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दिल दहला देने वाला था पेशावर के स्कूल में हुआ आतंकी हमला

पेशावर में आतंकवादियों ने जिस घिनौनी वारदात को अंजाम दिया उसके लिए खुदा तो क्या शैतान भी उन्हें माफ नहीं करेगा. स्कूल में हुए आतंकी हमले के बाद जब मौत की गिनती से लोग रूबरू हुए तो लगा कि ये दर्द किसी को भी मार सकता है, किसी का भी कलेजा छलनी कर सकता है. छोटे-छोटे बच्चों की स्कूल की वर्दी हरी से लाल हो गई. कुर्सी और बेंच के नीचे से निकाल-निकाल कर बच्चों को गोली मारी जा रही थी. हमेशा चहचहाने वाला क्लासरूम मासूमों की लाशों से पट चुका था. बस्ते और आईकार्ड से मां-बाप अपने बच्चों की लाशें ढूंढ रहे थे.

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पाकिस्तान में स्कूली बच्चों का कत्ल-ए-आम
पाकिस्तान में स्कूली बच्चों का कत्ल-ए-आम

पेशावर में आतंकवादियों ने जिस घिनौनी वारदात को अंजाम दिया उसके लिए खुदा तो क्या शैतान भी उन्हें माफ नहीं करेगा. स्कूल में हुए आतंकी हमले के बाद जब मौत की गिनती से लोग रूबरू हुए तो लगा कि ये दर्द किसी को भी मार सकता है, किसी का भी कलेजा छलनी कर सकता है. छोटे-छोटे बच्चों की स्कूल की वर्दी हरी से लाल हो गई. कुर्सी और बेंच के नीचे से निकाल-निकाल कर बच्चों को गोली मारी जा रही थी. हमेशा चहचहाने वाला क्लासरूम मासूमों की लाशों से पट चुका था. बस्ते और आईकार्ड से मां-बाप अपने बच्चों की लाशें ढूंढ रहे थे.

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बच्चों के बस्तों में किताबे थीं, हाथों में कलम और आतंकियों के बैग में बारूद और हाथों में एक-47. वो सारे बच्चे तब स्कूल के हॉल में डक्टरों से सीख रहे थे कि किसी जख्मी को फर्स्ट एड की मदद कैसे दी जा सकती है. और सितम देखिए ठीक उसी वक्त वो और उनके साथी खुद जख्मी हो कर गिर रहे थे या मर रहे थे.

स्कूल में ब्रेक के दौरान जिन क्लासरूम में बच्चे लुका-छुपी का खेल खेलते थे उसी क्लासरूम में आज अपनी जान बचाने के लिए वही बच्चे बेंच और कुर्सियों के नीचे छुपने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. पाकिस्तान क्या दुनिया ने आतंक का ऐसा कायर और घिनौना चेहरा इससे पहले कभी नहीं देखा था. एक तरफ निहत्थे मासूम फूल जैसे बच्चे और दूसरी तरफ जेहाद के नकाब में जानवरों से भी बदतर आतंकवादी.

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इस आतंकी हमले के बाद वो भी भ्रम टूट गया. कैसी लड़ाई है ये? किसके लिए लड़ाई है ये? स्कूलों में घुस कर छोटे-छोटे मासूम बच्चों पर गोलियों की बौछार करने वाले आखिर किस जेहाद, किस मजहब की लड़ाई लड़ रहे हैं? छोटे-छोटे बच्चों के पैरों और बाजुओं पर गोली मारी. थोड़ा बड़े बच्चे दिखे तो सीधे सिर में गोली मारी. उस्ताद नजर आए तो जिंदा जला दिया.

पेशावर के रिहाइशी इलाके में आबाद इस स्कूल में सिर्फ पाक फौज ही नहीं बल्कि आम लोगों के बच्चे भी पढ़ते थे. जूनियर और सीनियर क्लासेज को मिला कर करीब 1500 स्टूडेंट पढ़ते हैं यहां. मंगलवार सुबह स्कूल में दो खास चीजे थीं. पहली स्कूल के सबसे बड़े हॉल में जूनियर बच्चों के लिए फर्स्ट एड लर्निंग सेशन रखा गया था. इसके तहत पेशावर के कुछ बड़े डॉक्टर बच्चों को फर्स्ट एड देने की ट्रेनिंग दे रहे थे, जबकि सीनियर बच्चों के यूनिट टेस्ट चल रहे थे.

