पूरी दुनिया अभी सोच ही रही थी कि पाकिस्तान में निज़ाम बदले हुए करीब 3 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया और अभी तक वहां के नए वज़ीर-ए-आज़म ने कश्मीर का राग नहीं छेड़ा. और देखिए इमरान को भी कश्मीर याद आ ही गया. वो भी ऐसे वक्त में जब पूरा का पूरा मुल्क कर्ज़े में डूबा है. हर पाकिस्तानी पर करीब डेढ़ लाख रुपये का कर्ज़ है और मुल्क के पास उधार चुकाने के लिए पैसे तक नहीं. मगर ये पाकिस्तान की मजबूरी है. बिना कश्मीर का नाम लिया उनका खाना हज़म नहीं होता है.
इमरान खान से पाकिस्तान तो चलाया जा नहीं रहा. लेकिन कश्मीर पर बोलने में वो उसी तरह से आगे हैं. जिस तरह से पाकिस्तान के पुराने नेता करते रहे हैं. कश्मीर के नाम पर एक बार फिर वही पुराना टेप बजने लगा है. जो पिछले 70 सालों से बज रहा है. ना तो पाकिस्तान नया हुआ और ना ही धीमी अर्थव्यवस्था में रफ्तार आई. उल्टा घुटने के बल चलने को मजबूर हो गया है इमरान खान का मुल्क. पैसे पैसे को मोहताज पाकिस्तान से मुल्क के 20 करोड़ा लोग तो संभल नहीं रहे हैं. बावजूद इसके वज़ीर-ए-आज़म इमरान खान को यूएन से कश्मीर मसले का हल चाहिए.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कह रहे हैं 'हम 'IOK' (भारत का कश्मीर) में मासूम कश्मीरियों की हत्या की कड़ी निंदा करते हैं. समय आ गया है जब भारत का समझना चाहिए कि कश्मीर मसले का हल केवल बातचीत से निकल सकता है जिसमें UN SC का प्रस्ताव और कश्मीरियों की इच्छा शामिल होनी चाहिए.'
प्रधानमंत्री बनने से पहले और प्रधानमंत्री बनने के फौरन बाद इमरान खान नए पाकिस्तान के नए रिश्तों की बात करते रहे थे. तो लगा जैसे पाकिस्तान में कुछ बदलेगा. लेकिन ढाक के वही तीन पात हैं. जो मुल्क ही नफरत की बुनियाद पर खड़ा है. उससे उम्मीद भी औऱ क्या की जा सकती है.
जब से पाकिस्तान कश्मीर राग गा रहा है. तब से हिंदुस्तान पाकिस्तान को समझा रहा है कि अगर कश्मीर पर बात करनी है तो आमने सामने होगी. किसी तीसरे को इस मसले पर भारत बर्दाश्त नहीं करेगा. लेकिन बातचीत भी तब ही होगी. जब पाकिस्तान अपनी आतंक की फैक्ट्रियों को बंद करेगा और आतंकियों की सप्लाई को रोकेगा.
हालांकि कायदे से हमारी उम्मीद ही गलत थी. क्योंकि इमरान खान तो हमेशा से तालिबान के साथ खड़े रहे हैं. उनका उपनाम ही तालिबान खान था. मगर अब तो पाकिस्तान कश्मीर में मारे गए आतंकियों की याद में डाक टिकट भी जारी कर रहा है. मतलब साफ है पैसे से भले पाकिस्तान कंगाल हो. लचर अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी के साथ करप्शन वहां चरम पर है. मगर उसे अपनी जनता को गुमराह करने के लिए कश्मीर मुद्दा ही सुहाता है.
लिहाज़ा नए कप्तान ने भी इसी हथकंडे को अपना लिया है. आर्मी की बदौलत इमरान खान कुर्सी पर तो बैठ गए. लेकिन उनसे पाकिस्तान संभल नहीं रहा है. और ये हम नहीं खुद पाकिस्तानी नेता कह रहे हैं.
इमरान खान ने नए पाकिस्तान के नाम पर अमन की बातों वाला जो जाल फैलाया था. वो धीरे धीरे सबके सामने आ चुका है. आज वो अपनी ही लगाई आग में पेट्रोल डाल रहे हैं. पीएम बनते ही वो अमन चैन की बातें कर रहे थे. लेकिन इमरान खान की बातों वाला ये जाल हो. या फिर उनके आका जनरल बाजवा की आतंकी चाल. भारत पाकिस्तान की नस नस जानता है. जिसमें धोखे के अलावा कुछ और नहीं है. लेकिन अब इस धोखे की उम्र पूरी हो चुकी है.