंगे स्टिंग ऑपरेशन के जरिए.
ऑपरेशन में लाशों पर सौदा करने वाले कई घिनौने चेहरे कैद हुए. कौन हैं ये लोग. कैसे चल रहा है कालाधंधा. राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी कोविड हॉस्पिटल 'राजस्थान यूनिवसिटी हेल्थ साइंसेज' के ठीक बाहर होने वाली शर्मनाक सौदेबाजी का सनसनीखेज सच हमारे खुफिया कैमरे में कैद हुआ. जयपुर का राजस्थान हॉस्पिटल हो या फिर राजस्थान का सबसे बड़ा और मशहूर अस्पताल सवाई मान सिंह. आपको हर हॉस्पिटल के बाहर शर्मनाक सौदेबाजी करने वाले सौदागर मिल जाएंगे.
आजतक की टीम जब राजस्थान यूनिवर्सिटी हेल्थ साइंसेज हॉस्पिटल के बाहर खुफिया कैमरे के साथ पहुंची तो मेनगेट पर पुलिसवाले ड्यूटी पर तैनात मिले लेकिन उसी से चंद कदमों की दूरी पर सबसे शर्मनाक सौदेबाजी होती है.
ये सौदेबाजी कोई और नहीं बल्कि हॉस्पिटल के बाहर मौजूद एंबुलेंस सर्विस मुहैया करने वाले ऑपरेटर करते हैं. राजस्थान सरकार का ये सबसे बड़ा कोविड हॉस्पिटल है, लेकिन यहां एंबुलेंस ऑपरेटरों की अंधेरगर्दी चलती है, मनमर्जी चलती है. राजस्थान सरकार ने एंबुलेंस के रेट फिक्स कर दिए लेकिन पुलिस की मौजूदगी में भी सरकारी रेट पर मरीजों को एंबुलेंस नहीं मिलती.
EXCLUSIVE | जयपुर में प्राइवेट एम्बुलेंस सेवाओं का स्टिंग ऑपरेशन. आजतक के कैमरे में कैद हुआ ऐम्बुलेंस ऑपरेटरों का सच. | @anjanaomkashyap, @AnkurWadhawan #SpecialReport #Covid19 #coronavirus #ambulance pic.twitter.com/LL541NgdB8
— AajTak (@aajtak) June 3, 2021
क्या हुई बातचीत
आजतक के कैमरे में एंबुलेंस का पूरा सच कैद है. गौर से बातचीत को सुनिए.
रिपोर्टर- एक बॉडी को यहां से बस्सी लेकर जाना है, आप क्या चार्ज करेंगे
ऑपरेटर- 4500, कोविड बॉडी है
रिपोर्टर- हां, कोविड बॉडी
ऑपरेटर- हां, 4500
रिपोर्टर- बस्सी तो बहुत करीब है सिर्फ 20 किलोमीटर
ऑपरेटर- 20 किलोमीटर? 50 किलोमीटर से कम नहीं
रिपोर्टर- आप यहीं से तो निकलोगे पीछे से
ऑपरेटर- हम रोज जाते हैं, कोई रूट हो
रिपोर्टर- मीटर के रीडिंग के हिसाब से देख लेना
ऑपरेटर- मीटर रीडिंग के हिसाब से बस्सी नहीं जाऊंगा
रिपोर्टर- फिर आप कितना चार्ज करेंगे
ऑपरेटर- मैंने पहले ही बता दिया, सौ दो सौ कम दे देना,
रिपोर्टर- आप 4500 चार्ज करेंगे
ऑपरेटर-4500 की जगह 4000 हजार दे देना
रिपोर्टर- ज्यादा से ज्यादा 25 से 30 किलोमीटर है यहां से, हम परेशान हैं और आप ऐसे बात कर रहे हैं
ऑपरेटर- श्मशान घाट जाना होगा, बॉडी सिर्फ श्मशान जाएगी
रिपोर्टर- आपके लिए दूरी बराबर होगी
ऑपरेटर-किलोमीटर के हिसाब से नहीं जाएंगे, 1000 या 500 किलोमीटर होता तो मीटर के हिसाब से चलते.
रेट को लेकर आपसी विवाद
एंबुलेंस ऑपरेटरों की अंधेरगर्दी को बेपर्दा करने के लिए आजतक संवाददाता ने मरीज के परिजन बनकर बात की, एक डेडबॉडी को श्मशान घाट पहुंचाने को लेकर, लेकिन एंबुलेंस ऑपरेटर ने साफ मना कर दिया कि वो सरकारी रेट पर नहीं जाएगा. ये तब है जब बार-बार एंबुलेंस ऑपरेटर को सरकारी रेट लिस्ट याद दिलाई.