तभी सुबह करीब साढ़े दस बजे स्कूल के पिछले हिस्से की तरफ एक गाड़ी आकर रुकती है. उस गाड़ी से पाक रेंजर्स एफसी की वर्दी पहने आठ-दस लोग नीचे उतरते हैं. सभी के हाथों में बड़े-बड़े बैग थे. गाड़ी से उतरने के बाद सबसे पहले वो उसी गाड़ी को आग लगा देते हैं. इसके बाद वो स्कूल के पिछले दरवाजे को जिस पर ताला लगा था तोड़ देते हैं और अंधाधुंध गोलियां चलाते हुए स्कूल के अंदर घुस जाते हैं.

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स्कूल में उस वक्त हॉल के अंदर सैकड़ों बच्चे इकट्ठा थे, फर्स्ट एड लर्निंग सेशन के लिए. फायरिंग की आवाज सुनते ही स्कूल के टीचर फौरन बच्चों को इधर-उधर छुप जाने को कहते हैं. डरे-सहमे बच्चे बेंच और कुर्सियों के नीचे दुबक जाते हैं. मगर वो आतंकवादियों की नजरों से नहीं बच पाते. जिस बच्चे पर नजर पड़ती वो छोटा होता तो उसके बाजू और पैरों पर गोली मारते. जो बड़ा होता उसके सिर पर गोली मारते. जो भी बच्चा जहां था वहीं डर के मारे दुबका पड़ा था, क्योंकि जो जरा सा हिलता उसी को वो गोली मारते.

गोली-बारी के दौरान ही एक आतंकवादी ने एक महिला टीचर को पकड़ कर बच्चों के सामने ही उसे जिंदा जला डाला. इसी दौरान कुछ आतंकवादी स्कूल के अलग-अलग क्लासरूम में घुस गए तो कुछ कैंटीन और स्टाफ रूम में. सभी बस अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे, और सबसे ज्यादा निशाने पर थे वो बच्चे जो बड़े थे. पूरा स्कूल अब लगभग आतंकवादियों के कब्जे में था. पहले आधे घंटे में ही स्कूल बच्चों की लाशों से पट चुका था, फिर अछानक स्कूल के अंदर से दो धमाके की आवाज आती है.

हालांकि तब तक पाक सेना और रेंजर्स को भी हमले की खबर लग चुकी थी और वो स्कूल के चारों तरफ फैल भी चुके थे. मगर स्कूल के अंदर तब आठ हजार से ज्यादा बच्चे मौजूद थे. और उन आठ-दस आतंकवादियों के बीच वो दो-तीन फिदाईन भी थे जो खुद को कभी भी बम से उड़ा कर बच्चों को और नुकसान पहुंचा सकते थे.

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लिहाजा ऑपरेशन बेहद संभल कर किया जाना था. पर जल्दी भी किया जाना था. क्योंकि हर बीतता लम्हा लाशों की गिनती बढ़ा रहा था. और अब तक तीन घंटे तो गुजर ही गए थे.

मुठभेड़ के दौरान स्कूल के अंदर से कुल 18 धमाकों की आवाज आई. इस दौरान आतंकवादी भी लगातार पीछे हटते रहे. शाम साढ़े तीन बजे तक स्कूल के चार ब्लॉक में से तीन ब्लॉक पर पाक सेना का कब्जा हो चुका था, और इस दौरान पांच आतंकवादी मारे जा चुके थे. मगर स्कूल के सबसे आखिरी वाले हिस्से यानी चौथे ब्लॉक से गोलीबारी की आवाज अब भी आ रही थी.

उधर स्कूल के बाहर और अस्पताल का मंजर कलेजा चीर देने वाला था. जो बच्चे बाहर आ गए उनके घरवलों को जैसे उनकी दुनिया वापस मिल गई. चाहे घायल दुनिया ही क्यों ना थी, मगर जिनकी लाशें आईं उनके मां-बाप का सीना फट गया. स्कूल के बाहर और अस्पताल में हर तरफ बस आंसू और मातमी चीख थी. वो मातमी चीख जो पाकिस्तान क्या पूरी दुनिया को रुला गई.

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