भारी क़ीमतें चुकाकर हमने आज़ादी हासिल की थी. ख़ून में नहाकर हमने इसे पाया था. इस आज़ादी को हथियार बना कर अपने नामुकम्मल ख्वाबों को हकीकत की जमीन पर बोने की कोशिश कर रहे हैं हम सब. अपने अंधेरों को तरक्की की रोशनी में धोने में जुटे हैं हम सब. मंहगाई, ग़रीबीए भूख, बेरोज़गारी जैसे अहम मुद्दों से रोज़ाना और लगातार जूझती देश की अवाम को उबारने में लगे हैं हम सब. हम सब यानी सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों की ताक़त. वही हम सब जिन्होंने अपने बीच में से 543 लोगों को चुना, जो हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पंचायत में बैठकर हिंदुस्तान की तकदीर का फैसला कर सकें.
पर हाय री किस्मत. जहां खुद हमारे नेता एक-दूसरे को यूं चमकाने में लगे हों वहां देश की किस्मत कैसे चमक सकती है? लोकतंत्र के मिर्ची स्प्रे करते सांसद की तस्वीरें देखकर पछतावा होता है अपने फैसले पर कि हम सबने किन और कैसे लोगों को सड़क से उठा कर लोकतंत्र के इस मंदिर में बिठा दिया.
13 साल पहले ससंद की दहलीज़ तक आतंक जा पहुंचा था तब भी इतना दर्द नहीं हुआ था. क्योंकि वो पराए थे. पड़ोसी मुल्क से आए थे. पर ये सब तो अपने हैं. अपनों के बीच से उठ कर यहां आए हैं. ये हमारे नेता हैं. सर्वश्रेष्ठ नेता. क्योंकि ये लोकतंत्र के सबसे ऊंचे पायदान पर बैठे हैं. पर इनकी हरकतें सड़क छाप मवालियों से जरा भी कम नहीं. काली मिर्च पाउडर से अपनों पर ही हमला कर रहे हैं. माइक को हथियार बनाकर टूट पड़ना चाहते हैं. वो तो गनीमत है कि हथियार नहीं उठाया.
शर्म आती है, लेकिन क्या करें. दिल्ली से लेकर राज्यों तक में जो कुछ हो रहा है उसे देख कर बस यही ख्याल आता है कि सियासत के हाथों सियासत की ऐसी दुर्गति होगी, कभी सोचा ना था. पर अब सोचने की जरूरत है.
लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में शोर-शराबा, चीख-पुकार, बिलों को फाड़ना, डांटना, धमकाना तो चलता रहता है, पर भरी लोकसभा में मिर्च के स्प्रे का अटैक या माइक उखाड़ कर उसे बतौर हथियार इस्तेमाल करने की सोच, पहली बार देखने को मिला.
लोकपाल बिल की कॉपी को राज्यसभा में आरजेडी के राजनीति प्रसाद ने फाड़कर फेंक दिया था. लेकिन अब तो बहुत कुछ बदल गया. जिस अनहोनी की आहट कभी विधानसभाओं में सुनाई पड़ती थी, वो लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत का कलंक बन गई.
13 फरवरी को लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही हंगामा हो गया. सदन 11 बजे जैसे ही बैठा, तेलंगाना का मुद्दा प्रश्नकाल पर हावी हो गया. लिहाजा सदन को बारह बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया.
गुरुवार को जैसे ही गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने लोकसभा में अलग तेलंगाना राज्य का बिल पेश किया, आंध्र प्रदेश से संबंधित तमाम सांसद आगबबूला हो गए. तभी कांग्रेस से निष्कासित सांसद एल राजगोपाल ने सांसदों के ऊपर काली मिर्च का स्प्रे छिड़क दिया. अब मामला बाजी मारने का हो गया, लिहाजा तेलगू देशम पार्टी के सांसद वेणुगोपाल भी तोड़फोड़ में शामिल हो गए. वेणुगोपाल पर आरोप लगा कि ये जनाब तो चाकू लेकर आ गए थे, लेकिन वेणुगोपाल ने इसका खंडन किया.
हंगामा इतना बढ़ा कि उसी दौरान एक सदस्य ने स्पीकर मीरा कुमार के आसन पर रखे कागजों को छीनना शुरू कर दिया. हंगामा और अफरातरफी वाली हालत देख सदन की कार्यवाही दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई. साथ ही सदन भी खाली करा दिया गया. दो बजे सदन फिर से बैठा. लेकिन दो घंटे पहले की तनातनी माहौल में घुली हुई थी. इसी दौरान सांसद नारायण राव की तबीयत खराब हो गई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल ये है कि अव्यवस्था की बीमारी की मारी संसद का इलाज कैसे होगा?
मिर्च स्प्रे तो सांसदों पर एक माननीय सांसद ने ही किया, लेकिन इसकी जलन हिंदुस्तान का लोकतंत्र अपनी आंखों में महसूस कर रहा है. पता नहीं टीडीपी सांसद वेणुगोपाल ने चाकू निकाला या नहीं लेकिन संसद के सीने में दुर्व्यवहार का चाकू चुभ गया है. एक अलग राज्य का बंटवारा संसद में इतनी बड़ी दरार पैदा कर देगा, ये किसने सोचा था. मगर ये हो गया.
इसी मामले आनन फानन में कार्रवाई हो गयी. आंध्र प्रदेश के 17 सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया. ये सांसद सदन की पांच बैठकों या सेशन के बचे हुए समय में से जो कम होगा, उतने वक्त के लिए निलंबित रहेंगे.