रिपोर्टर- सरकार ने तो रेट फिक्स कर दिए हैं, 500 रुपये पहले दस किलोमीटर, उसके बाद 12.5 रुपये प्रति किलोमीटर
ऑपरेटर- इस गाड़ी का नहीं है, दूसरी गाड़ी का बताया है
रिपोर्टर- बोलेरो के लिए 15 रुपये है
ऑपरेटर- किलोमीटर के हिसाब से नहीं जाते, छोटी गाड़ी 3000 हजार में जाएगी, बड़ी चार हार में
रिपोर्टर- 3000 या 4000 रुपये चार्ज तो नहीं बैठता
ऑपरेटर-आपके हिसाब से क्या चार्ज है
रिपोर्टर- सरकार ने किलोमीटर के हिसाब से जो रेट तय किया है
ऑपरेटर- किलोमीटर के हिसाब से नहीं जाएंगे.
आजतक रिपोर्टर ने एक दूसरे ऑपरेटर से एंबुलेंस के बारे में पूछा तो चौंकाने वाला सच कैमरे में कैद हुआ.
ऑपरेटर- कहां जाओगे
रिपोर्टर- बस्सी
ऑपरेटर- 1800 रुपये (धमकी दी दूसरे वाले ने, इतना क्यों मांगा)
रिपोर्टर-आप क्या कह रहे हो
ऑपरेटर- मैं कुछ नहीं कह रहा
रिपोर्टर-आप लड़ क्यों रहो हो उससे
धमकाने वाला ऑपरेटर- हमारे बीच की बात है
ऑपरेटर- 1800 रुपये लगेंगे.
दूसरा ऑपरेटर 1800 रुपये में चलने को तैयार हो गया, .लेकिन इस सौदे को बगल में खड़े दूसरे ऑपरेटर ने सुना तो आग बबूला हो गया. यह वही है जिससे थोड़ी देर पहले हमारी बात हुई थी. हमारे सामने कम पैसे में चलने को तैयार हुए एंबुलेंस ऑपरेटर को दूसरे ने धमकाना शुरू कर दिया. खुलेआम धमकाया गया, जब रिपोर्टर ने इस धमकी की वजह पूछी तो उसने कुछ इस तरह से जवाब दिया.
रिपोर्टर- वो कम पैसे में लेकर जा रहा है तो आपको क्या दिक्कत है
ऑपरेटर- सिर हिलाने का इशारा
रिपोर्टर- तुम जाओगे नहीं और दूसरे को जाने नहीं दोगे, उसको धमका रहे हो
ऑपरेटर- जितने में ले जा रहा है आप ले जाओ
रिपोर्टर- धमका क्यों रहे थे
ऑपरेटर- हमारे आपस की बात है, आपको क्या दिक्कत है, हम कुछ भी करें.
हर हॉस्पिटल में यही स्थिति
पड़ताल में साफ हो गया कि एक सिडिंकेट हॉस्पिटल के बाहर एक्टिव है, वही सिडिकेट जो मरीजों से और मृतकों के परिजनों को एंबुलेंस सर्विस के नाम पर लूट रहे हैं, आज इनके चेहरों को बेनकाब करना जरूरी है.
एंबुलेंस ऑपरेटर्स के सिंडिकेट की जड़ें कितनी गहरी है हमारे खुफिया कैमरे में कैद हुआ. अगर कोई एंबुलेंस का चालक सरकारी रेट में चलने को तैयार होता है तो सिंडिकेट से जुटे ऑपरेटर उसे धमकाते हैं, यानी सिंडिकेट ही रेट तय करता है.
एंबुलेंस सेवा के नाम पर जयपुर में आम लोगों की जेब पर डाका डाला जा रहा है. राजस्थान यूनिवर्सिटी हेल्थ साइंसेज हॉस्पिटल में हमारी मुलाकात एक मरीज के परिजन से हुई, उन्होंने बताया कि एंबुलेंस वालों ने 6000 रुपये वसूले.
मरीज के परिजन- मेरे पिता को हॉस्पिटल लेकर आए हैं, 6000 रुपये लिए हैं,
रिपोर्टर- कब लाए थे
मरीज के परिजन- रात को लाया था.
एंबुलेस ऑपरेटर मुंह मांगी रकम वसूल रहे हैं, हॉस्पिटल के अंदर ही हमारी मुलाकात एक दूसरे ऑपरेटर से हुई. उस क्षेत्र में जहां एंबुलेंस से डेडबॉडी को डिस्पैच किया जा रहा था. यहां पर एंबुलेंस ऑपरेटर ने सरकारी रेट की बजाए से अपने रेट पर चलने की बात कही.
बातचीत के दौरान इस ऑपरेटर का एक और साथी आ गया, इसके बाद वो हमें समझाने लगा कि रेट एकदम सही है. पहले उसने 2500 रुपये मांगे फिर 2000 पर आ गया, लेकिन उसने कहा कि रेट इससे कम नहीं होगा.
इसे भी क्लिक करें --- राजधानी में कोरोना की भयावह तस्वीर, एंबुलेंस के पैसे नहीं, ई-रिक्शा से शव लेकर पहुंचे श्मशान, NGO ने करवाया दाह संस्कार
एक सिंडिकेट एबुलेंस सर्विसेंज को ऑपरेट करता है, जिसके तार जयपुर के हर अस्पताल से जुड़े हुए हैं, यहां आपको ये याद रखना है कि सरकारी और निजी अस्पतालों के बाहर ऐसे ही एंबुलेंस ऑपरेटरों से आपका सामना होता है. ऐसे ही एंबुलेंस ऑपरेटरों के चंगुल में कैद है रुक्मणी देवी बेनी प्रसाद जयपुरिया हॉस्पिटल. आजतक की टीम जब यहां पहुंची तो पता चला कि एंबुलेंस ऑपरेटर्स की एक यूनियन है, वही तय करती है कौन कितने पैसों में जाएगा.
ताक पर सरकारी रेट लिस्ट
राजस्थान सरकार ने मरीजों के लिए एंबुलेंस सेवा की रेट लिस्ट फिक्स कर रखी है. लेकिन उस रेट लिस्ट को एंबुलेंस ऑपरेटर मानने को तैयार नहीं. सरकार ने 10 किलोमीटर तक 500 रुपये फिक्स किए हैं, इसमें 350 रुपये पीपीई और सेनेटाइजर के लिए अलग से देने होंगे, यानी दस किलोमीटर तक 850 रुपये सरकार ने फिक्स किए हैं. 10 किलोमीटर के ऊपर हर किलोमीटर के लिए मरीजों को 25 रुपये देने होंगे यानी 20 किलोमीटर तक करीब 1100 रुपये होते हैं लेकिन हॉस्पिटल के बाहर मरीजों से कई गुना रकम वसूली जा रही है.
देश के एक नामी हॉस्पिटल का कर्मचारी भी हमारे खुफिया कैमरे में कैद हुआ. कर्मचारी ने सरकारी रेट से ज्यादा किराया मांगा. शर्मनाक ये है कि नामी हॉस्पिटल का कर्मचारी मरीज की हालात के हिसाब से एंबुलेंस का रेट बताता है, यानी जितनी ज्यादा तबीयत खराब, उतना ज्यादा किराया वसूला जाएगा.
आजतक की टीम जयपुर में फोर्टिस हॉस्पिटल के बाहर एंबुलेंस ऑपरेटर से मिली. फोर्टिस हॉस्पिटल के कर्मचारी ने बताया कि 1400 रुपये में एंबुलेंस की सेवा मिलेगी, लेकिन मरीज की हालात के हिसाब से तय होगा कि कितना रेट है, यानी फोर्टिस जैसा नामी हॉस्पिटल भी सरकारी रेट की बजाय अपनी रेट लिस्ट के हिसाब से वैसे वसूल रहा है. बिना ऑक्सीजन वाली एंबुलेंस का रेट 800 रुपये बताया गया.
12 किमी दूरी के लिए 1 हजार
पड़ताल के दौरान आजतक की टीम राजस्थान के सबसे बड़े अस्पताल सवाई मान सिंह के बाहर से ऑपरेट होने वाली एंबुलेंस सेवाओं के पास पहुंची. 12 किलोमीटर की दूरी के लिए एंबुलेंस ऑपरेटर ने 1000 रुपये मांगे.
हमारी पड़ताल में कवातिया हॉस्पिटल के बाहर एक ऐसा एंबुलेंस ऑपरेटर भी मिला जो राजस्थान के सरकार द्वारा निर्धारित रेट पर चलने को तैयार हो गया.
राजस्थान सरकार का दावा है कि कोविड मरीजों को मुफ्त में एंबुलेंस मिल रही है और प्राइवेट अस्पतालों पर नकेल कस रखी है, ताकि ज्यादा रकम मरीजों से ना वसूल सकें. लेकिन हमारी पड़ताल में सरकारी दावे खरे नहीं उतरे. सरकार ने रेटलिस्ट जारी करके सिर्फ खानूपूर्ति की जबकि महामारी में मरीजों के परिजनों को ज्यादातर एंबुलेंस ऑपरेटर दोनों हाथों से लूटते नजर आए.
हमारे स्टिंग ऑपरेशन का मकसद है, सरकार तक मरीजों की दर्द पहुंचाना. दावा ये किया जाता है कि एंबुलेंस का किराया तय कर दिया गया, लेकिन सवाल ये है कि मरीजों से वसूला कितना जा रहा है. हमने राजस्थान सरकार को एंबुलेंस ऑपरेटरों के मनमाने किराये की सच्चाई बताई. जिम्मेदार मंत्री से बात की, सरकार की तरफ से जवाब दिया गया कि बड़ा और कड़ा एक्शन होगा. लेकिन सवाल ये है कि जनता के हितों से जुड़े ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर भी सरकार को जगाना क्यों पड़ता है.